Class 12th Political Science ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 2

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Q.11. ‘बांग्लादेश में लोकतंत्र’ विषय पर एक लेख लिखिए।

उत्तर – बांग्लादेश में लोकतंत्र

(Democracy in Bangladesh)

1. पृष्ठभूमि (Background)

  • 1947 से 1971 तक बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान था, जो पश्चिमी पाकिस्तान के अधीन शासन करता था।

  • पूर्वी पाकिस्तान की जनता पर उर्दू थोपने की कोशिश और बंगाली भाषा व संस्कृति के अपमान से असंतोष फैला।

  • शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में आवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्तता की माँग की।

  • 1970 के चुनाव में आवामी लीग को पूर्ण बहुमत मिला, लेकिन सत्ता हस्तांतरण से इंकार कर दिया गया।

  • इसके बाद सैनिक दमन, मुजीबुर की गिरफ्तारी और नरसंहार शुरू हुआ, जिससे लाखों लोग भारत शरणार्थी बनकर आए।

2. भारत का समर्थन और बांग्लादेश की स्वतंत्रता

  • भारत ने शरणार्थियों को शरण दी और बांग्ला आंदोलन का समर्थन किया।

  • 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान आज़ाद होकर बांग्लादेश बना।

  • बांग्लादेश ने धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक संविधान अपनाया।

3. लोकतंत्र से सैनिक शासन की ओर (1975 के बाद)

  • 1975 में शेख मुजीब ने एकदलीय शासन लागू किया, जिससे राजनीतिक असंतोष बढ़ा।

  • अगस्त 1975 में सैन्य विद्रोह हुआ और मुजीब की हत्या कर दी गई।

  • इसके बाद सैन्य शासन का दौर शुरू हुआ –

    • जनरल जियाउर्रहमान ने सत्ता संभाली और बांग्लादेश नेशनल पार्टी (BNP) बनाई।

    • उनके बाद जनरल एच. एम. इरशाद ने सत्ता हथिया ली और लंबे समय तक शासन किया।

4. लोकतंत्र की पुनः स्थापना (1990 से आगे)

  • 1980 के दशक में जनता, विशेषकर छात्रों ने लोकतंत्र के लिए आंदोलन किया।

  • भारी जनदबाव के कारण 1990 में जनरल इरशाद को इस्तीफा देना पड़ा

  • 1991 में बहुदलीय लोकतांत्रिक चुनाव हुए और बांग्लादेश में प्रतिनिधि लोकतंत्र की बहाली हुई।

  • तब से बांग्लादेश में लोकतांत्रिक व्यवस्था बनी हुई है, यद्यपि कई बार राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता संघर्ष देखे गए हैं।

5. भारत-बांग्लादेश संबंध

  • 2016 में भारत और बांग्लादेश के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण समझौता हुआ।

  • इसमें सीमा विवादों का समाधान, व्यापार, जल-संसाधन और आतंकी गतिविधियों पर नियंत्रण जैसे विषय शामिल थे।

  • दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, आर्थिक और रणनीतिक सहयोग लगातार मजबूत हो रहा है।

निष्कर्ष (Conclusion)

बांग्लादेश में लोकतंत्र संघर्ष, बलिदान और सैन्य शासन के विरुद्ध जनप्रतिरोध की परिणति है।

  • आज वहाँ लोकतंत्र की नींव मजबूत है, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं — जैसे

    • राजनीतिक ध्रुवीकरण,

    • मानवाधिकारों पर प्रश्न,

    • और सत्ता के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति।
      फिर भी, बांग्लादेश दक्षिण एशिया में एक सक्रिय लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में उभर चुका है।

