21. स्वेज नहर के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर – स्वेज नहर मिस्र में बनी एक महत्वपूर्ण जलमार्ग है, जो भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है। यह नहर उत्तर में पोर्ट सईद और दक्षिण में पोर्ट स्वेज के बीच स्थित है। इसका निर्माण सन् 1869 में किया गया था ताकि यूरोप से एशिया और हिंद महासागर तक पहुंचने का एक छोटा और सीधा रास्ता मिल सके। स्वेज नहर लगभग 160 किलोमीटर लंबी और 11 से 15 मीटर गहरी है। इस नहर से हर दिन करीब 100 जहाज गुजरते हैं, और इसे पार करने में करीब 10 से 12 घंटे का समय लगता है। इस नहर के बनने से पहले यूरोप और एशिया के बीच व्यापारिक जहाजों को अफ्रीका के चारों ओर घूमकर जाना पड़ता था, जिससे काफी समय और खर्च लगता था। लेकिन स्वेज नहर बनने के बाद यह रास्ता बहुत छोटा हो गया है, जिससे समय और पैसे दोनों की बचत होती है। यह नहर आज भी दुनिया के सबसे व्यस्त और महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों में से एक है।
22. विश्व के वे कौन-कौन से प्रमुख प्रदेश हैं, जहाँ वायु मार्ग का सघन तंत्र पाया जाता है ?
उत्तर – वायु परिवहन सबसे तेज़ लेकिन सबसे महँगा यातायात का साधन है। इसका उपयोग आमतौर पर महँगी वस्तुओं और यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह जल्दी पहुँचाने के लिए किया जाता है। इसी कारण, दुनिया के सबसे विकसित क्षेत्र जैसे पश्चिमी यूरोप और पूर्वी अमेरिका में हवाई मार्गों का एक घना जाल फैला हुआ है। इसके अलावा, दक्षिण-पूर्वी एशिया में भी जनसंख्या और प्राकृतिक संसाधनों की अधिकता के कारण वायु परिवहन का अच्छा नेटवर्क देखने को मिलता है।
23. उपग्रह संचार क्या हैं? उपग्रह संचार के लाभ बताइये।
उत्तर – जब संचार उपग्रहों के माध्यम से किया जाता है, तो उसे उपग्रह संचार कहते हैं। यह एक आधुनिक और तेज़ संचार प्रणाली है। दुनिया में अंतरिक्ष युग की शुरुआत 4 अक्टूबर, 1957 को तब हुई, जब रूस ने पहला कृत्रिम उपग्रह स्पूतनिक छोड़ा। इसके बाद अमेरिका ने भी कई उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे। जब से अंतरिक्ष में उपग्रह स्थापित किए गए हैं, तब से दुनिया के किसी भी कोने से तुरंत संपर्क करना आसान हो गया है। उपग्रह संचार ने संचार तकनीक में एक नया युग शुरू किया है। भारत ने भी इस दिशा में बड़ा योगदान दिया है। भारत ने आर्यभट्ट, भास्कर-I और II, रोहिणी, एप्पल, और इंसेट-I A, B, C जैसे उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे हैं। इन उपग्रहों की मदद से आज गांव-गांव में टेलीफोन और मोबाइल सेवाएं उपलब्ध हो गई हैं। इन उपग्रहों की मदद से लंबी दूरी की बातचीत, दूरदर्शन, और रेडियो जैसी सेवाएं बहुत असरदार हो गई हैं। आज हम घर बैठे पूरी दुनिया की खबरें देख सकते हैं, मौसम की जानकारी पा सकते हैं, और कई तरह के शैक्षिक और मनोरंजक कार्यक्रमों का आनंद ले सकते हैं।
उपग्रह संचार के मुख्य लाभ:
टेलीफोन और मोबाइल सेवाएं
दूरदर्शन और रेडियो सेवाएं
इंटरनेट और तेज़ संचार प्रणाली
24. अंकीय विभाजन क्या है?
