61. अनुदान क्या होता है?
उत्तर – अनुदान एक प्रकार की आर्थिक सहायता है, जो राज्य, सरकार या किसी आधिकारिक संस्था द्वारा किसी विशेष उद्देश्य, परियोजना या कार्य के लिए किसी व्यक्ति या संस्था को प्रदान की जाती है। यह सहायता लाभार्थी को बिना कोई पुनर्भुगतान की शर्त के दी जाती है, ताकि वह सामाजिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक या विकासात्मक कार्यों को सुचारु रूप से संपन्न कर सके।
62. भारत में किन्हीं दो व्यावसायिक संवर्गों का उल्लेख करें।
उत्तर – व्यावसायिक संवर्ग के दो प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:
(i) प्राथमिक व्यवसाय (Primary Occupation):
इस वर्ग में वे कार्य सम्मिलित होते हैं जो प्रत्यक्ष रूप से प्रकृति पर निर्भर करते हैं। इनमें आखेट (शिकार), भोजन संग्रह, पशुपालन एवं दुग्ध उत्पादन, मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी प्राप्त करना, कृषि तथा खनन जैसे कार्य शामिल हैं। इन कार्यों को करने वाले श्रमिकों को लाल कॉलर श्रमिक कहा जाता है, क्योंकि ये अधिकतर खुले वातावरण में, घर के बाहर श्रम करते हैं।
(ii) द्वितीयक व्यवसाय (Secondary Occupation):
इस श्रेणी की गतिविधियाँ प्राकृतिक संसाधनों अथवा कच्चे माल को परिवर्तित कर उन्हें उपयोगी एवं मूल्यवर्धित उत्पादों में बदलती हैं। जैसे – कपास से वस्त्र बनाना, गन्ने से चीनी तैयार करना, लौह-अयस्क से इस्पात बनाना तथा लकड़ी से फर्नीचर निर्माण करना। यह वर्ग मुख्यतः विनिर्माण, प्रसंस्करण तथा निर्माण उद्योग (इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट) से संबंधित होता है।
63. स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को वर्गीकृत करें।
उत्तर – स्वामित्व के आधार पर उद्योगों के निम्नलिखित चार वर्ग हैं
(i) सार्वजनिक
(ii) निजी
(iii) सहकारी और
(iv) संयुक्त
64. प्रशासनिक नगर क्या है? उपयुक्त उदाहरण दें।
उत्तर – प्रशासनिक नगर
वे नगर जहाँ किसी देश या राज्य की सरकार के मुख्य प्रशासनिक कार्यालय स्थित होते हैं, उन्हें प्रशासनिक नगर कहा जाता है। इन नगरों में केंद्रीय या प्रांतीय शासन से जुड़े तमाम महत्वपूर्ण कार्य होते हैं। जैसे—भारत की राजधानी नई दिल्ली, ऑस्ट्रेलिया की केनबेरा, और चीन की बीजिंग प्रमुख प्रशासनिक नगर हैं।
इसी तरह राज्यों के स्तर पर भी प्रशासनिक कार्यों के लिए विशेष नगर होते हैं, जैसे—पटना (बिहार), चेन्नई (तमिलनाडु) आदि।
65. सुरक्षा नगर को दो उपयुक्त उदाहरणों के साथ परिभाषित करें।
उत्तर – वे नगर जो किसी देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए बसाए जाते हैं, उन्हें सुरक्षा नगर कहा जाता है। ऐसे नगरों में आमतौर पर फौजी छावनियाँ, नौसेना केंद्र, सैनिक अड्डे या युद्धपोतों के लिए बनाए गए विशेष बंदरगाह (गोदी) शामिल होते हैं।
उदाहरण के लिए:
अम्बाला एक प्रमुख छावनी नगर है।
कोच्चि भारत का एक महत्वपूर्ण नौसेना केंद्र है।
66. किसी नगरीय संकुल की पहचान किस प्रकार की जा सकती है ?