Q.12. राज्य क्षेत्र के विस्तार एवं नए आर्थिक हितों के उदय पर लेख लिखिए।

उत्तर – भारत में रोजगार उत्पन्न करने के प्रयासों पर प्रस्तावना

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने अपने विकास की दिशा में योजनाओं को अपनाने का संकल्प लिया। उस समय देश की बागडोर जवाहर लाल नेहरू जैसे समाजवादी विचारधारा से प्रेरित नेताओं के हाथों थी। उन्होंने आर्थिक प्रणाली को सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की ओर मोड़ने का प्रयास किया। भारत ने अपने संसाधनों का उपयोग कर रोजगार सृजन को प्राथमिकता दी, क्योंकि रोजगार ही गरीबी उन्मूलन और समृद्धि का मार्ग था। ब्रिटेन के साम्राज्यवादी दौर की गलत नीतियों को त्याग कर एक नई आर्थिक नीति बनाई गई, जिससे देश की स्वतंत्रता और स्वावलंबन सुनिश्चित हो सके। पहली पंचवर्षीय योजना से लेकर दूसरी योजना तक कृषि, सार्वजनिक उद्योगों और भारी उद्योगों को विकास का केंद्र बनाया गया। सार्वजनिक क्षेत्र को बढ़ावा देकर लौह-इस्पात, कोयला, तेल और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निवेश किया गया। इसके साथ ही, भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीति अपनाई, जिसमें सामाजिक और पूंजीवादी दोनों व्यवस्थाओं के गुण सम्मिलित थे। निजी और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों को समान अवसर प्रदान किए गए। सेवा क्षेत्र में भी रोजगार का व्यापक विस्तार हुआ। हालांकि, अपेक्षित गति से रोजगार सृजन नहीं हो पाया, फिर भी इस नीति ने देश में आर्थिक हितों का संतुलित विकास और रोजगार के नए अवसर प्रदान करने का आधार तैयार किया।

Q.13. भारत की विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों का विवेचन कीजिए।

उत्तर – भारत की विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्य

  1. अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा का समर्थन: विश्व में स्थायी शांति बनाए रखना और देशों के बीच मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाना।

  2. वैश्विक तनाव में कमी: तनाव को कम कर आपसी समझौते को बढ़ावा देना, संघर्ष और सैन्य गुटबाजी का विरोध करना।

  3. निष्क्रियकरण और निःशस्त्रीकरण: खासकर परमाणु हथियारों की होड़ को रोकना और व्यापक निःशस्त्रीकरण का समर्थन करना।

  4. राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना: भारत की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करना।

  5. विरोध करना: साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्लवाद, पृथकतावाद और सैन्यवाद के सभी रूपों का।

  6. स्वतंत्रता एवं लोकतांत्रिक संघर्षों का समर्थन: स्वतंत्रता आंदोलनों और आत्म-निर्धारण के संघर्षों को समर्थन देना।

  7. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व एवं पंचशील: पंचशील के आदर्शों पर आधारित देशों के साथ दोस्ताना संबंध बनाए रखना।

  8. मैत्रीपूर्ण संबंध: खासकर पड़ोसी देशों सहित विश्व के सभी देशों के साथ सहयोग और मैत्री बनाए रखना।

  9. संघर्ष कम करना: राष्ट्रों के बीच विवाद कम कर आपसी समझ और सहयोग को बढ़ावा देना।

  10. मानव अधिकारों की रक्षा: लोकतांत्रिक विश्व के निर्माण के लिए मानवाधिकारों को प्राथमिकता देना और उनके सम्मान पर जोर देना।

  11. आतंकवाद के विरुद्ध प्रयास: विश्व स्तर पर आतंकवाद को समाप्त करने का प्रयास करना।

Q.14. संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका पर आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिए।

उत्तर – संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना एवं उद्देश्य

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 को हुई। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व में शांति स्थापित करना तथा सभी देशों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझाने का एक अंतरराष्ट्रीय मंच प्रदान करना है। भारत इसके संस्थापक सदस्य देशों में से एक है और इसे विश्व शांति एवं सद्भावना के लिए महत्वपूर्ण मानता है।

भारत की भूमिका संयुक्त राष्ट्र में

  1. संयुक्त राष्ट्र चार्टर के निर्माण में सहायता:
    भारत ने संयुक्त राष्ट्र का चार्टर तैयार करवाने में सक्रिय भागीदारी की। भारत की सिफारिश पर चार्टर में मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं को शामिल किया गया। भारतीय प्रतिनिधि राधास्वामी मुदलियर ने आर्थिक और सामाजिक न्याय को युद्ध रोकने का प्रमुख उपाय बताया।

