Q.31. गुजरात के मुस्लिम विरोधी दंगे, 2002 पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए। –
उत्तर – पृष्ठभूमि
गोधरा (गुजरात) रेलवे स्टेशन पर वर्ष 2002 में एक अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और हृदयविदारक घटना घटित हुई। अयोध्या (उत्तर प्रदेश) से आ रही एक रेलगाड़ी की एक बोगी, जिसमें कार सेवक सवार थे, उसमें अचानक आग लग गई। इस दर्दनाक हादसे में 57 लोगों की जलकर मृत्यु हो गई। इस घटना के तुरन्त बाद कुछ लोगों ने यह अफवाह फैला दी कि रेलगाड़ी के डिब्बे में आग लगाने के पीछे मुसलमानों का हाथ था। यह अफवाह इतनी तेजी से फैली कि देखते ही देखते संपूर्ण गुजरात में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क उठी। यह हिंसा विशेष रूप से मुसलमानों के विरुद्ध थी और लगभग एक महीने तक चलती रही। इस दौरान लगभग 1100 निर्दोष लोगों की जान चली गई। गुजरात में फैली इस व्यापक हिंसा पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने गंभीर चिंता व्यक्त की। आयोग ने न केवल पीड़ितों के परिजनों को राहत पहुँचाने की मांग की, बल्कि दोषियों को कानून के कठघरे में लाकर उन्हें दंडित करने की भी सिफारिश की। आयोग का यह भी स्पष्ट मत था कि राज्य की पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था ने अपने संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं किया और राजधर्म निभाने में विफल रही। यद्यपि सरकार ने कुछ राहत कार्य किए और अनेक लोगों पर मुकदमे चलाए, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि आतंकवाद और साम्प्रदायिकता हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अत्यंत घातक हैं। ऐसी घटनाएँ न केवल मानवता को शर्मसार करती हैं, बल्कि सामाजिक एकता और राष्ट्रीय समरसता को भी गहरी चोट पहुँचाती हैं। अतः हमें अफवाहों से सावधान रहना चाहिए और हर परिस्थिति में संविधान और कानून के मार्ग पर चलना चाहिए।
Q.32. भारत अमेरिका समझौता का वर्णन करें।
उत्तर – भारत की परमाणु नीति
भारत की परमाणु नीति दो प्रमुख आधारों पर आधारित है। पहला, भारत के पड़ोसी देश—चीन और पाकिस्तान—दोनों परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र हैं। ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से यह आवश्यक हो गया कि भारत भी परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों के सामने अपनी रक्षा और संप्रभुता बनाए रखने के लिए एक सशक्त और संतुलित परमाणु नीति अपनाए। दूसरा, भारत की बढ़ती हुई ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा एक महत्वपूर्ण विकल्प है। इसलिए शांतिपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति हेतु परमाणु संयंत्रों की स्थापना भारत के दीर्घकालीन ऊर्जा नीति का अभिन्न अंग बन गई है। भारत ने 1974 में पोखरण में पहला और 1998 में दूसरा परमाणु परीक्षण किया। इन परीक्षणों के पश्चात अमेरिका सहित अनेक विकसित देशों ने भारत पर आर्थिक व राजनैतिक प्रतिबंध लगाए। इसके बावजूद भारत ने यह स्पष्ट किया कि उसके परमाणु कार्यक्रम का उद्देश्य केवल रक्षा और ऊर्जा से जुड़ा हुआ है, न कि आक्रामकता। भारत के परमाणु परीक्षण शांतिपूर्ण कार्यों के लिए ही थे। भारत पर लंबे समय से अमेरिका और अन्य पश्चिमी राष्ट्रों द्वारा NPT (परमाणु अप्रसार संधि) और CTBT (व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि) पर हस्ताक्षर करने का दबाव रहा है। इन संधियों का आशय यह है कि भारत आगे परमाणु परीक्षण नहीं कर सकता। किंतु भारत इन संधियों को भेदभावपूर्ण मानता है, क्योंकि ये संधियाँ परमाणु हथियारों को केवल कुछ देशों तक सीमित रखती हैं जबकि अन्य देशों को इससे वंचित करती हैं।
भारत की परमाणु नीति की प्रमुख घोषणाएँ इस प्रकार हैं:
भारत हथियारों की होड़ से दूर रहेगा, किंतु आवश्यकतानुसार न्यूनतम परमाणु प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखेगा।
भारत भविष्य में भूमिगत परमाणु परीक्षण नहीं करेगा, जब तक कोई विशेष आवश्यकता उत्पन्न न हो।