उत्तर – नगरीय संकुल (Urban Agglomeration)
नगरीय संकुल उस सतत (लगातार फैले हुए) नगरीय क्षेत्र को कहते हैं, जो समय के साथ एक बड़े महानगर या मेगासिटी के रूप में विकसित हो जाता है। जनसंख्या के आधार पर:
महानगर (Metropolitan City) की जनसंख्या 10 लाख से 50 लाख के बीच होती है।
वृहत् नगर (Mega City) की जनसंख्या 50 लाख से अधिक होती है।
एक नगरीय संकुल की पहचान निम्नलिखित तीन में से किसी एक रूप में की जा सकती है:
एक मुख्य नगर और उससे जुड़ा नगरीय बहिर्वृद्ध क्षेत्र (Outgrowth)
उदाहरण: शहर के बाहर का वह क्षेत्र जो तेजी से शहरीकरण के कारण विकसित हो रहा है।दो या अधिक सटे हुए नगर (Satellite Towns), जो बहिर्वृद्ध क्षेत्र सहित या उसके बिना हों।
उदाहरण: एक बड़े शहर के आसपास विकसित होने वाले छोटे नगर जो उससे जुड़े होते हैं।एक या अधिक नगरों के साथ उनका बहिर्वृद्ध क्षेत्र, जिससे एक बड़े और सघन नगरीय फैलाव का निर्माण होता है।
उदाहरण: कई छोटे-बड़े शहर मिलकर एक ही शहरी क्षेत्र का रूप ले लेते हैं।
67. अलौह धातुओं के नाम बताएँ और उनके स्थानिक वितरण की चर्चा करें।
उत्तर – अलौह धातुएँ (Non-Ferrous Metals)
अलौह धातुएँ वे धातुएँ होती हैं जिनमें लोहे (आयरन) का अंश नहीं होता। ये धातुएँ औद्योगिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं।
मुख्य अलौह धातुओं में बॉक्साइट, ताँबा, सोना, चाँदी, सीसा, जस्ता आदि शामिल हैं।
इनमें बॉक्साइट और ताँबा भारत में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।
बॉक्साइट
उपयोग: बॉक्साइट का उपयोग मुख्य रूप से एल्युमिनियम बनाने में होता है।
भारत में प्रमुख उत्पादक राज्य:
उड़ीसा (ओडिशा): भारत का सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक राज्य है।
प्रमुख क्षेत्र: कालाहांडी, संबलपुर, बोलांगीर, कोरापुट
झारखंड: लोहरदगा, पलामू
गुजरात: भावनगर, जामनगर
छत्तीसगढ़: अमरकंटक पठार क्षेत्र
मध्यप्रदेश: कटनी, जबलपुर, बालाघाट
महाराष्ट्र: कोलाबा, ठाणे, रत्नागिरी, सतारा, पुणे, कोल्हापुर
ताँबा (Copper)
उपयोग: ताँबा एक अत्यंत उपयोगी धातु है। इसका उपयोग मुख्यतः विद्युत उपकरणों, मोटरों, ट्रांसफार्मर, जेनरेटर आदि बनाने में होता है।
भारत में प्रमुख उत्पादक क्षेत्र:
झारखंड: सिंहभूम जिला
मध्यप्रदेश: बालाघाट जिला
राजस्थान: झुंझुनू और अलवर जिले
68. जीवन पर्यंत प्रवासी और पिछले निवास के अनुसार प्रवासी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – भारत में प्रवास की गणना (Migration in Indian Census)
भारत की जनगणना में प्रवास (Migration) की गणना दो प्रमुख आधारों पर की जाती है:
जन्म का स्थान – यदि किसी व्यक्ति का जन्म स्थान और गणना का स्थान अलग-अलग हैं, तो उसे “जीवनपर्यंत प्रवासी” (Lifetime Migrant) कहा जाता है।
निवास का पिछला स्थान – यदि किसी व्यक्ति का पिछला निवास स्थान और गणना का स्थान अलग हैं, तो उसे “निवास के पिछले स्थान से प्रवासी” माना जाता है।
2001 की जनगणना के अनुसार प्रवास के आंकड़े:
30.7 करोड़ लोग (करीब 30%) ऐसे थे जो अपने जन्म स्थान से अलग स्थान पर रह रहे थे।
31.5 करोड़ लोग (करीब 31%) ऐसे थे जो अपने पिछले निवास स्थान से अलग जगह पर बस गए थे।
69. मानव विकास सूचकांक को विकसित करने वाले चरों के नाम लिखिए।
उत्तर – मानव विकास सूचकांक (HDI) के मुख्य घटक
मानव विकास सूचकांक (HDI) को तैयार करने में जिन प्रमुख तत्वों (घटकों) को ध्यान में रखा जाता है, वे हैं:
राष्ट्रीय आय – देश की आर्थिक स्थिति और प्रति व्यक्ति आय का स्तर।
पूँजी निर्माण दर – उत्पादन और निवेश की गति जो विकास को बढ़ावा देती है।
लोगों का आर्थिक कल्याण – व्यक्तियों की आय, रोज़गार और आर्थिक सुरक्षा से जुड़ा पहलू।
रहन-सहन का स्तर – जीवन की गुणवत्ता जैसे आवास, भोजन, परिवहन आदि।
शिक्षा – साक्षरता दर, औसत स्कूली शिक्षा अवधि और उच्च शिक्षा का स्तर।
