Q.31. विदेशी नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – आज के समय में हर देश को दूसरे देशों से संबंध बनाने के लिए विदेश नीति बनानी पड़ती है। विदेश नीति का मतलब है — वह नीति या तरीका, जो एक देश दूसरे देशों के साथ संपर्क और व्यवहार करने में अपनाता है। आज कोई भी देश पूरी तरह से अकेले नहीं रह सकता। उसे अपनी राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जरूरतें पूरी करने के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। दूसरे देशों से संबंध बनाने के लिए जो नीति अपनाई जाती है, वही उस देश की विदेश नीति कहलाती है।
Q.32. विदेश नीति के चार अनिवार्य कारक बताइए।
उत्तर – किसी भी देश की विदेश नीति को तय करने के लिए चार जरूरी बातें मानी जाती हैं:
राष्ट्रीय हित – देश की सुरक्षा, विकास और सम्मान से जुड़े लक्ष्य।
राज्य की राजनीतिक स्थिति – देश के अंदर की सरकार और उसकी नीतियाँ कैसी हैं।
पड़ोसी देशों से संबंध – पास के देशों से रिश्ते कैसे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक माहौल – दुनिया में क्या चल रहा है, इसका असर विदेश नीति पर पड़ता है।
Q.33. प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन कहाँ तथा कब हुआ था ? बाद में ऐसे सम्मेलनों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर – गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के अब तक कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हो चुके हैं। नीचे कुछ प्रमुख सम्मेलनों का विवरण दिया गया है:
प्रथम सम्मेलन – 1961, बेलग्रेड (यूगोस्लाविया)
दूसरा सम्मेलन – 1964, काहिरा (मिस्र)
तीसरा सम्मेलन – 1970, लुसाका (जाम्बिया)
चौथा सम्मेलन – (यहाँ उल्लेख नहीं है, लेकिन हुआ था 1973 में अल्जीयर्स, अल्जीरिया)
पाँचवाँ सम्मेलन – 1976, कोलंबो (श्रीलंका)
छठा सम्मेलन – 1979, हवाना (क्यूबा)
सातवाँ सम्मेलन – 1983, नई दिल्ली (भारत)
आठवाँ सम्मेलन – 1986, हरारे (जिम्बाब्वे)
नौवाँ सम्मेलन – 1989, बेलग्रेड (फिर से)
दसवाँ सम्मेलन – 1992, जकार्ता (इंडोनेशिया)
ग्यारहवाँ सम्मेलन – 1995, कार्टाजेना (कोलंबिया)
बारहवाँ सम्मेलन – 1998, डरबन (दक्षिण अफ्रीका)
तेरहवाँ सम्मेलन – 24 फरवरी 2003, कुआलालंपुर (मलेशिया)
Q. 34. विदेश नीति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर – आज हर देश दूसरे देशों से संपर्क और सहयोग करता है। कोई भी देश अकेले नहीं रह सकता — सभी देश एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं।
जब कोई देश कुछ सिद्धांतों और नियमों के आधार पर दूसरे देशों से संबंध बनाता है, तो उसे ही विदेश नीति कहा जाता है।
विद्वानों की परिभाषाएँ (सरल शब्दों में):
रूथन स्वामी के अनुसार:
विदेश नीति उन नियमों और व्यवहारों का समूह है, जिनसे एक देश दूसरे देशों से अपने संबंध तय करता है।हिल के अनुसार:
विदेश नीति वह तरीका है, जिससे एक देश अपने हितों की रक्षा और विकास करता है।हार्टमैन के अनुसार:
विदेश नीति एक देश के राष्ट्रहितों का सोच-समझकर तैयार किया गया विवरण है।
निष्कर्ष (संक्षेप में):
विदेश नीति एक देश के वे सिद्धांत और कार्य होते हैं, जिनका प्रयोग वह दूसरे देशों से संबंध बनाते समय अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा और विकास के लिए करता है।
Q.35. विदेश नीति के लक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – विदेश नीति के दो मुख्य उद्देश्य
1. राष्ट्रीय हित (National Interests):
विदेश नीति का पहला और सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है — अपने देश के हितों की रक्षा करना। इसमें कई बातें शामिल होती हैं:
आर्थिक क्षेत्र में देश का विकास
राजनीतिक क्षेत्र में देश की स्थिरता और स्वतंत्रता बनाए रखना
रक्षा क्षेत्र में देश की सुरक्षा सुनिश्चित करना
2. विश्व समस्याओं के प्रति दृष्टिकोण (Attitude towards International Problems):
विदेश नीति का दूसरा उद्देश्य है — दुनिया की समस्याओं को लेकर सकारात्मक और सहयोगपूर्ण रवैया अपनाना, जैसे:
विश्व शांति बनाए रखना
सभी देशों का साथ मिलकर रहना (सह-अस्तित्व)
गरीब और विकासशील देशों का आर्थिक विकास
मानव अधिकारों की रक्षा करना
Q.36. भारतीय विदेश नीति राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखने में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुई है ?
