Q.60. समुद्रतटीय क्षेत्रों का प्रदूषण किस प्रकार से मानव और पर्यावरण के लिए हानिकारक है ?
उत्तर – समुद्रतटीय क्षेत्रों में प्रदूषण की समस्या दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। यद्यपि समुद्र का मध्यवर्ती भाग अभी भी अपेक्षाकृत स्वच्छ बना हुआ है, किंतु तटवर्ती जलमानव जनित गतिविधियों के कारण तीव्र गति से प्रदूषित हो रहा है। विश्वभर में समुद्र तटों के निकट मानव आबादी का घनत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। यदि इस प्रवृत्ति पर समय रहते नियंत्रण नहीं पाया गया, तो समुद्री पर्यावरण की गुणवत्ता में भारी गिरावट आ सकती है, जो न केवल समुद्री जैवविविधता के लिए घातक होगी, बल्कि मानव जीवन पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अतः समुद्रतटीय प्रदूषण की रोकथाम हेतु वैश्विक स्तर पर ठोस कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है।
Q.61. भारतीय विदेश नीति के वैचारिक मलाधारों की चर्चा कीजिए।
उत्तर – भारत की विदेश नीति के वैचारिक मूलाधार
भारत की विदेश नीति का निर्माण किसी एक कालखंड या घटना का परिणाम नहीं है, बल्कि यह विभिन्न वैश्विक और राष्ट्रीय परिस्थितियों की परिणति है। इसके वैचारिक मूलाधारों की चर्चा निम्नलिखित बिंदुओं में की जा सकती है:
राष्ट्रीय आंदोलनों की पृष्ठभूमि में विकास
भारत की विदेश नीति का स्वरूप उस युग में उभरा जब विश्व भर में राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों की लहर चल रही थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने भी इस नीति को एक विशेष दृष्टिकोण प्रदान किया, जिसमें स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता और औपनिवेशिक शोषण का विरोध प्रमुख था।परस्पर निर्भरता वाले विश्व की परिस्थिति
भारत की स्वतंत्रता के समय विश्व द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात एक नई व्यवस्था की ओर बढ़ रहा था। राष्ट्रों के बीच परस्पर निर्भरता की भावना उभर रही थी। इस परिवेश में भारत ने संतुलित और यथार्थवादी विदेश नीति अपनाई, जो न केवल उसकी राष्ट्रीय हितों की रक्षा करती थी, बल्कि वैश्विक शांति की दिशा में भी योगदान देती थी।उपनिवेशवाद के विघटन का प्रभाव
भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण वैचारिक आधार उपनिवेशीकरण के विरुद्ध उसकी ऐतिहासिक भूमिका रही है। भारत ने वैश्विक मंचों पर उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध आवाज उठाई और नवस्वतंत्र राष्ट्रों को सहयोग देने की नीति अपनाई।वैश्विक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों का प्रभाव
भारत की विदेश नीति का विकास उस दौर में हुआ जब विश्व में तीव्र सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन हो रहे थे। शीत युद्ध, संयुक्त राष्ट्र की स्थापना, शस्त्र नियंत्रण की आवश्यकता, विकासशील देशों की समस्याएं – इन सभी ने भारत को एक संतुलित, तटस्थ एवं नैतिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया।
Q.62. 1960 के दशक में किस संकट को ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ के रूप में जाना गया ?
उत्तर – क्यूबा मिसाइल संकट और अमेरिका की प्रतिक्रिया सन् 1962 में क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा गुप्त रूप से परमाणु मिसाइलें तैनात की गईं। इसकी जानकारी अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को लगभग तीन सप्ताह बाद प्राप्त हुई। यह समाचार अमेरिका के लिए अत्यंत गंभीर खतरे का संकेत था, क्योंकि इन मिसाइलों की मारक क्षमता अमेरिका के मुख्य भूभाग तक पहुँच सकती थी। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी और उनके सलाहकार इस संकट से निपटने के लिए अत्यंत सतर्क थे। वे ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहते थे जिससे अमेरिका और सोवियत संघ के बीच सीधा परमाणु संघर्ष छिड़ जाए। इसके बावजूद वे इस बात पर दृढ़ थे कि सोवियत संघ के नेता निकिता खुश्चेव क्यूबा से इन मिसाइलों को अविलंब हटाएं। स्थिति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से राष्ट्रपति कैनेडी ने अमेरिकी नौसेना को आदेश दिया कि वह अटलांटिक महासागर में क्यूबा की ओर बढ़ते सोवियत जहाजों की नाकाबंदी करे और उन्हें रोके। इस प्रकार एक भयावह परमाणु युद्ध की आशंका के बीच विश्व एक गहरे संकट में डूब गया था, जिसे ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ के नाम से जाना जाता है।
Q.63. जवाहरलाल नेहरू कौन थे ? विश्व नेता के रूप में उनकी भूमिका संबंधी कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दु लिखिए।
उत्तर – जवाहरलाल नेहरू: विश्व शांति के अग्रदूत जवाहरलाल नेहरू (1889–1964) स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री (1947–1964) थे। वे केवल एक कुशल राजनेता ही नहीं, बल्कि विश्व शांति के महान दूत के रूप में भी विख्यात थे। उनका दृष्टिकोण वैश्विक था और उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर शांति, सहयोग और समानता के सिद्धांतों को सशक्त रूप से प्रस्तुत किया। नेहरू ने एशिया और अफ्रीका के नवस्वतंत्र राष्ट्रों के बीच एकता को बल दिया तथा उपनिवेशवाद के विरुद्ध एक दृढ़ और नैतिक रुख अपनाया। उन्होंने निरस्त्रीकरण और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की वकालत करते हुए शीत युद्ध की ध्रुवीय राजनीति से भारत को अलग रखा और गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखने में प्रमुख भूमिका निभाई। उनकी विदेश नीति विश्व-शांति की स्थापना और वैश्विक सद्भाव के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
