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Class 12th History ( कक्षा-12 इतिहास लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 1

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Q.1. हड़प्पा संस्कृति के बारे में जानकारी के क्या स्रोत है संक्षिप्त में लिखे ?

उत्तर – 

हड़प्पा संस्कृति के स्रोत

हड़प्पा संस्कृति (सिंधु घाटी सभ्यता) के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के स्रोत उपलब्ध हैं। इन स्रोतों को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:

1. पुरातात्त्विक स्रोत

  • नगरों के अवशेष: हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हुदड़ो, लोथल, धोलावीरा, कालीबंगा आदि स्थलों की खुदाई से प्राप्त अवशेष।
  • मृदभांड (मिट्टी के बर्तन): इन पर चित्रित और उत्कीर्ण चित्रों से समाज एवं संस्कृति की जानकारी मिलती है।
  • मुहरें (Seals): पत्थर व धातु की मुहरों पर पशुओं, देवी-देवताओं और लिपियों के चिह्न मिले हैं।
  • मृण्मूर्तियाँ (Terracotta Figurines): स्त्री एवं पशुओं की मूर्तियाँ धार्मिक एवं सामाजिक मान्यताओं को दर्शाती हैं।
  • स्नानागार और भवन: मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार और योजनाबद्ध नगर निर्माण प्रणाली सभ्यता की उन्नत स्थिति को दिखाते हैं।
  • धातु एवं औजार: कांस्य, तांबे, पत्थर आदि से बने औजार व हथियार मिले हैं, जो तकनीकी उन्नति को दर्शाते हैं।

2. लिपि एवं लेख 

  • सिंधु लिपि : यह लिपि अब तक पूरी तरह पढ़ी नहीं गई है, लेकिन इसमें अंकित चित्रलिपि से व्यापार, धर्म और प्रशासन की झलक मिलती है।
  • मुद्राएँ एवं शिलालेख: ताम्रपत्र, पत्थर व हड्डियों पर बने लेखनों से व्यापार एवं प्रशासन के संकेत मिलते हैं।

3. अन्य स्रोत 

  • विदेशी यात्रियों के विवरण: मेसोपोटामिया, सुमेर, मिस्र की सभ्यताओं के व्यापारिक दस्तावेजों में सिंधु घाटी के व्यापारिक संबंधों का उल्लेख मिलता है।
  • वैदिक साहित्य: कुछ विद्वानों के अनुसार, ऋग्वेद में वर्णित “सिंधु सरस्वती क्षेत्र” हड़प्पा संस्कृति से संबंधित हो सकता है।
  • वैज्ञानिक परीक्षण: कार्बन डेटिंग, डीएनए विश्लेषण और भूगर्भीय सर्वेक्षण के माध्यम से सभ्यता के समय व विस्तार का निर्धारण किया जाता है।

Q.2. द्रोण कौन था ?

उत्तर – 

गुरु द्रोणाचार्य महाभारत के एक प्रसिद्ध पात्र थे, जो कौरवों और पांडवों के शस्त्रविद्या के आचार्य (गुरु) थे। वे एक महान धनुर्धर और युद्धकला में निपुण आचार्य थे।

द्रोणाचार्य का परिचय:

  • द्रोण का जन्म महर्षि भारद्वाज के पुत्र के रूप में हुआ था।
  • वे ब्राह्मण कुल में जन्मे थे लेकिन युद्धकला में अत्यधिक निपुण थे।
  • उनकी पत्नी कृपी और पुत्र अश्वत्थामा थे।

विशेषताएँ और जीवन घटनाएँ:

  1. शिक्षा और अस्त्रविद्या:

    • उन्होंने परशुराम से दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा प्राप्त की थी।
  2. हस्तिनापुर में गुरु नियुक्ति:

    • राजकुमारों की शिक्षा के लिए कौरव और पांडवों ने उन्हें अपना गुरु बनाया।
    • उन्होंने अर्जुन को विशेष रूप से धनुर्विद्या में निपुण बनाया और उन्हें सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर माना।
  3. एकलव्य प्रकरण:

    • जब निषाद राजकुमार एकलव्य ने उनकी मूर्ति बनाकर धनुर्विद्या सीखी, तो द्रोण ने उससे गुरु दक्षिणा में उसका अंगूठा मांग लिया ताकि वह अर्जुन से श्रेष्ठ न बन सके।
  4. महाभारत युद्ध में भूमिका:

    • कुरुक्षेत्र के युद्ध में द्रोणाचार्य कौरवों की ओर से सेनापति बने।
    • उन्होंने अनेक योद्धाओं को हराया, लेकिन बाद में युद्ध में छल से उनका वध हुआ।

Q.3. महाभारत कालीन भारतीय स्त्रियों की स्थिति पर विस्तार पूर्वक लिखिए ।

उत्तर –

महाभारत कालीन भारतीय स्त्रियों की स्थिति

महाभारत काल भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण युग था, जिसमें स्त्रियों की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति को दर्शाने वाले अनेक प्रसंग मिलते हैं। इस काल में स्त्रियों को सम्मान प्राप्त था, लेकिन उनके अधिकार और स्थिति समाज की विभिन्न परिस्थितियों पर निर्भर थी।

