Class 12th History ( कक्षा-12 इतिहास लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 6

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Q.1. भारतीय संविधान के अनुसार धर्मनिरपेक्षता क्या है ?

उत्तर – निरपेक्ष शब्द को भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन, 1976 ई. में जोड़ा गया। इसका अर्थ है कि भारत कोई विशेष धर्म या पंथ को राज्य धर्म के रूप में स्वीकार नहीं करता है और न ही किसी धर्म का विरोध करता है। प्रस्तावना के अनुसार, भारत के नागरिकों को धार्मिक विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। धर्म को एक व्यक्तिगत मामला माना गया है, और राज्य इस मामले में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगा। इस प्रकार, भारतीय संविधान ने धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाते हुए एक समावेशी और समानता आधारित समाज की नींव रखी है।

Q.3. डॉ राजेन्द्र प्रसाद पर सक्षिप्त नोट लिखिए।

उत्तर – संविधान का निर्माण होने पर 26 नवम्बर, 1949 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जो संविधान सभा के अध्यक्ष थे, ने भारतीय संविधान पर हस्ताक्षर करते हुए कुछ बिन्दुओं पर दुःख व्यक्त किया। उन्होंने निम्नलिखित बिन्दुओं पर अपनी चिंता जताई:

  1. भारत का संविधान मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में है: डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इस पर दुःख व्यक्त किया कि भारत का संविधान अंग्रेजी में लिखा गया है, जबकि यह देश की मुख्य भाषाओं में से किसी एक में होना चाहिए था, ताकि हर नागरिक इसे आसानी से समझ सके।

  2. संविधान में किसी भी पद के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता नहीं रखी गई है: उन्होंने यह भी चिंता जताई कि संविधान में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि किसी भी सरकारी पद के लिए क्या शैक्षणिक योग्यता आवश्यक होगी, जिससे चयन की प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव हो सकता है।

  3. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ही बनाए गए: अंत में, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने यह भी कहा कि उन्हें इस पद पर नियुक्त किया गया, जो उनके लिए सम्मान की बात थी, लेकिन यह भी चिंताजनक था कि संविधान निर्माण के बाद उस पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति को ही देश का पहला राष्ट्रपति चुना गया।

इन बिन्दुओं पर उनके द्वारा व्यक्त की गई आशंका और दुःख भारतीय संविधान के इतिहास में महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे संविधान के कुछ पहलुओं पर गहरी विचारशीलता और सुधार की आवश्यकता को महसूस कर रहे थे।

Q.4. देशी रियासतों का एकीकरण किसने किया तथा एकीकरण की प्रक्रिया कैसे हुई ?

उत्तर – देशी रियासतों का एकीकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल (लौह पुरुष) ने अत्यंत कुशलता से किया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विभिन्न छोटे-बड़े राज्यों और रियासतों को एक साथ जोड़ने का कार्य किया। इसके लिए उन्होंने पहले छोटी रियासतों को मिलाकर उनका एक संघ बनाया और कुछ बड़ी रियासतों को भारतीय संघ के हिस्से के रूप में राज्य की मान्यता दी। इसके साथ ही, कुछ पिछड़े हुए और जिनकी शासन व्यवस्था ठीक नहीं थी, उन्हें केन्द्र की निगरानी में रखा गया। सरदार पटेल की दूरदर्शिता और नेतृत्व के कारण ही यह कठिन कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हुआ, जिससे भारत एक एकीकृत राष्ट्र के रूप में खड़ा हो सका। उनके इस योगदान को भारतीय इतिहास में सदैव याद किया जाएगा।

Q.5. भारत विभाजन के बाद सांप्रदायिक दंगे क्यों भडके ? 

उत्तर – भारत विभाजन के समय सांप्रदायिक दंगों ने देश को गहरे आघात पहुँचाया। पाकिस्तान की माँग को मनवाने के लिए मुस्लिम लीग की ‘साधा कार्यवाही’ के कारण देशभर में हिंसा का माहौल बन गया था। हत्याएँ, लूटमार, आगजनी और बलात्कार जैसी शर्मनाक घटनाएँ हर गली, मोहल्ले और बाजार में हो रही थीं। ये घटनाएँ दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थीं, और पूरे देश में खौफ और नफरत फैल गई थी। इन घटनाओं को लेकर नेहरूजी को चिंतित करते हुए लेडी माउंटबेटन ने एक बार कहा था, “सोचती हूँ कि हजारों मासूमों और बेगुनाहों का रक्त बहाने से क्या यह ज्यादा अच्छा नहीं होता कि मुस्लिम लीग की बात मान ली जाती?” दूसरी ओर, माउंटबेटन ने सरदार पटेल को भी इन हिंसक दंगों के कारण भारत के विभाजन के लिए राजी कर लिया। इसके परिणामस्वरूप, 1947 में भारत का विभाजन हुआ, जो एक अत्यंत कठिन और दर्दनाक निर्णय था। इस विभाजन के कारण न केवल राजनीतिक बल्कि सांप्रदायिक और सामाजिक तनाव भी बढ़े, जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच दीर्घकालिक दुश्मनी और संघर्ष का सिलसिला शुरू हो गया।