Q.64. भारत को सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए कारण बतावें।
उत्तर – संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता और भारत का दावा सन् 1945 में जब संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई थी, तब उसके केवल 51 सदस्य राष्ट्र थे। वर्तमान में यह संख्या बढ़कर 190 से अधिक हो चुकी है। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि संयुक्त राष्ट्र के सबसे प्रभावशाली अंग, सुरक्षा परिषद, में भी समयानुकूल सुधार किया जाए। सुरक्षा परिषद में प्रारंभ में 11 सदस्य थे, जिन्हें 1965 में बढ़ाकर 15 किया गया। किन्तु आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में यह संरचना अपर्याप्त प्रतीत होती है। अतः सुरक्षा परिषद का विस्तार अनिवार्य है, जिसमें जर्मनी, जापान, ब्राजील और भारत जैसे प्रभावशाली देशों को स्थायी सदस्यता प्रदान की जानी चाहिए।
भारत के दावे के समर्थन में तीन प्रमुख बिंदु प्रस्तुत किए जा सकते हैं:
विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र – भारत एक सशक्त, स्थिर और जीवंत लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला देश है, जिसकी लोकतांत्रिक परंपराएं गहरी और व्यापक हैं।
सबसे बड़ा विकासशील राष्ट्र – जनसंख्या, भूगोल और आर्थिक विकास की दृष्टि से भारत विश्व के प्रमुख विकासशील देशों में अग्रणी है। इसकी भागीदारी वैश्विक निर्णयों में आवश्यक है।
गुट निरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व – भारत ने शीत युद्ध काल में गुटनिरपेक्षता का मार्ग अपनाया और इस आंदोलन का प्रमुख प्रवक्ता बनकर वैश्विक शांति, सह-अस्तित्व और न्याय की पैरवी की।
इन आधारों पर भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिलना न केवल न्यायसंगत है, बल्कि यह संयुक्त राष्ट्र को अधिक प्रतिनिधि, प्रभावी और समकालीन बनाएगा।
Q.65. ‘क्योटो प्रोटोकॉल’ क्या है ?
उत्तर – क्योटो प्रोटोकॉल : वैश्विक तापवृद्धि के विरुद्ध एक अंतर्राष्ट्रीय प्रयास क्योटो प्रोटोकॉल एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जिसका उद्देश्य वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटना है। यह समझौता मुख्य रूप से औद्योगिक रूप से विकसित देशों को लक्षित करता है और उनके लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को सीमित करने के ठोस लक्ष्य निर्धारित करता है। इस प्रोटोकॉल के अंतर्गत कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄), नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O), हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) जैसी गैसों को नियंत्रित करने पर विशेष जोर दिया गया है, क्योंकि वैज्ञानिकों के अनुसार ये गैसें वैश्विक तापवृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) में मुख्य भूमिका निभाती हैं। इन गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन पृथ्वी के वायुमंडल में ऊष्मा को फंसा देता है, जिससे धरती का तापमान बढ़ता है और जलवायु असंतुलन उत्पन्न होता है। क्योटो प्रोटोकॉल, जलवायु परिवर्तन के प्रति वैश्विक जागरूकता और उत्तरदायित्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने की दिशा में विश्व समुदाय के संयुक्त प्रयासों का प्रतीक है।
Q.66. काँग्रेस सिंडिकेट का अर्थ बतलावें।
उत्तर – यह कांग्रेस पार्टी के पुराने और वरिष्ठ नेताओं का एक गुट था, जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सत्ता से हटाने के उद्देश्य से उन्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया।
Q.67. दलाई लामा का भारत में शरण लेने का कारण स्पष्ट करें।
उत्तर – तिब्बत पर चीन का नियंत्रण और भारत की भूमिका सन् 1950 में चीन ने तिब्बत पर सैन्य नियंत्रण स्थापित कर लिया। तिब्बत के अधिकांश नागरिकों ने इस चीनी अधिग्रहण का विरोध किया, क्योंकि वे अपने धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्वायत्तता को खोना नहीं चाहते थे। चीन ने भारत को आश्वासन दिया था कि तिब्बत को चीन के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक स्वायत्तता प्रदान की जाएगी, किंतु यह आश्वासन व्यवहार में कभी नहीं उतरा। इसके विपरीत, तिब्बती जनता को कठोर दमन, सांस्कृतिक नियंत्रण और मानवाधिकार हनन का सामना करना पड़ा। चीन की निरंकुश नीतियों के विरुद्ध सन् 1958 में तिब्बत में एक सशस्त्र विद्रोह भड़क उठा, जिसे चीनी सेनाओं ने बलपूर्वक कुचल दिया। स्थिति अत्यंत भयावह हो जाने पर तिब्बत के आध्यात्मिक और पारंपरिक नेता दलाई लामा ने भारत की सीमा में प्रवेश किया और 1959 में भारत सरकार से शरण की याचना की। भारत ने मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए उन्हें शरण प्रदान की, जिससे भारत-चीन संबंधों में एक नया मोड़ आया।
Q.68. संयुक्त राष्ट्र की स्थापना कब हुई ? इसकी स्थापना के प्रमुख उद्देश्य क्या थे ?