1. स्त्रियों की सामाजिक स्थिति

महाभारत काल में स्त्रियों की स्थिति मिश्रित थी—कुछ स्त्रियाँ अत्यधिक सम्मानित थीं, जबकि कुछ को समाज में कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता था।

(क) शिक्षा और ज्ञान
  • इस काल में स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था।
  • गार्गी, मैत्रेयी और कुंती जैसी विदुषी महिलाओं का उल्लेख मिलता है, जो वेदों और शास्त्रों की ज्ञाता थीं।
  • द्रौपदी, सुभद्रा और गांधारी जैसी स्त्रियाँ भी राजनीति, धर्म और शस्त्रविद्या में पारंगत थीं।
(ख) विवाह प्रथा
  • विवाह के कई प्रकार प्रचलित थे, जैसे स्वयंवर, गांधर्व विवाह, राजसूय विवाह आदि।
  • कन्या को स्वयं अपना वर चुनने का अधिकार था, जैसा कि द्रौपदी और दमयंती के स्वयंवर में देखा गया।
  • परंतु, कभी-कभी महिलाओं पर विवाह के मामले में दबाव भी डाला जाता था, जैसा कि गांधारी और अम्बा के जीवन में हुआ।
(ग) पितृसत्ता का प्रभाव
  • इस काल में समाज पितृसत्तात्मक था, जहाँ पिता, पति और पुत्र स्त्रियों के संरक्षक माने जाते थे।
  • विधवा विवाह का प्रचलन नहीं था, और विधवाओं को कई प्रकार के सामाजिक बंधनों का सामना करना पड़ता था, जैसा कि गांधारी के जीवन में दिखता है।

2. स्त्रियों की धार्मिक स्थिति

महाभारत काल में स्त्रियों की धार्मिक स्थिति सम्मानजनक थी।

  • वे धार्मिक अनुष्ठानों और यज्ञों में भाग ले सकती थीं।
  • स्त्रियों को गृहलक्ष्मी के रूप में पूजा जाता था और उन्हें देवी स्वरूप माना जाता था।
  • कुंती और गांधारी जैसी स्त्रियाँ धार्मिक आस्था और तपस्या में निपुण थीं।

3. स्त्रियों की आर्थिक स्थिति

  • स्त्रियों को संपत्ति रखने का अधिकार था। उन्हें स्त्रीधन के रूप में धन, आभूषण और भूमि मिल सकती थी।
  • धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी और कुंती को महलों और संपत्ति का अधिकार प्राप्त था।
  • लेकिन अधिकांश स्त्रियों की आर्थिक स्थिति पुरुषों पर निर्भर थी।

4. स्त्रियों की राजनीतिक स्थिति

  • महाभारत काल में स्त्रियाँ राजनीति में प्रभावशाली थीं।
  • कुंती, गांधारी और द्रौपदी जैसे पात्रों ने निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • द्रौपदी का चीरहरण एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने महाभारत युद्ध की नींव रखी।

5. स्त्रियों की स्वतंत्रता और अधिकार

  • महाभारत काल में कुछ स्त्रियाँ स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकती थीं, जबकि कुछ पर समाज के नियमों की कठोरता लागू थी।
  • उदाहरण के लिए, द्रौपदी ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया, जबकि गांधारी को धृतराष्ट्र के साथ जीवन बिताने के लिए विवश किया गया।

Q.5. हडप्पा सभ्यता के प्रमुख देवताओं एवं धार्मिक प्रथाओं की विवेचना करें।

उत्तर –

हड़प्पा सभ्यता (Indus Valley Civilization) प्राचीन भारतीय सभ्यता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो सिंधु घाटी (वर्तमान पाकिस्तान और भारत के कुछ हिस्सों में फैली हुई थी) में पाई जाती थी। हड़प्पा सभ्यता के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है क्योंकि उनके लेखन का पढ़ना अभी तक संभव नहीं हो पाया है, लेकिन पुरातात्विक और अन्य साक्ष्यों से यह जाना जाता है कि इस सभ्यता में धार्मिक जीवन और देवताओं की पूजा का महत्वपूर्ण स्थान था।

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख देवताओं और धार्मिक प्रथाओं के बारे में कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

1. शिव के प्रारंभिक रूप का प्रतीक (Pashupati Seal)

हड़प्पा सभ्यता में प्राप्त कुछ मुहरों (seals) पर एक देवता की छवि मिलती है, जिसे “पशुपति” कहा जाता है। यह देवता चारों ओर विभिन्न जानवरों से घिरा हुआ होता है, जैसे बाघ, हाथी, और सियार। इसे शिव के प्रारंभिक रूप के रूप में देखा जाता है। यह संकेत करता है कि हड़प्पा सभ्यता में पशुपालन और वन्य जीवन का महत्व था और संभवतः शिव की पूजा का प्रारंभ भी यहीं से हुआ था।

