81. जलविद्युत शक्ति का विकास उत्तर भारत में अधिक क्यों हुआ है? कोई तीन कारण लिखिए।
उत्तर – भारत में जलविद्युत् शक्ति के अधिक विकास के कारण
भारत, विशेष रूप से उत्तर भारत, में जलविद्युत् (Hydroelectric Power) का तेजी से विकास हुआ है। इसके पीछे कई भूगोलिक और सामाजिक कारण हैं। प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
(i) सदावाहिनी नदियाँ
उत्तर भारत की अधिकांश नदियाँ जैसे गंगा, यमुना, सतलुज, आदि साल भर जल प्रवाहित करती हैं (सदावाहिनी नदियाँ)।
ये नदियाँ गहरी और संकरी घाटियों से होकर गुजरती हैं, जो जलविद्युत् परियोजनाओं के लिए उपयुक्त हैं।
(ii) बाँध निर्माण की अनुकूलता
इन नदियों की घाटियों में बाँध बनाना सरल होता है क्योंकि यहाँ:
भू-आकृतिक स्थितियाँ अनुकूल हैं,
नदी प्रवाह नियंत्रित किया जा सकता है,
और ऊँचाई का लाभ लेकर गुरुत्वजनित जल शक्ति से आसानी से विद्युत उत्पन्न किया जा सकता है।
(iii) विद्युत की अधिक माँग
उत्तर भारत में जनसंख्या घनत्व अधिक है, जिससे:
घरेलू उपयोग,
कृषि पंप,
उद्योग,
और शहरीकरण की वजह से विद्युत की अत्यधिक आवश्यकता है।
इस माँग को पूरा करने के लिए जलविद्युत् एक सस्ता, टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प है।
निष्कर्ष
उत्तर भारत में जलविद्युत् शक्ति के विकास के पीछे नदियों की भौगोलिक विशेषताएँ और अधिक जनसंख्या से जुड़ी ऊर्जा की बढ़ती माँग प्रमुख कारण हैं। यह ऊर्जा स्रोत भारत के सतत विकास में अहम भूमिका निभा रहा है।
82. सतत पोषणीय विकास की संकल्पना को परिभाषित करें।
उत्तर – सतत पोषणीय विकास (Sustainable Development)
सतत पोषणीय विकास का अर्थ है ऐसा विकास जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को इस प्रकार पूरा करे कि वह भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता से समझौता न करे।
इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि:
प्राकृतिक संसाधनों (जैसे मृदा, जल, वन, खनिज आदि) का उपयोग इस संतुलित गति से किया जाए कि:
पर्यावरणीय संतुलन बना रहे,
संसाधनों का प्राकृतिक पुनःस्थापन (regeneration) या पुनचक्रण (recycling) होता रहे,
और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी ये संसाधन उपलब्ध बने रहें।
निष्कर्ष:
सतत विकास का मतलब है विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखना। यह एक ऐसा मार्ग है जिससे हम प्रकृति का दोहन किए बिना विकास कर सकते हैं और भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधन सुरक्षित रख सकते हैं।
83. निवल बोया गया क्षेत्र तथा सकल बोया गया क्षेत्र में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर – निवल और सकल बोया गया क्षेत्र – सरल व्याख्या
1. निवल बोया गया क्षेत्र (Net Sown Area):
यह वह भूमि होती है जिस पर एक वर्ष में कम से कम एक बार फसल उगाई और काटी जाती है।
उदाहरण: अगर किसी खेत में साल में एक बार गेहूँ की फसल ली जाती है, तो वह क्षेत्र निवल बोया गया क्षेत्र कहलाएगा।
2. सकल बोया गया क्षेत्र (Gross Sown Area):
यह निवल बोया गया क्षेत्र प्लस उस भूमि को भी शामिल करता है जिस पर एक वर्ष में दो या तीन बार फसलें ली जाती हैं।
यदि एक ही खेत में साल में दो बार फसलें बोई और काटी जाती हैं, तो उस भूमि को दो बार गिना जाता है।
यदि तीन बार फसल ली जाती है, तो उसे तीन बार जोड़ा जाएगा।
उदाहरण से समझिए:
मान लीजिए:
किसी किसान के पास 1 हेक्टेयर जमीन है।
वह साल में दो बार – गेहूँ और धान – उगाता है।
तो:
निवल बोया गया क्षेत्र = 1 हेक्टेयर
सकल बोया गया क्षेत्र = 2 हेक्टेयर (क्योंकि दो बार फसल बोई गई)
निष्कर्ष:
निवल क्षेत्र = भूमि का वास्तविक क्षेत्रफल जहाँ फसल होती है
सकल क्षेत्र = जितनी बार फसल उगाई गई, उस आधार पर भूमि का कुल उपयोग (दोहरी या तिहरी गिनती के साथ)
84. स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – स्वर्णिम चतुर्भुज और राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना
भारत के प्रमुख महानगरों के बीच दूरी और यात्रा समय को कम करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा स्वर्णिम चतुर्भुज (Golden Quadrilateral) नामक एक महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना शुरू की गई है।
स्वर्णिम चतुर्भुज की विशेषताएँ:
इस परियोजना के अंतर्गत छः लेन (6-लेन) वाले उच्चगति राजमार्गों द्वारा भारत के चार प्रमुख महानगरों –
दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई – को एक-दूसरे से जोड़ा गया है।यह चतुर्भुज आकार में पूरे देश को आपस में जोड़ता है और देश के आर्थिक, औद्योगिक और परिवहन नेटवर्क को मजबूत करता है।
परियोजना के अन्य प्रमुख गलियारे:
उत्तर-दक्षिण गलियारा (North–South Corridor)
यह श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) से शुरू होकर कन्याकुमारी (तमिलनाडु) तक जाता है।
यह भारत के उत्तरी और दक्षिणी छोर को जोड़ता है।
पूर्व–पश्चिम गलियारा (East–West Corridor)
यह सिलचर (असम) से शुरू होकर पोरबंदर (गुजरात) तक फैला है।