उत्तर – संयुक्त राष्ट्र संघ : एक वैश्विक शांति संस्था संयुक्त राष्ट्र (United Nations) एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जिसकी स्थापना का उद्देश्य विश्व में युद्धों की पुनरावृत्ति को रोकना, शांति और सौहार्द बनाए रखना, तथा वैश्विक जन-कल्याण के कार्यों को प्रोत्साहित करना था। वर्तमान में लगभग 190 से अधिक देश इसके सदस्य हैं। इसकी विधिवत स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद हुई। इस संस्था का मुख्यालय अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में स्थित है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख उद्देश्य (Aims):
अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना – विश्व में शांति स्थापित करने और संघर्षों को रोकने के लिए सक्रिय प्रयास करना।
राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना – देशों के बीच सम्मान, समानता और सहयोग पर आधारित संबंधों को सुदृढ़ करना।
अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान – आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय विषयों से जुड़ी वैश्विक समस्याओं को आपसी सहयोग से हल करना।
सामूहिक प्रयासों का समन्वय – उपर्युक्त लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सदस्य देशों की नीतियों और गतिविधियों में समन्वय स्थापित करना।
संयुक्त राष्ट्र संघ आज भी विश्व शांति, मानवाधिकारों की रक्षा, पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसकी भूमिका वैश्विक सहयोग और सह-अस्तित्व की भावना को मजबूत करने में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
Q.69. महिला राष्ट्रीय आयोग का गठन कब हुआ? इसके अधीन कौन-कौन से उपायों को सम्मिलित किया जिनके द्वारा महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो।
उत्तर – राष्ट्रीय महिला आयोग : महिलाओं के अधिकारों की रक्षक संस्था महिलाओं के अधिकारों और उनके कानूनी संरक्षण को सुनिश्चित करने हेतु भारत सरकार ने एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। सन् 1990 में भारतीय संसद ने एक विधेयक पारित कर राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women) की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया, जो औपचारिक रूप से 31 जनवरी 1992 को अस्तित्व में आया। इस आयोग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों की रक्षा करना तथा उनके साथ होने वाले अन्याय और अत्याचार के मामलों में आवश्यक हस्तक्षेप करना है। आयोग को निम्नलिखित प्रमुख कार्य सौंपे गए हैं:
कानूनों की समीक्षा करना – आयोग महिला-संबंधी वर्तमान कानूनों की समीक्षा करता है और उसमें आवश्यक संशोधनों की सिफारिश करता है ताकि वे महिलाओं के हितों की बेहतर रक्षा कर सकें।
शिकायतों पर कार्रवाई – जब किसी महिला के साथ अत्याचार या अन्याय होता है, तो आयोग उसकी शिकायत पर स्वतः संज्ञान ले सकता है या पीड़िता की याचिका पर कार्रवाई कर सकता है।
महिलाओं के हितों की सुरक्षा – जहाँ कहीं भी संभव और उपयुक्त हो, आयोग महिला कल्याण के लिए कदम उठाता है और नीतिगत सुझाव देता है।
राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं की आवाज़ को संस्थागत रूप देकर, उन्हें न्याय दिलाने और समाज में समानता सुनिश्चित करने की दिशा में एक सशक्त प्रयास है।
Q.70. शिक्षा और रोजगार में पुरुषों और महिलाओं की स्थिति का अंतर बताइए।
उत्तर – शिक्षा और रोजगार में लिंग आधारित असमानताएँ पुरुषों और महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में शिक्षा और रोजगार के क्षेत्रों में व्यापक अंतर देखा जाता है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, स्त्री साक्षरता दर केवल 54.16 प्रतिशत थी, जबकि पुरुष साक्षरता दर 75.85 प्रतिशत तक थी। यह स्पष्ट अंतर महिला शिक्षा के अभाव को दर्शाता है। शिक्षा की कमी के कारण महिलाओं की रोजगार के अवसर सीमित रह जाते हैं। इसके साथ ही वे आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त करने और स्वास्थ्य सुविधाओं का पूरा लाभ उठाने में भी पिछड़ जाती हैं। इस असमानता के परिणामस्वरूप महिलाओं की समग्र सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति बाधित होती है। इसलिए, शिक्षा एवं प्रशिक्षण के क्षेत्र में महिलाओं को समान अवसर प्रदान करना आवश्यक है, ताकि वे रोजगार और जीवन के अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में पुरुषों के बराबर भागीदारी सुनिश्चित कर सकें।
Q.71. मई 1961 में केन्द्र सरकार के काका कालेलकर आयोग की सिफारिशें अस्वीकार करने के बाद राज्य सरकारों को क्या परामर्श दिया था ?
उत्तर – अन्य पिछड़ी जातियों के आरक्षण से संबंधित केंद्र सरकार का निर्णय (1961) मई 1961 में केंद्र सरकार ने अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) की अखिल भारतीय सूची को समाप्त करते हुए निर्णय लिया कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) को छोड़कर किसी भी अन्य जाति को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाएगा। इसका उद्देश्य आरक्षण व्यवस्था को अधिक प्रभावी और सुव्यवस्थित बनाना था। इसके पश्चात् अगस्त 1961 में केंद्र सरकार ने राज्यों को यह सलाह दी कि यदि वे पिछड़ी जातियों की पहचान के लिए कोई स्पष्ट मानदंड निर्धारित करने में असमर्थ हैं, तो जाति आधारित वर्गीकरण के बजाय आर्थिक आधार पर पिछड़ेपन का निर्धारण करना अधिक उचित होगा। यह प्रस्ताव आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण के दायरे को विस्तृत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण सुझाव था।
Q.72. ‘क्षेत्रवाद एवं राष्ट्रीय सरकार’ विषय पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर –
क्षेत्रवाद ने राष्ट्र को गंभीर चुनौती दी। विभिन्न क्षेत्रों में क्षेत्रीय नेताओं और समूहों द्वारा अपनी मांगों को लेकर उठाए गए आंदोलन राष्ट्रीय एकता के लिए चिंता का कारण बने। इन परिस्थितियों में केंद्र सरकार को कई बार हथियार उठाकर इन विद्रोहों को दबाना पड़ा।
स्वायत्तता की मांगों से जुड़े संघर्षों का स्वरूप विविध रहा। यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि सभी संघर्ष लंबे समय तक चले। कई मामलों में केंद्र सरकार को विवाद समाप्त करने के लिए सुलह की बातचीत का सहारा लेना पड़ा तथा स्वायत्तता की मांग करने वाले समूहों के साथ समझौते करना पड़े।
क्षेत्रवाद के समर्थक गुटों और सरकार के बीच लंबी बातचीत के पश्चात् समझौता संभव हो सका। इस बातचीत का प्रमुख उद्देश्य विवादित मुद्दों को संविधान के दायरे में रहते हुए हल करना था। हालांकि, इस प्रक्रिया में अनेक बार हिंसात्मक घटनाएँ हुईं, जिससे समझौते तक पहुँचने की यात्रा कठिन और जटिल रही।
Q.73. 1991 में ‘नई विश्व व्यवस्था’ की शुरुआत कैसे हुई ?