2. मातृदेवी (Mother Goddess) की पूजा

हड़प्पा सभ्यता में मातृदेवी की पूजा के संकेत भी मिलते हैं। कई स्थानों पर महिलाओं की मूर्तियाँ मिली हैं, जिनमें बड़ी छाती और पेट की आकृति अधिक स्पष्ट है, जो कि मातृत्व और प्रजनन क्षमता को दर्शाती हैं। यह संकेत करता है कि इस सभ्यता में प्रजनन क्षमता, समृद्धि, और मातृत्व की पूजा की जाती रही होगी।

3. नदी-नदी पूजा और जल की महत्वता

हड़प्पा सभ्यता के लोग नदी और जल के महत्त्व को समझते थे। यह सभ्यता सिंधु नदी के किनारे विकसित हुई थी, और जल का स्रोत उनके धार्मिक विश्वासों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यह जल देवताओं की पूजा का संकेत भी हो सकता है, जो कृषि और जीवन के लिए आवश्यक था।

4. स्मारक और पूजा स्थल

हड़प्पा सभ्यता में पूजा स्थलों और मंदिरों के प्रमाण नहीं मिले हैं, लेकिन कुछ स्थलों पर ऐसे संरचनाएँ मिली हैं जिन्हें पूजा या धार्मिक गतिविधियों से जोड़ा जा सकता है। उदाहरण के रूप में, मोहनजो-दड़ो में एक बड़ा स्नानागार (Great Bath) मिला है, जो संभवतः धार्मिक या पवित्र जल संस्कारों से संबंधित था।

5. विभिन्न पशुओं और प्रतीकों की पूजा

हड़प्पा सभ्यता में कुछ पशु रूपों की पूजा होने के संकेत मिलते हैं, जैसे गाय, बैल, और हाथी। मुहरों पर गाय, बकरी और अन्य जानवरों के चित्र देखे गए हैं, जो यह संकेत करते हैं कि पशुओं का धार्मिक प्रतीकों के रूप में महत्वपूर्ण स्थान था।

6. संकेत और प्रतीक

हड़प्पा सभ्यता में कुछ धार्मिक प्रतीक भी मिलते हैं, जैसे सर्प (सांप) और वृक्ष (पीपल या बरगद) का चित्रण। इन प्रतीकों को अक्सर प्रजनन और जीवन के निरंतरता से जोड़ा जाता है।

Q.6. हड़प्पा सभ्यता के विस्तार पर प्रकाश डालें।

उत्तर – हड़प्पा सभ्यता, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है, प्राचीन भारतीय उपमहाद्वीप की एक अत्यंत उन्नत और विशाल सभ्यता थी। यह सभ्यता लगभग 3300 ई.पू. से लेकर 1300 ई.पू. तक अस्तित्व में रही और इसका विस्तार वर्तमान पाकिस्तान, भारत और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में हुआ। हड़प्पा सभ्यता का विस्तार एक बड़ी भौगोलिक सीमा में हुआ था, और यह सभ्यता अपनी समय के हिसाब से अत्यधिक विकसित थी।

हड़प्पा सभ्यता के विस्तार के प्रमुख क्षेत्र:

  1. सिंधु नदी घाटी
    हड़प्पा सभ्यता का प्रमुख केंद्र सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे था। इस सभ्यता के प्रमुख नगर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो थे, जो वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों में स्थित हैं। ये नगर सभ्यता के शहरी जीवन के प्रमुख उदाहरण हैं, और यहां से सभ्यता के विकास और जीवन की जानकारी मिलती है।

  2. गंगा-यमुना का दोआब
    हड़प्पा सभ्यता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उत्तर-पश्चिम भारत और पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में फैला हुआ था। इन क्षेत्रों में शहरी केंद्रों का निर्माण हुआ था, जैसे चन्हुदड़ो और लोथल, जो भारत के गुजरात राज्य में स्थित हैं। इन केंद्रों से व्यापार और शिल्पकला के प्रमाण भी मिलते हैं।

  3. पाकिस्तान और अफगानिस्तान
    हड़प्पा सभ्यता का विस्तार पाकिस्तान के कई अन्य क्षेत्रों में भी हुआ, जैसे बलूचिस्तान, क्वेटा, और अफगानिस्तान के कंधार क्षेत्र में। यहां से भी हड़प्पा सभ्यता के अवशेष और नगरों के संकेत मिले हैं, जो इस बात का प्रमाण देते हैं कि सभ्यता का प्रभाव व्यापक था।

  4. भारत के पश्चिमी क्षेत्र
    भारत के पश्चिमी क्षेत्र में, खासकर गुजरात, महाराष्ट्र, और राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मिले हैं। लोथल, एक महत्वपूर्ण बंदरगाह और व्यापारिक केंद्र था, जो समुद्र के किनारे स्थित था और इसका संबंध विदेशी व्यापार से था।