स्वास्थ्य – जीवन प्रत्याशा, पोषण, स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता आदि।
सामाजिक सशक्तिकरण – लैंगिक समानता, सामाजिक न्याय और भागीदारी के अवसर।
70. वृद्धि और विकास में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर – वृद्धि और विकास में अंतर
वृद्धि (Growth) और विकास (Development) दोनों ही समय के साथ होने वाले परिवर्तन को दर्शाते हैं, लेकिन इन दोनों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं:
वृद्धि मुख्य रूप से मात्रात्मक (Quantitative) होती है, जैसे—आबादी में बढ़ोतरी, उत्पादन में इज़ाफा आदि।
यह मूल्य निरपेक्ष (Value-neutral) होती है, यानी यह अच्छी भी हो सकती है या बुरी भी।
वृद्धि धनात्मक (Positive) या ऋणात्मक (Negative) दोनों हो सकती है।
विकास एक गुणात्मक (Qualitative) परिवर्तन को दर्शाता है, जैसे—जीवन स्तर में सुधार, शिक्षा की गुणवत्ता में बढ़ोतरी, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार आदि।
यह हमेशा धनात्मक (Positive) माना जाता है।
विकास मूल्य सापेक्ष (Value-based) होता है, यानी यह समाज के मूल्यों और मानकों पर आधारित होता है।
उदाहरण:
अगर किसी क्षेत्र की आबादी बढ़ रही है, तो यह वृद्धि है।
लेकिन यदि उसी क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर में सुधार हो रहा है, तो यह विकास कहलाएगा।
71. उत्तरी भारत के अधिकांश राज्यों में मानव विकास के निम्न स्तरों के दो कारण बताइए।
उत्तर – उत्तरी भारत में मानव विकास के निम्न स्तर के प्रमुख कारण
उत्तरी भारत के अधिकांश राज्यों में मानव विकास सूचकांक (HDI) का स्तर अपेक्षाकृत कम है। इसके दो मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
(क) गरीबी (Poverty)
गरीबी ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी बुनियादी आवश्यकताओं जैसे—पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास को पूरा करने में असमर्थ होता है।
यह मानव विकास के लिए सबसे बड़ी बाधा है।
उड़ीसा और बिहार की 40% से अधिक जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है।
मध्यप्रदेश, सिक्किम, असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, और नागालैंड में यह आंकड़ा 30% से अधिक है।
इन राज्यों में प्रति व्यक्ति आय और उपभोग पर खर्च राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।
👉 परिणाम: गरीबी के कारण स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर प्रभावित होते हैं, जिससे मानव विकास का स्तर निम्न बना रहता है।
(ख) साक्षरता का निम्न स्तर (Low Literacy Rate)
विकास तभी संभव है जब लोग शिक्षित हों, क्योंकि साक्षरता व्यक्ति को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है।
उत्तरी भारत के कई राज्यों में साक्षरता दर बेहद कम है:
बिहार: 47.50%
अरुणाचल प्रदेश: 54.74%
जम्मू और कश्मीर: 54.46%
झारखंड: 54.13%
इन राज्यों में महिलाओं की साक्षरता दर तो और भी कम है, जो लैंगिक असमानता को दर्शाती है।
👉 परिणाम: शिक्षा की कमी के कारण लोगों को बेहतर जीवन और अवसरों से वंचित रहना पड़ता है, जिससे मानव विकास बाधित होता है।
निष्कर्ष:
गरीबी और शिक्षा की कमी उत्तरी भारत के कई राज्यों में मानव विकास के निम्न स्तर के प्रमुख कारण हैं। इन समस्याओं का समाधान किए बिना समग्र और संतुलित विकास संभव नहीं है।
72. भारत में घटते लिंगानुपात के कोई दो कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर – भारत में घटते लिंगानुपात के कारण
भारत में लिंगानुपात में गिरावट के दो प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
(क) सामाजिक दृष्टिकोण (Social Perspective)
भारत में पारंपरिक रूप से पुरुष प्रधान समाज होने के कारण स्त्रियों को अक्सर कमतर माना जाता है। इससे लिंगानुपात में असंतुलन पैदा हुआ है।