  2. संयुक्त राष्ट्र सदस्यता वृद्धि में योगदान:
    भारत ने कई देशों जैसे चीन, बांग्लादेश, हंगरी, श्रीलंका, आयरलैंड आदि को सदस्यता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  3. आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं के समाधान में सहयोग:
    भारत ने आर्थिक रूप से पिछड़े देशों के विकास को समर्थन दिया और विकसित देशों से आर्थिक सहायता की माँग की।

  4. निःशस्त्रीकरण के लिए प्रयास:
    भारत ने विश्व शांति के लिए निःशस्त्रीकरण का समर्थन किया। प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1987 में परमाणु निःशस्त्रीकरण की अपील की।

संयुक्त राष्ट्र के राजनीतिक कार्यों में भारत का सहयोग

  1. कोरिया युद्ध में शांति स्थापना:
    भारत ने कोरिया युद्ध में शांति बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और युद्धबन्दियों के आदान-प्रदान में सहयोग किया।

  2. स्वेज नहर संकट:
    मिस्र के स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण के बाद हुए युद्ध को रोकने में भारत ने संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों का समर्थन किया।

  3. हिन्द-चीन विवाद:
    भारत ने 1954 के जिनेवा सम्मेलन में क्षेत्रीय शांति बनाए रखने पर जोर दिया।

  4. हंगरी में रूसी अत्याचारों का विरोध:
    भारत ने रूस के अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाई और पश्चिमी देशों के प्रस्ताव का समर्थन किया।

  5. चीन की सदस्यता में योगदान:
    भारत ने चीन को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने में सक्रिय भूमिका निभाई।

  6. नए राष्ट्रों को सदस्यता दिलाना:
    नेपाल, जापान, इटली, स्पेन, हंगरी आदि देशों को संयुक्त राष्ट्र सदस्यता दिलाने में भारत ने योगदान दिया।

  7. रोडेशिया सरकार का विरोध:
    भारत ने रोडेशिया की श्वेत अल्पसंख्यक सरकार की निंदा की और इसे साम्राज्यवादी क्रिया बताया।

भारत के संयुक्त राष्ट्र में प्राप्त पद

  • श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित: महासभा की अध्यक्ष

  • मौलाना आजाद: यूनेस्को के प्रमुख

  • श्रीमती अमृत कौर: विश्व स्वास्थ्य संगठन की अध्यक्ष

  • डॉ. राधाकृष्णन: आर्थिक व सामाजिक परिषद के अध्यक्ष

  • भारत सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य (1950, 1967, 1972, 1977, 1984, 1992)

  • डॉ. नगेन्द्र सिंह: अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश तथा मुख्य न्यायाधीश

  • के.पी.एस. मेनन: कोरिया आयोग के अध्यक्ष

निष्कर्ष

भारत विश्व शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र के साथ निरंतर सहयोग करता रहा है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “हम संयुक्त राष्ट्र के बिना विश्व की कल्पना भी नहीं कर सकते।” भारत की यह प्रतिबद्धता आज भी कायम है।

Q.15. संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य क्या थे? संयुक्त राष्ट्र के संगठन और इसके अंगों के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए। . अथवा, उन मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए जिन पर संयुक्त राष्ट्र आधारित है ? कहाँ तक उनकी प्राप्ति हो सकी है ?

उत्तर – संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations)

संयुक्त राष्ट्र संघ एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जिसकी स्थापना विश्व में शांति स्थापित करने, युद्धों को रोकने, देशों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देने और जन-कल्याण के कार्य करने के लिए की गई है। यह संस्था 24 अक्टूबर 1945 को विधिवत रूप से स्थापित हुई। आज लगभग 192 देश इसके सदस्य हैं। इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क, अमेरिका में स्थित है।

उद्देश्य (Aims)

  1. अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना।
  2. विभिन्न देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध बढ़ाना।
  3. आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं मानवीय अंतरराष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करना।
  4. राष्ट्रों के बीच सहयोग और तालमेल बढ़ाना।

संयुक्त राष्ट्र का संगठन (Organization of the United Nations)