उत्तर – भारत की विदेश नीति और उसके उद्देश्य
भारत की विदेश नीति के कुछ मुख्य सिद्धांत हैं:
गुटनिरपेक्षता (किसी भी शक्ति समूह में शामिल न होना)
दूसरे देशों से दोस्ती के संबंध बनाना
जातीय भेदभाव का विरोध करना
संयुक्त राष्ट्र का समर्थन करना
ये सभी सिद्धांत भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा में काफी मददगार साबित हुए हैं। भारत शुरू से ही एक शांतिप्रिय देश रहा है। इसलिए भारत की विदेश नीति भी शांति, दोस्ती और सहयोग पर आधारित रही है। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी भारत ने अपने सभी उद्देश्यों को सकारात्मक और मित्रतापूर्ण रखा है। इन सिद्धांतों और व्यवहारों के ज़रिए भारत ने दुनिया के सामने एक अच्छा और आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है।
Q.37. गठबन्धन की राजनीति क्या है ?
उत्तर – भारत में गठबंधन की राजनीति
आज भारत की राजनीति में गठबंधन का दौर चल रहा है।
भाजपा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) बनाया है।
कांग्रेस ने संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा (UPA) बनाया है।
लोकसभा चुनाव इन्हीं दो बड़े गठबंधनों के बीच होता है।
गठबंधन राजनीति में ये बातें ज़रूरी हो जाती हैं:
सरकार को बचाए रखना
नए सहयोगी दलों की तलाश करना
गठबंधन की एकता बनाए रखना
भारत में गठबंधन सरकार को पहली बार सफलतापूर्वक चलाने का श्रेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी को दिया जाता है। उन्होंने NDA की सरकार बनाई, जो लगभग 5 साल से ज्यादा चली।
इसके बाद कांग्रेस ने भी गठबंधन की राजनीति अपनाई और UPA गठबंधन के तहत सरकार बनाई।
2004 से 2014 तक डॉ. मनमोहन सिंह इसके प्रधानमंत्री रहे।
2014 में फिर NDA की सरकार बनी और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने।
निष्कर्ष:
भविष्य में उम्मीद है कि भारत में गठबंधन राजनीति एक स्थायी और दो पक्षों वाली व्यवस्था (द्विध्रुवीय राजनीति) बन जाएगी। इससे लोकतंत्र और संसदीय प्रणाली मजबूत होगी।