मुख्य कारणों में शामिल हैं:
स्त्री-मृत्युदर अधिक होना: भारतीय समाज में स्त्रियों को बहुत कम महत्व दिया जाता है, जिसके कारण उनकी देखभाल और पोषण पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता। इसका परिणाम शैशव काल में अधिक स्त्री-मृत्यु के रूप में सामने आता है।
बाल विवाह: बाल विवाह की प्रथा के कारण गर्भावस्था और प्रसव के दौरान कई महिलाओं की मृत्यु हो जाती है।
स्त्री-शिशु हत्या: अतीत में स्त्री-शिशुओं की हत्या की प्रथा थी, और महामारियों के दौरान भी स्त्रियों की अधिक मृत्यु हुई। इन सभी कारणों के कारण लिंगानुपात में गिरावट आई।
(ख) लिंग निर्धारण की वैज्ञानिक विधि (Scientific Methods of Sex Determination)
आजकल लिंग निर्धारण की वैज्ञानिक विधि उपलब्ध होने के कारण कन्या भ्रूण हत्या की समस्या और भी बढ़ गई है।
मुख्य कारण:
कन्या का जन्म न चाहने की मानसिकता: समाज में दहेज जैसी कुरीतियों और कन्या की हत्या के कारण लोग कन्या का जन्म नहीं चाहते और भ्रूण के स्तर पर ही उसे समाप्त कर देते हैं।
लिंग चयन की तकनीकें: इन तकनीकों के माध्यम से भ्रूण का लिंग पहले ही निर्धारित कर लिया जाता है, जिससे कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा मिलता है।
निष्कर्ष:
सामाजिक दृष्टिकोण और लिंग निर्धारण की वैज्ञानिक विधियों के कारण भारत में लिंगानुपात में गिरावट आई है। इन समस्याओं को हल करने के लिए सामाजिक जागरूकता, कानूनों का कड़ा पालन, और स्त्रियों के प्रति सम्मान बढ़ाने की आवश्यकता है।
73. भारत की जनसंख्या की प्रमुख जनांकिकीय विशेषताएँ कौन-सी हैं ?
उत्तर – भारत की जनसंख्या की प्रमुख जनांकिकीय विशेषताएँ
भारत की जनसंख्या की प्रमुख जनांकिकीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(i) आय-संरचना (Age Composition)
आय-संरचना का मतलब है आयु के आधार पर जनसंख्या का वर्गीकरण।
2001 में भारत में 10 से 19 वर्ष के किशोरों का प्रतिशत बहुत अधिक था, जो 22% था।
इसका मतलब है कि भारत में युवाओं की संख्या अधिक है, जो भविष्य में कार्यबल के रूप में योगदान देंगे।
(ii) लिंग-अनुपात (Sex Ratio)
लिंग-अनुपात से तात्पर्य है स्त्रियों और पुरुषों की संख्या का अनुपात। इसे प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या के रूप में व्यक्त किया जाता है।
2001 में भारत का लिंग अनुपात 933 स्त्रियाँ प्रति 1000 पुरुष था।
इसका मतलब है कि भारत में पुरुषों की संख्या स्त्रियों से अधिक है, लेकिन यह अनुपात कम होने का संकेत भी है, जो लिंग असंतुलन का परिचायक है।
(iii) नगरीय और ग्रामीण जनसंख्या (Urban and Rural Population)
भारत में ग्रामीण और नगरीय जनसंख्या का अनुपात इस प्रकार है:
77.2% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है।
27.8% जनसंख्या नगरीय क्षेत्रों में निवास करती है।
यह दर्शाता है कि भारत की अधिकतर जनसंख्या अभी भी ग्रामीण इलाकों में बसी हुई है, हालांकि शहरीकरण की गति तेजी से बढ़ रही है।
(iv) कार्यरत और आश्रित जनसंख्या (Working and Dependant Population)
कार्यरत जनसंख्या वह होती है जो लाभकारी कार्यों में संलग्न है, जबकि आश्रित जनसंख्या वह होती है जो कार्य नहीं करती और अन्य लोगों पर निर्भर रहती है।
भारत में लगभग 39% जनसंख्या कार्यरत है।
शेष 61% जनसंख्या आश्रित है, जो किसी न किसी रूप में कार्यरत जनसंख्या पर निर्भर है।
यह अनुपात आर्थिक विकास, सामाजिक सुरक्षा और रोजगार के अवसरों पर प्रभाव डालता है।
निष्कर्ष:
भारत की जनसंख्या में आयु, लिंग अनुपात, शहरीकरण और कार्यरत जनसंख्या जैसी विशेषताएँ देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को प्रभावित करती हैं। इन विशेषताओं को समझकर ही योजनाओं और नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है।
74. भारत के कुछ राज्यों में अन्य राज्यों की अपेक्षा श्रम सहभागिता ऊँची क्यों है ?