  5. दक्षिण भारत और मध्य भारत
    हड़प्पा सभ्यता का विस्तार दक्षिण भारत और मध्य भारत तक भी हुआ था, हालांकि यहां से प्राप्त अवशेष अपेक्षाकृत कम हैं। दक्षिण भारत में कुछ जगहों पर इस सभ्यता के संकेत मिले हैं, जैसे ताम्रपत्तनम, जो तमिलनाडु के तट पर स्थित है।

हड़प्पा सभ्यता के विस्तार के कारण:

  • व्यापार: हड़प्पा सभ्यता के लोग व्यापार के जरिए अन्य क्षेत्रों के साथ जुड़े थे। उनका व्यापार समुद्र के रास्ते मेशोपोटामिया (प्राचीन सुमेर) और मेसोपोटामिया के अन्य क्षेत्रों तक था। इसके अलावा, वे अफगानिस्तान और मध्य एशिया के विभिन्न स्थानों के साथ भी व्यापार करते थे।

  • कृषि: कृषि इस सभ्यता का आधार थी। सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ क्षेत्र ने कृषि के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान किया। इससे शहरों के विकास और उनके विस्तार में मदद मिली।

  • संस्कृति और शिल्प: हड़प्पा सभ्यता में उन्नत शिल्पकला और निर्माण तकनीकों का विकास हुआ था, जो इनके नगरों के निर्माण, जलप्रवाह, और अन्य सुविधाओं को दर्शाते हैं। इन तकनीकों ने बड़े शहरी केंद्रों के विकास में मदद की।

  • जलवायु और नदी तंत्र: सिंधु नदी और अन्य जल स्रोतों ने हड़प्पा सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जलवायु और नदियों के साथ होने वाली कृषि आधारित जीवनशैली ने इस सभ्यता को विस्तारित करने में मदद की।

निष्कर्ष:

हड़प्पा सभ्यता का विस्तार एक विशाल भू-क्षेत्र में हुआ था, और यह सभ्यता एक महान सांस्कृतिक, आर्थिक और शहरी विकास की प्रतीक है। इसके विकसित नगर, उन्नत जल आपूर्ति प्रणाली, और व्यापारिक नेटवर्क ने इसे प्राचीन समय की सबसे उन्नत सभ्यताओं में से एक बना दिया। हड़प्पा सभ्यता के अवशेष से यह भी स्पष्ट होता है कि इसका विस्तार केवल एक क्षेत्र तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके प्रभाव क्षेत्र में विभिन्न संस्कृतियाँ और सभ्यताएँ आईं और इसका संपर्क अन्य संस्कृतियों से भी था।

Q.7. मोहनजोदड़ो के सार्वजनिक स्नानागार के विषय में लिखिए।

उत्तर – मोहनजोदड़ो का सार्वजनिक स्नानागार हड़प्पा सभ्यता की एक महत्वपूर्ण और अद्वितीय संरचना है, जो इस सभ्यता की उन्नत जल प्रबंधन प्रणाली और सार्वजनिक जीवन को दर्शाती है। मोहनजोदड़ो, जो वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है, हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख नगरों में से एक था। यहाँ प्राप्त स्नानागार न केवल धार्मिक या सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है, बल्कि यह सभ्यता की सामाजिक और तकनीकी उन्नति का भी प्रमाण है।

स्नानागार की संरचना:

मोहनजोदड़ो में पाया गया सार्वजनिक स्नानागार एक बड़े, पक्के और परिष्कृत जलाशय के रूप में था। यह स्नानागार एक बड़े, आयताकार हॉल के रूप में था, जिसकी लंबाई लगभग 12 मीटर और चौड़ाई 7 मीटर थी। इसमें एक गहरी और चौड़ी जलाशय जैसी संरचना थी, जो एक तरफ से सीढ़ियों द्वारा पहुंची जा सकती थी। जलाशय के चारों ओर अच्छी तरह से पक्की दीवारें थीं, और पानी के प्रबंधन के लिए जल निकासी व्यवस्था भी थी।

स्नानागार का उद्देश्य:

  1. धार्मिक या पवित्र उद्देश्यों के लिए: यह माना जाता है कि स्नानागार का उपयोग धार्मिक या पवित्र स्नान के लिए किया जाता था। प्राचीन सभ्यताओं में जल का अत्यधिक धार्मिक महत्व था, और लोग इसे शुद्धि और पवित्रता के लिए उपयोग करते थे। मोहनजोदड़ो में यह स्नानागार शायद एक सार्वजनिक धार्मिक कृत्य या अनुष्ठान का हिस्सा रहा होगा।

  2. स्वच्छता और सार्वजनिक उपयोग: यह स्नानागार समाज के सार्वजनिक जीवन का भी प्रतीक हो सकता है, जहाँ लोग सामूहिक रूप से स्नान करते थे और स्वच्छता बनाए रखते थे। हड़प्पा सभ्यता के लोग उच्च मानक की स्वच्छता को महत्व देते थे, और यह स्नानागार उस समय की उन्नत जल प्रबंधन तकनीकी का उदाहरण था।