Q. 38. राष्ट्रीय लोकतंत्रात्मक गठबंधन की सबसे बड़ी विशेषता क्या थी ?
उत्तर – राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के बारे में सरल जानकारी:
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) भारत के सबसे बड़े विरोधी दल, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व में बना था। इसमें लगभग 13 या उससे ज्यादा पार्टियां शामिल थीं।
अटल बिहारी वाजपेयी ने इस गठबंधन की तीन बार सरकार बनाई।
कुल मिलाकर NDA की सरकार लगभग 6 साल तक चली।
वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में कुछ ही दिनों तक रहे, लेकिन बाद में उन्होंने लंबा कार्यकाल पूरा किया।
आज तक जो भी गैर-कांग्रेस पार्टी के प्रधानमंत्री बने हैं, उनमें से वाजपेयी का कार्यकाल सबसे लंबा रहा है।
Q. 39. गठबंधन सरकार की एक राजनीतिक समस्या का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर – गठबंधन राजनीति की समस्या:
गठबंधन राजनीति में पार्टियों के विचार हमेशा एक जैसे नहीं होते।
पार्टियाँ अक्सर गठबंधन छोड़ देती हैं, इसलिए गठबंधन सरकारें बार-बार टूटती या बदलती रहती हैं।
इससे लोगों का बहुदलीय प्रणाली पर भरोसा कम हो जाता है।
कई लोग दो-दलीय या तीन-दलीय, कभी-कभी एक-दलीय व्यवस्था के पक्षधर भी बन जाते हैं।
गठबंधन की सरकारें अक्सर अस्थायी होती हैं, कमज़ोर होती हैं और हमेशा संकट के डर के साथ काम करती हैं।
Q. 40. 1986 से किन नागरिक मसलों ने भारतीय जनता पार्टी की सुदृढ़ता प्रदान की ?
अथवा, शाहबानो मामला क्या था ? इस पर भारतीय जनता पार्टी ने काँग्रेस विरोधी. क्या रूख अपनाया ?
उत्तर – शाहबानो मामला और भाजपा की भूमिका (1986)
1986 में दो अहम बातें हुईं, जो भाजपा की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण हो गईं। पहली बात शाहबानो मामले से जुड़ी है। शाहबानो एक 62 साल की मुस्लिम महिला थीं, जो तलाकशुदा थीं। उन्होंने अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता माँगने के लिए अदालत में याचिका दी।
सर्वोच्च अदालत ने शाहबानो के पक्ष में फैसला दिया। लेकिन कुछ पुरातनपंथी मुस्लिम समूहों ने इस फैसले को अपने ‘पर्सनल लॉ’ में दखलंदाजी माना। इसके बाद कुछ मुस्लिम नेताओं की मांग पर सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक से जुड़े अधिकारों) अधिनियम, 1986 बना दिया। इस कानून ने सर्वोच्च अदालत के फैसले को रद्द कर दिया। सरकार के इस फैसले का विरोध कई महिला संगठनों, मुस्लिम महिलाओं और बुद्धिजीवियों ने किया।
भाजपा ने कांग्रेस सरकार की आलोचना की और इसे अल्पसंख्यक समुदाय को ‘अनावश्यक रियायत’ और ‘तुष्टिकरण’ बताया।
Q.41. वी. डी. सावरकर कौन था ? उन्होंने हिंदुत्व के महत्त्व की किन शब्दों में व्याख्या की?
उत्तर – 1. परिचय (Introduction)
वी. डी. सावरकर भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी थे। उन्होंने भारत के अंदर और बाहर क्रांतिकारियों के साथ मिलकर देश की आज़ादी के लिए संघर्ष किया।
1 जून 1909 को उनके एक साथी मदन लाल धींगड़ा ने लंदन में अंग्रेज अधिकारी सर विलियम कर्जन की हत्या की, जो भारत में निर्दोष लोगों की हत्याओं के लिए जिम्मेदार था।
अप्रैल 1910 में सावरकर को गिरफ्तार कर भारत जहाज पर बिठाकर भेजा गया। उन्होंने जहाज से कूदकर भागने की कोशिश की और फ्रांसीसियों के कब्जे वाले इलाके तक पहुँच गए।
सावरकर ने अपनी पुस्तक में 1857 के विद्रोह को प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कहा।
2. हिंदुत्व और उसकी व्याख्या (Hindutva and its explanation)
(i) ‘हिंदुत्व’ या ‘हिंदूपन’ शब्द सावरकर ने गढ़ा (coined) और परिभाषित किया। उन्होंने इसे भारतीय राष्ट्र की नींव बताया। उनका कहना था कि कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक तभी हो सकता है, जब वह भारतभूमि को न केवल अपनी ‘पितृभूमि’ बल्कि ‘पुण्यभूमि’ भी माने।
(ii) हिंदुत्व के समर्थक मानते हैं कि एक मजबूत राष्ट्र केवल उसी राष्ट्रीय संस्कृति के आधार पर बन सकता है जिसे सभी लोग स्वीकार करें। वे यह भी मानते हैं कि भारत में राष्ट्रीयता की बुनियाद केवल हिंदू संस्कृति हो सकती है, जो उदार और समायोजित करने वाली है।