भारत ने ‘पहले प्रयोग नहीं करने’ की नीति को स्वेच्छा से स्वीकार किया है, जो इसे एक जिम्मेदार परमाणु राष्ट्र बनाती है।
भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रमों को जारी रखते हुए अमेरिका से संबंधों को सुधारने का प्रयास किया। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय से यह प्रक्रिया प्रारंभ हुई, जिसका सकारात्मक परिणाम 2008 में देखने को मिला जब भारत और अमेरिका के बीच ऐतिहासिक असैनिक परमाणु समझौता सम्पन्न हुआ। यह समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के बीच हुआ था। इस कड़ी में आगे बढ़ते हुए 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच अनेक आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और रक्षा संबंधी समझौते किए गए। यह भारत-अमेरिका संबंधों के इतिहास में एक नया अध्याय था। इसके पश्चात 24 और 25 फरवरी 2020 को राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत दौरे के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के साथ विभिन्न समझौतों पर हस्ताक्षर कर द्विपक्षीय संबंधों को और प्रगाढ़ बनाया। इस प्रकार भारत की परमाणु नीति एक संतुलित, शांतिपूर्ण तथा आत्मरक्षा पर आधारित नीति है, जो वैश्विक शांति, संप्रभुता की रक्षा और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक सशक्त प्रयास है।
Q.33. पुर्तगाल से गोवा मुक्ति का संक्षेप में विवरण दीजिए। अथवा, गोवा का भारत में विलय किस प्रकार हुआ?
उत्तर – गोवा का भारत में विलय
भारत की स्वतंत्रता के बाद भी गोवा, दमन और दीव जैसे क्षेत्र पुर्तगालियों के अधीन बने रहे। भारत में गोवा का विलय कोई सरल प्रक्रिया नहीं थी, क्योंकि पुर्तगाल ने गोवा को केवल एक उपनिवेश नहीं, बल्कि अपनी प्रतिष्ठा का प्रतीक मान लिया था। पुर्तगाली सरकार इसे अपने नियंत्रण में बनाए रखने के लिए अडिग थी। इसके विपरीत भारत इस उपनिवेशवाद को देश के सम्मान के विरुद्ध एक कलंक के रूप में देखता था। स्वतंत्र भारत सरकार ने आरंभिक वर्षों में इस समस्या का समाधान शांतिपूर्ण और कूटनीतिक मार्ग से करने का प्रयास किया। भारत ने पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में एक कार्यालय भी खोला ताकि वहां की सरकार को गोवा छोड़ने के लिए राजी किया जा सके। परंतु जब 1953 तक इन सभी प्रयासों का कोई परिणाम नहीं निकला, तो यह कार्यालय बंद कर दिया गया। गोवा की मुक्ति के लिए भारतवासियों ने ‘गोवा राष्ट्रीय समिति’ का गठन किया। इसका उद्देश्य गोवा की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत विभिन्न राष्ट्रवादी संगठनों की गतिविधियों में समन्वय स्थापित करना था। 18 जून 1954 को कई सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर लिया गया जब उन्होंने गोवा में भारतीय तिरंगा फहराने का प्रयास किया। इसके बाद 22 जुलाई को क्रांतिकारियों ने दादरा और नगर हवेली को पुर्तगालियों से मुक्त करा लिया। इस आंदोलन को जनसंघ और ‘गोवावादी जनता पार्टी’ (Goan People’s Party) का भी सक्रिय समर्थन प्राप्त था। गोवा की आज़ादी को लेकर संघर्ष ने 15 अगस्त 1955 को एक निर्णायक मोड़ लिया। इस दिन हजारों सत्याग्रही गोवा की सीमा में प्रवेश कर गए। इसी प्रकार की घटनाएं दमन और दीव में भी घटीं। पुर्तगाली सेना की बर्बर कार्यवाही में लगभग 200 सत्याग्रही शहीद हो गए। पुर्तगाल की इस क्रूरता से पूरा भारत स्तब्ध रह गया। प्रधानमंत्री ने इसकी कड़ी निंदा की और देशभर में विरोधस्वरूप हड़तालें हुईं। नवंबर 1961 में पुर्तगालियों ने भारत के एक पोत पर हमला कर दिया, जिसमें कई लोग मारे गए। यह घटना निर्णायक सिद्ध हुई। भारत ने सैन्य कार्रवाई का निर्णय लिया और “ऑपरेशन विजय” नामक सैन्य अभियान प्रारंभ किया। 19 दिसंबर 1961 को यह अभियान सफल हुआ और गोवा, दमन और दीव भारत के पूर्णतः स्वतंत्र अंग बन गए। यह दिन भारतीय इतिहास में उपनिवेशवाद की समाप्ति और राष्ट्रीय एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जाता है।