  3. जल आपूर्ति और नल प्रणाली: स्नानागार में पानी की आपूर्ति एक विशेष जल चैनल प्रणाली से होती थी। जल निकासी के लिए पाइपलाइन और जल प्रबंधन के लिए पक्की नालियाँ भी यहां पाए गए हैं, जो यह दर्शाती हैं कि हड़प्पावासी जल के वितरण और निकासी के लिए एक उच्च स्तरीय प्रणाली का उपयोग करते थे।

स्नानागार का महत्व:

  1. तकनीकी उन्नति: मोहनजोदड़ो का स्नानागार इस सभ्यता की जल प्रबंधन प्रणाली की श्रेष्ठता का प्रतीक है। यहां पाई गई जलनिकासी और जल संग्रहण की व्यवस्था उस समय की अत्याधुनिक तकनीकी क्षमता को दर्शाती है।

  2. सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ: यह स्नानागार एक सामूहिक और सार्वजनिक स्थान के रूप में काम करता था, जो हड़प्पा सभ्यता की सामूहिक जीवनशैली और सामाजिक संरचना को दर्शाता है। यहां पर लोग न केवल स्वच्छता के लिए आते होंगे, बल्कि यह एक सामाजिक मिलन स्थल भी हो सकता था।

  3. धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक: स्नान का धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्व था। उस समय के लोग पवित्रता और शुद्धता को उच्च मान्यता देते थे, और यह स्नानागार एक धार्मिक स्थल के रूप में भी कार्य कर सकता था।

निष्कर्ष:

मोहनजोदड़ो का सार्वजनिक स्नानागार हड़प्पा सभ्यता के उन्नत जल प्रबंधन और सार्वजनिक जीवन की एक अद्वितीय मिसाल है। यह न केवल हड़प्पावासियों के तकनीकी कौशल को दिखाता है, बल्कि यह उनके सामाजिक और धार्मिक जीवन के महत्व को भी उजागर करता है। यह संरचना इस बात का प्रमाण है कि हड़प्पा सभ्यता में शहरी विकास, सार्वजनिक सुविधाएँ, और सामूहिक जीवन के उच्च मानक मौजूद थे।

Q.8. सिंधु घाटी से संबंधित गृह स्थापत्य पर एक टिप्पणी लिखिए।

उत्तर – सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) का गृह स्थापत्य प्राचीन वास्तुकला और शहरी विकास का एक बेहतरीन उदाहरण है। इस सभ्यता के घरों और आवासीय संरचनाओं से यह स्पष्ट होता है कि हड़प्पावासी अत्यधिक उन्नत और व्यवस्थित शहरी जीवन जीते थे। सिंधु घाटी से संबंधित गृह स्थापत्य में तकनीकी दक्षता, सुव्यवस्थित योजना, और सामाजिक जीवन की आवश्यकताओं का ध्यान रखा गया था। इस सभ्यता की आवासीय संरचनाओं में विभिन्न प्रकार की योजनाएँ, निर्माण सामग्री और वास्तुशिल्प की शैलियाँ देखने को मिलती हैं।

1. घरों की योजना (Plan of Houses)

सिंधु घाटी में पाए गए घरों का डिज़ाइन अत्यधिक व्यवस्थित था। घरों की योजना आमतौर पर आयताकार या वर्गाकार होती थी, और इन्हें बहुत अच्छी तरह से पक्का किया गया था। घरों में आंगन (courtyard) का उपयोग किया जाता था, जो मुख्य घर से जुड़ा हुआ होता था। आंगन के चारों ओर कमरे होते थे, जो परिवार के विभिन्न सदस्य के लिए अलग-अलग स्थान प्रदान करते थे।

  • कमरे और निर्माण: प्रत्येक घर में एक या दो आंगन होते थे, और कमरे छोटे, लेकिन अच्छी तरह से निर्मित होते थे। दीवारें पक्की होती थीं और इमारतों की छतें सपाट होती थीं। कुछ घरों में एक या दो मंजिलें होती थीं।

  • वायु और जल निकासी: घरों में अच्छी वेंटिलेशन की व्यवस्था की गई थी, और घरों के भीतर जल निकासी के लिए नालियाँ होती थीं। हड़प्पा सभ्यता के घरों में जल आपूर्ति और स्वच्छता के लिए पाइपलाइन की व्यवस्था भी होती थी, जो इस सभ्यता की जल प्रबंधन प्रणाली को दर्शाता है।

2. निर्माण सामग्री (Building Materials)

हड़प्पा सभ्यता के घरों में मुख्य रूप से ईंटों का प्रयोग किया गया था। यह ईंटें पकी हुई और मजबूत होती थीं। इसके अलावा, लकड़ी और बांस जैसी सामग्री भी निर्माण में उपयोग की जाती थी, लेकिन मुख्य रूप से ईंटों का ही इस्तेमाल होता था। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे प्रमुख स्थानों पर बहुत बड़ी मात्रा में पक्की ईंटों का उपयोग देखा जाता है, जो इस सभ्यता की उन्नत निर्माण तकनीकों को दर्शाता है।