उत्तर – भारत के विभिन्न राज्यों में श्रम सहभागिता दर में विभिन्नता पायी जाती है। जिन राज्यों में खेती पर आश्रित श्रमिकों की संख्या अधिक है, उनमें श्रम सहभागिता अधिक है, क्योंकि आर्थिक विकास के निम्न स्तरों वाले क्षेत्रों में निर्वाह अथवा लगभग निर्वाह की आर्थिक क्रियाओं के निष्पादन के लिए अनेक कामगारों की जरूरत पड़ती है। श्रमिकों के अपेक्षाकृत अधिक प्रतिशत वाले राज्य मिजोरम (53%), हिमाचल प्रदेश (49%), सिक्किम (49%), छत्तीसगढ़ (47%), आंध्रप्रदेश (46%), कर्नाटक (45%) इत्यादि हैं। दूसरी ओर, दिल्ली (33%), उत्तरप्रदेश (33%), बिहार (34%), लक्षद्वीप (25%) और केरल (32%) में श्रम सहभागिता दर अति निम्न है।
75. पुरुष/स्त्री वरणात्मक प्रवास के मुख्य कारण की पहचान कीजिए।
उत्तर – पुरुषों और स्त्रियों के लिए प्रवास के कारण
भारत में पुरुषों और स्त्रियों के प्रवास के कारण आम तौर पर भिन्न होते हैं। इनके प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:
(i) पुरुषों के प्रवास के कारण
काम और रोजगार: पुरुषों के प्रवास का मुख्य कारण रोजगार और कार्य होता है, जो 38% पुरुषों के प्रवास का कारण बनता है।
पुरुष मुख्यतः बेहतर नौकरी के अवसरों, व्यापार, या अन्य आर्थिक कारणों से एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होते हैं।
(ii) स्त्रियों के प्रवास के कारण
विवाह: स्त्रियों के प्रवास का प्रमुख कारण विवाह होता है, और यह कारण 65% स्त्रियों के लिए प्रवास का कारण बनता है।
खासकर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में विवाह के कारण स्त्रियों का प्रवास अत्यधिक देखा जाता है।
काम और रोजगार की तुलना में, केवल 3% स्त्रियाँ ही रोजगार के लिए प्रवास करती हैं।
(iii) मेघालय का अपवाद
मेघालय राज्य में एक अपवाद देखा जाता है, जहाँ पुरुषों का प्रवास विवाह के कारण होता है, जो अन्य राज्यों से अलग है।
निष्कर्ष:
भारत में पुरुषों और स्त्रियों के प्रवास के कारण में स्पष्ट अंतर है। पुरुषों के लिए मुख्य कारण रोजगार है, जबकि स्त्रियों के लिए यह विवाह है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में। मेघालय एक विशेष उदाहरण है, जहाँ पुरुष भी विवाह के कारण प्रवास करते हैं।
76. उद्गम और गंतव्य स्थान की आयु एवं लिंग संरचना पर ग्रामीण-नगरीय प्रवास का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर – ग्रामीण-नगरीय प्रवास और इसके प्रभाव
ग्रामीण-नगरीय प्रवास से नगरों में जनसंख्या वृद्धि होती है और जनसंख्या का पुनर्वितरण होता है। इसके परिणामस्वरूप दोनों स्थानों पर (गाँव और नगर) आयु संरचना और लिंग संरचना में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है। इसके प्रभाव इस प्रकार होते हैं:
(i) लिंग अनुपात में बदलाव
पुरुष वरणात्मक प्रवास के कारण गाँवों में स्त्रियों का अनुपात बढ़ जाता है क्योंकि पुरुष रोजगार के लिए नगरों में प्रवास करते हैं।
इसके विपरीत, नगरों में स्त्रियों का अनुपात कम हो जाता है, क्योंकि पुरुषों की संख्या वहाँ अधिक होती है।
(ii) कार्यशील आयु वर्ग का अनुपात
रोजगार के लिए पुरुष प्रवास के कारण नगरों में कार्यशील आयु वर्ग (Working Age Group) का अनुपात बढ़ जाता है, क्योंकि अधिक पुरुष शहरों में काम करने के लिए आते हैं।
