Q. 120. वामपंथी दल से क्या समझते हैं ?
उत्तर – भारतीय राजनीति में कांग्रेस के विरोध में उभरने वाले साम्यवादी और मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित दलों को सामूहिक रूप से वामदल कहा जाता है। ये दल समाज के वंचित, गरीब, दलित, श्रमिक और शोषित वर्गों के हितों की रक्षा के उद्देश्य से कार्य करते हैं। इनकी नीतियाँ पूँजीवादी व्यवस्था और बड़े उद्योगपतियों के प्रभाव के विरोध में होती हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इससे सामाजिक असमानता और आर्थिक शोषण को बढ़ावा मिलता है। वामपंथी दलों ने भारत के कुछ राज्यों में लंबे समय तक महत्वपूर्ण राजनीतिक भूमिका निभाई है। विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्यों में कई दशकों तक इनका शासन रहा, जहाँ इन्होंने भूमि सुधार, श्रमिक अधिकार और शिक्षा जैसे मुद्दों पर केंद्रित नीतियाँ अपनाईं। इन दलों का लक्ष्य एक समानतामूलक समाज की स्थापना करना रहा है, जहाँ हर व्यक्ति को न्याय, समान अवसर और गरिमा का जीवन मिल सके।
Q. 121. संयुक्त राष्ट्र संघ के कौन-कौन से अंग है ?
उत्तर – संयुक्त राष्ट्र संघ के छः मुख्य अंग
महासभा (General Assembly)
महासभा संयुक्त राष्ट्र की मुख्य विचार-विमर्श संस्था है। इसमें सभी सदस्य राष्ट्रों को समान प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है। हर देश को एक मत का अधिकार होता है। यह वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करती है और सिफारिशें पारित करती है।सुरक्षा परिषद (Security Council)
यह अंग अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए उत्तरदायी है। इसके 15 सदस्य होते हैं, जिनमें से 5 स्थायी सदस्य (अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन) हैं और 10 अस्थायी सदस्य चुने जाते हैं। स्थायी सदस्यों को वीटो शक्ति प्राप्त है।आर्थिक और सामाजिक परिषद (Economic and Social Council – ECOSOC)
यह अंग वैश्विक आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर कार्य करता है और विकास सहयोग तथा मानवीय मामलों में प्रमुख भूमिका निभाता है।संरक्षण या न्यास परिषद (Trusteeship Council)
इस अंग का उद्देश्य उपनिवेशवाद से मुक्त हुए क्षेत्रों को आत्मनिर्भर और स्वतंत्र राष्ट्र बनने में सहायता करना था। चूँकि अधिकांश न्यास क्षेत्र स्वतंत्र हो चुके हैं, यह परिषद अब निष्क्रिय है लेकिन अधिकारिक रूप से अब भी अस्तित्व में है।अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice – ICJ)
इसका मुख्यालय हेग (नीदरलैंड) में स्थित है। यह संयुक्त राष्ट्र का न्यायिक अंग है, जो देशों के बीच कानूनी विवादों का समाधान करता है और कानूनी सलाह भी देता है।सचिवालय (Secretariat)
यह अंग संयुक्त राष्ट्र के प्रशासनिक कार्यों का संचालन करता है। महासचिव (Secretary-General) इसका प्रमुख होता है, जो संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख प्रवक्ता और प्रतिनिधि भी होता है।
Q. 122. बिमारू राज्यों का क्या अर्थ है ?
उत्तर – भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में आर्थिक असमानता एक गंभीर समस्या रही है। देश के कुछ राज्य ऐसे हैं जो आज भी आर्थिक दृष्टिकोण से पिछड़े हुए माने जाते हैं। इन क्षेत्रों में आमतौर पर निम्न आय स्तर, शिक्षा की कमी, बेरोजगारी की उच्च दर, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, और महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय होती है। इन राज्यों में उड़ीसा (ओडिशा), पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्से, असम तथा इसके समीपवर्ती पूर्वोत्तर राज्य, और बिहार का एक बड़ा भाग प्रमुख हैं। इन क्षेत्रों को अक्सर “बिमारू राज्य” (बीमार और विकास से वंचित) की श्रेणी में रखा गया है। ‘बिमारू’ शब्द मूलतः बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के लिए प्रयोग किया गया था, लेकिन समय के साथ इसमें अन्य पिछड़े क्षेत्र भी जोड़े गए।
इन राज्यों की पिछड़ी स्थिति के कारणों में निम्नलिखित प्रमुख कारक शामिल हैं:
शिक्षा की कमी: प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक की सुविधाएँ पर्याप्त नहीं हैं, जिससे जनसंख्या का बड़ा हिस्सा अशिक्षित या अल्प-शिक्षित रह जाता है।
बेरोजगारी: औद्योगीकरण और व्यवसायिक अवसरों की कमी के कारण युवा वर्ग को रोजगार के अवसर नहीं मिल पाते।
महिलाओं की स्थिति: महिलाओं की शिक्षा, स्वावलंबन और निर्णय क्षमता की कमी उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर बनाए रखती है।
बुनियादी ढाँचे की कमी: सड़क, बिजली, जल आपूर्ति, स्वास्थ्य सेवाओं जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव विकास में बाधा उत्पन्न करता है।
इन समस्याओं के समाधान के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं, लेकिन इनके प्रभावी क्रियान्वयन और जनजागरूकता की अभी भी आवश्यकता है।