3. जल आपूर्ति और स्वच्छता (Water Supply and Sanitation)

सिंधु घाटी सभ्यता में घरों में पानी की आपूर्ति और स्वच्छता के लिए अत्याधुनिक व्यवस्था थी। हर घर में जल निकासी के लिए नालियाँ होती थीं, और बड़े शहरों में सीवरेज प्रणाली भी विकसित थी। घरों में स्नानगृह और शौचालय की व्यवस्था थी, जो उस समय के अन्य प्राचीन सभ्यताओं से कहीं अधिक उन्नत थी। मोहनजोदड़ो में तो सार्वजनिक स्नानागार भी था, जो यह दर्शाता है कि सिंधु घाटी के लोग स्वच्छता को अत्यधिक महत्व देते थे।

4. आधुनिक शहरी योजना (Urban Planning)

सिंधु घाटी की शहरों की योजना बहुत व्यवस्थित और उन्नत थी। इन शहरों में सड़कें चौड़ी, सीधी और ग्रिड योजना में बसी हुई थीं। प्रत्येक घर का एक निश्चित स्थान था, और इनकी सड़कों और गलियों के बीच की व्यवस्था बहुत ही सुव्यवस्थित थी। घरों के निर्माण में इस बात का भी ध्यान रखा गया था कि हवा का प्रवाह और प्राकृतिक रोशनी सही तरीके से अंदर आए, जो कि उस समय की वास्तुकला की समझ को दिखाता है।

5. गृह सजावट और वास्तुकला की विशेषताएँ (Interior Decoration and Architectural Features)

घर के अंदर की सजावट और वास्तुकला में सादगी का पालन किया गया था, लेकिन यह भी साफ़ दिखता है कि हड़प्पावासी कला और सौंदर्यशास्त्र को महत्व देते थे। दीवारों पर कुछ चित्रकला और मूर्तियाँ पाई गई हैं, जो उनकी सांस्कृतिक समझ और सौंदर्य की ओर इशारा करती हैं। घरों के अंदर कुछ कमरे विशेष रूप से रसोई के लिए बनाए गए थे, जबकि अन्य में परिवार के सदस्य रहते थे। घरों में पंखे की तरह निर्माण प्रणाली का प्रयोग करके हवा का उचित प्रवाह सुनिश्चित किया जाता था।

6. प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा (Protection from Natural Disasters)

सिंधु घाटी के घरों में जलवायु और प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए विशेष ध्यान दिया गया था। घरों की छतें सपाट होती थीं, जो बारिश के पानी को आसानी से निकालने में मदद करती थीं। इसके अलावा, घरों के निर्माण में प्राकृतिक जलवायु के हिसाब से सामग्री का चयन किया जाता था ताकि गर्मी और सर्दी से बचाव किया जा सके।

निष्कर्ष:

सिंधु घाटी के गृह स्थापत्य में उच्च मानकों का पालन किया गया था, जिसमें न केवल कार्यात्मकता, बल्कि कला और सौंदर्य का भी ध्यान रखा गया था। इन घरों की योजना और निर्माण शैली हड़प्पा सभ्यता के शहरी जीवन की श्रेष्ठता और तकनीकी उन्नति को दर्शाती है। यह सभ्यता न केवल वास्तुकला के संदर्भ में बल्कि जल आपूर्ति और स्वच्छता जैसे मुद्दों पर भी अत्यधिक अग्रसर थी। हड़प्पा सभ्यता के घर और उनके निर्माण का अध्ययन आज भी हमें प्राचीन शहरी योजना और वास्तुकला की उन्नति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।

Q.9. मोहनजोदड़ो का एक नियोजित शहरी केन्द्र के रूप में प्रमुख विशेषताओं को  लगभंग 150 से 200 शब्दों में लिखिए।

उत्तर – मोहनजोदड़ो का नियोजित शहरी केंद्र हड़प्पा सभ्यता का एक प्रमुख उदाहरण है और इसे शहरी नियोजन की दृष्टि से अत्यंत उन्नत माना जाता है। मोहनजोदड़ो के प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. ग्रिड योजना: मोहनजोदड़ो की सड़कों की योजना व्यवस्थित और समकोण पर आधारित थी, जो ग्रिड व्यवस्था पर आधारित थी। यह शहर की संरचना को सुव्यवस्थित और सुविधाजनक बनाती थी।

  2. पक्की सड़कों और गलियाँ: शहर की सड़कों और गलियों को पक्का किया गया था, और ये चौड़ी और सीधी थीं, जिससे यातायात में कोई रुकावट नहीं होती थी।

  3. जल प्रबंधन प्रणाली: मोहनजोदड़ो में एक अत्याधुनिक जल आपूर्ति और जल निकासी प्रणाली थी। घरों में पाइपलाइन और सीवरेज प्रणाली का उपयोग किया गया था। इसके अलावा, सार्वजनिक स्नानागार भी था, जो जल प्रबंधन के उच्च मानक को दर्शाता है।