Q. 42. सुरक्षा क्या है ?
उत्तर – सुरक्षा तभी सार्थक होती है जब वह उन खतरों से निपटे, जो मानव जीवन, समाज और देश की स्थिरता, संप्रभुता और भलाई को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। सभी खतरे समान गंभीर नहीं होते। उदाहरण के लिए:
प्राकृतिक आपदाएँ (जैसे बाढ़, भूकंप) एक प्रकार का खतरा हैं, जिनसे सुरक्षा के उपाय किए जाते हैं।
आर्थिक संकट या सामाजिक अशांति भी खतरे की श्रेणी में आ सकते हैं।
लेकिन छोटे-मोटे व्यक्तिगत या तात्कालिक खतरे सुरक्षा का विषय नहीं बनते जब तक वे व्यापक या गंभीर न हों।
इसलिए, सुरक्षा का दायरा प्रायः व्यापक होता है, लेकिन प्राथमिकता उन खतरों को दी जाती है जो राष्ट्रीय जीवन, समाज और व्यक्ति की रक्षा के लिए आवश्यक होते हैं।
Q.43. सुरक्षा की पारंपरिक धारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – सुरक्षा की पारंपरिक अवधारणा में सैन्य खतरे को सबसे गंभीर खतरा माना जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि सैन्य खतरा सीधे किसी देश की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता को प्रभावित करता है। जब कोई बाहरी देश सैनिक हमला करने की धमकी देता है या वास्तविक रूप में हमला करता है, तो यह देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाता है। ऐसी स्थिति में देश का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाता है। सैन्य खतरे से न केवल लोगों की जान-माल का नुकसान होता है, बल्कि देश के निर्णय लेने की स्वतंत्रता और उसकी सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाती है। इसलिए सभी देशों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपनी सेना को मजबूत बनाएँ और अपनी सीमाओं की रक्षा करें ताकि इस प्रकार के खतरों से अपनी संप्रभुता और स्वतंत्रता की रक्षा कर सकें।
Q.44. बुनियादी तौर पर किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में कौन-कौन से. विकल्प होते हैं ?
उत्तर – युद्ध की स्थिति में किसी सरकार के तीन मुख्य विकल्प होते हैं:
आत्मसमर्पण:
इस विकल्प में सरकार युद्ध को स्वीकार किए बिना विरोधी पक्ष की मांगों को मान लेती है। इसका मतलब होता है बिना लड़ाई के हार मान लेना और विरोधी की शर्तें मानना।युद्ध की तीव्रता बढ़ाना:
इस विकल्प में सरकार युद्ध को सीमित नहीं करती बल्कि इतना विनाश और ताकत दिखाती है कि विरोधी पक्ष भयभीत होकर सहमत हो जाए और आक्रमण न करे। यह एक तरह का युद्ध से बचाव के लिए कड़ी चेतावनी देना है।युद्ध का सामना करना और अपनी रक्षा करना:
जब युद्ध शुरू हो जाता है, तो सरकार अपनी सीमाओं और जनता की रक्षा के लिए पूरी ताकत से मुकाबला करती है। इसका उद्देश्य होता है कि हमलावर देश अपने उद्देश्य में सफल न हो और उसे पीछे हटने या पराजित होने पर मजबूर किया जाए।
Q.45. अपरोध का क्या अर्थ है ?