Q. 123. राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों में क्या अन्तर है ?
उत्तर – भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इन्हें मुख्यतः दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता है — राष्ट्रीय दल और क्षेत्रीय (या प्रांतीय) दल।
राष्ट्रीय दल (National Parties)
वह राजनीतिक दल जो देश के विभिन्न राज्यों में चुनाव लड़ता है और निर्वाचन आयोग द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा करता है, उसे राष्ट्रीय दल की संज्ञा दी जाती है। इसके लिए दल को निम्नलिखित शर्तों में से किसी एक को पूरा करना होता है:
लोकसभा चुनावों में कुल वैध मतों का कम से कम 6% प्राप्त करना और कम से कम 4 लोकसभा सीटें जीतना, या
चार या अधिक राज्यों की विधानसभाओं में मान्यता प्राप्त दल होना।
भारत में कुछ प्रमुख राष्ट्रीय दल निम्नलिखित हैं:
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस)
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI)
तृणमूल कांग्रेस (TMC)
(उल्लेखनीय है कि समय के अनुसार इनकी मान्यता में बदलाव संभव होता है)
क्षेत्रीय दल (Regional Parties)
जो दल किसी एक राज्य या क्षेत्र विशेष में सक्रिय होकर चुनाव जीतता है और उस राज्य की विधानसभा या संसद में प्रतिनिधित्व करता है, उसे क्षेत्रीय दल कहा जाता है। ये दल उस क्षेत्र की समस्याओं, संस्कृति और जनसरोकारों को प्रमुखता देते हैं।
भारत में कुछ प्रमुख क्षेत्रीय दल इस प्रकार हैं:
बिहार में: जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल (राजद)
उत्तर प्रदेश में: समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा)
इसके अलावा: द्रमुक (DMK), अन्नाद्रमुक (AIADMK), शिवसेना, बीजू जनता दल (BJD), तेलंगाना राष्ट्र समिति (BRS) आदि।
क्षेत्रीय दल भारत की संघीय राजनीति में एक सशक्त भूमिका निभाते हैं और स्थानीय समस्याओं को राष्ट्रीय मंच तक पहुँचाने का कार्य करते हैं।
Q. 124. राज्य और संघशासित राज्य में क्या अन्तर है ?
उत्तर – भारत का संविधान एक संघीय शासन प्रणाली की व्यवस्था करता है, जिसमें शक्तियों का विभाजन केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच स्पष्ट रूप से किया गया है। इस प्रणाली के अंतर्गत भारत को दो मुख्य प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित किया गया है:
राज्य (States)
संघशासित क्षेत्र (Union Territories)
राज्य सरकारें
भारत में वर्तमान समय में 28 राज्य हैं। प्रत्येक राज्य का अपना मुख्यमंत्री होता है, जो राज्य सरकार का वास्तविक कार्यकारी प्रमुख होता है। राज्यपाल, जो केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त होता है, औपचारिक प्रमुख होता है, परंतु वास्तविक सत्ता मुख्यमंत्री और उसकी मंत्रिपरिषद के हाथों में होती है।
उदाहरण के लिए:
बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे राज्य
राज्य सरकारें शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस, कृषि आदि विषयों पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेती हैं, जो राज्य सूची (State List) में आते हैं।
संघशासित क्षेत्र (Union Territories)
भारत में वर्तमान में 8 संघशासित क्षेत्र हैं (न कि 9, क्योंकि 2020 में दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव का विलय हो गया था)। इन क्षेत्रों का शासन सीधे केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यहाँ का प्रशासन लेफ्टिनेंट गवर्नर या प्रशासक के माध्यम से चलता है, जिसे केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
भारत के प्रमुख संघशासित क्षेत्र हैं:
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
चंडीगढ़
दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव
दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र)
पुडुचेरी
लक्षद्वीप
जम्मू और कश्मीर
लद्दाख
दिल्ली और पुडुचेरी को आंशिक राज्य का दर्जा प्राप्त है, जहाँ सीमित अधिकारों के साथ निर्वाचित विधानसभा भी है।
निष्कर्ष
भारत की संघीय व्यवस्था में शक्तियों का संतुलन बनाए रखने के लिए राज्यों और केंद्र के बीच अधिकारों का स्पष्ट बँटवारा किया गया है। यह प्रणाली भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में सुचारु प्रशासन सुनिश्चित करने में सहायक होती है।
Q. 125. मोदी का नोटबन्दी प्रोग्राम क्या है ?
उत्तर – भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 नवम्बर, 2016 को एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए यह निर्णय लिया कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को तत्काल प्रभाव से अमान्य किया जा रहा है। यह निर्णय देश में फैले काले धन, नकली मुद्रा, और आतंकवादी गतिविधियों पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य से लिया गया था। इसे स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में एक क्रांतिकारी कदम के रूप में देखा गया।
इस निर्णय के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित थे:
500 और 1000 रुपये के नोटों की वैधता समाप्त कर दी गई, जिससे वे बाज़ार में उपयोग के लिए अनुपयोगी हो गए।
नागरिकों को यह सुविधा दी गई कि वे 31 दिसम्बर, 2016 तक अपने पुराने नोट बैंकों या डाकघरों में जाकर बदल सकते हैं।
विशेष परिस्थितियों में, 31 मार्च, 2017 तक भारतीय रिज़र्व बैंक में उचित कारण प्रस्तुत कर पुराने नोटों को जमा या बदला जा सकता था।
उद्देश्य और प्रभाव
इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य था:
काले धन का खुलासा करना
नकली मुद्रा पर रोक लगाना
आतंकी संगठनों की वित्तीय सहायता को बाधित करना
इसके चलते देशभर में बैंकों और एटीएम पर भारी भीड़ देखी गई।
छोटे व्यापारियों, किसानों और नकद आधारित अर्थव्यवस्था पर इसका तत्कालिक प्रभाव पड़ा, परंतु सरकार ने इसे दीर्घकालीन सुधार की दिशा में उठाया गया कदम बताया।
निष्कर्ष
हालाँकि नोटबंदी को लेकर देश में मिश्रित प्रतिक्रियाएँ देखने को मिलीं, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि यह निर्णय भारत के आर्थिक सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण और साहसिक पहल थी। इसने डिजिटल लेन-देन और पारदर्शिता की ओर देश को अग्रसर किया।
Q.126. मोदी का सर्जिकल स्ट्राइक क्या है ?