  1. साधारण सभा (General Assembly)
    • सभी सदस्य राष्ट्र इसके सदस्य होते हैं।
    • प्रत्येक देश 5 प्रतिनिधि भेज सकता है, पर मतदान अधिकार एक-एक होता है।
    • वार्षिक अधिवेशन आयोजित होता है।
    • कार्य: शांति-सुरक्षा मामलों पर विचार, बजट पास करना, अन्य अंगों के सदस्यों का चुनाव।
  2. सुरक्षा परिषद (Security Council)
    • कुल 15 सदस्य; 5 स्थायी (अमेरिका, रूस, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, चीन) और 10 अस्थायी।
    • अस्थायी सदस्यों का चुनाव साधारण सभा द्वारा 2 वर्षों के लिए होता है।
    • कार्य: विश्व में शांति स्थापित करना, विवादों का समाधान, जरूरत पड़ने पर सैन्य कार्रवाई की अनुमति देना, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति।
  3. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (Economic and Social Council)
    • 27 सदस्य, जिन्हें साधारण सभा 3 वर्षों के लिए चुनती है।
    • हर वर्ष एक-तिहाई सदस्य बदल जाते हैं।
    • कार्य: आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, और स्वास्थ्य संबंधी अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर विचार करना।
  4. संरक्षण परिषद (Trusteeship Council)
    • उन क्षेत्रों की देखभाल करती है जिन्हें संयुक्त राष्ट्र ने अन्य देशों के संरक्षण में रखा हो।
    • कार्य: संरक्षित इलाकों की उन्नति की समीक्षा के लिए मिशन भेजना और उन्हें स्वतंत्रता के योग्य बनाना।
  5. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice)
    • 15 न्यायाधीश, जिन्हें साधारण सभा और सुरक्षा परिषद 9 साल के लिए नियुक्त करते हैं।
    • कार्य: देशों के बीच विवादों का न्यायिक समाधान देना और संयुक्त राष्ट्र के अंगों को परामर्श प्रदान करना।
  6. सचिवालय (Secretariat)
    • संयुक्त राष्ट्र का प्रशासनिक केंद्र।
    • इसका प्रमुख महासचिव होता है, जिसे सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर साधारण सभा नियुक्त करती है।
    • लगभग 6000 कर्मचारी विभिन्न देशों से होते हैं।
    • कार्य: संयुक्त राष्ट्र के सभी अंगों के प्रबंधन और आवश्यकताओं का निर्वहन करना।

Q.16. भारत की विदेश नीति विश्व शांति की स्थापना में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुई है ?

उत्तर – प्रस्तावना

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने अपनी विदेश नीति का आधार गुटनिरपेक्षता को बनाया। विश्व के सभी देशों, विशेषकर अपने पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना तथा विश्व शांति स्थापित करना भारत की विदेश नीति के मुख्य उद्देश्य रहे हैं।

विश्व शांति की स्थापना में भारत का योगदान

  1. भारत की तटस्थता की नीति
    भारत ने अंतरराष्ट्रीय मामलों में हमेशा तटस्थता अपनाई। शीत युद्ध के दौरान दो बड़े विरोधी गुटों (पूर्व और पश्चिम) के बीच तनाव के बीच भारत ने खुद को किसी गुट का पक्षधर नहीं बनाया और दोनों महाशक्तियों को नजदीक लाने का प्रयास किया।

  2. सैनिक गुटों का विरोध
    भारत ने नाटो, सैन्ट्रो जैसे सैन्य गठबंधनों का विरोध किया क्योंकि ऐसे गुट युद्ध की संभावना बढ़ाते हैं और विश्व शांति में बाधक होते हैं।

  3. निःशस्त्रीकरण में सहायता
    भारत ने संयुक्त राष्ट्र के निःशस्त्रीकरण प्रयासों का समर्थन किया। श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी नाभिकीय हथियारों की होड़ को विश्व शांति के लिए खतरा बताया और पूर्ण निःशस्त्रीकरण की बात कही।

  4. जातीय भेदभाव का विरोध
    भारत ने अपनी विदेश नीति के तहत जातीय भेदभाव, रंगभेद और नस्लवाद का सख्त विरोध किया। दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में रंगभेद की नीति के खिलाफ भारत ने हमेशा आवाज उठाई।