Q.6. 1940 के अगस्त प्रस्ताव पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।

उत्तर – इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल महोदय जर्मनी द्वारा ब्रिटिश घेराबंदी और फासीवादी शक्तियों की विजय से चिन्तित थे। उन्हें युद्ध में भारत के सक्रिय सहयोग की आवश्यकता थी, इसलिए उन्होंने भारत के वायसराय को भारतीय नेताओं से बातचीत करने का आदेश दिया। इस बातचीत के परिणामस्वरूप 8 अगस्त, 1940 को जो घोषणा की गई, उसे इतिहास में अगस्त प्रस्ताव (August Offer) कहा जाता है। इस प्रस्ताव की प्रमुख बातें थीं:

  1. भारत को शीघ्र ही औपनिवेशिक स्तर (या स्वतंत्रता) प्रदान किया जाएगा यानी भारत को डोमिनियन स्टेटस दिया जाएगा।
  2. भारत का नया संविधान बनाने के लिए एक संविधान सभा का गठन किया जाएगा
  3. नई संविधान सभा में विभिन्न सम्प्रदायों और दलों के प्रतिनिधि शामिल किए जाएंगे
  4. भारत की सत्ता तब तक किसी ऐसी सरकार को नहीं सौंपी जाएगी जब तक इसमें विभिन्न सम्प्रदायों और तत्वों के प्रतिनिधि शामिल नहीं होंगे
  5. युद्ध संबंधी मामलों पर विचार-विमर्श के लिए पृथक् समिति का गठन किया जाएगा, जिसमें भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं के प्रतिनिधियों के साथ-साथ देशी राजा-महाराजाओं के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
  6. महायुद्ध के दौरान वायसराय की कार्यकारिणी परिषद (कौंसिल) में इंग्लैण्ड सरकार कुछ स्थानों पर राष्ट्रवादियों को नियुक्त करेगी

हालाँकि, अगस्त प्रस्ताव को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ठुकरा दिया, क्योंकि इसमें पूर्ण स्वतंत्रता की बात नहीं की गई थी, जो कांग्रेस की प्रमुख मांग थी। मुस्लिम लीग ने भी इस प्रस्ताव को नकारा, क्योंकि इसमें पाकिस्तान बनाने की उनकी प्रमुख मांग का कोई उल्लेख नहीं था। इसके बाद, 1942 में ब्रिटेन की सरकार ने क्रिप्स मिशन को भारत भेजा, जो भारत में व्यापक राजनीतिक हलचल का कारण बना और स्वतंत्रता संग्राम को और तेज़ कर दिया।

Q.7. पाकिस्तान के लिए मुस्लिम लीग की माँग को स्पष्ट कीजिए। लीग ने यह माँग कब रखी थी ?

उत्तर –

  1. जब देश में साम्प्रदायिक दलों, जैसे कि मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा, का प्रभाव बढ़ने लगा, तो मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग कांग्रेस के सामने एक दीवार बनकर खड़ी हो गई। लीग ने यह प्रचारित करना शुरू किया कि मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के लिए हिंदू बहुसंख्यक समाज में समा जाना एक गंभीर खतरा है। उसने एक अवैज्ञानिक और अनैतिहासिक सिद्धांत का प्रचार किया, जिसमें यह कहा गया कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं और उनका एक साथ रहना असंभव है। 1940 ई. में मुस्लिम लीग ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें उसने माँग की कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत को दो भागों में विभाजित किया जाए और मुसलमानों के लिए पाकिस्तान नामक एक अलग राष्ट्र बनाया जाए।

  2. हिंदू महासभा जैसे सांप्रदायिक संगठनों के अस्तित्व के कारण मुस्लिम लीग के इस प्रचार को और बल मिला। इन संगठनों ने यह कहा कि “हिंदू एक अलग राष्ट्र हैं और भारत हिंदुओं का देश है,” और इस तरह हिंदू संप्रदायवादियों ने मुस्लिम लीग के सिद्धांत को दोहराया।