उत्तर – नई विश्व व्यवस्था की शुरुआत
सोवियत संघ के अचानक विघटन ने विश्व को चौंका दिया। जब दो महाशक्तियाँ — अमेरिका और सोवियत संघ — थीं, तो अब केवल एक ही महाशक्ति बची थी, वह भी पूरी ताकत के साथ। इस प्रकार, ऐसा प्रतीत हुआ कि 1991 में अमेरिका का वर्चस्व (Hegemony) स्थापित हो गया, क्योंकि सोवियत संघ अंतरराष्ट्रीय मंच से पूरी तरह गायब हो गया। यह एक हद तक सही है, लेकिन इसके साथ ही हमें दो महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।
पहली बात यह है कि अमेरिकी वर्चस्व के कुछ पहलुओं का इतिहास केवल 1991 तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इतिहास दूसरी विश्वयुद्ध की समाप्ति के समय, यानी 1945 तक जाता है। उस समय से ही अमेरिका ने वैश्विक स्तर पर अपनी प्रभावशाली भूमिका निभानी शुरू कर दी थी।
दूसरी बात यह है कि अमेरिका ने 1991 के बाद ही वर्चस्वकारी शक्ति के रूप में व्यवहार करना शुरू नहीं किया। वास्तव में, यह स्पष्ट होना बहुत बाद की बात थी कि विश्व एक वर्चस्ववादी युग में प्रवेश कर चुका है, जहाँ अमेरिका प्रमुख महाशक्ति के रूप में उभरा है।
Q.74. इराक पर अमेरिकी आक्रमण के दो वास्तविक उद्देश्य लिखिए।
उत्तर – (i) इराक के तेल भंडार पर अमेरिकी नियंत्रण:
अमेरिका, जो स्वयं एक विकसित राष्ट्र है और विश्व के लगभग 40 प्रतिशत तेल संसाधनों का उत्पादन करता है, इसके बावजूद वह अन्य तेल उत्पादक देशों पर नियंत्रण बनाए रखना चाहता है। इसका मुख्य उद्देश्य अपनी तेल आपूर्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करना है ताकि यातायात, सैन्य तथा अन्य आवश्यक क्षेत्रों में तेल की कमी या संकट की स्थिति कभी उत्पन्न न हो।
(ii) इराक में मनपसंद सरकार की स्थापना:
अमेरिका चाहता है कि इराक में उसकी समर्थित और नियंत्रण वाली सरकार बनी रहे, जिससे कि कुवैत सहित खाड़ी क्षेत्र के अन्य तेल उत्पादक देश भी उसके मित्र और सहयोगी बने रहें। यह रणनीति अमेरिका को क्षेत्रीय वर्चस्व बनाए रखने और अपनी वैश्विक भूमिका को सुदृढ़ करने में मदद करती है। अमेरिका अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए इराक समेत अन्य देशों में अपने अनुकूल सरकारों को स्थापित करना चाहता है।
Q.75. वर्चस्व का अर्थ क्या होता है ? समझाइए।
उत्तर – वर्चस्व (Hegemony) वर्चस्व राजनीति की एक ऐसी कहानी है जो शक्ति और प्रभाव के इर्द-गिर्द घूमती है। जैसे हर आम इंसान चाहता है कि वह ताकतवर बने और अपनी स्थिति को कायम रखे, वैसे ही विभिन्न समूह और राष्ट्र भी शक्ति प्राप्त करने और उसे बरकरार रखने के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं। हम अक्सर सुनते हैं कि कोई व्यक्ति या देश ताकतवर होता जा रहा है या ताकत हासिल करने की कोशिश में है। विश्व राजनीति में भी विभिन्न देश या देशों के समूह सैन्य प्रभुत्व, आर्थिक ताकत, राजनीतिक सम्मान और सांस्कृतिक प्रभाव के माध्यम से अपनी शक्ति स्थापित करने का प्रयास करते हैं। जब अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में शक्ति का एक प्रमुख केंद्र होता है, तो उसे ‘वर्चस्व’ (Hegemony) कहा जाता है। इस शब्द का उपयोग तब किया जाता है जब कोई राष्ट्र या समूह अपने प्रभाव और नियंत्रण से वैश्विक राजनीति में दबदबा कायम करता है।
Q.76. एकधुवीय व्यवस्था का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर – शीत युद्ध काल और एकध्रुवीय व्यवस्था शीत युद्ध (1945-1991) के दौरान विश्व दो प्रमुख शक्ति-गुटों में बँटा हुआ था। इस काल में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ही अपने-अपने गुटों के अग्रणी नेता थे। सोवियत संघ के पतन के बाद वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव आया और दुनिया में एकमात्र महाशक्ति के रूप में अमेरिका उभरा। जब अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था किसी एक महाशक्ति के प्रभुत्व में होती है, तो इसे ‘एकध्रुवीय व्यवस्था’ कहा जाता है। यहाँ ‘ध्रुव’ शब्द का प्रयोग भौतिकी से लिया गया है, जो थोड़ा भ्रामक हो सकता है। क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में यदि शक्ति का केवल एक केंद्र हो, तो इसे ‘वर्चस्व’ (Hegemony) शब्द द्वारा अधिक सटीक रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
Q.77. यूरोपीय संघ और आसियान के दो सामान्य उपयोगी निर्णयों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – (i) यूरोपीय संघ और आसियान दोनों ने अपने-अपने क्षेत्रों में विद्यमान ऐतिहासिक विरोधाभासों और पुराने संघर्षों का समाधान क्षेत्रीय स्तर पर खोजने का प्रयास किया है।
(ii) साथ ही, दोनों संगठनों ने अपने-अपने क्षेत्रों में एक अधिक शांतिपूर्ण एवं सहकारी क्षेत्रीय व्यवस्था विकसित करने के साथ-साथ सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं को एकजुट करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कार्य किए हैं।
Q.78. यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – यूरोपीय आर्थिक संघ (EEC) यूरोपीय आर्थिक संघ, जिसे यूरोपीय सामान्य बाजार भी कहा जाता है, शीत युद्ध के दौरान स्थापित सबसे प्रभावशाली आर्थिक समुच्चय था। इस संघ के प्रारंभिक सदस्य देशों में फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, बेल्जियम तथा लक्जमबर्ग शामिल थे। इस संगठन का निर्माण यूरोपीय कोयला और स्टील समुदाय (European Coal and Steel Community) की सफलता से प्रेरित होकर हुआ था। कोयला और स्टील समुदाय ने अपने पहले पाँच वर्षों (1951-1956) में इस्पात उत्पादन में 50 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हासिल की थी। यूरोपीय आर्थिक संघ के संस्थापक सदस्यों ने आपस में सभी प्रकार के सीमा शुल्क और कोटा प्रणाली को समाप्त कर मुक्त व्यापार और खुली प्रतिस्पर्धा के मार्ग को प्रशस्त किया। इसके परिणामस्वरूप, 1961 तक यह संघ एक सफल संगठन के रूप में स्थापित हो गया। इसकी सफलता को देखते हुए 1973 में ब्रिटेन भी इस संघ में शामिल हो गया।