  4. सार्वजनिक और निजी निर्माण: शहर में निजी आवासीय क्षेत्रों के साथ-साथ सार्वजनिक स्थानों का भी ध्यान रखा गया था, जैसे कि स्नानागार, बाजार, और अन्य सामुदायिक सुविधाएँ।

  5. घरों का डिजाइन: मोहनजोदड़ो के घरों का डिज़ाइन बहुत व्यवस्थित था, जिसमें आंगन और कमरे अच्छे से व्यवस्थित थे। इन घरों में स्वच्छता और जल निकासी की व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया गया था।

इन विशेषताओं से स्पष्ट है कि मोहनजोदड़ो एक उन्नत और नियोजित शहरी केंद्र था, जो हड़प्पा सभ्यता के शहरी जीवन और विकास को दर्शाता है।

Q.10. इतिहास लेखन में अभिलेखों का क्या महत्त्व है ? विस्तार पूर्वक लिखिए !

उत्तर –  इतिहास लेखन में अभिलेखों का महत्त्व अत्यधिक है, क्योंकि ये हमारे अतीत की घटनाओं, व्यक्तियों, समाजों और संस्कृतियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का सबसे विश्वसनीय स्रोत होते हैं। अभिलेख न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को दस्तावेजित करते हैं, बल्कि वे समय, स्थान और सामाजिक परिवेश के संदर्भ में विश्लेषण करने का अवसर भी प्रदान करते हैं। अभिलेखों के माध्यम से इतिहासकारों को पुरानी सभ्यताओं और घटनाओं के बारे में प्रमाणिक जानकारी मिलती है, जिससे वे अतीत की सही समझ बना सकते हैं। आइए, विस्तार से जानें:

1. ऐतिहासिक साक्ष्य का स्रोत

अभिलेखों में लिखे गए तथ्यों और विवरणों से इतिहासकार प्राचीन घटनाओं और सामाजिक संरचनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। ये अभिलेख शासकों के आदेश, प्रशासनिक गतिविधियाँ, युद्धों की घटनाएँ, धार्मिक अनुष्ठान, और समकालीन समाज की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। जैसे, अशोक के शिलालेखों से हमें उनके शासनकाल की नीतियों और धार्मिक विचारों के बारे में जानकारी मिलती है।

2. समाज और संस्कृति का अध्ययन

अभिलेखों से हम किसी समाज की संस्कृति, भाषा, धर्म, कला, और अन्य सांस्कृतिक पहलुओं का भी अध्ययन कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, प्राचीन भारतीय अभिलेखों से हमें विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों, और उनके आपसी संपर्क के बारे में जानकारी मिलती है। जैसे, गुप्तकाल के सिक्कों और अभिलेखों से उस समय की कला और धर्म के बारे में जानकारी मिलती है।

3. कालक्रम निर्धारण (Chronology)

अभिलेखों के माध्यम से इतिहासकार घटनाओं का कालक्रम निर्धारित कर सकते हैं। जब अभिलेखों में घटनाओं, तिथियों और शासकों के नाम होते हैं, तो ये घटनाओं के बीच का अंतराल और उनका अनुक्रम निर्धारित करने में मदद करते हैं। यह इतिहास लेखन में ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध करने का एक प्रभावी तरीका है।

4. भाषा और लिपि का विकास

अभिलेखों का अध्ययन भाषा और लिपि के विकास को समझने में भी मदद करता है। विभिन्न अभिलेखों से हमें यह पता चलता है कि एक निश्चित समय में लोग कौन सी भाषाएँ बोलते थे और उनका लेखन कैसे हुआ करता था। जैसे, मोहनजोदड़ो की मुहरों से प्राचीन सिंधु लिपि का उदाहरण मिलता है, जो आज तक पूर्ण रूप से decipher नहीं की जा सकी है।

5. प्रशासन और नीति का अध्ययन

अभिलेखों में शासकों के आदेश, विधियाँ, कर प्रणाली, युद्धों और विजय की घोषणाएँ होती हैं, जो उस समय के प्रशासनिक ढांचे और नीतियों को उजागर करती हैं। उदाहरण स्वरूप, सम्राट अशोक के अभिलेखों में उसके द्वारा अपनाई गई धर्मनिरपेक्ष नीति और युद्धों की जानकारी मिलती है।

6. धार्मिक और आस्थाएँ

अभिलेखों से हम किसी समय के धार्मिक विश्वासों और आस्थाओं को भी समझ सकते हैं। मंदिरों, मूर्तियों, और धार्मिक स्थलों पर लिखे गए अभिलेख हमें उस समय के धार्मिक रीति-रिवाजों, पूजा पद्धतियों, और देवताओं के बारे में जानकारी देते हैं। जैसे, पाटलिपुत्र में पाए गए शिलालेखों से बौद्ध धर्म के प्रभाव और विकास का पता चलता है।