  3. एक दिलचस्प बात यह है कि हिंदू और मुस्लिम संप्रदायवादियों ने कांग्रेस के खिलाफ एक-दूसरे से हाथ मिलाने में कोई संकोच नहीं किया। पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत, पंजाब, सिंध और बंगाल में हिंदू संप्रदायवादियों ने कांग्रेस के विरोध में मुस्लिम लीग और अन्य संप्रदायवादी संगठनों के मंत्रिमंडल बनाने में मदद की। ये सांप्रदायिक दल स्वराज्य के संघर्ष में पूर्ण निष्ठा से भाग नहीं लिए और न ही उन्होंने जनता की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को उठाने में रुचि दिखाई। दरअसल, यही सांप्रदायिक ताकतें थीं जिनके कारण देश का विभाजन हुआ और इसके परिणामस्वरूप न केवल भारत, बल्कि पाकिस्तान और बांगलादेश भी अस्तित्व में आए।

Q.8. भारत छोड़ो आंदोलन 1942 के बारे में लिखें।

उत्तर – क्रिप्स मिशन की असफलता ने भारतीयों में असंतोष और निराशा का माहौल बना दिया। ब्रिटिश सरकार द्वारा भेजे गए क्रिप्स मिशन का उद्देश्य भारत में संविधान सुधारों को लेकर समझौता करना था, लेकिन इस मिशन ने भारतीय नेताओं की उम्मीदों को और भी अधिक ध्वस्त कर दिया। मिशन के प्रस्तावों में भारतीयों को पूरी स्वतंत्रता देने की कोई वास्तविक गारंटी नहीं थी, और यह भी साफ़ किया गया कि ब्रिटिश शासन को समाप्त करने में कोई तत्परता नहीं है। इसके परिणामस्वरूप भारतीय जनता में आक्रोश बढ़ गया और ब्रिटिश शासन के प्रति नफरत में वृद्धि हुई। इसी बीच, द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण मित्र राष्ट्रों की स्थिति कमजोर हो गई थी, और भारत पर जापानी आक्रमण का खतरा बढ़ गया था। भारतीयों को यह भय था कि यदि ब्रिटिश शासन कमजोर पड़ता है, तो जापान का आक्रमण भारत में हो सकता है और फिर यहाँ जापानी शासन स्थापित हो सकता है। इस डर ने भारतीय जनता को और भी अधिक असुरक्षित महसूस कराया और उन्हें यह एहसास हुआ कि ब्रिटिश साम्राज्य की अस्थिरता का फायदा उठाकर उन्हें स्वाधीनता प्राप्त करनी होगी। गांधीजी ने इस अवसर को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ देने के रूप में देखा। उन्होंने 1942 में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन की शुरुआत की। गांधीजी का यह आंदोलन एक विशेष रूप से अहिंसक था, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सरकार से तत्काल भारत को स्वतंत्र करने की माँग की। इस आंदोलन का उद्देश्य भारतीयों के मन में यह विश्वास जागृत करना था कि अब या तो भारत को स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, या फिर अंग्रेजों को पूरी तरह से देश छोड़कर जाना होगा। गांधीजी के नेतृत्व में भारतीयों ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन, हड़तालें, और सभाएँ आयोजित कीं। लाखों लोग इस आंदोलन में शामिल हुए और अपनी आवाज़ उठाई। साथ ही, यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन को बर्बरतापूर्वक दबा दिया। ब्रिटिश शासन ने भारी पुलिस बल का इस्तेमाल करते हुए आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया और देशभर में आक्रोश फैलाने वाले नेताओं को जेल में डाल दिया। इसके बावजूद, यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक मील का पत्थर बन गया। ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन ने भारतीय जनता को यह दिखा दिया कि अब वे स्वतंत्रता के लिए हर कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं। हालांकि यह आंदोलन तत्काल प्रभाव से असफल हो गया, लेकिन इसने भारतीयों के संघर्ष को एक नई दिशा दी और स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए उनकी प्रतिबद्धता को और मजबूत किया। ब्रिटिश शासन के द्वारा आंदोलन को दबाने के बावजूद, इसने भारतीयों के बीच ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ गहरी नफरत और असंतोष पैदा किया। यही कारण था कि इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन के लिए भारत में अपने शासन को जारी रखना और भी मुश्किल बना दिया। ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन के बाद, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और भी गति मिली और भारतीयों की स्वाधीनता की आशा और बढ़ गई। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम चरण में एक प्रेरणा बना और स्वतंत्रता की प्राप्ति में एक निर्णायक भूमिका निभाई।

Q.9. काँग्रेस ने क्रिप्स प्रस्तावों को क्यों अस्वीकार कर दिया ?