Q. 79. आतंकवाद सुरक्षा के लिए परंपरागत खतरे की श्रेणी में आता है या अपरंपरागत खतरे की श्रेणी में ?
उत्तर – 1. आतंकवाद की परिभाषा और स्वरूप
आतंकवाद एक अपरंपरागत प्रकार की हिंसा है, जिसका आशय राजनीतिक उद्देश्य के लिए जान-बूझकर और निर्दयतापूर्वक आम नागरिकों को निशाना बनाना होता है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद कई देशों में फैला हुआ है और इसके लक्ष्य अनेक देशों के नागरिक होते हैं।
2. आतंकवाद के उद्देश्य और कार्यप्रणाली
जब कोई राजनीतिक परिस्थिति या सरकार किसी आतंकवादी समूह को अस्वीकार्य लगती है, तो वे बल प्रयोग या बल प्रयोग की धमकी देकर उस स्थिति को बदलना चाहते हैं। आतंकवादी नागरिकों को आतंकित करके जनमानस में भय उत्पन्न करते हैं तथा अपने राजनीतिक उद्देश्य प्राप्त करने के लिए सरकारों या संघर्ष के अन्य पक्षों के खिलाफ असंतोष का उपयोग करते हैं।
3. आतंकवाद के सामान्य रूप और उदाहरण
आतंकवाद के आम उदाहरणों में विमान अपहरण, भीड़-भाड़ वाली जगहों जैसे रेलवे स्टेशन, होटल, बाजार आदि में बम विस्फोट शामिल हैं। 11 सितंबर 2001 को आतंकवादियों ने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया, जिसने वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के प्रति जागरूकता और सुरक्षा कदमों को बढ़ावा दिया। हालाँकि, आतंकवाद कोई नई घटना नहीं है; इतिहास में मध्य पूर्व, यूरोप, लातिनी अमेरिका और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में आतंकवादी घटनाएं काफी समय से हो रही हैं।
Q. 80. भारत मानव अधिकारों का प्रबल समर्थक क्यों है ? तीन कारण बताकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – मानव अधिकार और भारत की प्रतिबद्धता
I. मानव अधिकार ऐसे सार्वभौमिक अधिकार हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति को केवल मानव होने के नाते स्वतः प्राप्त होने चाहिए। ये अधिकार व्यक्ति की गरिमा, स्वतंत्रता, समानता और न्याय की गारंटी देते हैं।
II. भारत मानव अधिकारों का दृढ़ समर्थक है। इसके तीन प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
लोकतंत्र और प्रगति का आधार: भारत का मानना है कि आधुनिक युग में कोई भी स्वतंत्र और लोकतांत्रिक राष्ट्र मानव अधिकारों की रक्षा किए बिना न तो वास्तविक प्रगति कर सकता है और न ही वहाँ स्थायी शांति स्थापित की जा सकती है।
व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक: मानव अधिकार, जैसे– जीवन का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शिक्षा का अधिकार आदि, किसी भी व्यक्ति की उन्नति, सम्मानपूर्ण जीवन और सामाजिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक और महत्वपूर्ण हैं।
विश्व शांति और मानवता के प्रति प्रतिबद्धता: भारत विश्व शांति, वैश्विक सहयोग और मानवता के उत्थान में गहरा विश्वास रखता है। इसी कारण वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी मानव अधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन की वकालत करता है।