यह देश के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों को जोड़ता है।
निष्कर्ष:
स्वर्णिम चतुर्भुज और इससे जुड़े गलियारे भारत के आर्थिक विकास, यातायात सुविधा, व्यापार विस्तार और भौगोलिक एकता को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यह परियोजना भारत के बुनियादी ढांचे को विश्वस्तरीय बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
85. गुजरात के चार प्रमुख सूती वस्त्र उद्योग केन्द्रों के नाम लिखें।
उत्तर – गुजरात – भारत का दूसरा सबसे बड़ा वस्त्र उत्पादक राज्य
गुजरात भारत में वस्त्र उद्योग का एक प्रमुख केंद्र है और यह देश का दूसरा सबसे बड़ा वस्त्र उत्पादक राज्य है।
अहमदाबाद – सूती वस्त्रों की राजधानी
अहमदाबाद को भारत की “सूती वस्त्रों की राजधानी” कहा जाता है।
यहाँ 72 से अधिक कपड़ा मिलें स्थापित हैं, जो बड़े पैमाने पर सूती वस्त्रों का उत्पादन करती हैं।
गुजरात के अन्य प्रमुख वस्त्र उद्योग केंद्र:
बड़ोदरा
सूरत
भावनगर
पोरबंदर
राजकोट
भड़ौच
इन शहरों में भी विभिन्न प्रकार के वस्त्र जैसे रेशमी, सिंथेटिक और तैयार वस्त्रों का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है।
निष्कर्ष:
गुजरात का वस्त्र उद्योग राज्य की आर्थिक प्रगति, रोज़गार सृजन और निर्यात में अहम योगदान देता है। विशेषकर अहमदाबाद का वस्त्र उत्पादन भारत के कपड़ा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पहचान रखता है।
86. “संचार’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – संचार (Communication)
संचार का अर्थ है – एक स्थान से दूसरे स्थान तक संदेश, विचार या सूचना को भेजने की व्यवस्था। यह एक ऐसा माध्यम है जो लोगों को आपस में जोड़ता है और जानकारी को प्रेषित (भेजने) और प्राप्त करने में सहायक होता है।
संचार के मुख्य रूप:
भौतिक संचार:
उदाहरण: डाक सेवाएँ, पत्र आदि।
तार द्वारा संचार:
उदाहरण: टेलीफोन, टेलीग्राफ, फैक्स।
वायु तरंगों द्वारा संचार (Wireless Communication):
उदाहरण: रेडियो, टेलीविजन, सेटेलाइट।
संचार के दो प्रमुख प्रकार:
(i) वैयक्तिक संचार (Personal Communication):
यह व्यक्ति से व्यक्ति के बीच होता है।
उदाहरण:
पत्राचार (चिट्ठियाँ)
दूरभाष (टेलीफोन)
तार
फैक्स
ई-मेल
इंटरनेट और सोशल मीडिया
(ii) सार्वजनिक या जनसंचार (Mass Communication):
यह एक व्यक्ति या संस्था से बड़ी संख्या में लोगों तक सूचना पहुँचाने का माध्यम होता है।
उदाहरण:
रेडियो
टेलीविजन
सिनेमा
उपग्रह (सेटेलाइट)
समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ
पुस्तकें
जनसभाएँ, गोष्ठियाँ और सम्मेलन
जनसंचार के माध्यम:
मुद्रण माध्यम (Print Media):
अख़बार
पत्रिकाएँ
पुस्तकें
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (Electronic Media):
रेडियो
टेलीविजन
इंटरनेट
सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म
निष्कर्ष:
संचार आधुनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है। यह न केवल जानकारी साझा करने का माध्यम है, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से लोगों को जोड़ने और जागरूक करने में भी अहम भूमिका निभाता है।
87. सूती वस्त्रोद्योग के दो सेक्टरों के नाम बताइये। वे किस प्रकार भिन्न हैं ?
उत्तर – भारत में सूती वस्त्रोद्योग के दो प्रमुख क्षेत्र
भारत का सूती वस्त्र उद्योग देश के सबसे बड़े और पुराने उद्योगों में से एक है। यह दो प्रमुख क्षेत्रों (सेक्टरों) में विभाजित है:
1. संगठित सेक्टर (Organised Sector)
इस सेक्टर में मुख्य रूप से मिल आधारित उद्योग आते हैं, जहाँ बड़े स्तर पर यांत्रिक मशीनों की सहायता से कपड़ा तैयार किया जाता है। यह सेक्टर तीन भागों में विभाजित है:
(क) सार्वजनिक क्षेत्र
(ख) सहकारी क्षेत्र
(ग) निजी क्षेत्र
1998 की स्थिति:
कुल मिलें: 1782
सार्वजनिक क्षेत्र में: 192 मिलें
सहकारी क्षेत्र में: 151 मिलें
निजी क्षेत्र में: 1439 मिलें (सबसे अधिक)
📉 नोट:
20वीं शताब्दी के मध्य में संगठित क्षेत्र से 81% उत्पादन होता था, जो घटकर 2000 में मात्र 6% रह गया।
2. विकेंद्रित सेक्टर (Decentralised Sector)
इस क्षेत्र में छोटे पैमाने पर वस्त्र उत्पादन होता है, जैसे:
हथकरघा उद्योग (Handloom) – जिसमें खादी भी शामिल है
विद्युत् करघा उद्योग (Powerloom)
उत्पादन में योगदान:
विद्युत् करघा क्षेत्र: भारत में कुल सूती वस्त्र उत्पादन का लगभग 59.2%
हथकरघा क्षेत्र: उत्पादन का लगभग 19%
✅ यह क्षेत्र विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में लाखों लोगों को रोज़गार प्रदान करता है और देश की आंतरिक कपड़ा माँग को पूरा करता है।
निष्कर्ष:
भारत में सूती वस्त्र उद्योग दोहरे ढाँचे पर आधारित है –
एक ओर बड़े मिलों का संगठित क्षेत्र,
और दूसरी ओर छोटे-स्तरीय इकाइयों का विकेंद्रित क्षेत्र।
जहाँ संगठित क्षेत्र में गिरावट आई है, वहीं विकेंद्रित क्षेत्र ने उत्पादन और रोज़गार दोनों में प्रमुख भूमिका निभाई है।
88. सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology) उद्योग
सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग, या आईटी उद्योग, उन उद्योगों का समूह है जो सूचना से संबंधित उत्पादों और सेवाओं का निर्माण और वितरण करते हैं। इसमें विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का निर्माण होता है, जैसे:
ट्रांजिस्टर (Transistor)
टेलीविजन (Television)
टेलीफोन (Telephone)
पेजर (Pager)
राडार (Radar)
सैल्यूलर टेलीकॉम (Cellular Telecom)
लेजर (Laser)
अंतरिक्ष उपकरण (Space Instruments)
कम्प्यूटर हार्डवेयर (Computer Hardware)
सॉफ़्टवेयर प्रक्रिया (Software Process)
यह इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के अंतर्गत आता है, और इन सभी उत्पादों को दलेरॉनिक उत्पाद (Electronic Products) कहा जाता है।
इस उद्योग की विशेषताएँ:
उच्च प्रौद्योगिकी आधारित उद्योग (High-tech Industry):
यह उद्योग अत्यधिक उन्नत ज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आधारित होता है, जो नवीनतम अनुसंधान और विकास (R&D) द्वारा समर्थित होता है।निरंतर शोध और विकास (Continuous Research and Development):
इस क्षेत्र में निरंतर शोध और नवाचार की आवश्यकता होती है, ताकि नई तकनीकों और उत्पादों का निर्माण किया जा सके।ज्ञान पर आधारित उद्योग (Knowledge-based Industry):
चूँकि यह उद्योग सूचना और ज्ञान पर निर्भर करता है, इसे ज्ञान पर आधारित उद्योग भी कहा जाता है।
निष्कर्ष:
सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग इलेक्ट्रॉनिक उद्योग का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो नवीनतम तकनीक और उन्नत अनुसंधान के माध्यम से निरंतर विकास कर रहा है। यह उद्योग विकसित देशों और उधारन देशों दोनों में आर्थिक प्रगति और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
89. उदारीकरण के लाभों को लिखें।
उत्तर – उदारीकरण (Liberalization) – आर्थिक विकास की प्रक्रिया
उदारीकरण एक ऐसी आर्थिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा उद्योगों और व्यापार को लालफीताशाही के अनावश्यक प्रतिबंधों से मुक्त किया जाता है। यह प्रक्रिया आर्थिक सुधारों के तहत की जाती है, जिसका मुख्य उद्देश्य व्यापार और उद्योगों को अधिक स्वतंत्रता और लचीलापन प्रदान करना है, ताकि वे बेहतर प्रतिस्पर्धा कर सकें और आर्थिक विकास में योगदान दे सकें।
उदारीकरण के मुख्य तत्व:
लाइसेंस राज में कटौती:
उदारीकरण के अंतर्गत, अधिकांश उद्योगों को लाइसेंस की आवश्यकता से मुक्त कर दिया गया। इसके कारण उद्योगों को अपनी क्षमता के अनुसार उत्पादन बढ़ाने और नये उत्पादों को बाजार में लाने में आसानी हुई। केवल 6 उद्योगों को लाइसेंस की आवश्यकता बनी रही, जबकि अन्य सभी उद्योगों को इस प्रतिबंध से मुक्त कर दिया गया।निजीकरण:
सार्वजनिक क्षेत्र में घाटे में चलने वाले कुछ उद्योगों को निजी क्षेत्र को सौंप दिया गया। इसके साथ ही, कुछ सार्वजनिक उपक्रमों के शेयर वित्तीय संस्थाओं, सामान्य जनता और कामगारों को बेचे गए। इससे न केवल उद्योगों की कार्यकुशलता में सुधार हुआ, बल्कि निजी निवेश को बढ़ावा मिला।विदेशी पूँजी निवेश पर से प्रतिबंध हटाना:
उदारीकरण के तहत विदेशी पूँजी निवेश (Foreign Direct Investment – FDI) पर से प्रतिबंध हटाए गए। इसके परिणामस्वरूप, विदेशी कंपनियाँ भारत में निवेश करने लगीं, जिससे तकनीकी विकास और नए निवेश की संभावनाएँ बढ़ीं।विदेशी तकनीक का प्रवेश:
उदारीकरण के दौरान, विदेशी तकनीक के भारत में प्रवेश को भी बढ़ावा दिया गया। इस कदम से उद्योगों में तकनीकी सुधार हुआ और वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने की क्षमता में वृद्धि हुई।औद्योगिक स्थानीयकरण में उदारता:
उदारीकरण के अंतर्गत, औद्योगिक स्थानीयकरण (Industrial Localization) में भी लचीलापन प्रदान किया गया, जिससे उद्योगों को अपनी आवश्यकता अनुसार संसाधनों का चयन करने में सुविधा हुई।
उदारीकरण के लाभ:
प्रतिस्पर्धा बढ़ी: उदारीकरण के बाद, भारतीय उद्योगों को अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा, जिससे उनकी कार्यकुशलता और उत्पादकता में सुधार हुआ।
निवेश बढ़ा: विदेशी निवेश की अनुमति मिलने से भारत में विदेशी पूँजी और नई तकनीक का प्रवेश हुआ, जिससे औद्योगिक क्षेत्र में नवाचार और विकास को बढ़ावा मिला।
बाजार की उपलब्धता: उद्योगों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा करने का अवसर मिला, जिससे व्यापारिक दृष्टिकोण से लाभ हुआ।
निष्कर्ष:
उदारीकरण एक महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार है, जिसने भारतीय उद्योगों को स्वतंत्रता और लचीलापन प्रदान किया। इससे न केवल औद्योगिक क्षेत्र में विकास हुआ, बल्कि आर्थिक विकास के नए अवसरों का निर्माण भी हुआ। इस प्रक्रिया ने भारत को वैश्विक स्तर पर एक मजबूत आर्थिक ताकत के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
90. इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र का सिंचाई पर क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर – इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र: कृषि, पारिस्थितिकी और समाज में बदलाव