वहीं, गाँवों में कार्यशील आयु वर्ग का अनुपात कम हो जाता है, क्योंकि पुरुषों का एक बड़ा हिस्सा रोजगार के लिए नगरों में प्रवास कर जाता है।
निष्कर्ष:
ग्रामीण-नगरीय प्रवास से आयु संरचना और लिंग संरचना में असंतुलन उत्पन्न होता है, जिससे गाँवों और नगरों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है। इस असंतुलन का समाधान करने के लिए संतुलित और समावेशी विकास योजनाओं की आवश्यकता है।
77. परमाणु ऊर्जा कैसे पैदा की जाती है ?
उत्तर – परमाणु ऊर्जा (नाभिकीय ऊर्जा) और इसके स्रोत
परमाणु ऊर्जा (जिसे नाभिकीय ऊर्जा भी कहा जाता है) परमाणु के विखंडन (fission) द्वारा उत्पन्न की जाती है। इसमें परमाणु के नाभिक में परिवर्तन करके ऊर्जा प्राप्त की जाती है।
परमाणु ऊर्जा के लिए प्रयुक्त खनिज
परमाणु ऊर्जा के उत्पादन के लिए कुछ प्रमुख खनिजों का उपयोग किया जाता है, जिनमें शामिल हैं:
यूरेनियम
थोरियम
वैनेडियम
एंटीमनी
ग्रेफाइट
ये खनिज भारत के विभिन्न हिस्सों में पाये जाते हैं और इनका उपयोग परमाणु ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है।
भारत में परमाणु ऊर्जा केंद्र
भारत में कई प्रमुख परमाणु ऊर्जा केंद्र स्थापित किए गए हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
तारापुर (महाराष्ट्र)
रावत भाटा (राजस्थान)
कलपक्कम (तमिलनाडु)
नरोरा (उत्तर प्रदेश)
कैगा (कर्नाटक)
ककरापाड़ा (गुजरात)
निष्कर्ष:
परमाणु ऊर्जा, जो परमाणु के विखंडन से उत्पन्न होती है, एक प्रमुख ऊर्जा स्रोत बन चुकी है। भारत में इसके लिए विभिन्न खनिजों का उपयोग किया जाता है, और देश के विभिन्न हिस्सों में परमाणु ऊर्जा केंद्र स्थापित हैं, जो ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
78. भारत में पवन ऊर्जा की संभावनाओं को लिखें।
उत्तर – भारत में पवन ऊर्जा की संभावनाएँ और विकास
भारत में पवन ऊर्जा के विकास की अपार संभावनाएँ हैं। देश में मौजूद स्थायी वायु प्रणालियाँ, मानसूनी हवाएँ, और स्थानीय पवनें (जैसे स्थलीय और जलीय पवनें), सभी को ऊर्जा के स्रोत के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
पवन ऊर्जा के स्रोत
मानसून पवनें और स्थायी हवाएँ वर्ष के कई महीनों तक लगातार चलती हैं, जो पवन ऊर्जा उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं।
तटीय क्षेत्रों में हवा की गति अधिक होती है, इसलिए ये क्षेत्र पवन ऊर्जा के लिए आदर्श माने जाते हैं।
भारत का पवन ऊर्जा कार्यक्रम
भारत ने एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है, जिसके तहत:
12 उपयुक्त सागरतटीय क्षेत्रों में
कुल 45 मेगावाट की क्षमता के लिए
लगभग 250 वायुचालित टरबाइन लगाए जाने की योजना है।
इस कार्यक्रम से करीब 3000 मेगावाट विद्युत उत्पादन करने की संभावना है।
पवन ऊर्जा का महत्व
यह स्वच्छ, नवीकरणीय और पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा स्रोत है।
इससे भारत को खनिज तेलों पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
यह ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
निष्कर्ष:
भारत के भौगोलिक और जलवायवीय परिस्थितियाँ पवन ऊर्जा के लिए अत्यंत अनुकूल हैं। यदि इस क्षेत्र में योजनाबद्ध रूप से निवेश और तकनीकी विकास होता है, तो यह देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को स्वच्छ और सतत रूप से पूरा करने में बड़ा योगदान दे सकता है।