उत्तर – भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर लंबे समय से तनाव और आतंकवादी गतिविधियाँ होती रही हैं। पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवादी समय-समय पर भारतीय सीमा में घुसपैठ कर निरपराध नागरिकों और भारतीय सैनिकों को निशाना बनाते रहे हैं। यह सिलसिला स्वतंत्रता के बाद से अब तक लगातार चला आ रहा है।
इन हमलों में कई भारतीय जवान वीरगति को प्राप्त हुए, जिनमें कुछ घटनाएँ अत्यंत दर्दनाक और उकसाने वाली थीं। ऐसी ही एक घटना में आतंकवादियों ने भारतीय सीमा में घुसकर लगभग 20 भारतीय सैनिकों की निर्मम हत्या कर दी और फिर पाक सीमा में लौट गए। इस प्रकार की घटनाओं ने देशवासियों में आक्रोश और दुख उत्पन्न किया।
भारत की कड़ी सैन्य प्रतिक्रिया: सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने इन हमलों का सख्त जवाब देने का निर्णय लिया। भारतीय सेना ने साहसिक कदम उठाते हुए:
पहली बार 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक की, जिसमें सीमा पार जाकर आतंकी ठिकानों को नष्ट किया गया और कई आतंकियों को मार गिराया गया।
फिर 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा में एक आत्मघाती हमले में 40 भारतीय CRPF जवान शहीद हो गए। इस नृशंस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद नामक आतंकी संगठन ने ली।
इस हमले के बाद, भारत ने 26 फरवरी, 2019 को “सर्जिकल स्ट्राइक II” या एयर स्ट्राइक के माध्यम से पाकिस्तान के बालाकोट स्थित आतंकवादी प्रशिक्षण केंद्रों पर हवाई हमले किए। इस अभियान में भारतीय वायुसेना ने करीब 300 आतंकवादियों के मारे जाने का दावा किया। यह अभियान पूरी तरह सफल रहा और भारतीय जवान सुरक्षित स्वदेश लौट आए।
निष्कर्ष
इन सैन्य कार्रवाइयों ने स्पष्ट कर दिया कि भारत अब आतंकवाद के विरुद्ध “मौन नहीं, जवाब” की नीति अपनाता है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने विश्व को यह संदेश दिया कि अपनी संप्रभुता की रक्षा और नागरिकों की सुरक्षा के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है।
Q.127.सुरक्षा नीति का संबंध किससे होता है ? इसे क्या कहा जाता है ? इसे रक्षा कब कहा जाता है ?
उत्तर – किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा-नीति का उद्देश्य मात्र युद्ध लड़ना नहीं होता, बल्कि युद्ध की आशंका को रोकना, संभावित खतरों को सीमित करना तथा यदि युद्ध अपरिहार्य हो जाए, तो उसे नियंत्रित करना और शीघ्र समाप्त करना होता है। इतिहास में कई उदाहरण मिलते हैं जहाँ युद्धों के दौरान किसी देश की सरकार ने आत्मसमर्पण कर दिया, परंतु कोई भी राष्ट्र इसे अपनी आधिकारिक नीति या राष्ट्रीय सिद्धांत के रूप में प्रचारित नहीं करता। आत्मसमर्पण को आवश्यकता, विवशता या रणनीतिक पराजय के रूप में देखा जाता है, नीति के रूप में नहीं। इसी आधार पर सुरक्षा-नीति को दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है:
अपराध निवारण (Deterrence):
यह वह पहलू है जो संभावित हमले या युद्ध की संभावना को पहले ही रोकने का प्रयास करता है। इसमें सैन्य शक्ति, कूटनीति, गुप्तचर प्रणाली और अंतरराष्ट्रीय संबंधों का उपयोग किया जाता है ताकि शत्रु को यह संदेश जाए कि हमला करने का परिणाम घातक हो सकता है।रक्षा (Defence):
जब युद्ध शुरू हो जाए, तब उसे सीमित रखना, नागरिकों की रक्षा करना, और उसे शीघ्र समाप्त कर राष्ट्र की संप्रभुता की रक्षा करना सुरक्षा-नीति का दूसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है।
निष्कर्ष
सुरक्षा-नीति केवल सैन्य क्षमता का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह एक दूरदर्शी रणनीति है, जिसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्र को युद्ध के संकट से बचाना, और यदि युद्ध अनिवार्य हो जाए, तो उसे सीमित और प्रभावी रूप से नियंत्रित करना होता है। कोई भी राष्ट्र अपने आत्मसमर्पण को नीति नहीं बनाता, क्योंकि नीति राष्ट्र की स्थायी प्रतिष्ठा और आत्मबल की प्रतीक होती है, न कि अस्थायी पराजय की।
Q.128. हरित क्रांति क्या है ?