Q. 34. हमारी राजव्यवस्था के निम्नलिखित पक्ष पर आपातकाल का क्या असर हुआ ?
(a) नागरिक अधिकारों की दशा और नागरिकों पर इसका असर।
(b) कार्यपालिका और न्यायपालिका के संबंध।
(c) जनसंचार माध्यमों के कामकाज।
(d) पुलिस और नौकरशाही की कार्रवाइयाँ।
उत्तर – भारत में आपातकाल (1975–1977): एक विश्लेषण
भारत में आपातकाल (Emergency) की घोषणा 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा की गई थी। यह कालखंड भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं विवादास्पद अध्याय के रूप में दर्ज है। इस दौरान नागरिक अधिकारों, न्यायपालिका, प्रेस और प्रशासन के क्षेत्र में अनेक असाधारण एवं अलोकतांत्रिक घटनाएं घटित हुईं।
(a) मौलिक अधिकारों का निलंबन और निवारक नजरबंदी
आपातकाल की सबसे गंभीर विशेषता यह रही कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निष्क्रिय कर दिया गया। नागरिकों को यह अधिकार भी नहीं रहा कि वे अदालत में जाकर अपने अधिकारों की पुनः प्राप्ति के लिए अपील कर सकें। सरकार ने बड़े पैमाने पर निवारक नजरबंदी (Preventive Detention) का उपयोग किया। यह कानून अपराध के बाद नहीं, बल्कि संभावित अपराध की आशंका के आधार पर गिरफ्तारी की अनुमति देता है। राजनीतिक विरोधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया। बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) याचिकाएं भी अदालतों में स्वीकार नहीं की जा रही थीं। जो कार्यकर्ता गिरफ्तारी से बच गए, वे भूमिगत होकर सरकार विरोधी गतिविधियों में संलग्न हो गए।
(b) न्यायपालिका और बंदी प्रत्यक्षीकरण
आपातकाल के दौरान कई गिरफ्तार व्यक्तियों अथवा उनके परिजनों द्वारा उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की गईं, लेकिन सरकार ने तर्क दिया कि आपातकाल के दौरान नागरिकों को गिरफ्तारी का कारण बताना अनावश्यक है। अनेक उच्च न्यायालयों ने सरकार के इस तर्क को अस्वीकार करते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं स्वीकार कीं, परंतु अप्रैल 1976 में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने उच्च न्यायालयों के निर्णयों को पलट दिया और सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। इस फैसले के अनुसार सरकार आपातकाल के दौरान व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को निलंबित कर सकती है। यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में अत्यंत विवादास्पद और आलोचना का विषय बना।
(c) प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध
सरकार ने आपातकालीन शक्तियों का उपयोग करते हुए प्रेस की स्वतंत्रता पर कठोर नियंत्रण लगा दिया। समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को किसी भी खबर को प्रकाशित करने से पूर्व सरकारी अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया। इस प्रक्रिया को “प्रेस सेंसरशिप” कहा गया। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘स्टेट्समैन’ जैसे प्रमुख समाचार पत्रों ने इस सेंसरशिप का विरोध किया। वे जिस समाचार को छापने की अनुमति नहीं मिली, वहाँ खाली स्थान छोड़ देते थे। ‘सेमिनार’ और ‘मेनस्ट्रीम’ जैसी पत्रिकाओं ने सेंसरशिप के आगे झुकने की बजाय प्रकाशन बंद करना बेहतर समझा। इसके अलावा भूमिगत तरीके से कई न्यूजलेटर और लीफलेट्स का वितरण हुआ, जिसने सेंसरशिप को चुनौती दी।
(d) प्रशासनिक दमन और अत्याचार
आपातकाल के दौरान पुलिस और नौकरशाही की शक्तियाँ बेतहाशा बढ़ गईं। कई मामलों में पुलिस ने मनमानी की और हिरासत में लोगों की मौत तक हुई। अनुशासन के नाम पर अधिकारी निरंकुश हो गए। विशेष रूप से परिवार नियोजन कार्यक्रम को जबरदस्ती लागू किया गया, जिसके अंतर्गत कई लोगों की इच्छा के विरुद्ध नसबंदी कराई गई। इसके अतिरिक्त, अनाधिकृत निर्माणों को ध्वस्त किया गया, आम जनता के साथ कठोर व्यवहार हुआ और रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार की घटनाएं बढ़ गईं। यह समय प्रशासनिक दमन और आम नागरिक की स्वतंत्रता के हनन का प्रतीक बन गया।
निष्कर्ष