Q. 81. प्रति वर्ष 10 दिसंबर को संपूर्ण विश्व में मानव अधिकार दिवस के रूप में क्यों मनाया जाता है ?
उत्तर – मानव अधिकार दिवस : 10 दिसंबर
प्रत्येक वर्ष 10 दिसंबर को संपूर्ण विश्व में ‘मानव अधिकार दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को विशेष रूप से इसलिए चुना गया क्योंकि 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ‘मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा’ (Universal Declaration of Human Rights) को औपचारिक रूप से स्वीकार किया था। यह घोषणा-पत्र विश्व के सभी नागरिकों के लिए बुनियादी अधिकारों की मान्यता का प्रतीक है। मानव अधिकार वे मूलभूत अधिकार हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति को केवल मानव होने के नाते स्वतः प्राप्त होते हैं। इनमें जीवन, स्वतंत्रता, समानता, शिक्षा, अभिव्यक्ति, सम्मान और सुरक्षा जैसे अधिकार शामिल हैं। मानव अधिकारों की स्थिति का अध्ययन करने और उन्हें परिभाषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद ने वर्ष 1946 में एक विशेष आयोग का गठन किया। इस आयोग ने 1948 में अपनी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र महासभा को प्रस्तुत की, जिसके आधार पर महासभा ने 10 दिसंबर को मानव अधिकारों की घोषणा को स्वीकार किया। इस घोषणा-पत्र में 30 मानवाधिकारों की एक सूची प्रस्तुत की गई (आपके पाठ में 20 कहा गया है, पर मानक संख्या 30 है)। मानव अधिकार दिवस का उद्देश्य यह है कि सभी देशों की सरकारों को यह स्मरण कराया जाए कि वे अपने नागरिकों के विकास, सम्मान और गरिमापूर्ण जीवन के लिए इन अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करें।
Q.82. निरस्त्रीकरण शब्द को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – निरस्त्रीकरण : विश्व शांति की ओर एक आवश्यक कदम निरस्त्रीकरण का अर्थ है—ऐसे संहारक अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण को रोकना जो मानवता के लिए विनाश का कारण बन सकते हैं, विशेषतः परमाणु एवं हाइड्रोजन बमों जैसे घातक हथियारों पर प्रतिबंध लगाना। वर्तमान समय में विश्व के अनेक देशों ने परमाणु हथियारों का निर्माण कर लिया है तथा कुछ अन्य देश ऐसे शस्त्रों के निर्माण की दिशा में प्रयासरत हैं। यह स्थिति अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं स्थायित्व के लिए निरंतर खतरा बनती जा रही है। जब एक देश अत्याधुनिक विनाशकारी हथियार बनाता है, तो दूसरा देश उससे भी अधिक घातक हथियार विकसित करने की कोशिश करता है, जिससे शस्त्र होड़ (arms race) और भी गंभीर रूप ले लेती है। भारत प्रारंभ से ही निरस्त्रीकरण का समर्थक रहा है। इस दिशा में विश्व में होने वाले सभी प्रयासों और सम्मेलनों का उसने सदैव स्वागत किया है। वर्ष 1961 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में ‘अणुबम न बनाने’ का प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसे व्यापक सराहना मिली। इसके अतिरिक्त, जेनेवा में आयोजित निरस्त्रीकरण सम्मेलन में भारत ने सक्रिय एवं रचनात्मक भूमिका निभाई।
निष्कर्षतः, यह कहा जा सकता है कि निरस्त्रीकरण ही विश्व शांति, सुरक्षा और मानवता के कल्याण का मार्ग है। जब तक विनाश के उपकरणों का निर्माण होता रहेगा, तब तक स्थायी शांति की कल्पना अधूरी रहेगी।
Q.83. जन आंदोलन की प्रकृति पर अतिलघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – जन आंदोलन वे आंदोलन होते हैं जो किसी समाज विशेष, वर्ग, क्षेत्र या समुदाय की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक अथवा पर्यावरणीय समस्याओं, हितों और माँगों से प्रेरित होकर लोकतांत्रिक तरीकों से संचालित किए जाते हैं। ये आंदोलन आम लोगों की भागीदारी से जन्म लेते हैं और सत्ता से नीचे के स्तर पर बदलाव की प्रक्रिया को गति देते हैं। जन आंदोलनों का उद्देश्य किसी नीतिगत परिवर्तन, सामाजिक न्याय, संसाधनों के संरक्षण या वंचित वर्गों के अधिकारों की रक्षा हो सकता है।
भारत में जन आंदोलनों के कुछ प्रमुख उदाहरण इस प्रकार हैं:
चिपको आंदोलन (1973): पर्यावरण संरक्षण हेतु उत्तराखंड क्षेत्र में पेड़ों की कटाई के विरोध में चला एक शांतिपूर्ण आंदोलन।
भारतीय किसान यूनियन के आंदोलन: किसानों के हक, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), भूमि अधिकार आदि के लिए संघर्ष।
दलित पैंथर्स आंदोलन: दलितों के सामाजिक न्याय और बराबरी के अधिकार के लिए महाराष्ट्र में शुरू हुआ आंदोलन।
आंध्र प्रदेश ताड़ी विरोधी आंदोलन: शराब विरोधी आंदोलन, विशेषकर महिलाओं की भागीदारी के लिए जाना गया।
छात्र आंदोलन: समय-समय पर शिक्षा, आरक्षण, भ्रष्टाचार और रोजगार जैसे मुद्दों पर छात्र संगठनों द्वारा चलाए गए आंदोलन।
नारी मुक्ति एवं सशक्तिकरण आंदोलन: महिलाओं के अधिकार, समानता, शिक्षा और सुरक्षा के लिए चलाए गए आंदोलनों की श्रृंखला।
नर्मदा बचाओ आंदोलन: बड़े बाँधों से प्रभावित लोगों के पुनर्वास, पर्यावरण और आजीविका की रक्षा हेतु चलाया गया आंदोलन।
Q.84. किन्हीं उन प्रमुख चार नेताओं का उल्लेख कीजिए जिन्होंने समाज के दलितों के कल्याण के लिए प्रयास किए।
उत्तर – दलित उत्थान में योगदान देने वाले प्रमुख व्यक्तित्व
(i) ज्योतिराव फुले:
ज्योतिराव फुले ने भारतीय समाज के तथाकथित पिछड़े और दलित वर्गों के अधिकारों के लिए सशक्त आवाज़ उठाई। उन्होंने संगठन बनाए, लेखन के माध्यम से सामाजिक जागरूकता फैलाई और ब्राह्मणवाद की कट्टर आलोचना की। वे स्त्री शिक्षा और शूद्रों के अधिकारों के प्रबल समर्थक थे। उनका कार्य सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
(ii) मोहनदास करमचंद गांधी:
महात्मा गांधी ने छुआछूत उन्मूलन और तथाकथित ‘हरिजनों’ (अर्थात् दलितों) के सामाजिक उत्थान के लिए कई प्रयास किए। उन्होंने ‘हरिजन सेवक संघ’ की स्थापना की और ‘हरिजन’ नामक पत्रिका का संपादन कर समाज में व्याप्त भेदभाव के विरुद्ध जनमत तैयार किया। यद्यपि “हरिजन” शब्द को अब आलोचनात्मक दृष्टि से देखा जाता है, फिर भी गांधीजी के प्रयास दलित उत्थान की दिशा में महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
(iii) डॉ. भीमराव आंबेडकर:
डॉ. आंबेडकर ने अपना संपूर्ण जीवन दलितों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए समर्पित किया। उन्होंने कई संगठन बनाए और भारतीय संविधान निर्माण के दौरान छुआछूत उन्मूलन को कानूनी रूप से प्रतिबंधित कराया। उन्होंने संविधान में ऐसे प्रावधान किए, जिनके अंतर्गत छुआछूत को अपराध मानकर उसके लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया। वे सामाजिक न्याय के सबसे बड़े योद्धा माने जाते हैं।
(iv) कांशीराम:
कांशीराम ने डॉ. आंबेडकर के विचारों को आगे बढ़ाते हुए बहुजन समाज पार्टी (BSP) की स्थापना की। उन्होंने राजनीतिक मंच से दलितों, पिछड़ों और वंचित वर्गों के अधिकारों की रक्षा का बीड़ा उठाया। उनका जीवन बहुजन हिताय और बहुजन कल्याण के लिए संघर्ष में समर्पित रहा। आज भी उनकी पार्टी सामाजिक न्याय के मुद्दों को प्रमुखता देती है।
Q.85. सुरक्षा परिषद् के क्या कार्य हैं ? अथवा, सुरक्षा परिषद् पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर – संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council)
सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र संघ की सबसे शक्तिशाली एवं प्रभावशाली इकाई है, जिसे संयुक्त राष्ट्र की कार्यपालिका (Executive Body) के रूप में देखा जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की स्थापना और रक्षा करना है।
संरचना:
सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य होते हैं:
5 स्थायी सदस्य (Permanent Members): अमेरिका, इंग्लैंड (ब्रिटेन), फ्रांस, चीन और रूस।
(पूर्व में यह स्थान सोवियत संघ का था, लेकिन उसके विघटन के बाद जनवरी 1992 में यह स्थान रूस को दे दिया गया।)10 अस्थायी सदस्य (Non-Permanent Members): ये महासभा द्वारा दो वर्ष की अवधि के लिए निर्वाचित किए जाते हैं। भारत कई बार अस्थायी सदस्य के रूप में चुना जा चुका है।
स्थायी सदस्य और वीटो अधिकार:
स्थायी सदस्यों को ‘वीटो अधिकार’ प्राप्त होता है, जिसके अंतर्गत वे किसी भी प्रस्ताव को अकेले ही निरस्त कर सकते हैं, चाहे वह प्रस्ताव बहुमत से क्यों न पारित हुआ हो। यही कारण है कि कई देशों द्वारा इस विशेषाधिकार को समाप्त करने या इसमें सुधार लाने की माँग की जा रही है।
सदस्यता विस्तार की माँग:
1992 में सुरक्षा परिषद की एक विशेष बैठक में स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया गया। भारत को स्थायी सदस्य बनाने की माँग को विशेष समर्थन प्राप्त हुआ। साथ ही कुछ देशों और विचारकों का मत है कि सभी सदस्यों को समान अधिकार दिए जाएं और स्थायी सदस्यता जैसी विशेष व्यवस्था को समाप्त किया जाए।
सुरक्षा परिषद के प्रमुख कार्य:
विश्व शांति और सुरक्षा की रक्षा:
यह परिषद किसी भी ऐसी स्थिति पर विचार करती है जो अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए खतरा उत्पन्न कर सकती है।विवाद समाधान:
यह परिषद सदस्य देशों द्वारा प्रस्तुत शिकायतों या अंतरराष्ट्रीय विवादों पर विचार करती है और समाधान प्रस्तुत करती है।प्रस्तावों का क्रियान्वयन:
यदि आवश्यक हो, तो परिषद सैन्य कार्यवाही तक का निर्णय ले सकती है। जैसे कि इराक के विरुद्ध संयुक्त सैन्य हस्तक्षेप का निर्णय सुरक्षा परिषद द्वारा लिया गया था।
Q.86. संयुक्त राष्ट्र का महासचिव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर – संयुक्त राष्ट्र महासचिव (The Secretary-General of the United Nations)
संयुक्त राष्ट्र महासचिव संयुक्त राष्ट्र सचिवालय का प्रमुख होता है और वह इस संगठन का प्रशासनिक प्रमुख तथा लोकतांत्रिक चेहरा माना जाता है। महासचिव न केवल संगठन के कार्यों का संचालन करता है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में शांति, सहयोग एवं कूटनीति का प्रतिनिधि भी होता है।
महासचिव की नियुक्ति:
महासचिव की नियुक्ति सुरक्षा परिषद की अनुशंसा पर महासभा द्वारा की जाती है। इसका कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है, जिसे एक बार पुनः बढ़ाया जा सकता है।
- संयुक्त राष्ट्र के प्रथम महासचिव नार्वे के त्रिग्वे ली (Trygve Lie) थे।
- आपकी जानकारी के अनुसार वर्तमान महासचिव कोफ़ी अन्नान (Kofi Annan) बताए गए हैं, जो 1997–2006 तक पद पर रहे। (नवीनतम महासचिव की जानकारी चाहिए हो तो मैं अद्यतन विवरण भी दे सकता हूँ।)
महासचिव के प्रमुख कार्य:
- बैठकों की व्यवस्था करना:
महासचिव सुरक्षा परिषद, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद तथा अन्य प्रमुख अंगों की बैठकों को आमंत्रित और संचालित करते हैं। - निर्णयों का कार्यान्वयन:
महासचिव, संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंगों द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू करवाने की ज़िम्मेदारी निभाते हैं। - शांति बनाए रखने में भूमिका:
यदि विश्व में कहीं भी शांति और सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होता है, तो महासचिव इसकी सूचना सुरक्षा परिषद को देते हैं और आवश्यक कार्रवाई की पहल करते हैं। - रिपोर्टिंग:
महासचिव, संयुक्त राष्ट्र महासभा को सचिवालय द्वारा किए गए सभी कार्यों की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। - कूटनीतिक पहल एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग:
महासचिव अंतर्राष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने, अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का सर्वेक्षण करने, तथा अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठियों, सम्मेलनों एवं संवादों का आयोजन करने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