उत्तर – भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और तेजी से बढ़ती जनसंख्या की खाद्यान्न आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से सरकार ने कृषि क्षेत्र में एक नई रणनीति अपनाई। आरंभ में सरकार की नीति थी कि जो इलाके या किसान कृषि के क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं, उन्हें अधिक सहायता दी जाए। उद्देश्य था कि सभी क्षेत्रों का समान रूप से विकास हो और ग्रामीण असमानता कम हो।
लेकिन बाद में यह नीति बदली गई। सरकार ने यह निर्णय लिया कि विकासशील संसाधनों को उन क्षेत्रों में अधिक केंद्रित किया जाए, जहाँ सिंचाई सुविधाएँ पहले से उपलब्ध थीं और जहाँ के किसान अपेक्षाकृत समृद्ध और तकनीक-प्रेमी थे। इस रणनीति के पक्ष में यह तर्क दिया गया कि जो क्षेत्र पहले से सक्षम हैं, वे कम समय में अधिक उत्पादन वृद्धि करके देश को खाद्य संकट से जल्दी उबार सकते हैं।
नई रणनीति के तहत सरकार द्वारा उठाए गए कदम
उच्च गुणवत्ता वाले बीज, उर्वरक, कीटनाशक और आधुनिक कृषि उपकरण किसानों को किफायती दरों पर उपलब्ध कराए गए।
बेहतर सिंचाई सुविधाओं का विकास किया गया।
सरकार ने किसानों को यह गारंटी दी कि उनकी उपज को एक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद लिया जाएगा, जिससे उन्हें बाजार के उतार-चढ़ाव का डर न रहे।
हरित क्रांति की शुरुआत
इन्हीं उपायों और नीतियों की परिणति थी “हरित क्रांति”, जिसकी शुरुआत 1960 के दशक में हुई। इसका प्रभाव सबसे पहले पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में देखने को मिला। वहाँ के किसान अपेक्षाकृत समृद्ध थे और सिंचाई व बुनियादी सुविधाएँ पहले से मौजूद थीं।
हरित क्रांति के परिणामस्वरूप:
भारत ने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त की।
देश को अनाज के आयात पर निर्भरता कम करनी पड़ी।
परंतु इसके साथ ही क्षेत्रीय असमानता, पर्यावरणीय समस्याएँ और छोटे किसानों की समस्याएँ भी सामने आईं।
निष्कर्ष
हरित क्रांति भारतीय कृषि के इतिहास में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की प्रतीक रही। यह एक रणनीतिक परिवर्तन था, जिसमें संसाधनों का केंद्रित उपयोग कर उत्पादन को तीव्र गति से बढ़ाया गया। यद्यपि इससे कई सकारात्मक परिणाम मिले, परंतु इसके दीर्घकालिक सामाजिक और पारिस्थितिक प्रभावों पर भी विचार आवश्यक है।
Q.129. शिक्षा और रोजगार में पुरुषों और महिलाओं की स्थिति का अंतर बताइए।
उत्तर – भारत जैसे विकासशील देश में लैंगिक समानता एक सतत चुनौती रही है, विशेषकर शिक्षा और रोजगार जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में। ऐतिहासिक रूप से पुरुषों को शिक्षा, प्रशिक्षण और रोजगार के अधिक अवसर मिले हैं, जबकि महिलाओं को पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कारणों से इनसे वंचित रखा गया।
साक्षरता में लैंगिक अंतर
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार:
पुरुष साक्षरता दर थी: 75.85%
जबकि महिला साक्षरता दर मात्र: 54.16%
यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने में गंभीर बाधाओं का सामना करना पड़ा है।
शिक्षा के अभाव का प्रभाव
महिलाओं की शिक्षा में पिछड़ापन उनके जीवन के अन्य क्षेत्रों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है, जैसे:
रोजगार: कम शिक्षा के कारण महिलाओं को गुणवत्तापूर्ण और समान अवसरों वाले रोजगार नहीं मिल पाते।
प्रशिक्षण: तकनीकी एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण में भागीदारी भी सीमित रहती है।
स्वास्थ्य सेवाएँ: कम शिक्षा के कारण महिलाएँ स्वास्थ्य संबंधी जानकारी और सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पातीं।
परिणामस्वरूप:
महिलाएँ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं बन पातीं।
समाज में उनकी भूमिका सीमित हो जाती है।
पारिवारिक और सामाजिक निर्णयों में उनकी भागीदारी न्यूनतम रह जाती है।
निष्कर्ष
शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं को समान अवसर देना न केवल उनके व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि यह समाज और राष्ट्र के समग्र विकास के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाएँ जैसे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, ‘सुकन्या समृद्धि योजना’, ‘मिशन शक्ति’ आदि इस दिशा में सकारात्मक कदम हैं, परंतु इनके प्रभावी क्रियान्वयन और सामाजिक चेतना में वृद्धि की आवश्यकता बनी हुई है।
Q. 130. उन कारणों/कारकों का उल्लेख कीजिए जिनकी वजह से सरकार ने इस्पात उद्योग उड़ीसा में स्थापित करने का राजनीतिक निर्णय लेना चाहा ? ..
उत्तर – (a) उड़ीसा में इस्पात उद्योग का विकास
विश्व स्तर पर इस्पात की माँग में वृद्धि ने उड़ीसा को निवेश के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभारा। उड़ीसा में लौह-अयस्क का विशाल भंडार मौजूद था, जिसका अभी तक पूरा दोहन नहीं किया गया था। इस अप्रत्याशित अवसर का लाभ उठाने के लिए उड़ीसा सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय इस्पात निर्माताओं के साथ सहमति-पत्र (MoU) पर हस्ताक्षर किए। इस प्रकार उड़ीसा ने इस्पात उद्योग के विकास के लिए एक ठोस आधार तैयार किया।
(b) सरकार की अपेक्षाएँ और आर्थिक विकास
सरकार का मानना था कि इस्पात उद्योग में निवेश से न केवल राज्य में आवश्यक पूंजी-निवेश आएगा, बल्कि इससे बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे। यह उद्योग राज्य के आर्थिक विकास और सामाजिक उत्थान के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जिससे क्षेत्र की समृद्धि में वृद्धि होगी।
Q.131. उड़ीसा में लौह-इस्पात उद्योग की स्थापना का, वहाँ के आदिवासियों ने क्यों विरोध किया था? .