भारत में आपातकाल का कालखंड एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए अत्यंत चेतावनीपूर्ण अनुभव था। यह समय शासन के केंद्रीकरण, मौलिक अधिकारों के हनन और न्यायिक स्वतंत्रता के क्षरण का प्रतीक रहा। यद्यपि आपातकाल की समाप्ति के पश्चात भारत ने लोकतांत्रिक मूल्यों की पुनर्स्थापना की, परंतु यह घटना एक ऐतिहासिक स्मृति के रूप में सदैव याद रखी जाएगी, जो दर्शाती है कि लोकतंत्र की रक्षा सतर्कता और जागरूकता से ही संभव है।
Q. 35. अयोध्या स्थित विवादित ढाँचे (राम मंदिर अथवा बाबरी मस्जिद) के अक्टूबर 1992 के विध्वंस से लेकर बाद की घटनाओं का एक लेख के रूप में विवरण दीजिए।
उत्तर – अयोध्या विवाद और उसका प्रभाव
अयोध्या विवाद भारतीय सामाजिक और राजनीतिक इतिहास की एक अत्यंत संवेदनशील और जटिल घटना है। यह विवाद उस स्थल को लेकर था जहाँ हिन्दू संगठन “राम जन्मभूमि” होने का दावा करते हैं और जहाँ एक प्राचीन मस्जिद—बाबरी मस्जिद—स्थित थी।
राम मंदिर आंदोलन और कार सेवा
दिसंबर 1992 में, राम मंदिर के निर्माण के समर्थन में विभिन्न हिन्दू संगठनों—जैसे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), विश्व हिंदू परिषद (VHP), शिवसेना, बजरंग दल, और दुर्गा वाहिनी—ने एक “कार सेवा” कार्यक्रम का आयोजन किया। इसके अंतर्गत रामभक्तों से आह्वान किया गया कि वे अयोध्या आकर राम मंदिर के निर्माण हेतु श्रमदान करें। बड़ी संख्या में कार सेवक अयोध्या पहुँचे और वहाँ तनावपूर्ण वातावरण उत्पन्न हो गया।
विवादित ढाँचे का विध्वंस
इस तनावपूर्ण पृष्ठभूमि में 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या स्थित विवादित ढाँचा (जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है) कार सेवकों द्वारा गिरा दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार को विवादित स्थल की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया था, परंतु राज्य सरकार सुरक्षा बनाए रखने में विफल रही। यह घटना भारतीय राजनीति और सामाजिक ताने-बाने पर गहरा प्रभाव डालने वाली सिद्ध हुई।
देशभर में साम्प्रदायिक तनाव
ढाँचे के विध्वंस की खबर फैलते ही देश के कई भागों में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क उठी। जनवरी 1993 में मुंबई में व्यापक दंगे हुए जो कई हफ्तों तक चले। इस घटना के पश्चात केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार को बर्खास्त कर दिया। अन्य भाजपा शासित राज्यों में भी राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। चूँकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सर्वोच्च न्यायालय में ढाँचे की सुरक्षा का वचन दिया था, उनके विरुद्ध अवमानना का मुकदमा भी दायर किया गया।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और जाँच आयोग
भारतीय जनता पार्टी ने इस घटना पर आधिकारिक रूप से खेद व्यक्त किया। केंद्र सरकार द्वारा एक जाँच आयोग नियुक्त किया गया जिसने बाबरी मस्जिद के विध्वंस से संबंधित घटनाओं की जाँच की। इस पूरे घटनाक्रम ने देश में धर्मनिरपेक्षता पर गंभीर प्रश्न उठाए। अनेक राजनीतिक विश्लेषकों और नागरिकों ने धर्म के नाम पर हो रही राजनीति और हिंसा की आलोचना की।
धर्म के नाम पर दंगे और उनका प्रभाव
भारत के इतिहास में अनेक साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं, जैसे 1984 के सिख विरोधी दंगे, 1992-93 के अयोध्या के बाद के दंगे, और 2002 के गुजरात दंगे। इन सभी घटनाओं में दोनों समुदायों के निर्दोष नागरिकों को जान-माल का भारी नुकसान उठाना पड़ा। ये घटनाएँ यह सिद्ध करती हैं कि धर्म के आधार पर की गई राजनीति और हिंसा समाज के ताने-बाने को तोड़ती है और लोकतांत्रिक मूल्यों को क्षति पहुँचाती है।
न्यायिक समाधान और वर्तमान स्थिति
वर्षों तक चले कानूनी विवाद और अनेक सुनवाइयों के बाद नवम्बर 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। न्यायालय ने रामलला मंदिर के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए उस स्थल पर मंदिर निर्माण की अनुमति दी। साथ ही मुस्लिम समुदाय को अयोध्या में ही 5 एकड़ भूमि मस्जिद निर्माण के लिए आवंटित की गई। इस निर्णय के साथ इस लंबे विवाद का संवैधानिक और न्यायिक समाधान प्राप्त हुआ।