Q.87. संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – 🌐 संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांत
(Principles of the United Nations)
संयुक्त राष्ट्र संघ अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु कुछ बुनियादी सिद्धांतों का पालन करता है। ये सिद्धांत न केवल संगठन की कार्यप्रणाली को दिशा देते हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों की मर्यादा एवं संतुलन बनाए रखने में भी सहायक होते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
प्रभुसत्ता एवं समानता का सिद्धांत:
संयुक्त राष्ट्र सभी सदस्य राष्ट्रों की संप्रभुता (sovereignty) और समानता (equality) में विश्वास करता है। सभी देश — चाहे वे बड़े हों या छोटे — बराबरी का दर्जा रखते हैं।कर्तव्य पालन की प्रतिबद्धता:
सभी सदस्य देशों का यह दायित्व है कि वे संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अंतर्गत दी गई अपनी जिम्मेदारियों का ईमानदारी और निष्ठा से पालन करें।विवादों का शांतिपूर्ण समाधान:
सभी सदस्य राष्ट्रों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे आपसी विवादों को शांति पूर्ण उपायों द्वारा सुलझाएँ, ताकि अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को कोई खतरा उत्पन्न न हो।राज्य की अखंडता एवं स्वाधीनता का सम्मान:
प्रत्येक देश को दूसरे देशों की भौगोलिक अखंडता और राजनीतिक स्वतंत्रता का आदर करना चाहिए।संयुक्त राष्ट्र की सहायता:
यदि संयुक्त राष्ट्र किसी कार्यवाही की शुरुआत करता है, तो सभी सदस्य राष्ट्रों का यह दायित्व है कि वे उसमें सहयोग प्रदान करें।आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप वर्जित:
संयुक्त राष्ट्र किसी भी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता, जब तक कि वह मामला अंतरराष्ट्रीय शांति या सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा न बन जाए।
ये सिद्धांत न केवल सदस्य देशों के आचरण का मार्गदर्शन करते हैं, बल्कि विश्व स्तर पर एक न्यायपूर्ण, शांतिपूर्ण और सहयोगी वातावरण बनाने की नींव भी रखते हैं।
Q.88. पहला गुटनिरपेक्ष सम्मेलन कब और कहाँ हुआ था? यह कौन-सी तीन बातों की परिणति (Culnination) था ?
उत्तर – 🌍 गुटनिरपेक्ष आंदोलन और उसका पहला सम्मेलन (Non-Aligned Movement – First Summit)
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement / NAM) शीतयुद्ध के समय दो महाशक्तियों—संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ—के बीच वैश्विक ध्रुवीकरण के विरोध में उत्पन्न एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय पहल थी।
🗓️ पहला गुटनिरपेक्ष सम्मेलन:
वर्ष: 1961 ई.
स्थान: बेलग्रेड (यूगोस्लाविया)
यह सम्मेलन गुटनिरपेक्ष आंदोलन की औपचारिक शुरुआत माना जाता है।
🧭 इस सम्मेलन की पृष्ठभूमि – तीन प्रमुख कारण:
पाँच देशों के बीच गहन सहयोग:
भारत, मिस्र, यूगोस्लाविया, इंडोनेशिया और घाना जैसे पाँच देशों के बीच बढ़ते राजनयिक सहयोग ने इस आंदोलन की नींव रखी। ये देश वैश्विक स्तर पर स्वतंत्र नीति अपनाने के पक्षधर थे।शीतयुद्ध का बढ़ता प्रभाव:
अमेरिका और सोवियत संघ के बीच बढ़ते तनाव और उनके सैन्य गठबंधनों के प्रसार को देखते हुए आवश्यक हो गया था कि एक ऐसा विकल्प प्रस्तुत किया जाए जो न तो पूंजीवाद से जुड़े, न ही साम्यवाद से — अर्थात राजनैतिक स्वतंत्रता बनाए रखने वाला मार्ग।अफ्रीकी राष्ट्रों का उदय:
1960 तक कई नव स्वतंत्र अफ्रीकी देशों का तेजी से उदय हुआ। उसी वर्ष 16 नए अफ्रीकी राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र (UNO) के सदस्य बने। इन देशों ने भी गुटनिरपेक्ष आंदोलन को एक विकल्प के रूप में अपनाया ताकि वे किसी भी महाशक्ति के प्रभाव से दूर रह सकें।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उद्देश्य था — स्वतंत्र विदेश नीति अपनाना, शांति बनाए रखना, साम्राज्यवाद का विरोध करना, और विकासशील देशों के हितों की रक्षा करना।
Q.89. ‘गुटनिरपेक्षता का अर्थ तटस्थता का धर्म निभाना नहीं है।’ संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – 🌐 गुटनिरपेक्षता और तटस्थता में अंतर
गुटनिरपेक्षता का अर्थ केवल तटस्थ रहना या किसी संघर्ष से दूर रहना नहीं है। यह एक सक्रिय और सिद्धांत आधारित नीति है, जो शीतयुद्ध के समय दो महाशक्तियों—संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ—के सैन्य गुटों से दूरी बनाए रखने के लिए अपनाई गई थी।
✦ गुटनिरपेक्षता क्या नहीं है?
गुटनिरपेक्षता को अक्सर तटस्थता (Neutrality) के समानार्थी रूप में देखा जाता है, जबकि यह दृष्टिकोण भ्रामक है।
तटस्थता का अर्थ है:
मुख्यतः किसी युद्ध या सैन्य संघर्ष में भाग न लेना। तटस्थ देश केवल निर्लिप्त दर्शक की भूमिका निभाते हैं, और उनके लिए यह आवश्यक नहीं कि वे संघर्ष को समाप्त करने या न्यायपूर्ण समाधान की दिशा में कोई प्रयास करें।जबकि गुटनिरपेक्षता का उद्देश्य है:
न केवल सैन्य गुटों से दूरी बनाए रखना, बल्कि शांति स्थापना, उपनिवेशवाद के विरोध, वैश्विक न्याय और विकासशील देशों के अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाना। यह एक नैतिक व राजनीतिक दृष्टिकोण है जो युद्ध और अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाने की वकालत करता है।
इस प्रकार, गुटनिरपेक्षता मात्र निष्क्रिय तटस्थता नहीं, बल्कि एक सक्रिय और उत्तरदायी दृष्टिकोण है, जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति में संतुलन और न्याय को स्थापित करने की दिशा में कार्य करता है।

SANTU KUMAR
I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.
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