उत्तर – उड़ीसा में मौजूद लौह-अयस्क के अधिकांश भंडार राज्य के सबसे अविकसित और आदिवासी-बहुल इलाकों में पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों में बसे आदिवासी समुदाय को इस बात का गहरा डर और चिंता है कि यदि वहाँ भारी उद्योग स्थापित किए गए, तो उन्हें अपने परंपरागत घर-बार से विस्थापित होना पड़ सकता है। इसके साथ ही आदिवासियों को अपनी आजिविका के साधनों के खो जाने का भी भय है, क्योंकि उनके जीवन का मुख्य आधार वन, कृषि और स्थानीय संसाधन होते हैं, जो उद्योगीकरण के कारण नष्ट हो सकते हैं। इस प्रकार, उद्योग के विकास और आर्थिक प्रगति की योजनाओं के साथ-साथ आदिवासी समुदाय के सांस्कृतिक अधिकारों, आजिविका और पर्यावरण संरक्षण का भी समुचित संरक्षण एवं सम्मान आवश्यक है।
Q.132. पर्यावरण विदों के विरोध के क्या कारण थे ? उनके विरोध के बावजूद भी केन्द्र उड़ीसा में इस्पात उद्योग की स्थापना के राज्य सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी क्यों देना चाहती थी?
उत्तर – उड़ीसा में इस्पात प्लांट स्थापित करने की योजना पर पर्यावरणविदों ने गहरा चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि खनन गतिविधियाँ और भारी उद्योग के कारण पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि होगी, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र, जल स्रोतों और वनों को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। दूसरी ओर, केंद्र सरकार का तर्क है कि यदि इस प्रकार के उद्योगों को अनुमति नहीं दी गई, तो इससे न केवल उड़ीसा बल्कि पूरे देश में पूंजी निवेश के लिए एक नकारात्मक संदेश जाएगा। इससे आर्थिक विकास की गति मंद पड़ेगी और निवेशकों का विश्वास कमजोर होगा। इस प्रकार, राज्य और केंद्र सरकार के बीच यह चुनौती बनी हुई है कि कैसे पर्यावरण संरक्षण और औद्योगिक विकास के बीच संतुलन स्थापित किया जाए, ताकि आर्थिक प्रगति के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी सुनिश्चित किया जा सके।
Q.133. चकबन्दी से क्या लाभ है ?
उत्तर – चकबन्दी की प्रक्रिया से कृषकों को उन्नत किस्म के कृषि आहारों जैसे बीज, उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग करने में सहायता मिलती है। इससे वे कम से कम प्रयासों में अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने में सक्षम होते हैं। चकबन्दी के कारण खेतों की उचित और सुव्यवस्थित व्यवस्था होती है, जिससे संसाधनों का बेहतर उपयोग संभव होता है और उत्पादन की दक्षता बढ़ती है। इसका परिणाम यह होता है कि उत्पादन लागत में भी कमी आती है, जिससे कृषकों की आय में वृद्धि होती है और वे आर्थिक रूप से सशक्त बनते हैं।
Q.134. भूमि सुधार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – भूमि सुधार से अभिप्राय है भूमि के स्वामित्व में परिवर्तन लाना, अर्थात् जोतों (खेतों) के मालिकाना हक में पुनर्वितरण करना। दूसरे शब्दों में, भूमि सुधार का उद्देश्य भूमि के स्वामित्व को समान और न्यायसंगत ढंग से पुनः बाँटना है, ताकि भूमि अधिक से अधिक किसानों तक पहुँचे और ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ हो।
Q.135. कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए क्या प्रयत्न किए गये ?
उत्तर – असमानता को कम करने के लिए भूमि सुधार लागू किया गया, जिससे भूमि का न्यायसंगत वितरण संभव हुआ। इससे छोटे और सीमांत किसानों को खेती के लिए भूमि मिल सकी। उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग बढ़ावा दिया गया तथा सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया गया, जिससे खेती का क्षेत्रिक विकास संभव हो सका। इसके साथ ही, कृषि में आधुनिक मशीनों और उपकरणों का प्रयोग शुरू किया गया, जिससे खेती के कार्यों में आसानी हुई और उत्पादन की गुणवत्ता एवं मात्रा दोनों में सुधार आया।