79. भारत में सौर ऊर्जा की स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर – भारत में सौर ऊर्जा: एक प्रभावी अपरंपरागत ऊर्जा स्रोत
सौर ऊर्जा एक प्रमुख अपरंपरागत (नवीकरणीय) ऊर्जा स्रोत है, जो पारंपरिक स्रोतों जैसे कोयला, पेट्रोलियम और नाभिकीय ऊर्जा की तुलना में अधिक लाभप्रद, सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल है।
भारत में सौर ऊर्जा की संभावनाएँ
भारत एक उष्ण कटिबंधीय देश है, जहाँ साल भर तीव्र सूर्य प्रकाश उपलब्ध रहता है।
यहाँ प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में लगभग 20 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता है।
इससे भारत में सौर ऊर्जा के विकास की असीम संभावनाएँ हैं।
प्रमुख सौर ऊर्जा स्थल
गुजरात: भुज के निकट भारत का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया गया है।
राजस्थान: यहाँ के शुष्क और धूप वाले वातावरण के कारण सौर ऊर्जा के लिए अत्यंत उपयुक्त क्षेत्र माना जाता है।
लद्दाख और पूर्वोत्तर राज्य: कठिन भौगोलिक स्थितियों और सीमित ऊर्जा संसाधनों के बावजूद, ये क्षेत्र सौर ऊर्जा के विकास में आगे बढ़ रहे हैं।
घरेलू उपयोग में सौर ऊर्जा
भारत में घरेलू स्तर पर सौर ऊर्जा का प्रयोग बढ़ रहा है, जैसे:
सोलर कुकर,
सोलर हीटर,
सोलर लाइट्स,
और सोलर पंप इत्यादि।
निष्कर्ष
भारत में सौर ऊर्जा का भविष्य प्रकाशमय है। पर्यावरण संरक्षण, ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए इसका व्यापक उपयोग आवश्यक है। यदि इसका दोहन योजनाबद्ध रूप से किया जाए, तो यह देश की ऊर्जा आत्मनिर्भरता में बड़ा योगदान दे सकता है।
80. भारत में पवन ऊर्जा के विकास का एक संक्षिप्त विवरण करें।
उत्तर – पवन ऊर्जा: भारत में एक स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत
पवन ऊर्जा वह ऊर्जा है जो प्रवाहित हवा (पवन) से उत्पन्न की जाती है। यह एक प्रदूषण रहित, नवीकरणीय और सतत (असमाप्य) ऊर्जा स्रोत है, जो पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना ऊर्जा प्रदान करता है।
भारत में पवन ऊर्जा की स्थिति
भारत में लगभग 23,000 मेगावाट की पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता मौजूद है।
देशभर में लगभग 90 स्थानों की पहचान पवन ऊर्जा केंद्रों के रूप में की गई है।
पवन ऊर्जा के प्रमुख क्षेत्र
पवन ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना निम्नलिखित राज्यों और क्षेत्रों में की गई है:
गुजरात
तमिलनाडु
आंध्र प्रदेश
कर्नाटक
केरल
मध्य प्रदेश
महाराष्ट्र
लक्षद्वीप
विशेष उल्लेख
गुजरात के कच्छ जिले में स्थित लाम्बा पवन ऊर्जा संयंत्र एशिया का सबसे बड़ा पवन ऊर्जा संयंत्र है।
निष्कर्ष
पवन ऊर्जा भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा, स्वच्छ पर्यावरण और आर्थिक विकास का एक सशक्त माध्यम है। यदि इसकी क्षमताओं का पूरी तरह दोहन किया जाए, तो यह देश को हरित ऊर्जा क्रांति की ओर ले जा सकता है।

SANTU KUMAR
I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.
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