निष्कर्ष
अयोध्या विवाद केवल एक धार्मिक विवाद नहीं था, बल्कि यह भारत के धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और बहुलवादी समाज की परीक्षा थी। इस प्रकरण से यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक भावनाओं का राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग समाज में गहरे विभाजन का कारण बन सकता है। न्यायपालिका द्वारा दिए गए संतुलित निर्णय ने एक जटिल समस्या का समाधान प्रस्तुत किया और यह आशा की जाती है कि भविष्य में सभी समुदाय शांति, सद्भाव और संविधान के मूल्यों के साथ आगे बढ़ेंगे।
Q. 36. शांति स्थापना कार्यवाही से आप क्या समझते हैं ? उसमें भारत की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर – विश्व शांति स्थापना में भारत और संयुक्त राष्ट्र की भूमिका
विश्व शांति की स्थापना में संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने एक केंद्रीय भूमिका निभाई है। विशेष रूप से 1950 और 1960 के दशकों में जब दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अनेक संघर्ष और विवाद उत्पन्न हुए, तब संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से शांति बहाली के लिए वैश्विक प्रयास किए गए। भारत ने इन प्रयासों में अत्यंत महत्वपूर्ण और रचनात्मक भूमिका निभाई।
भारत की भूमिका संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में
भारत ने विश्व शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को सिद्ध करते हुए कई बार संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में सैन्य और मानवीय सहायता प्रदान की। भारत ने न केवल सैनिक बल भेजे, बल्कि चिकित्सकीय सहायता, पैरामेडिकल यूनिट्स, अधिकारी और विशेषज्ञ भी उपलब्ध कराए।
कोरिया युद्ध (1953)
युद्ध विराम के बाद भारत को तटस्थ राष्ट्र प्रत्यावर्तन आयोग (Neutral Nations Repatriation Commission) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। भारत ने कोरिया में युद्ध पीड़ितों और घायलों के लिए पैरामेडिकल यूनिट भेजकर सेवा प्रदान की।मध्य एशिया और संयुक्त राष्ट्र आपात सेना (UNEF)
भारत ने 1956 से 1967 तक चलने वाले UNEF मिशन में इन्फैंट्री बटालियन भेजी। यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित एक दीर्घकालिक और महत्वपूर्ण शांति अभियान था।वियतनाम, लाओस, कम्बोडिया में युद्ध विराम (1954)
भारत अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण आयोग (International Control Commission) का अध्यक्ष रहा, जिसने इन देशों में युद्धविराम को लागू करने और निगरानी रखने में योगदान दिया।कांगो (1960)
भारत ने शांति स्थापना के उद्देश्य से कांगो में अपनी सेना भेजी। वहाँ भारतीय सैनिकों के मानवतावादी कार्यों और अनुशासन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना हुई।साइप्रस, यमन और ईरान-इराक
इन क्षेत्रों में हुए संघर्षों के दौरान भारत ने संयुक्त राष्ट्र अभियानों के अंतर्गत फार्स कमांडर और पर्यवेक्षकों (Observers) को भेजा।नामिबिया और मोजाम्बिक
नामिबिया में संयुक्त राष्ट्र द्वारा चलाए गए ऑपरेशन में कोर्स कमांडर भारतीय अधिकारी ही थे। मोजाम्बिक में भारत ने न केवल विदेशी सेनाओं को वापस भेजने की प्रक्रिया में सहायता की, बल्कि वहाँ के निर्वाचन में भी तकनीकी और मानव संसाधन सहायता दी।
भारत की कूटनीतिक भूमिका
भारत केवल सैनिक या मानवीय सहायता तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उसने संयुक्त राष्ट्र में नैतिक और कूटनीतिक नेतृत्व भी प्रदर्शित किया है। विशेष रूप से अफ्रीकी-एशियाई एकता, गुटनिरपेक्ष आंदोलन, और विकासशील देशों की आवाज को बुलंद करने में भारत की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। भारत ने हमेशा धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों का समर्थन किया है।
निष्कर्ष