Q. 136. भारत अमेरिकी सम्बन्धों की उत्पत्ति कैसे हुई ?
उत्तर – भारत और अमेरिका के संबंध प्राचीन और ऐतिहासिक हैं। भारत की स्वतंत्रता से पूर्व, राष्ट्रीय आंदोलन के समय से ही अमेरिका ने भारत के प्रति गहरी सहानुभूति व्यक्त की और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को सहारा दिया। विशेषकर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अमेरिका ने ब्रिटेन पर दबाव डाला कि भारत को भी आत्मनिर्णय का अधिकार प्रदान किया जाना चाहिए। अमेरिका की यह सहानुभूति केवल मानवीय भावनाओं से प्रेरित नहीं थी, बल्कि इसका एक रणनीतिक उद्देश्य भी था—सोवियत संघ के प्रभाव को रोकना। इस प्रकार, भारत-अमेरिका संबंध स्वतंत्रता पूर्व से ही गहरे राजनीतिक और कूटनीतिक आधारों पर स्थापित थे, जो बाद में भी द्विपक्षीय सहयोग और मित्रता का आधार बने।
Q. 137. ब्लादिमीर लेनिन का एक महान सोवियत संघ के नेता के रूप में संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर – ब्लादिमीर लेनिन का जन्म 1870 में हुआ और उनका देहांत 1924 में हुआ। वे बोल्शेविक कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक थे और अक्टूबर 1917 की सफल रूसी क्रांति के मुख्य नायक थे। क्रांति के पश्चात्, लेनिन ने 1917 से 1924 तक के कठिन दौर में सोवियत समाजवादी गणराज्य (USSR) के संस्थापक तथा अध्यक्ष के रूप में नेतृत्व दिया। वे माक्सवाद के असाधारण सिद्धांतकार थे और इसे व्यावहारिक रूप देने में महारथी साबित हुए। लेनिन न केवल रूस में, बल्कि पूरी दुनिया में साम्यवाद के प्रेरणा स्रोत बने। उन्होंने अथक परिश्रम एवं दूरदर्शिता से सोवियत संघ को प्रगति के पथ पर अग्रसर किया और विश्व इतिहास में अपने अमिट योगदान से स्मरणीय बने।
Q.138. सीमांत गांधी कौन थे ? उनके द्वि-राष्ट सिद्धांत के बारे में दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए उनकी भूमिका का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर – खान अब्दुल गफ्फार खान पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत (North-West Frontier Province NWFP) (पेशावर के मूलतः निवासी) के निर्विवाद नेता थे। वह काँग्रेस के नेता तथा लाल कुर्ती नामक संगठन के जन्मदाता थे। वह सच्चे गाँधीवादी, अहिंसा, शांतिप्रेम के समर्थक थे। उनकी प्रसिद्धि ‘सीमांत गाँधी’ के रूप में थी। वे द्वि-राष्ट्र-सिद्धांत के एकदम विरोधी थे। संयोग से, उनकी आवाज की अनदेखी की गई और ‘पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत’ को पाकिस्तान में शामिल मान लिया गया।
Q.139. हमारे देश के बंगाल को पश्चिमी बंगाल क्यों कहा जाता है ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर – देश के विभाजन के समय, बंगाल प्रांत का दो भागों में विभाजन किया गया। इसका एक भाग था पूर्वी बंगाल, जो विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान के रूप में जाना गया। वर्ष 1971 में यह पूर्वी पाकिस्तान स्वतंत्र होकर एक नया देश बांग्लादेश बना। दूसरा भाग, जो भारत के अंदर रहा, उसे पश्चिमी बंगाल कहा गया। आज भी यह नाम इसी क्षेत्र के लिए प्रचलित है। इस प्रकार, बंगाल का विभाजन दो नए राजनीतिक और भौगोलिक इकाइयों में हुआ, जिनका इतिहास और संस्कृति दोनों ही आज भी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
Q.140. रजवाड़ों के संदर्भ में सहमति-पत्र का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – शांतिपूर्ण वार्ताओं के माध्यम से लगभग सभी रजवाड़े, जिनकी सीमाएँ आज़ाद भारत की नई सीमाओं से जुड़ी थीं, 15 अगस्त 1947 से पहले ही भारतीय संघ में शामिल हो गए। अधिकांश रजवाड़ों के शासकों ने भारतीय संघ में विलय के लिए एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसे ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ (Instrument of Accession) कहा जाता है। इस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर का अर्थ था कि वे अपने रजवाड़े को भारतीय संघ का हिस्सा बनाने के लिए सहमत हैं। हालांकि, जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर और मणिपुर जैसी रियासतों का विलय अन्य रियासतों की तुलना में थोड़ा अधिक कठिन और जटिल रहा। इन मामलों में राजनीतिक और सामाजिक कारणों से विलय प्रक्रिया में बाधाएँ आईं।
Q.141. आंध्र प्रदेश के गठन के संदर्भ में पोट्टी श्रीरामुलु का नाम किस तरह जुड़ा हुआ है ?
उत्तर – तेलगुभाषी क्षेत्रों में आंध्र आंदोलन और आंध्र प्रदेश का गठन
तेलगुभाषी क्षेत्रों में आंदोलन:
पुराने मद्रास प्रांत में आज के तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश के अलावा केरल और कर्नाटक के कुछ हिस्से भी शामिल थे। तेलगुभाषी क्षेत्रों के लोगों ने आंध्र प्रदेश नाम से एक अलग राज्य बनाने की मांग की। यह आंदोलन व्यापक रूप से फैल गया क्योंकि तेलगुभाषी क्षेत्रों की लगभग सभी राजनीतिक शक्तियाँ भाषाई आधार पर पुनर्गठन की पक्षधर थीं।केंद्र सरकार की दुविधा और पोट्टी श्रीरामुलु की भूख-हड़ताल:
केंद्र सरकार इस मुद्दे पर ‘हाँ-ना’ की स्थिति में थी, जिससे आंदोलन को और अधिक ताकत मिली। कांग्रेस के दिग्गज नेता और गांधीवादी पोट्टी श्रीरामुलु ने अनिश्चितकालीन भूख-हड़ताल शुरू की। 56 दिनों तक भूख हड़ताल करने के बाद उनकी मृत्यु हो गई, जिससे आंदोलन और भी भड़क उठा और व्यापक अव्यवस्था फैल गई।हिंसक घटनाएँ और राज्य का गठन:
आंध्र प्रदेश में जगह-जगह हिंसक संघर्ष हुए, लोग सड़कों पर उतरे, और पुलिस फायरिंग में कई लोग घायल या मारे गए। मद्रास के कई विधायकों ने विरोध स्वरूप अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया। अंततः दिसंबर 1952 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री ने आंध्र प्रदेश के रूप में एक नया राज्य बनाने की घोषणा की।