उत्तर – अंकीय विभाजन का मतलब है – सूचना और संचार तकनीक (जैसे इंटरनेट, मोबाइल, कंप्यूटर आदि) का लोगों के बीच असमान बंटवारा। आज की दुनिया में तरक्की के लिए इन तकनीकों का बहुत बड़ा रोल है, लेकिन हर किसी को इनका बराबर फायदा नहीं मिल पा रहा। दुनिया के कुछ देश ऐसे हैं जिनके पास यह तकनीक आसानी से उपलब्ध है, जबकि कुछ देश अभी भी इससे वंचित हैं। ऐसा आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कारणों से होता है। अंकीय विभाजन सिर्फ देशों के बीच ही नहीं, बल्कि एक देश के अंदर भी होता है। जैसे – भारत या रूस में शहरों के लोग इंटरनेट और मोबाइल जैसी सुविधाओं का ज़्यादा उपयोग कर पाते हैं, जबकि गाँवों के लोग इनसे उतना जुड़ नहीं पाए हैं। अंकीय विभाजन का मतलब यह हुआ कि कुछ लोग आधुनिक तकनीक से जुड़ पा रहे हैं और तरक्की कर रहे हैं, जबकि कुछ लोग पीछे छूट रहे हैं। यही कारण है कि सभी के लिए तकनीक को सुलभ बनाना बहुत ज़रूरी है।
25. फिंच और ट्रिवार्था ने मानव भूगोल की विषयवस्तु को किन दो भागों में बाँटा है ? प्रत्येक भाग के दो लक्षण बताइए।
उत्तर – अमेरिकी भूगोलवेत्ताओं फिंच और ट्रिवार्था ने मानव भूगोल को दो मुख्य भागों में बाँटा है:
1. भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण
यह वह हिस्सा है जो प्रकृति ने बनाया है। इसके दो मुख्य लक्षण हैं:
(i) भौगोलिक रूपरेखा – जैसे पहाड़, मैदान, नदियाँ, जलवायु आदि।
(ii) प्राकृतिक संसाधन – जैसे मिट्टी, खनिज, जल, जंगल और जंगली जानवर।
2. सांस्कृतिक या मानव-निर्मित पर्यावरण
यह वह हिस्सा है जो इंसानों ने अपने जीवन और जरूरतों के अनुसार बनाया है। इसके दो मुख्य लक्षण हैं:
(i) जनसंख्या और उनकी गतिविधियाँ – जैसे लोग कहाँ रहते हैं, कैसी बस्तियाँ बनाते हैं, और कौन-से काम करते हैं।
(ii) मानव विकास से जुड़ी सुविधाएँ – जैसे खेती, उद्योग, यातायात, और संचार के साधन।
निष्कर्ष:
मानव भूगोल में हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि प्रकृति और इंसान आपस में किस तरह से जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे को कैसे प्रभावित करते हैं।
26. प्रवास के विकर्षण और आकर्षण कारक क्या है ?
उत्तर – जब लोग अपने जन्म स्थान या पुराने घर को छोड़कर किसी नए स्थान पर जाकर बसते हैं, तो इसे मानव प्रवास कहा जाता है।
प्रवास के कई कारण हो सकते हैं, जिन्हें दो भागों में बाँटा जाता है:
1. विकर्षण कारक (Push Factors)
ये वे कारण होते हैं जो लोगों को अपना स्थान छोड़ने पर मजबूर कर देते हैं।
जैसे:
गाँवों में गरीबी,
खेती की ज़मीन पर बहुत ज़्यादा जनसंख्या दबाव,
और मौलिक सुविधाओं (जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, सड़क) की कमी।
2. आकर्षण कारक (Pull Factors)
ये वे कारण होते हैं जो लोगों को किसी नए स्थान की ओर खींचते हैं।
जैसे:
शहरों में रोजगार के बेहतर मौके,
बेहतर जीवनशैली,
अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ।
निष्कर्ष:
मानव प्रवास का मुख्य कारण है – लोग वहाँ जाना चाहते हैं जहाँ जीवन की सुविधाएँ बेहतर हों, और वहाँ से निकलना चाहते हैं जहाँ सुविधाओं की कमी हो।
27. चार पंचम क्रियाकलापों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – पंचम क्रियाकलाप उन सेवाओं को कहा जाता है जो सबसे ऊँचे स्तर पर निर्णय लेने और नीतियाँ बनाने से जुड़ी होती हैं। ये काम बहुत ही सोच-समझकर, विशेषज्ञता और ज्ञान के आधार पर किए जाते हैं।
इनकी खास बातें:
ये काम नए विचारों को बनाना,
पुराने विचारों को सुधारना या समझाना,
जानकारी और आँकड़ों की व्याख्या करना,
और नई तकनीकों का मूल्यांकन करना जैसे कार्यों पर केंद्रित होते हैं।
इन क्रियाकलापों में काम करने वाले लोगों को आमतौर पर ‘स्वर्ण कॉलर’ (Gold Collar) कहा जाता है, क्योंकि ये लोग विशेषज्ञ, अनुभवी, और उच्च वेतन पाने वाले होते हैं।
उदाहरण:
वरिष्ठ अधिकारी,
सरकारी उच्च अधिकारी,
अनुसंधान वैज्ञानिक,
वित्त और कानून के सलाहकार आदि।
अन्य बातें:
ये सेवाएँ तृतीयक (सेवाक्षेत्र) का ही एक उप-विभाग होती हैं,
इनका उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में बहुत बड़ा योगदान होता है,
भले ही इनकी संख्या कम हो, लेकिन इनका प्रभाव और महत्व बहुत ज्यादा होता है।
निष्कर्ष:
पंचम क्रियाकलाप वे सेवाएँ हैं जो सोच, योजना और नेतृत्व से जुड़ी होती हैं और जो किसी भी विकसित देश की आर्थिक रीढ़ मानी जाती हैं।
28. कषि घनत्व क्या है?