इंदिरा गांधी नहर का निर्माण राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई के लिए एक महत्वपूर्ण परियोजना साबित हुआ है। इस नहर द्वारा लाए गए सिंचाई के प्रसार ने इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी, अर्थव्यवस्था और समाज को गहरे तरीके से प्रभावित किया है। यह परियोजना न केवल इस क्षेत्र में कृषि उत्पादन को बढ़ाने में सफल रही है, बल्कि इसने लोगों के जीवन स्तर और पर्यावरण में भी कई सकारात्मक बदलाव किए हैं।
सिंचाई के प्रभाव
इस नहर के माध्यम से जल आपूर्ति के कारण, मृदा में नमी बनी रहती है, जिससे भूमि की उर्वरता में सुधार हुआ है। लंबे समय तक मृदा में नमी बनाए रखने से यहाँ के कृषि क्षेत्र में वृद्धि हुई है और पानी की उपलब्धता ने सिंचाई प्रणाली को सुदृढ़ किया है। इसके परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है और पारंपरिक फसलों की जगह अधिक मूल्यवर्धित फसलें उगाई जा रही हैं।
वनरोपण और चारागाह विकास
कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम के अंतर्गत वनरोपण और चारागाह विकास कार्यक्रमों ने भूमि की पारिस्थितिकी में सुधार किया है। इन कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप क्षेत्र में हरियाली बढ़ी है और भूमि की उत्पादकता में सुधार हुआ है। इससे न केवल कृषि बल्कि पर्यावरणीय सुधार भी हुआ है, जो इस क्षेत्र के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ है।
कृषि अर्थव्यवस्था में परिवर्तन
यह नहर सिंचाई ने कृषि अर्थव्यवस्था में एक बड़ा बदलाव लाया है। पारंपरिक फसलें जैसे चना, बाजरा और ज्वार अब प्रमुख फसलों के रूप में नहीं उगाई जातीं। इनकी जगह गेहूँ, कपास, मूंगफली, और चावल जैसी अधिक मूल्य वाली फसलें उगाई जा रही हैं। इन फसलों का उत्पादन इस क्षेत्र की सघन सिंचाई और कृषि तकनीकों के परिणामस्वरूप बढ़ा है।
कुल कृषि भूमि का सिंचाई से लाभ
इस क्षेत्र की कुल कृषि भूमि का 19.63 लाख हेक्टेयर भाग सिंचाई की सुविधा प्राप्त कर चुका है। इससे इस क्षेत्र में कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई है और किसानों की आय में भी इजाफा हुआ है।
निष्कर्ष
इंदिरा गांधी नहर ने राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में न केवल कृषि विकास को बढ़ावा दिया है, बल्कि क्षेत्र की सामाजिक और पर्यावरणीय संरचना में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं। इसके माध्यम से कृषि क्षेत्र का रूपांतर हुआ है और यह परियोजना राज्य की आर्थिक समृद्धि और सतत विकास में एक मील का पत्थर साबित हो रही है।
बहुमुखी योजना वह योजना होती है, जिसका उद्देश्य केवल एक कार्य को नहीं बल्कि अनेक उद्देश्यों की पूर्ति करना होता है। ऐसी योजनाओं के अंतर्गत एक ही परियोजना के जरिए कई लाभ प्राप्त किए जाते हैं। इस प्रकार की योजनाओं के द्वारा जल संसाधन, जल विद्युत् उत्पादन, सिंचाई, यातायात सुविधा, बाढ़ नियंत्रण, मिट्टी अपरदन रोकना, मछली पालन और पर्यटन को बढ़ावा देना जैसी विभिन्न कार्यों को पूरा किया जाता है।
भारत में बहुमुखी योजनाओं का महत्व:
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नदियों पर बाँध बनाने, जल विद्युत् उत्पादन और सिंचाई जैसे उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए कई बहुद्देशीय योजनाएँ बनाई गईं और लागू की गईं। इन योजनाओं का उद्देश्य न केवल जल संसाधन का बेहतर उपयोग करना था, बल्कि इससे जुड़े कृषि, वाणिज्य और पर्यटन के क्षेत्र में भी सुधार लाना था।
भारत में जल संसाधन की प्रचुरता होने के बावजूद, जल प्रबंधन की कमी के कारण देश का अधिकांश जल समुद्र में बेकार बहकर चला जाता है। इसके परिणामस्वरूप बाढ़ और सूखा जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिए नदियों पर बाँध बनाए गए और नहरों का नेटवर्क विकसित किया गया ताकि जल का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जा सके।
प्रमुख बहुमुखी योजनाएँ:
नदियों पर बाँध निर्माण: नदियों पर बाँध बनाने से न केवल जल विद्युत् उत्पादन में वृद्धि हुई है, बल्कि सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण में भी मदद मिली है। इससे कृषि उत्पादकता में भी सुधार हुआ है।
जल विद्युत् उत्पादन: नदियों पर बने बाँधों से बिजली उत्पादन की क्षमता में वृद्धि हुई है, जिससे देश की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति की गई है।
सिंचाई नेटवर्क: नहरों के निर्माण से कृषि योग्य भूमि की सिंचाई की जाती है, जिससे कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है और किसानों की आय में वृद्धि हुई है।
बाढ़ नियंत्रण: नदियों पर बाँधों का निर्माण बाढ़ के पानी को नियंत्रित करता है, जिससे बाढ़ के दुष्प्रभावों से बचाव संभव हुआ है।
मिट्टी अपरदन को रोकना: नदियों पर बाँध बनाने से मिट्टी के कटाव को रोका जा सकता है, जो कृषि भूमि के लिए हानिकारक होता है।
पर्यटन को बढ़ावा: इन परियोजनाओं के आसपास के क्षेत्रों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ हुआ है।
निष्कर्ष:
भारत में बहुमुखी योजनाओं का महत्व बढ़ता जा रहा है क्योंकि इन योजनाओं से केवल एक उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती, बल्कि विविध उद्देश्यों की सफलता सुनिश्चित होती है। जल प्रबंधन और संसाधन उपयोग को सही दिशा में लाने के लिए इस प्रकार की योजनाओं को बढ़ावा देना आवश्यक है ताकि कृषि, ऊर्जा और पर्यटन के क्षेत्र में सतत विकास सुनिश्चित किया जा सके।
भारत और अन्य ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में चीनी उद्योग का प्रमुख कच्चा माल गन्ना होता है। गन्ना एक भार ह्रास वाली फसल है, यानी इसमें समय के साथ साथ सुक्रोज (चीनी) की मात्रा घटती जाती है। गन्ने को खेतों से काटने के बाद 24 घंटे के भीतर ही उसे पेराई के लिए भेज देना चाहिए, ताकि उसमें अधिकतम चीनी की मात्रा प्राप्त हो सके। यदि गन्ने का भंडारण लंबे समय तक किया जाए तो उसकी सुक्रोज की मात्रा में कमी हो जाती है और इसके परिणामस्वरूप चीनी का उत्पादन भी कम हो जाता है।
गन्ने की पेराई की विशेषताएँ:
सुक्रोज की कमी: गन्ना एक मौसमी फसल है और इसे एक निश्चित अवधि में ही काटा जा सकता है। गन्ने के काटने के बाद, अगर उसे जल्दी पेराई के लिए भेजा न जाए तो उसमें सुक्रोज की मात्रा घटने लगती है, जो चीनी उत्पादन के लिए हानिकारक है।
मौसमी उद्योग: गन्ना एक मौसम पर आधारित फसल है, जिसका सीधा प्रभाव चीनी उद्योग की मौसमी प्रकृति पर पड़ता है। गन्ने की पेराई की अवधि भी निर्धारित होती है और यह कुछ महीनों तक ही सीमित रहती है। इस कारण चीनी मिलें पूरे वर्ष में नहीं चलतीं, बल्कि केवल कुछ महीनों तक ही उत्पादन करती हैं।
चीनी मिलों की सीमित अवधि: चीनी मिलों की पेराई अवधि के कारण यह एक मौसमी उद्योग बन जाता है। इस अवधि के दौरान ही गन्ने को पेराई करके चीनी का उत्पादन किया जाता है, जबकि बाकी समय इन मिलों में काम नहीं होता।
समाप्ति:
गन्ने की मौसमी प्रकृति और उसकी सीमित पेराई अवधि के कारण चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग है। गन्ने का भंडारण लंबे समय तक नहीं हो सकता, और उसका चीनी में परिवर्तन भी जल्दी होता है, जिसके कारण चीनी उद्योग के संचालन के समय और उत्पादन की मात्रा पर गहरा असर पड़ता है। इस उद्योग के साम seasonal होने के कारण इसके संचालन में कुछ विशेष कठिनाइयाँ भी होती हैं, जो इसके विकास को प्रभावित करती हैं।
93. पेट्रो-रासायनिक उद्योग के लिए कच्चा-माल क्या है? इस उद्योग के कुछ उत्पादों के नाम बताइये।
उत्तर – पेट्रो-रसायन उद्योग:
पेट्रो-रसायन उद्योग एक ऐसा उद्योग है जो कच्चे पेट्रोलियम (अपरिष्कृत पेट्रोल) से विभिन्न उत्पादों का निर्माण करता है। कच्चे पेट्रोलियम में मौजूद हाइड्रोकार्बन से अनेक उपयोगी पदार्थ निकाले जाते हैं, जिनका उपयोग विभिन्न उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। इन पदार्थों को एक साथ पेट्रो-रसायन उत्पाद के रूप में जाना जाता है।
पेट्रो-रसायन उद्योग का कच्चा माल:
पेट्रो-रसायन उद्योग का मुख्य कच्चा माल कच्चा खनिज तेल होता है। इस कच्चे तेल को रिफाइनरी में संशोधित किया जाता है और उससे विभिन्न रसायन, प्लास्टिक, कृत्रिम रेशे, कृत्रिम रबड़, इत्यादि प्राप्त होते हैं। ये सभी पदार्थ विभिन्न उद्योगों में कच्चे माल के रूप में काम आते हैं।
पेट्रो-रसायन उद्योग के उत्पाद:
पेट्रो-रसायन उद्योग से बनने वाले प्रमुख उत्पादों में शामिल हैं:
प्लास्टिक: पेट्रो-रसायन उद्योग में सबसे अधिक उत्पादित पदार्थों में प्लास्टिक प्रमुख है। प्लास्टिक से दैनिक उपयोग की बहुत सारी वस्तुएं बनाई जाती हैं।
कृत्रिम रेशे (Synthetic fibers): कृत्रिम रेशे जैसे नायलॉन, पोलिएस्टर, और रेयॉन का उपयोग कपड़े बनाने में किया जाता है। ये रेशे प्राकृतिक रेशों से सस्ते होते हैं और अधिक टिकाऊ होते हैं।
कृत्रिम रबड़: यह रबर टायर, गम, और अन्य वस्तुओं के निर्माण में उपयोग होता है। यह प्राकृतिक रबर के स्थान पर उपयोग किया जाता है।
पटाखे: पेट्रो-रसायन उद्योग से बने कुछ रसायन पटाखों के निर्माण में भी प्रयोग किए जाते हैं।
पेट्रो-रसायन उद्योग से प्राप्त दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली वस्तुएं:
पेट्रो-रसायन उद्योग से बनी अनेक वस्तुओं का हम अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में उपयोग करते हैं। इनके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:
कृत्रिम रेशम के कपड़े (जैसे नायलॉन, रेयॉन)
टूथ-ब्रश
साबुनदानी
पेस्ट का ढक्कन
प्लास्टिक के मग, बाल्टी, और अन्य प्लास्टिक उत्पाद
रेडियो के केस
सनमाइका (कभी-कभी इसके लिए पेट्रो-रसायन का उपयोग किया जाता है)
डिटर्जेंट
बाल प्वाइंट पेन
बिजली के स्विच
कीटनाशक
दूध की थैलियाँ
निष्कर्ष:
पेट्रो-रसायन उद्योग आधुनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यह न केवल प्लास्टिक और कृत्रिम रेशों जैसे उत्पादों का स्रोत है, बल्कि इसके उत्पादों का उपयोग हमारे दैनिक जीवन की अनेक वस्तुओं में होता है। कच्चे पेट्रोलियम का रिफाइनिंग और संशोधन करके यह उद्योग हमारे जीवन को सुविधाजनक बनाता है, जबकि साथ ही नए उत्पादों की मांग को भी पूरा करता है।
94. आधुनिक निर्माण उद्योग की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं ?