Q. 142. बर्लिन-दीवार का निर्माण एवं विध्वंस किस तरह ऐतिहासिक घटना कहलाती है ?
उत्तर – शीतयुद्ध के सबसे तीव्र और तनावपूर्ण दौर में, 1961 में बर्लिन-दीवार का निर्माण किया गया, जो शीतयुद्ध का सबसे बड़ा और प्रतीकात्मक निशान बन गई। यह दीवार पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को अलग करती थी और दो विपरीत राजनीतिक विचारधाराओं के बीच की खाई को दर्शाती थी। 1989 में, पूर्वी जर्मनी की जनता ने इस दीवार को गिराने का साहसिक कदम उठाया। इस नाटकीय घटना ने शीतयुद्ध के दौर में एक नया अध्याय खोल दिया। इसके बाद अनेक ऐतिहासिक घटनाक्रम हुए, जिनकी परिणति द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विभाजित हुए जर्मनी के पुनः एकीकरण और शीतयुद्ध के समाप्ति के रूप में हुई। यह घटना वैश्विक राजनीति में एक नए युग की शुरुआत का सूचक थी, जिसमें दुनिया ने शांति और सहयोग की ओर कदम बढ़ाया।
Q.143. स्वतंत्रता के बाद भारत जैसे नए राष्ट्र की कौन-सी चुनौतियाँ थी ?
उत्तर – 1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के तहत भारत का विभाजन हुआ और दो अधिराज्य — भारत एवं पाकिस्तान — का गठन हुआ। इस विभाजन ने देश की राष्ट्रीय एकता को गहरा आघात पहुँचाया। विभाजन के बाद देश का वातावरण खून-खराबा, लूटपाट और सांप्रदायिक दंगों से भर गया, जिससे सामाजिक स्थिरता प्रभावित हुई। स्वतंत्र भारत के समक्ष कई समस्याएँ थीं, लेकिन तीन प्रमुख चुनौतियाँ ऐसी थीं जिन पर विजय प्राप्त किए बिना देश की एकता और समृद्धि सुनिश्चित करना संभव नहीं था:
राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखना — देश के विभिन्न भागों को एक सूत्र में बाँधना और विभाजन के बाद फैली विसंगतियों को दूर करना।
देश में लोकतंत्र की स्थापना — सभी नागरिकों को समान अधिकार देना, न्याय और स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
संपूर्ण समाज के विकास और भलाई को सुनिश्चित करना — आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में समावेशी विकास की दिशा में काम करना।
इन तीनों चुनौतियों का सामना कर भारत ने एक मजबूत, एकीकृत और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बनाई।
Q.144. महिला सशक्तिकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – महिला सशक्तिकरण का मूल अर्थ यह है कि महिलाएँ ऐसी सक्षम और मजबूत बनें कि वे न केवल अपने सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय दायित्वों का निर्वाह कर सकें, बल्कि निर्णय लेने वाली सक्रिय भागीदार भी बनें। किसी भी समाज या व्यवस्था की स्थिरता तब तक संभव नहीं है जब तक वह अपनी आधी आबादी—यानी महिलाओं—को नजरअंदाज करे या उन्हें विकास की प्रक्रिया से बाहर रखे। महिला सशक्तिकरण का व्यापक स्वरूप यह है कि महिलाओं की क्षमताओं और प्रतिभा का पूरा उपयोग राष्ट्रीय विकास एवं समाज सुधार के लिए किया जाए। यह न केवल एक सामाजिक अधिकार है, बल्कि यह एक राष्ट्रीय आवश्यकता भी है। महिलाओं को पुरुषों के समान अवसर और अधिकार देकर उन्हें सक्षम, सक्रिय और निर्णय निर्माता बनाना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए महिलाओं के समक्ष आने वाली शिक्षा, सामाजिक रुढ़ियों और आर्थिक बाधाओं को पूरी तरह से दूर करना होगा, ताकि वे अपने जीवन के हर क्षेत्र में स्वतंत्र और स्वावलंबी बन सकें। इस प्रकार, महिला सशक्तिकरण न केवल महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि समग्र रूप से समाज और राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
Q.145. श्रीलंका के जातीय संघर्ष में किनकी भूमिका प्रमुख है ? उनकी भूमिका पर विचार-विमर्श कीजिए।
उत्तर – श्रीलंका के जातीय संघर्ष में भारतीय मूल के तमिलों की प्रमुख भूमिका रही है। तमिलों के एक उग्र संगठन, लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (लिट्टे), ने हिंसात्मक गतिविधियों के माध्यम से श्रीलंका में जातीय संघर्ष को जन्म दिया। इस संघर्ष की मुख्य माँग थी कि श्रीलंका के एक क्षेत्र को अलग स्वतंत्र तमिल राष्ट्र ‘तमिल ईलम’ के रूप में स्थापित किया जाए। श्रीलंका की राजनीति में बहुसंख्यक सिंहली समुदाय का वर्चस्व रहा है। तमिल समुदाय ने बार-बार आरोप लगाया कि सिंहली बहुमत वाली सरकारें और नेता तमिलों के हितों की उपेक्षा करते हैं। तमिल अल्पसंख्यक समुदाय के साथ भारतीय तमिलों की तुलना में श्रीलंका में बसने वाले तमिलों की संख्या अधिक है, जो भारत से आकर बस गए थे। श्रीलंका के स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी तमिलों का प्रवास जारी रहा, लेकिन सिंहली राष्ट्रवादी इसे स्वीकार नहीं करते थे। उनका मानना था कि श्रीलंका केवल सिंहली लोगों का देश है और तमिलों के लिए कोई विशेष रियायत नहीं होनी चाहिए। तब महिलाओं और अन्य तमिल समुदाय के प्रति उपेक्षा और भेदभाव के कारण तमिल राष्ट्रवाद ने एक उग्र स्वर ग्रहण किया। 1983 के बाद से लिट्टे और श्रीलंकाई सेना के बीच सशस्त्र संघर्ष तीव्र हो गया, जिसमें लिट्टे ने श्रीलंका के उत्तर-पूर्वी हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित कर ‘तमिल ईलम’ नामक अलग राष्ट्र की माँग को बल दिया।