उत्तर – युद्ध में कोई देश भले ही अस्थायी रूप से आत्मसमर्पण कर दे, लेकिन वह इसे अपनी स्थायी नीति के रूप में स्वीकार नहीं करता। इसलिए, किसी भी देश की सुरक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य युद्ध की संभावना को पूरी तरह समाप्त या रोकना होता है, जिसे रोकथाम (Deterrence) कहा जाता है। रोकथाम का मतलब है ऐसी स्थिति बनाना कि संभावित आक्रामक देश को युद्ध छेड़ने का साहस न हो और वह डर के कारण हमले से पहले ही पीछे हट जाए
Q. 46. गठबंधन क्या है ?
उत्तर – पारंपरिक सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण तत्व है गठबंधन, जो विभिन्न देशों का एक संघ होता है।
अधिकांश गठबंधनों को लिखित संधि के माध्यम से औपचारिक रूप दिया जाता है। देश अपनी सैन्य और राजनीतिक ताकत को बढ़ाने तथा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ऐसे गठबंधनों में शामिल होते हैं। इस प्रकार के गठबंधन सदस्य देशों को सामूहिक सुरक्षा और सामंजस्य का अवसर प्रदान करते हैं, जिससे वे किसी भी बाहरी खतरे का सामना मिलकर कर सकें।
Q.47. विश्व राजनीति में संयुक्त राष्ट्र संघ एक केन्द्रीय सत्ता है परंतु वह नियंत्रण करने में असफल है। विवेचना कीजिए।
उत्तर – यह सत्य है कि विश्व राजनीति में संयुक्त राष्ट्र संघ एक महत्वपूर्ण सत्ता है, और भविष्य में यह और भी प्रभावशाली बन सकती है। तथापि, अपनी संरचना के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ अपने सदस्य देशों का प्रतिनिधि ही होता है। यह उतनी ही सत्ता रखता है जितनी अपने सदस्यों द्वारा उसे प्रदान की जाती है। इसलिए, विश्व राजनीति में प्रत्येक देश को अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वयं ही संभालनी पड़ती है।
Q.48. 1945 के पश्चात् महाशक्तियों की आंतरिक सुरक्षा की क्या स्थिति थी ?
उत्तर – 1945 के बाद अमेरिका और सोवियत संघ अपनी-अपनी सीमाओं के भीतर एकीकृत और शांति पूर्ण थे। अधिकांश यूरोपीय देश, विशेषकर शक्तिशाली पश्चिमी राष्ट्र, अपनी सीमाओं के भीतर बसे समुदायों या वर्गों से कोई गंभीर खतरा नहीं झेल रहे थे। इसलिए, इन देशों ने अपना मुख्य ध्यान अपनी सीमाओं के बाहर से उत्पन्न खतरों पर केंद्रित किया।
Q. 49. दो उदाहरण देकर बतायें कि किस प्रकार के हथियारों के निर्माण को प्रतिबंधित कर दिया गया है ?
उत्तर – कुछ विशिष्ट प्रकार के हथियारों के निर्माण और उपयोग को संधियों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है, जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं:
(i) 1972 की जैविक हथियार संधि (Biological Weapons Convention) — इस संधि के तहत जैविक हथियारों के निर्माण, भंडारण और उपयोग पर रोक लगाई गई है।
(ii) 1992 की रासायनिक हथियार संधि (Chemical Weapons Convention) — इस संधि के माध्यम से रासायनिक हथियारों के उत्पादन, भंडारण और उपयोग को प्रतिबंधित किया गया है।
यदि आप चाहें, तो मैं इस विषय पर और विस्तार से भी जानकारी दे सकता हूँ।
Q.50. सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा को मानवता की सुरक्षा अथवा विश्व सुरक्षा क्यों कहते हैं ?