उत्तर – आधुनिक निर्माण उद्योग:
आधुनिक निर्माण उद्योग बड़े पैमाने के उद्योग होते हैं, जो प्रमुख रूप से भारी पूंजी निवेश, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी, और उच्च उत्पादकता के लिए जाने जाते हैं। इन उद्योगों में उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है और विभिन्न प्रकार की मशीनरी और संयंत्रों का उपयोग किया जाता है। यह उद्योग न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि उनके उत्पादन की विधि और प्रौद्योगिकी भी अत्यधिक विशेषीकृत होती है। इन उद्योगों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. बड़े पैमाने पर उत्पादन:
आधुनिक निर्माण उद्योगों में उत्पादन एक विशाल स्तर पर होता है। यहाँ पर हजारों या लाखों उत्पादों का उत्पादन एक ही समय में होता है। ये उद्योग बड़े संयंत्रों और मशीनरी का उपयोग करके उत्पादन की दर को बढ़ाते हैं।
2. मशीनों का उपयोग:
इन उद्योगों में उत्पादन की प्रक्रिया में मशीनों का अत्यधिक उपयोग किया जाता है। इन मशीनों का उद्देश्य कार्य को तेज, सटीक और कुशल बनाना है। इससे न केवल उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार होता है, बल्कि उत्पादन की लागत में भी कमी आती है।
3. प्रौद्योगिकीय अभिनव परिवर्तन:
आधुनिक निर्माण उद्योगों में लगातार नए और उन्नत तकनीकी नवाचारों को अपनाया जाता है। इससे उत्पादन की प्रक्रिया और गुणवत्ता में सुधार होता है। जैसे-जैसे नई तकनीकें विकसित होती हैं, उद्योग इन्हें अपनाते हैं ताकि वे उच्च गुणवत्ता के उत्पाद बना सकें और लागत को न्यूनतम रख सकें।
4. बहुराष्ट्रीय कंपनियों का सहयोग:
आधुनिक निर्माण उद्योग में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी शामिल होती हैं। इन कंपनियों का सहयोग इन उद्योगों को उच्च गुणवत्ता वाली मशीनरी, तकनीक, और निवेश प्रदान करता है। ये कंपनियाँ उत्पादन को वैश्विक स्तर तक बढ़ाने में मदद करती हैं और वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाती हैं।
5. उत्पादन का वाह्य स्रोतीकरण:
इन उद्योगों में कभी-कभी उत्पादन के कुछ हिस्से अन्य कंपनियों से बाहर स्रोत किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, कच्चा माल, कुछ घटक या कलपुर्जे बाहरी स्रोतों से खरीदे जाते हैं। यह प्रक्रिया उत्पादन की लागत को कम करने में मदद करती है।
6. परिष्कत और उच्चतम प्रौद्योगिकी के उत्पाद:
आधुनिक निर्माण उद्योग उच्चतम तकनीक का उपयोग करते हैं, और उनके द्वारा उत्पादित वस्तुएं आमतौर पर अत्यधिक परिष्कृत और उच्च गुणवत्ता वाली होती हैं। ये उद्योग अत्याधुनिक तकनीकी उपकरणों का निर्माण करते हैं, जो जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में योगदान करते हैं।
7. भारी मात्रा में ऊर्जा का उपयोग:
इन उद्योगों में भारी मात्रा में ऊर्जा का उपयोग होता है। बड़े संयंत्रों और मशीनरी के संचालन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। उत्पादन प्रक्रिया को दक्षता और निरंतरता बनाए रखने के लिए इन उद्योगों में ऊर्जा की खपत अत्यधिक होती है।
8. विशाल संगठन:
आधुनिक निर्माण उद्योग आमतौर पर बड़े संगठन होते हैं जिनमें कई विभाग होते हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के कार्य होते हैं, जैसे उत्पादन, गुणवत्ता नियंत्रण, शोध और विकास, विपणन और वितरण आदि। इन उद्योगों में एक संगठित और कुशल प्रबंधन की आवश्यकता होती है ताकि सभी विभाग एकसाथ काम कर सकें और उत्पादन में उच्चतम दक्षता प्राप्त की जा सके।
निष्कर्ष:
आधुनिक निर्माण उद्योगों की विशेषताएँ उन्हें उच्च गुणवत्ता, बड़ी मात्रा में उत्पादन, और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मजबूती प्रदान करती हैं। इन उद्योगों का विकास प्रौद्योगिकी, प्रबंधन और वैश्विक सहयोग के बीच सशक्त संबंधों के आधार पर होता है। यह उद्योग न केवल आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि समाज और वैश्विक व्यापार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
95. भारत के आठ वृहत् औद्योगिक प्रदेशों के नाम लिखें।
उत्तर – भारत के आठ वृहत औद्योगिक प्रदेश निम्नलिखित हैं-
(i) मुंबई-पुणे औद्योगिक प्रदेश,
(ii) हुगली औद्योगिक प्रदेश,
(iii) बंगलुरु-चेन्नई औद्योगिक प्रदेश,
(iv) गुजरात औद्योगिक प्रदेश,
(v) छोटानागपुर प्रदेश,
(vi) विशाखापत्तनम-गुंटूर प्रदेश,
(vii) गुड़गाँव-दिल्ली-मेरठ प्रदेश,
(viii) कोल्लम तिरूवनंतपरम प्रदेश।
96. बंगलुरू भारत का सिलिकन सिटी है। क्यों ?