7. सामाजिक और आर्थिक जीवन

अभिलेखों के माध्यम से हमें प्राचीन समाज के सामाजिक और आर्थिक जीवन का भी अध्ययन करने का अवसर मिलता है। व्यापार, कराधान, श्रमिकों की स्थिति, और अन्य सामाजिक संरचनाओं के बारे में अभिलेखों में महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं। इससे इतिहासकार यह समझ सकते हैं कि लोग कैसे रहते थे, उनकी आर्थिक गतिविधियाँ क्या थीं, और उनका समाज कैसे संगठित था।

8. नए विचारों और सिद्धांतों का आधार

अभिलेखों का अध्ययन न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को स्पष्ट करता है, बल्कि इससे नए विचारों और सिद्धांतों का जन्म भी होता है। इतिहासकार, अभिलेखों के आधार पर पुरानी धारणाओं को चुनौती दे सकते हैं और नए दृष्टिकोण से अतीत की घटनाओं का विश्लेषण कर सकते हैं।

Q. 11. हड़प्पावासियों द्वारा सिंचाई के साधनों का उल्लेख करें।

उत्तर – हड़प्पा सभ्यता (सिंधु घाटी सभ्यता) के लोग अत्यधिक उन्नत जल प्रबंधन और सिंचाई प्रणालियों के लिए प्रसिद्ध थे। वे कृषि में सिंचाई के विभिन्न साधनों का उपयोग करते थे, जिससे उनके खेतों को निरंतर पानी मिलता था और उनकी कृषि उत्पादन क्षमता बढ़ी। हड़प्पावासी सिंचाई के लिए मुख्य रूप से नदियों, जलाशयों और कूपों का इस्तेमाल करते थे। इसके अलावा, वे विभिन्न जल वितरण प्रणालियों और तकनीकों को भी अपनाते थे, जो उनकी समृद्ध कृषि प्रणाली का संकेत देते हैं।

यहां हड़प्पावासियों द्वारा उपयोग किए गए कुछ प्रमुख सिंचाई के साधन दिए गए हैं:

1. नदी जल का उपयोग

हड़प्पा सभ्यता के लोग मुख्य रूप से सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों का पानी अपनी सिंचाई के लिए इस्तेमाल करते थे। वे इन नदियों के जल को नहरों और चैनलों के माध्यम से खेतों में पहुँचाते थे। सिंचाई के लिए नदी के पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने की तकनीक भी हड़प्पावासियों ने विकसित की थी।

2. नहरों और जल चैनल का निर्माण

हड़प्पावासियों ने नदियों के पानी को खेतों तक पहुँचाने के लिए नहरों और जल चैनल का निर्माण किया था। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी जगहों पर जल वितरण की अत्यधिक उन्नत प्रणालियाँ पाई गई हैं। इन नहरों के माध्यम से खेतों तक पानी पहुंचाना सुनिश्चित किया गया था, जिससे किसानों को जल की कमी का सामना नहीं करना पड़ता था।

3. कूप और कुएं

हड़प्पावासियों ने कूपों और कुओं का भी निर्माण किया था, जिनसे पानी खींचकर खेतों में सिंचाई की जाती थी। ये कुएं और कूप आमतौर पर आवासीय क्षेत्रों और कृषि क्षेत्रों के पास स्थित होते थे, जिससे पानी का सहज उपयोग किया जा सके।

4. वृष्टि जल संचयन

सिंधु घाटी में मानसून का पानी भी सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता था। हड़प्पावासियों ने वृष्टि जल संचयन के लिए जलाशयों और तालाबों का निर्माण किया था। इन जलाशयों में वर्षा का पानी एकत्र किया जाता था, जिसे बाद में खेती के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

5. जल निकासी प्रणाली

हड़प्पावासियों ने जल निकासी प्रणाली का भी विकास किया था, जिससे पानी के अत्यधिक प्रवाह से खेतों को नुकसान नहीं होता था। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में विशेष जल निकासी और सीवरेज प्रणाली पाई जाती थी, जो खेतों और आवासीय इलाकों के लिए प्रभावी सिंचाई सुनिश्चित करती थी।

6. सिंचाई के उपकरण

हड़प्पा सभ्यता में सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले साधारण उपकरण जैसे घड़ों, बाल्टियों और बर्तनों का भी पता चलता है। इन उपकरणों का इस्तेमाल पानी खींचने और वितरण में किया जाता था।

निष्कर्ष:

हड़प्पावासियों द्वारा सिंचाई के लिए उपयोग किए गए इन विविध साधनों और प्रणालियों ने यह साबित कर दिया कि वे कृषि में अत्यधिक कुशल थे और जल प्रबंधन में भी उनकी विशेषज्ञता अत्यधिक उन्नत थी। सिंचाई के इन साधनों के जरिए हड़प्पावासी अपनी कृषि उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में सफल रहे, जो उनके समृद्ध और उन्नत समाज का आधार था।

Author

SANTU KUMAR

I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.

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