  5. संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन
    भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य है और उसके उद्देश्यों को अपने संविधान में स्थान दिया है। भारत ने विभिन्न शांति मिशनों (जैसे स्वेज नहर, हिन्द-चीन, वियतनाम, साइप्रस) में संयुक्त राष्ट्र की सहायता की और अपनी सेनाएँ भेजीं। भारत कई बार सुरक्षा परिषद का सदस्य चुना गया है और वर्तमान में स्थायी सदस्यता के लिए प्रयासरत है।

Q.17.किसी सरकार के समक्ष युद्ध की स्थिति में जो तीन विकल्प होते हैं उनका उल्लेख कीजिए।

उत्तर – युद्ध की स्थिति में सरकार के तीन मुख्य विकल्प

  1. आत्मसमर्पण या हथियार डालना
    जब युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो और स्थिति नियंत्रण से बाहर हो, तो सरकार शत्रु के सामने हथियार डालकर या आत्मसमर्पण करके युद्ध को समाप्त कर सकती है। यह विकल्प उस स्थिति में अपनाया जाता है जब प्रतिरोध असंभव या हानिकारक हो।

  2. विरोधी पक्ष की मांग मान लेना
    बिना युद्ध छेड़े विरोधी पक्ष की बात मान लेना भी एक विकल्प होता है। इसका उद्देश्य युद्ध को टालना और शांति बनाए रखना होता है, भले ही इसके लिए कुछ समझौते करने पड़ें।

  3. युद्ध की चेतावनी और प्रभावी रक्षा करना
    यदि युद्ध की संभावना हो, तो सरकार विरोधी पक्ष को यह स्पष्ट संकेत देती है कि अगर उसने युद्ध छेड़ा या संघर्ष जारी रखा तो वह विनाशकारी कदम उठाएगी। इसमें सहयोगी देशों से मदद लेना या ऐसे हथियारों का उपयोग करना शामिल है जो शत्रु को डरा दें और उसे युद्ध से पीछे हटने पर मजबूर कर दें।

Q. 18. वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।

उत्तर – वैश्वीकरण और विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका

  1. वैश्वीकरण से राज्य की भूमिका में परिवर्तन
    वैश्वीकरण के कारण विकासशील देशों में राज्य की क्षमता पर असर पड़ा है। कल्याणकारी राज्य का मॉडल अब कम प्रचलित है और उसकी जगह न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य ने ली है, जो सरकार की भूमिका को सीमित करता है।

  2. राज्य की सीमित भूमिका
    राज्य अब मुख्य रूप से कानून व्यवस्था और नागरिक सुरक्षा तक ही सीमित हो गया है, जबकि आर्थिक और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में बाजार की भूमिका बढ़ गई है। इस कारण राज्य ने कई कल्याणकारी गतिविधियों से खुद को अलग कर लिया है।

  3. बहुराष्ट्रीय निगमों का प्रभाव
    वैश्वीकरण के तहत बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ताकत बढ़ी है, जिससे सरकारों की स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता कम हुई है। हालांकि, राजनीतिक रूप से राज्य अभी भी प्रमुख है और राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून-व्यवस्था जैसे कार्य निभा रहा है।

  4. राज्य की नई ताकत
    नई तकनीक के कारण राज्य की ताकत बढ़ी है। अब राज्य अपने नागरिकों की सूचनाएँ एकत्रित कर अधिक प्रभावी ढंग से कार्य कर सकते हैं, जिससे उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि हुई है।

Q.19. आंध्र प्रदेश में चले शराब विरोधी आंदोलन ने देश का ध्यान कुछ गंभीर मुद्दों की तरफ खींचा। ये मुद्दे क्या थे ?