उत्तर – सिलिकन घाटी और बंगलुरू: उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग के केंद्र
सिलिकन घाटी (Silicon Valley):
संयुक्त राज्य अमेरिका का सिलिकन घाटी उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग का प्रमुख और विश्वभर में प्रसिद्ध केंद्र है। यह क्षेत्र कैलिफोर्निया राज्य में स्थित है और वैश्विक रूप से उन्नत वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग उत्पादों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध है। सिलिकन घाटी में स्थित प्रमुख कंपनियाँ जैसे एप्पल, गूगल, फेसबुक, इंटेल और अन्य उच्च प्रौद्योगिकी कंपनियाँ गहन शोध और विकास (R&D) के माध्यम से नवीनतम तकनीकों को विकसित करती हैं। यहाँ के शोध संस्थान और विश्वविद्यालय जैसे स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, इस क्षेत्र को निरंतर नवीनता और विकास का केंद्र बनाते हैं।
बंगलुरू (Bengaluru):
भारत में बंगलुरू, जिसे भारतीय “सिलिकन सिटी” के नाम से भी जाना जाता है, उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग का प्रमुख केंद्र है। यहाँ भारत का पहला सॉफ़्टवेयर पार्क स्थापित है और यह सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और सॉफ़्टवेयर उद्योग का केंद्र बन चुका है। बंगलुरू में भारत की प्रमुख आईटी कंपनियाँ जैसे इंफोसिस, विप्रो, टीसीएस और अन्य स्थित हैं, जो वैश्विक स्तर पर अपनी तकनीकी क्षमताओं के लिए ख्याति प्राप्त कर चुकी हैं। बंगलुरू की कंपनियों को उनके नवाचार और उच्च गुणवत्ता के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जाता है।
बंगलुरू का महत्व:
इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की राजधानी: बंगलुरू को “भारत की इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की राजधानी” भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ इलेक्ट्रॉनिक और आईटी उद्योगों का बहुत बड़ा योगदान है। यहाँ की तकनीकी कंपनियाँ न केवल सॉफ्टवेयर सेवाएँ प्रदान करती हैं, बल्कि हार्डवेयर और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का निर्माण भी करती हैं।
वैश्विक पहचान: बंगलुरू में स्थित कंपनियाँ वैश्विक बाजार में अपनी गुणवत्ता और कार्यक्षमता के लिए मशहूर हैं। यहाँ की सॉफ्टवेयर सेवाएँ दुनिया भर में उपयोग की जाती हैं और बंगलुरू को “सिलिकन सिटी” के नाम से भी जाना जाता है।
निष्कर्ष:
सिलिकन घाटी और बंगलुरू दोनों ही उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग के महत्वपूर्ण केंद्र हैं, जो वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक, इंजीनियरिंग, और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अपनी अद्वितीय पहचान बना चुके हैं। सिलिकन घाटी वैश्विक नवाचार और अनुसंधान का प्रमुख केंद्र है, वहीं बंगलुरू भारत का तकनीकी हब बनकर अंतरराष्ट्रीय आईटी और सॉफ़्टवेयर उद्योग का नेतृत्व कर रहा है।
97. लोहा -इस्पात उद्योग किसी देश औधोगिक विकास का आधार है, ऐसा क्यों ?
उत्तर – लोहा-इस्पात उद्योग: भारतीय उद्योग का आधार
लोहा-इस्पात उद्योग को आधुनिक युग का आधारभूत उद्योग कहा जाता है, क्योंकि यह अन्य सभी प्रमुख उद्योगों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस उद्योग का प्रभाव न केवल निर्माण और उत्पादन क्षेत्र में बल्कि समग्र आर्थिक ढाँचे पर भी पड़ा है। यह उद्योग विभिन्न उत्पादों के निर्माण के लिए कच्चा माल प्रदान करता है, जो विभिन्न उद्योगों के लिए आवश्यक होते हैं, जैसे कि मशीनरी, परिवहन उपकरण, कृषि उपकरण, और बहुत कुछ।
लोहा-इस्पात उद्योग का महत्व:
औद्योगिक और निर्माण क्षेत्र में योगदान:
लोहा-इस्पात से बने उत्पादों का उपयोग विभिन्न निर्माण कार्यों में किया जाता है, जिनमें संयंत्र, मशीनरी, और संरचनात्मक निर्माण शामिल हैं। यह उद्योग न केवल घरेलू बाजार की जरूरतों को पूरा करता है, बल्कि निर्यात के रूप में भी वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण योगदान देता है।कृषि उपकरणों का निर्माण:
लोहा और इस्पात से कृषि के लिए जरूरी उपकरण जैसे ट्रैक्टर, थ्रेसर, हल, कुदाल, और अन्य औजार बनाए जाते हैं, जो कृषि उत्पादन को बढ़ावा देते हैं और किसानों के कार्य को सरल बनाते हैं।परिवहन के साधन:
इस्पात उद्योग द्वारा निर्मित उत्पादों का उपयोग परिवहन के साधनों के निर्माण में भी होता है, जैसे रेल की पटरी, रेल डिब्बे, इंजन, वायुयान, जलयान, मोटर गाड़ियाँ और साइकिल। इन सभी साधनों का निर्माण बिना लोहा-इस्पात के संभव नहीं है, जो विभिन्न देशों के परिवहन और यात्रा प्रणालियों की रीढ़ हैं।भारतीय उद्योग का आधार:
भारतीय उद्योग के लगभग सभी सेक्टरों का आधार लोहा-इस्पात उद्योग है। इससे प्राप्त उत्पाद विभिन्न अन्य उद्योगों के लिए कच्चा माल होते हैं, जैसे निर्माण, वाहन निर्माण, मशीनरी निर्माण, और औद्योगिक उत्पादों का निर्माण। लोहा-इस्पात उद्योग का विकास भारतीय अर्थव्यवस्था में औद्योगिक क्रांति का मुख्य आधार रहा है, जिसने भारत को तीव्र औद्योगिक विकास की दिशा में मार्गदर्शन किया।आर्थिक विकास में योगदान:
लोहा-इस्पात उद्योग ने भारत में औद्योगिक विकास के दरवाजे खोले हैं। इसके प्रभाव से न केवल उत्पादन बढ़ा है, बल्कि रोजगार सृजन में भी महत्वपूर्ण योगदान मिला है। इसके अलावा, भारत में बड़ी संख्या में इस्पात संयंत्र स्थापित होने से सामरिक और औद्योगिक दृष्टि से भी यह क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण हो गया है।
निष्कर्ष:
लोहा-इस्पात उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था का अभिन्न हिस्सा है, जो अन्य सभी उद्योगों की आधारशिला है। इसका प्रभाव देश के कृषि, परिवहन, निर्माण और औद्योगिक क्षेत्र में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इस उद्योग के विकास ने भारत में औद्योगिक उत्पादन और समग्र आर्थिक विकास को प्रोत्साहित किया है, और भविष्य में इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता।
98. भारत की 1991 ई० की नयी औद्योगिक नीति के तीन मुख्य उद्देश्यों को लिखिए।
उत्तर – भारत की नई औद्योगिक नीति, 1991 में, आर्थिक सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इस नीति के अंतर्गत तीन मुख्य उद्देश्य निर्धारित किए गए थे, जिनका उद्देश्य भारतीय उद्योगों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना था। इस नीति ने भारत के औद्योगिक क्षेत्र को मुक्त बनाने, उसे आधुनिक बनाने, और वैश्विक बाजार में उसकी प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के प्रयास किए।
1991 की नई औद्योगिक नीति के मुख्य उद्देश्य:
अब तक प्राप्त किए गए लाभ को बढ़ाना:
इस उद्देश्य के तहत यह सुनिश्चित किया गया कि भारत के औद्योगिक क्षेत्र में पहले से जो भी लाभ मिले हैं, उन्हें बनाए रखा जाए और उन्हें और बढ़ाया जाए। यह कदम यह सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया था कि पहले से स्थापित उद्योगों को और अधिक कुशलता से काम करने के अवसर मिलें।
विकृति अथवा कमियों को दूर करना:
भारत के औद्योगिक क्षेत्र में कई विकृतियाँ और कमियाँ थीं, जिनके कारण उद्योगों का विकास प्रभावित हो रहा था। सरकार ने इन समस्याओं को पहचानकर औद्योगिक क्षेत्र में सुधार करने के उपाय किए। इनमें लाइसेंस राज की समाप्ति, सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ हिस्सों के निजीकरण, और निवेश की प्रक्रियाओं को सरल बनाना शामिल था।
उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के लक्ष्य को ध्यान में रखकर उत्पादकता और लाभकारी रोजगार में स्वपोषित वृद्धि को बनाए रखना:
उदारीकरण: सरकार ने औद्योगिक क्षेत्र में सरकारी नियंत्रण कम किया, जिससे निजी निवेश और विदेशी पूंजी का आगमन बढ़ा।
निजीकरण: यह नीति सार्वजनिक क्षेत्र में घाटे में चल रहे उद्योगों को निजी क्षेत्र को सौंपने पर आधारित थी। इससे सरकारी खजाने पर दबाव कम हुआ और प्रतिस्पर्धा बढ़ी।
वैश्वीकरण: भारतीय उद्योगों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जोड़ने का प्रयास किया गया, जिससे भारतीय उत्पाद वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सफलता प्राप्त कर सकें। इसके अंतर्गत, आयात-निर्यात नीति में सुधार और विदेशी निवेश को बढ़ावा देना शामिल था।
उत्पादकता और रोजगार: इस नीति का उद्देश्य था कि न केवल उत्पादकता में वृद्धि हो, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा किए जाएं। यह सुनिश्चित किया गया कि विकास एक ऐसे मार्ग पर हो, जिससे दीर्घकालिक और स्थिर आर्थिक वृद्धि हो सके।
निष्कर्ष:
1991 की औद्योगिक नीति ने भारत की अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी। इस नीति के माध्यम से भारत ने औद्योगिक क्षेत्र में सुधार किए, निजीकरण और वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया, और अंततः भारतीय उद्योगों को अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में मजबूती से खड़ा किया। इन सुधारों के परिणामस्वरूप भारतीय उद्योगों का रूपांतरण हुआ, और भारत ने वैश्विक बाजार में अपनी उपस्थिति मजबूत की।
99. नोएडा एवं बरौनी के महत्त्व का उल्लेख करें।
उत्तर – नोएडा (गुड़गांव-दिल्ली-मेरठ औद्योगिक प्रदेश)
नोएडा दिल्ली के सटे हुए औद्योगिक केन्द्रों में से एक महत्वपूर्ण शहर है, जो गुड़गांव, दिल्ली और मेरठ के औद्योगिक क्षेत्र का हिस्सा है। यह क्षेत्र छोटे और बाजार उन्मुख विद्युत, इंजीनियरिंग सामान और इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में प्रमुख भूमिका निभाता है। नोएडा ने सॉफ्टवेयर और इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में भी अपनी विशेष पहचान बनाई है। यहाँ पर कई प्रमुख कंपनियों और आईटी पार्क्स का विस्तार हुआ है, जिससे इसे भारत के सॉफ़्टवेयर और इलेक्ट्रॉनिक्स हब के रूप में विकसित किया गया है। नोएडा का प्रमुख आकर्षण है कि यह एक उन्नत बुनियादी ढांचा और बेहतर कनेक्टिविटी के कारण उद्योगों के लिए एक आकर्षक स्थान बन चुका है।
बरौनी (बिहार)
बरौनी बिहार राज्य के एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र के रूप में उभरा है, जो गंगा नदी के उत्तर स्थित है। यह क्षेत्र दक्षिण और मध्य बिहार से राजेन्द्र पुल के माध्यम से जुड़ा हुआ है, जिससे इसकी कनेक्टिविटी और परिवहन सुविधाएँ बेहतर हो गई हैं। बरौनी एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केन्द्र है, जहाँ पर तेलशोधक कारखाने, पेट्रो-रसायन उद्योग, ताप विद्युत संयंत्र, रासायनिक खाद और दुग्ध उद्योग जैसे उद्योग विकसित हुए हैं। यहाँ की प्रमुख पहचान तेलशोधन और रासायनिक उत्पादों की प्रक्रिया के साथ-साथ विद्युत उत्पादन से भी है। इसके अलावा, यह उत्तर बिहार का एक महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शन भी है, जो माल परिवहन और यात्री सेवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
निष्कर्ष:
नोएडा और बरौनी दोनों ही अपनी-अपनी स्थानिक विशेषताओं के कारण उद्योगों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। नोएडा के इलेक्ट्रॉनिक्स और सॉफ़्टवेयर उद्योग में वृद्धि, जबकि बरौनी का तेलशोधन, रासायनिक उद्योग और रेलवे जंक्शन के रूप में विकास, इन दोनों क्षेत्रों को भारत के औद्योगिक नक्शे पर महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करता है।

SANTU KUMAR
I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.
Contact me On WhatsApp