Q.146. ऐसे दो मसलों के नाम बताएँ जिन पर भारत-बांग्लादेश के बीच आपसी सहयोग है और इसी तरह दो ऐसे मसलों के नाम बताएँ जिन पर असहमति है।
उत्तर – (a) भारत-बांग्लादेश के बीच आपसी सहयोग के मसले
भारत और बांग्लादेश के बीच कई क्षेत्रों में आपसी सहयोग जारी है। पिछले दस वर्षों के दौरान दोनों देशों के आर्थिक संबंधों में काफी सुधार हुआ है। बांग्लादेश भारत की ‘पूरब चलो’ नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो म्यांमार के रास्ते दक्षिण-पूर्व एशिया से संपर्क स्थापित करने पर आधारित है।
दोनों देश आपदा प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर भी लगातार सहयोग कर रहे हैं। इसके अलावा, साझा खतरों की पहचान कर, एक-दूसरे की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाकर, सहयोग के क्षेत्र को और विस्तृत करने के प्रयास जारी हैं। इस तरह, भारत-बांग्लादेश संबंधों में आपसी समझ और समर्थन बढ़ाने का प्रयास लगातार हो रहा है।
(b) भारत-बांग्लादेश के बीच आपसी असहमति के मसले
हालांकि भारत और बांग्लादेश के बीच सहयोग है, पर कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर मतभेद भी बने हुए हैं। गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के जल वितरण को लेकर दोनों देशों में विवाद है। इसके अलावा, भारत में अवैध प्रवास के मामलों पर ढाका की ओर से नाखुशी जताई जाती है।
भारत को पूर्वोत्तर भारत तक जाने के लिए बांग्लादेश से मार्ग न मिलने, भारत-विरोधी कट्टरपंथी इस्लामी जमातों को बांग्लादेश के समर्थन, प्राकृतिक गैस निर्यात के मसलों तथा म्यांमार से होकर भारत को गैस आपूर्ति नहीं करने के फैसले भी विवाद के विषय रहे हैं।
बांग्लादेश सरकार का आरोप है कि भारत नदी जल साझा करने के मुद्दे पर क्षेत्रीय दादागिरी करता है। साथ ही, भारत पर चटगांव पर्वतीय क्षेत्र में विद्रोह को बढ़ावा देने, बांग्लादेश की प्राकृतिक गैस में सेंधमारी करने और व्यापारिक धोखाधड़ी के भी आरोप लगे हैं। रोटय्या शरणार्थी समस्या भी दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बनी हुई है।
Q.147. अयोध्या मुद्दा क्या था ?
उत्तर – अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद को लेकर दशकों से विवाद चलता आ रहा है। अनेक हिन्दुओं का मानना है कि मुगल बादशाह के सिपहसलार मीर बाकी ने भगवान राम के जन्मस्थान पर बने प्राचीन राम मंदिर को तोड़कर उसकी जगह बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस विवादित स्थल पर मस्जिद का ताला बंद कर दिया गया और मामला न्यायालय में चलने लगा। 6 दिसंबर 1992 को देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों लोग अयोध्या पहुंचे और बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया, जिसे भारतीय धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ एक चुनौती माना गया। अंततः, इस विवाद का निपटारा करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने नवंबर 2019 में अपना निर्णय सुनाया। इस फैसले में रामलला के लिए मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया गया, जिससे इस लंबे समय से चले आ रहे विवाद का अंत हुआ।
Q.148. विश्व व्यापार संगठन क्या है ?
उत्तर – विश्व व्यापार संगठन (WTO) का परिचय
1947 में गैर-जेनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड (GATT) की स्थापना हुई थी, जिसका उद्देश्य विश्व व्यापार को बढ़ावा देना था। लेकिन समय के साथ यह समझा गया कि GATT अपने उद्देश्यों को पूर्ण रूप से पूरा नहीं कर पा रहा है। इसलिए, इसे बदलकर 1995 में विश्व व्यापार संगठन (WTO) का गठन किया गया। WTO हर दो वर्ष में सम्मेलन आयोजित करता है, जिसमें सदस्य देशों के बीच व्यापार संबंधी मुद्दों पर चर्चा होती है। यहाँ लिए गए निर्णय बहुमत से होते हैं और ये सभी सदस्य देशों के लिए बाध्यकारी होते हैं। विश्व व्यापार संगठन का अपना न्यायाधिकरण (डिसप्यूट सेटलमेंट बॉडी) भी है, जो सदस्य राज्यों के बीच व्यापार विवादों को सुलझाने का काम करता है। इस प्रकार, WTO वैश्विक व्यापार व्यवस्था को सुव्यवस्थित और न्यायसंगत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
Q.149. यूरोपीय संघ का निर्माण किन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया गया ?
उत्तर – यूरोपीय संघ के प्रमुख उद्देश्य
यूरोपीय संघ के मुख्य उद्देश्य आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना, अपने क्षेत्र का सतत एवं संतुलित विकास सुनिश्चित करना, क्षेत्र में स्थायित्व बनाए रखना, और सदस्य देशों के जीवन स्तर को उन्नत बनाना है। इसके साथ ही, संघ सदस्य राज्यों के बीच घनिष्ठ आर्थिक सहयोग स्थापित करने का भी प्रयास करता है। संघ की संधि परिषद द्वारा लिए गए निर्णय सभी सदस्य राज्यों के लिए अनिवार्य होते हैं, जिनका पालन करना सभी को आवश्यक है।

SANTU KUMAR
I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.
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