भारत ने विश्व शांति की स्थापना और रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र के मंच पर एक सक्रिय, जिम्मेदार और सम्मानजनक भूमिका निभाई है। भारतीय सेना, चिकित्सकीय दल, पर्यवेक्षक, इंजीनियर और कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से भारत ने यह सिद्ध किया है कि वह न केवल अपने क्षेत्र में, बल्कि विश्व स्तर पर भी शांति और स्थायित्व का एक सशक्त समर्थक है। भारत की यह भूमिका आज भी निरंतर जारी है और इसे वैश्विक समुदाय द्वारा सराहा जाता है।
Q 37. संयुक्त राष्ट्र का महासचिव पर संक्षिप्त संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर – संयुक्त राष्ट्र महासचिव (The Secretary-General of the United Nations)
संयुक्त राष्ट्र का संचालन एक विशाल सचिवालय (Secretariat) के माध्यम से होता है, जिसका प्रमुख अधिकारी महासचिव (Secretary-General) होता है। महासचिव को संयुक्त राष्ट्र का प्रशासनिक प्रमुख माना जाता है, जिसकी भूमिका वैश्विक स्तर पर अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
महासचिव का चुनाव
संयुक्त राष्ट्र के पहले महासचिव त्रिग्वे ली (Trygve Lie) थे, जो नॉर्वे के नागरिक थे। उन्होंने इस पद पर 1946 से 1952 तक कार्य किया।
(नोट: आपकी जानकारी में “काफी अन्नान” का उल्लेख है, जो कि 1997 से 2006 तक महासचिव रहे। वर्तमान में, एंतोनियो गुटेरेस (António Guterres) संयुक्त राष्ट्र के महासचिव हैं; उन्होंने 1 जनवरी 2017 से यह पदभार संभाला है।)
महासचिव के प्रमुख कार्य
संयुक्त राष्ट्र महासचिव के कार्य बहुआयामी होते हैं, जिनमें संगठनात्मक, कूटनीतिक और प्रशासनिक कार्य शामिल हैं। प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:
बैठकों का आयोजन: महासचिव सुरक्षा परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, महासभा आदि की बैठकों को आमंत्रित करता है और उनका समन्वय करता है।
निर्णयों का कार्यान्वयन: संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंगों द्वारा लिए गए निर्णयों और प्रस्तावों को लागू कराना महासचिव की जिम्मेदारी होती है।
शांति और सुरक्षा की निगरानी: यदि विश्व में कहीं भी शांति और सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होता है, तो महासचिव इसकी सूचना सुरक्षा परिषद को देता है और आवश्यक कदम उठाने की सिफारिश करता है।
रिपोर्ट प्रस्तुत करना: महासचिव संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के समस्त कार्यों की वार्षिक रिपोर्ट महासभा के समक्ष प्रस्तुत करता है।
कूटनीतिक प्रयास और मध्यस्थता: महासचिव अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में मदद करता है, अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का सर्वेक्षण करता है, तथा विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और गोष्ठियों का आयोजन करता है।
निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र महासचिव विश्व शांति, सुरक्षा और विकास के क्षेत्र में एक मुख्य प्रवर्तक होता है। यह पद केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि एक नैतिक और कूटनीतिक नेतृत्व की भूमिका निभाता है। महासचिव के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र विश्व के विभिन्न देशों के बीच संवाद और सहयोग को सशक्त बनाता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान शांति और समझौते के माध्यम से हो सके।
Q. 38. संयुक्त राष्ट्र की कुछ उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख उपलब्धियाँ
संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations Organization) की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था — विश्व शांति की स्थापना, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना, और मानवाधिकारों की रक्षा करना।
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी स्थापना के बाद से अब तक अनेक वैश्विक संघर्षों को सुलझाने और विकासशील देशों को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसकी प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं:
1. इजरायल की स्थापना (1948)
संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन समस्या को सुलझाने के लिए प्रयास किए और 1948 में यहूदियों के लिए इजरायल राष्ट्र की स्थापना सुनिश्चित की।