उत्तर – सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा (Non-traditional Security Concept) में केवल सैन्य खतरे ही नहीं, बल्कि मानवीय अस्तित्व को प्रभावित करने वाले व्यापक और विविध प्रकार के खतरे शामिल होते हैं। इसमें पर्यावरणीय संकट, आतंकवाद, गरीबी, महामारी, सामाजिक अस्थिरता, मानवाधिकारों का उल्लंघन जैसे मुद्दे भी आते हैं। अपारंपरिक सुरक्षा के समर्थकों का मानना है कि सुरक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ राज्य की नहीं है, बल्कि इसमें शक्तिशाली समुदायों, विभिन्न समूहों और समूची मानवता की भी भूमिका होती है। अर्थात्, आज की वैश्विक दुनिया में सभी को मिलकर इन व्यापक खतरों से निपटना आवश्यक है। इसलिए, अपारंपरिक सुरक्षा की धारणा मानव-केंद्रित है और यह बताती है कि आधुनिक सुरक्षा केवल सैनिकों की सुरक्षा तक सीमित नहीं रह गई, बल्कि यह समाज और मानव जीवन के हर पहलू को सुरक्षित रखने का प्रयास है।
Q.51. विश्व सुरक्षा की धारणा की उत्पत्ति कैसे हुई ?
उत्तर – 1990 के दशक में विश्वव्यापी खतरे जैसे वैश्विक तापवृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग), अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, एड्स, बर्ड फ्लू जैसी महामारियां ने दुनिया को यह समझाया कि अब सुरक्षा केवल किसी एक देश तक सीमित नहीं रह गई है। ये समस्याएं सीमाओं को पार कर जाती हैं और एक देश की समस्या दूसरे देश के लिए भी खतरा बन जाती हैं। इसलिए किसी भी देश के लिए इन वैश्विक चुनौतियों का अकेले सामना करना संभव नहीं है।
इसलिए देशों को मिलकर सहयोग करना पड़ता है, ताकि:
पर्यावरण संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयास हो सकें,
आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाए जा सकें,
महामारियों को फैलने से रोका जा सके, और उनका प्रभाव कम किया जा सके।
इस प्रकार, 1990 के बाद से सुरक्षा की धारणा और भी व्यापक और वैश्विक हो गई है, जहाँ राष्ट्रों का सहयोग और सामूहिक कार्रवाई आवश्यक हो गई है।
Q.52. विश्व में खाद्य उत्पादन की कमी के क्या कारण हैं ?
उत्तर – विश्व की कृषि योग्य भूमि में वृद्धि नहीं हो रही है, जबकि मौजूदा उपजाऊ भूमि की उर्वरता लगातार कम हो रही है। साथ ही, प्राकृतिक चरागाह तेजी से समाप्त हो रहे हैं, जिससे पशुपालन प्रभावित हो रहा है। मत्स्य भंडार भी घटता जा रहा है, जो मछली उत्पादन और जीविका के लिए चिंता का विषय है। इसके अतिरिक्त, जलाशयों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है, जिससे जल संसाधनों की गुणवत्ता बिगड़ रही है और इसका नकारात्मक प्रभाव मत्स्य पालन एवं मानव जीवन दोनों पर पड़ रहा है। यह सारी परिस्थितियाँ पर्यावरणीय संकट और संसाधनों की कमी की गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती हैं।
Q.53. विश्व में स्वच्छ जल की क्या स्थिति है ?
उत्तर – संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार, विकासशील देशों की लगभग 1 अरब 20 करोड़ जनता को स्वच्छ जल की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसके साथ ही, लगभग 30 लाख से अधिक बच्चे साफ-सफाई की उचित सुविधाओं के अभाव में जीवन गंवा देते हैं। यह स्थिति स्वास्थ्य और मानव विकास के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
Q.54. ओजोन परत में छेद होना क्या है ?