उत्तर – कृषि घनत्व का मतलब है – प्रति वर्ग किलोमीटर (या वर्ग मील) कृषि भूमि पर खेती करने वाले लोगों की संख्या।
यह बताता है कि किसी क्षेत्र की कृषि भूमि पर कितने लोग खेती कर रहे हैं।
कृषि घनत्व निकालने का सूत्र:
📌 कृषि घनत्व = कृषि में लगे हुए लोग / कुल कृषि क्षेत्रफल
उदाहरण:
अगर किसी क्षेत्र में 1,000 लोग खेती करते हैं और वहाँ 100 वर्ग किलोमीटर कृषि भूमि है, तो
📌 कृषि घनत्व = 1000 / 100 = 10 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर
इसका महत्व:
यह पता चलता है कि किसी देश या क्षेत्र में कृषि भूमि पर जनसंख्या का कितना दबाव है।
ज्यादा कृषि घनत्व का मतलब है – अधिक लोग कम ज़मीन पर खेती कर रहे हैं, जिससे खेती पर बोझ बढ़ सकता है।
निष्कर्ष:
कृषि घनत्व एक महत्त्वपूर्ण सूचक है, जो किसी क्षेत्र की कृषि व्यवस्था और जनसंख्या दबाव को समझने में मदद करता है।
29. विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि की किन्हीं चार फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर – विस्तृत वाणिज्यिक अनाज कृषि (Extensive Commercial Grain Farming) मुख्यतः उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ भूमि बहुत अधिक होती है, लेकिन जनसंख्या घनत्व कम होता है। इसमें बड़े-बड़े खेतों में अनाज की खेती मशीनों की सहायता से की जाती है। यह खेती मुख्य रूप से गेहूँ, मक्का, जौ, जई आदि जैसे अनाजों की होती है।
लेकिन आपने जो फसलें लिखी हैं —
(i) कपास
(ii) चाय
(iii) जूट
(iv) कॉफी
ये सभी नकदी फसलें (Cash Crops) हैं, जो व्यावसायिक बागवानी या वृक्षरोपण कृषि (Plantation Agriculture) के अंतर्गत आती हैं, न कि विस्तृत वाणिज्यिक अनाज कृषि के अंतर्गत।
सही जानकारी:
विस्तृत वाणिज्यिक अनाज कृषि की प्रमुख फसलें हैं:
गेहूँ (Wheat)
मक्का (Maize)
जौ (Barley)
जई (Oats)
नकदी फसलें, जैसे कपास, चाय, जूट, और कॉफी — ये आम तौर पर वाणिज्यिक बागवानी या बाग़ानी कृषि में शामिल होती हैं।
अगर आप चाहें तो मैं इन दोनों प्रकार की कृषि का अंतर भी सरल भाषा में समझा सकता हूँ।
30. विस्तृत पैमाने पर डेयरी कृषि का विकास यातायात के साधनों एवं प्रशीतकों के विकास के बाद ही क्यों संभव हो सका है ?