उतर – 1942 ई. के प्रारंभ में ब्रिटिश सरकार को द्वितीय महायुद्ध में भारतीयों के सक्रिय सहयोग की पूरी तरह आवश्यकता महसूस हुई। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने मार्च 1942 में कैबिनेट मंत्री सर स्टैफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में एक मिशन भेजा। स्टैफोर्ड क्रिप्स, जो पहले मजदूर दल (लेबर पार्टी) के उग्र सदस्य थे और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के समर्थक थे, भारत आए। उनका उद्देश्य भारतीय नेताओं से बातचीत करना और द्वितीय महायुद्ध में भारत का सहयोग प्राप्त करना था। क्रिप्स ने घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य भारत में जितनी जल्दी हो सके स्वशासन की स्थापना करना है। उनका कहना था कि भविष्य में भारत को स्वतंत्रता देने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। लेकिन क्रिप्स और कांग्रेस नेताओं के बीच लंबी बातचीत के बाद, यह मिशन असफल हो गया। ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं की मुख्य मांग को ठुकरा दिया, जिसमें यह कहा गया था कि शासन सत्ता तुरंत भारतीयों को सौंप दी जाए। ब्रिटिश सरकार इस वायदे से संतुष्ट नहीं थी कि भविष्य में भारतीयों को सत्ता सौंप दी जाएगी, और फिलहाल वायसराय के हाथों में निरकुंश सत्ता बनी रहनी चाहिए। क्रिप्स मिशन की असफलता ने भारतीय जनता में भारी असंतोष पैदा किया। इसके अलावा, द्वितीय महायुद्ध के कारण भारत में वस्तुओं की भारी कमी हो रही थी, और चीजों की कीमतें लगातार बढ़ रही थीं। आर्थिक स्थिति में गिरावट के कारण जनता का जीवन कठिन हो गया था, जिससे ब्रिटिश शासन के खिलाफ आक्रोश और बढ़ने लगा। अप्रैल 1942 से अगस्त 1942 के बीच लगभग 5 महीनों में ब्रिटिश सरकार और भारतीयों के बीच तनाव लगातार बढ़ता गया। इस दौरान, महात्मा गांधीजी भी अब जुझारू हो गए थे और उन्होंने यह महसूस किया कि ब्रिटिश सरकार के साथ किसी भी समझौते से भारत को स्वतंत्रता नहीं मिल सकती। गांधीजी ने एक नई दिशा देने के लिए आंदोलन का आह्वान किया, और ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन की शुरुआत की। गांधीजी का यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ, जिसमें लाखों भारतीयों ने भाग लिया। हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने इसे बर्बरतापूर्वक दबा दिया, लेकिन इस आंदोलन ने भारतीयों की स्वतंत्रता के लिए दृढ़ नायकत्व और संघर्ष को और भी मजबूत किया।

Q.10. 1931 के गाँधी-इरविन समझौते का क्या परिणाम निकला ?

उत्तर –

  1. यद्यपि गांधीजी दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए गए थे, फिर भी 1932 ई. के जनवरी माह में गांधीजी और अन्य प्रमुख नेताओं को बंदी बना लिया गया।

  2. इसके बाद, कांग्रेस को पुनः गैरकानूनी घोषित कर दिया गया, जिससे पार्टी का कोई भी राजनीतिक गतिविधि करना अवैध हो गया।

  3. सरकार ने इस दौरान एक लाख से अधिक सत्याग्रहीयों को बंदी बना लिया, जो स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग ले रहे थे।

  4. इसके अतिरिक्त, हजारों प्रदर्शनकारियों की भूमि, मकान और संपत्ति सरकार ने जब्त कर ली, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और भी कठिन हो गई।

इन कठिनाइयों के बावजूद, गांधीजी और उनके समर्थकों ने अपने संघर्ष को जारी रखा, और यह समय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अत्यंत निर्णायक और कठिन दौर के रूप में जाना जाता है।

Q.11. प्लासी का युद्ध (1757) किसके बीच हुआ था ?

उत्तर – प्लासी की लड़ाई 23 जून, 1757 ई. को बंगाल के नबाब सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के बीच प्लासी के मैदान में लड़ी गई थी। हालांकि यह एक पारंपरिक लड़ाई के रूप में नहीं थी, बल्कि अंग्रेजी सेनापति रॉबर्ट क्लाइव की कूटनीतिक चाल का परिणाम थी। क्लाइव ने नबाब के सेनापति मीरजाफर को अपनी ओर मिला लिया था और लडाई का ढोंग रचा था। मीरजाफर ने विश्वासघात करते हुए नबाब की सेना का समर्थन नहीं किया, जिससे नबाब सिराजुद्दौला की हार निश्चित हो गई। नबाब की हार के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में उसकी हत्या कर दी गई। इस प्रकार, क्लाइव का षड़यंत्र सफल रहा और इसके परिणामस्वरूप बंगाल में अंग्रेजों की सत्ता स्थापित हो गई। प्लासी की लड़ाई ने भारत में अंग्रेजी शासन की नींव रखी, जो आगे चलकर पूरे देश में फैल गया। यह संघर्ष भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की शुरुआत का प्रतीक बना और भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में याद किया जाता है।

Author

SANTU KUMAR

I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.

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