उत्तर – पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में स्थित ओजोन गैस की मात्रा में लगातार कमी हो रही है, जिसे ओजोन परत में छेद कहा जाता है। इस कमी के कारण सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणें सीधे पृथ्वी पर पहुँचती हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र और मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करती हैं। इससे त्वचा के कैंसर, दृष्टि संबंधी रोग और पर्यावरणीय असंतुलन जैसे अनेक दुष्प्रभाव सामने आ सकते हैं।
Q.55. पृथ्वी सम्मेलन या रियो सम्मेलन क्या है ?
उत्तर – 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित पर्यावरण और विकास पर केन्द्रित एक महत्वपूर्ण सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में हुआ, जिसे पृथ्वी सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। इस सम्मेलन ने वैश्विक राजनीति में पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों को प्राथमिकता दी और पर्यावरण के प्रति बढ़ते वैश्विक सरोकारों को एक ठोस और समेकित रूप प्रदान किया। इस सम्मेलन ने सतत विकास के सिद्धांत को स्थापित करते हुए विश्व समुदाय को पर्यावरण संरक्षण एवं आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रेरित किया।
Q.56. अंटार्कटिक महोदश का विस्तार बताइये।
उत्तर – अंटार्कटिका महादेश का क्षेत्रफल लगभग 1 करोड़ 40 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह विश्व के सबसे बड़े निर्जन क्षेत्रों में से एक है, जिसमें विश्व का लगभग 26% निर्जन क्षेत्र शामिल है। यहां स्थलीय हिम का लगभग 90% हिस्सा स्थित है, साथ ही धरती पर मौजूद कुल जल का लगभग 70% इस महाद्वीप में मौजूद है। इसके अतिरिक्त, अंटार्कटिका का लगभग 3 करोड़ 60 लाख वर्ग किलोमीटर तक का विस्तार समुद्र में फैला हुआ है।
Q.57. ग्लोबल वार्मिंग के परिणाम बताएँ।
उत्तर – ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापवृद्धि का अर्थ है पृथ्वी के औसत तापमान में लगातार वृद्धि होना। इसके मुख्य कारणों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन जैसी ग्रीनहाउस गैसें शामिल हैं, जो वायुमंडल में गर्मी को फंसा कर तापमान बढ़ाती हैं। विश्व के बढ़ते तापमान से पर्यावरण और जीवन पर गंभीर खतरे मंडरा सकते हैं, जैसे समुद्र स्तर का बढ़ना, जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक तंत्र का असंतुलन। इस समस्या को हल करने के लिए विभिन्न देशों ने बातचीत की है और क्योटो प्रोटोकॉल नामक अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
Q.58. दक्षिणी देशों के वन आंदोलन की क्या कमी रही है ?
उत्तर – अनेक दक्षिणी देशों भारत, मैक्सिको, चिली, ब्राजील, मलेशिया, इंडोनेशिया, अफ्रीका आदि में वन आंदोलन चल रहे हैं, परंतु इन पर बहुत दबाव है। तीन दशकों से पर्यावरण को लेकर सक्रियता का दौर जारी है। इसके बावजूद तीसरी दुनिया के विभिन्न देशों में वनों की कटाई खतरनाक गति से जारी है। पिछले दशक में बचे खुचे विशालतम वनों का विनाश बढ़ा है।
Q.59. धरती के ऊपरी वायुमंडल में ओजोन गैस की मात्रा में हो रही निरंतर कमी से मानव के लिए कैसे खतरा पैदा हो रहा है ? ।
उत्तर – धरती के ऊपरी वायुमंडल में मौजूद ओजोन गैस की मात्रा लगातार कम हो रही है, जिसे ओजोन परत में छेद कहा जाता है। ओजोन परत पृथ्वी को हानिकारक अल्ट्रावायलेट (UV) किरणों से बचाने का काम करती है। इसके पतले होने या छेद बनने से UV किरणें सीधे पृथ्वी की सतह तक पहुंचती हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र और मनुष्य के स्वास्थ्य पर गंभीर खतरे उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे त्वचा कैंसर, आँखों की समस्याएँ, और जैव विविधता में कमी। इसलिए ओजोन परत की रक्षा विश्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

SANTU KUMAR
I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.
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