उत्तर – आंध्र प्रदेश के ताड़ी-विरोधी आंदोलन के प्रमुख मुद्दे और प्रभाव

  1. सरल नारे के पीछे गहरे सामाजिक मुद्दे
    ताड़ी-विरोधी आंदोलन का मुख्य नारा था—‘ताड़ी की बिक्री बंद करो’। यह सरल नारा क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों के साथ-साथ महिलाओं के जीवन को भी गहराई से प्रभावित करता था।

  2. ताड़ी व्यवसाय, अपराध और राजनीति का रिश्ता
    ताड़ी के कारोबार के साथ अपराध और राजनीति का गहरा जुड़ाव था। राज्य सरकार को ताड़ी की बिक्री से अच्छा खासा राजस्व प्राप्त होता था, इसलिए उसने इस पर प्रतिबंध नहीं लगाया।

  3. महिलाओं की भागीदारी और घरेलू हिंसा पर चर्चा
    स्थानीय महिला समूहों ने इस आंदोलन को अपनाया और घरेलू हिंसा जैसे निजी मुद्दों को खुलकर उठाना शुरू किया। यह महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा पर आवाज उठाने का पहला अवसर था।

  4. महिला आंदोलन का हिस्सा बनना
    ताड़ी-विरोधी आंदोलन महिला आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। इससे पहले महिलाएं ज्यादातर शहरी मध्यवर्ग में सक्रिय थीं, लेकिन इस आंदोलन ने ग्रामीण महिलाओं को भी सामाजिक और लैंगिक मुद्दों पर जागरूक किया।

  5. यौन हिंसा और दहेज प्रथा के खिलाफ लड़ाई
    1980 के दशक में महिला आंदोलन परिवार के भीतर और बाहर होने वाली यौन हिंसा, दहेज प्रथा और लैंगिक समानता पर केंद्रित रहा। महिलाओं ने व्यक्तिगत और संपत्ति कानूनों में सुधार की मांग की।

  6. समाज में जागरूकता और सामाजिक टकराव पर बात
    इन अभियानों ने महिलाओं के मुद्दों के प्रति समाज में जागरूकता बढ़ाई। महिला आंदोलन ने अब कानूनी सुधारों के साथ-साथ सामाजिक टकराव के मुद्दों पर भी खुलकर चर्चा शुरू कर दी।

  7. राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग
    1990 के दशक तक महिला आंदोलन ने समान राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग शुरू की। संविधान के 73वें संशोधन के तहत महिलाओं को स्थानीय निकायों में आरक्षण मिला, जो इस मांग का परिणाम था।

Q.20. दलित-पैंथर्स ने कौन-से मुद्दे उठाए ?

उत्तर – बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक के शुरुआती वर्षों में शिक्षित दलितों की पहली पीढ़ी ने अपने अधिकारों की मांग के लिए सक्रिय आवाज़ उठानी शुरू की। इनमें से अधिकांश दलित युवा शहर की झुग्गी-बस्तियों में पले-बढ़े थे। इस क्रम में महाराष्ट्र में 1972 में दलित युवाओं का संगठन ‘दलित पैंथर्स’ बना, जो दलित हितों की रक्षा के लिए काम करने लगा।

दलित आंदोलन के प्रमुख तथ्य और मुद्दे:

  1. जाति आधारित असमानता और अन्याय के खिलाफ संघर्ष
    आज़ादी के बाद दलित मुख्य रूप से जाति के आधार पर हो रहे भेदभाव और आर्थिक संसाधनों की कमी के खिलाफ लड़ रहे थे। वे जानते थे कि संविधान में जाति आधारित भेदभाव को खत्म करने की गारंटी दी गई है।

  2. आरक्षण और सामाजिक न्याय की मांग
    दलितों की प्रमुख मांग आरक्षण के कानूनों और सामाजिक न्याय की नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने की रही।

  3. छुआछूत प्रथा का समाप्त होना, फिर भी भेदभाव जारी
    भारतीय संविधान ने छुआछूत को खत्म कर दिया, और 1960-70 के दशक में सरकार ने इस संबंध में कानून बनाए। फिर भी, पुराने समय में अछूत समझी जाने वाली जातियों के साथ सामाजिक भेदभाव और हिंसा आज भी जारी थी।

  4. सामाजिक एवं आर्थिक उत्पीड़न और कानून की विफलता
    दलित बस्तियाँ मुख्य गाँव से दूर थीं, दलित महिलाओं के खिलाफ यौन अत्याचार होते थे, और जातिगत प्रतिष्ठा की मामूली बातों को लेकर दलितों पर सामूहिक जुल्म किया जाता था। इस सबके बावजूद, कानून व्यवस्था दलितों के उत्पीड़न को रोकने में नाकाम साबित हो रही थी।

Author

SANTU KUMAR

I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.

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