2. कोरिया और हिंद-चीन युद्ध का अंत
संयुक्त राष्ट्र ने कोरिया और हिंद-चीन के युद्धों को समाप्त करवाने में मध्यस्थता की। कोरिया की संप्रभुता और स्वतंत्रता की रक्षा की गई।
3. इंडोनेशिया की स्वतंत्रता (1948)
संयुक्त राष्ट्र के दबाव के कारण डच सेनाओं को इंडोनेशिया से वापस लौटना पड़ा, जिससे 1948 में एक स्वतंत्र इंडोनेशिया राष्ट्र का उदय हुआ।
4. भारत-पाकिस्तान युद्धों में हस्तक्षेप (1948 और 1965)
संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर सीमा विवाद के कारण भारत और पाकिस्तान के बीच 1948 और 1965 में हुए युद्धों को रोकने में सफलता प्राप्त की।
5. स्वेज नहर विवाद का समाधान
संयुक्त राष्ट्र ने इंग्लैंड और मिस्र के बीच हुए स्वेज नहर संकट का समाधान कराया और शांतिपूर्ण समाधान सुनिश्चित किया।
6. नवोदित देशों की स्वतंत्रता में सहायता
संयुक्त राष्ट्र ने मलाया, लीबिया, ट्यूनीशिया, घाना, टोगोलैंड आदि देशों को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
7. कांगो में शांति स्थापना
संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना (Peacekeeping Forces) ने कांगो में विद्रोह और गृहयुद्ध की स्थिति को नियंत्रित कर शांति बहाल की।
8. अमेरिका-सोवियत तनाव में कमी
संयुक्त राष्ट्र ने शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच संवाद और समझौते की प्रक्रिया को प्रोत्साहित किया, जिससे वैश्विक तनावों में कमी आई।
9. विनाशकारी शस्त्रों की रोकथाम
संयुक्त राष्ट्र ने परमाणु और अन्य विनाशकारी हथियारों को नियंत्रित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलनों का आयोजन किया और हथियार नियंत्रण संधियों को बढ़ावा दिया।
10. ईरान-इराक युद्ध का अंत (1988)
संयुक्त राष्ट्र की पहल पर 1988 में ईरान और इराक के बीच आठ वर्षों से चला आ रहा युद्ध समाप्त हुआ, जिससे मध्य-पूर्व क्षेत्र में स्थायित्व आया।
निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी स्थापना से अब तक वैश्विक शांति, सुरक्षा, स्वतंत्रता और मानवता की रक्षा के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। यह संस्था आज भी विश्व में संघर्षों के समाधान, शांति स्थापना, और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बनी हुई है। इसकी सक्रियता और निष्पक्षता ही इसे एक वैश्विक नेतृत्व संस्था के रूप में प्रतिष्ठित करती है।
Q.39. भारत को संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता से क्या लाभ हुए ?
उत्तर – संयुक्त राष्ट्र द्वारा भारत की प्रगति में योगदान
संयुक्त राष्ट्र संघ न केवल विश्व शांति और सुरक्षा के क्षेत्र में कार्य करता है, बल्कि इसकी विशेषीकृत एजेंसियाँ सदस्य देशों के शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक, तकनीकी तथा वैज्ञानिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। भारत को भी इन संस्थाओं से निरंतर सहायता प्राप्त हुई है, जिससे उसकी समग्र प्रगति में उल्लेखनीय योगदान मिला है।
1. कृषि और पर्यावरण संरक्षण में योगदान (FAO)
खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने भारत के कृषि विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र को कृषि योग्य बनाने में तकनीकी और संसाधन सहायता प्रदान की गई।
राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण को रोकने और उसे हरित क्षेत्र में बदलने हेतु प्रयास किए गए।
2. जनस्वास्थ्य में सुधार (WHO)
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत में जनस्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए अनेक कार्य किए हैं।
डी.डी.टी. और तपेदिक (टी.बी.) नियंत्रण के लिए बी.सी.जी. वैक्सीन उपलब्ध कराई गई।
चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए छात्रवृत्तियाँ प्रदान की गईं।
3. शिक्षा और संस्कृति का विकास (UNESCO)
यूनेस्को (UNESCO) ने भारत में शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया है।
देश में शिक्षा के प्रसार, विशेषकर बालिका शिक्षा और तकनीकी शिक्षा को प्रोत्साहित किया गया।
भारत और अन्य देशों के बीच शिक्षकों और छात्रों के आदान-प्रदान की व्यवस्था की गई।
सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण तथा अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने में सहायता की गई।
4. आर्थिक विकास में सहायता (World Bank, UNDP)
भारत के आर्थिक विकास में भी संयुक्त राष्ट्र की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है।
विश्व बैंक (World Bank) ने भारत की पंचवर्षीय योजनाओं हेतु ऋण और वित्तीय सहायता प्रदान की।
UNDP (संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम) तथा अन्य एजेंसियों ने तकनीकी विशेषज्ञों के माध्यम से योजनाओं को क्रियान्वित करने में मार्गदर्शन दिया।
निष्कर्ष
भारत के कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, संस्कृति और आर्थिक विकास में संयुक्त राष्ट्र की विशेष संस्थाओं का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण और सराहनीय रहा है। यह सहायता भारत की विकास यात्रा को सशक्त बनाने में सहायक रही है। ऐसे सहयोग से न केवल भारत को लाभ हुआ है, बल्कि यह वैश्विक एकजुटता और सहयोग का आदर्श उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।
Q. 40. निःशस्त्रीकरण को परिभाषित करें। निःशस्त्रीकरण के मुद्दे पर भारत क्या भूमिका निभाता रहा है ?
उत्तर – निःशस्त्रीकरण में भारत की भूमिका
निःशस्त्रीकरण (Disarmament) का तात्पर्य है — विश्व शांति को बनाए रखने के उद्देश्य से घातक हथियारों, विशेष रूप से परमाणु, जैविक और रासायनिक हथियारों के निर्माण, प्रयोग और भंडारण पर रोक लगाना। भारत ने सदैव निःशस्त्रीकरण के सिद्धांत का समर्थन किया है और इसकी दिशा में अनेक सराहनीय प्रयास किए हैं।
(a) परमाणु नीति में संयमित रुख
भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी परमाणु नीति को लेकर स्पष्ट और शांतिपूर्ण रुख अपनाया है:
हथियारों की दौड़ से दूरी – भारत ने घोषणा की है कि वह हथियारों की होड़ से दूर रहकर केवल न्यूनतम आवश्यक परमाणु प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखेगा।
भविष्य में परमाणु परीक्षण नहीं – भारत ने कहा है कि वह भविष्य में भूमिगत परमाणु परीक्षण नहीं करेगा।
पहले प्रयोग न करने की नीति – भारत ने स्वेच्छा से परमाणु हथियारों के पहले प्रयोग न करने (No First Use) के सिद्धांत को अपनाया है।
(b) ‘पहले प्रयोग न करने’ की वैश्विक अपील
भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि ‘पहले प्रयोग न करने’ की नीति को एक वैश्विक समझौते का रूप दिया जाए। यह परमाणु हथियारों की समाप्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया।
(c) संयुक्त राष्ट्र में सक्रिय भूमिका
भारत संयुक्त राष्ट्र में निःशस्त्रीकरण के प्रयासों में सदैव सक्रिय भागीदार रहा है:
भारत जेनेवा निःशस्त्रीकरण आयोग का सदस्य रहा है।
वर्ष 1955 में डॉ. होमी जहाँगीर भाभा को संयुक्त राष्ट्र के परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण प्रयोग हेतु आयोजित पहले सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया।
भारत ने 1957 में वियना में IAEA (अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) की स्थापना में निर्णायक भूमिका निभाई।
(d) 1988 की कार्य योजना
1988 में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक महत्वाकांक्षी कार्य योजना प्रस्तुत की, जिसमें एक परमाणु हथियार मुक्त, अहिंसक एवं शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था की स्थापना का आह्वान किया गया। यह प्रस्ताव भारत की वैश्विक शांति के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
निष्कर्ष
भारत ने निःशस्त्रीकरण की दिशा में हमेशा संयम, समझदारी और अहिंसा का मार्ग अपनाया है। भारत का मानना है कि विश्व शांति और सुरक्षा केवल हथियारों के बल पर नहीं, बल्कि आपसी विश्वास, सहयोग और संवाद से ही संभव है। इसलिए, निःशस्त्रीकरण की दिशा में भारत की भूमिका वैश्विक शांति प्रयासों में अनुकरणीय और प्रेरणादायक मानी जाती है।

SANTU KUMAR
I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.
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