इन उत्पादों को बाजार तक जल्दी पहुँचाने के लिए तेज़ यातायात और प्रशीतन (cooling) की व्यवस्था बहुत ज़रूरी होती है, ताकि दूध और अन्य उत्पाद ताजे रहें और उनका स्वाद खराब न हो।
डेयरी उद्योग का विकास:
शीघ्र यातायात के साधन जैसे ट्रक और रेल गाड़ियाँ, जो जल्दी दूध को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचा सकें।
प्रशीतक की व्यवस्था, जैसे ठंडे गोदाम और फ्रिज़, ताकि दूध और डेयरी उत्पाद लंबे समय तक ताजे बने रहें।
यह सुनिश्चित करने के बाद ही डेयरी उद्योग का विस्तृत पैमाने पर विकास हो सकता है, क्योंकि बिना इन सुविधाओं के, दूध और डेयरी उत्पाद जल्दी ख़राब हो जाते हैं और व्यवसाय में नुकसान हो सकता है।
निष्कर्ष:
डेयरी कृषि का बड़े पैमाने पर विकास आधुनिक यातायात और प्रशीतक सुविधाओं के उपलब्ध होने के बाद ही संभव हो पाया है।
31. स्थानांतरी कृषि का भविष्य अच्छा नहीं है। विवेचना कीजिए।
उत्तर – स्थानांतरी कृषि एक आदिम या पारंपरिक कृषि प्रणाली है, जो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है, जैसे अफ्रीका, दक्षिणी और मध्य अमेरिका, और दक्षिणी-पश्चिम एशिया। इसमें लोग वनों को काटते और जलाते हैं, और फिर उस स्थान पर कुछ समय तक खेती करते हैं।
स्थानांतरी कृषि की विशेषताएँ:
वनों की कटाई और जलाना – कृषि के लिए पहले जंगलों को काटा जाता है और फिर उन्हें जलाया जाता है।
भूमि परिवर्तन – कुछ समय बाद खेत की उपज कम होने पर, किसान उस खेत को छोड़कर दूसरी जगह पर खेती करने चले जाते हैं।
कम उपज – चूँकि भूमि का उपयोग अधिक समय तक नहीं किया जाता, इसलिए उपज भी कम होती है और भूमि की गुणवत्ता घटती जाती है।
विकास और परिवर्तन:
समय के साथ सभ्यता के विकास के साथ स्थायी कृषि का चलन बढ़ा है। इसमें खेतों की निरंतर देखभाल की जाती है और खाद्यान्न तथा अन्य फसलों का उत्पादन स्थायी तरीके से किया जाता है।
स्थायी कृषि में किसानों को भूमि का अधिक समय तक उपयोग करने की सुविधा मिलती है, जिससे उपज अधिक होती है और भूमि की गुणवत्ता भी बनी रहती है।
निष्कर्ष:
स्थानांतरी कृषि का भविष्य अब बहुत अच्छा नहीं है, क्योंकि यह लंबे समय तक चलने वाली और स्थायी कृषि पद्धतियों से बदल रही है, जो भूमि की उर्वरता बनाए रखती हैं और अधिक उपज देती हैं।
32. चलवासी पशुचारण और व्यापारिक पशुपालन में अंतर कीजिए।
इस पद्धति को अपनाने वाले लोग आमतौर पर घुमक्कड़ जातियों जैसे खैप, खिरगिज, गुज्जर आदि होते हैं, जो अपने पशुओं के लिए ताजे चारागाह और पानी की तलाश में स्थानांतरित होते रहते हैं।
चलवासी पशुचारण के मुख्य बिंदु:
पशुचारक अपने पालतू पशुओं के साथ चारागाह की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं।
यह एक अस्थायी और घूमने-फिरने वाली पद्धति है, जो अनपजाऊ क्षेत्रों में की जाती है।
इसमें मुख्य रूप से गाय, भेड़, बकरियाँ, घोड़े आदि को पाला जाता है।
व्यापारिक पशुपालन (Commercial Animal Husbandry):
व्यापारिक पशुपालन एक व्यवस्थित और पूंजी प्रधान क्रियाकलाप है, जिसमें स्थायी फार्म में बड़ी संख्या में पशुओं को व्यापारिक पैमाने पर पाला जाता है। यह पद्धति विकसित देशों जैसे न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, और कुछ अन्य देशों में अधिक प्रचलित है। यहाँ पशुओं को उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल, उत्तम खानपान और चिकित्सा सुविधा प्रदान की जाती है।
मुख्य अंतर:
चलवासी पशुचारण अस्थायी है, जबकि व्यापारिक पशुपालन स्थायी होता है।
चलवासी पशुचारण मुख्य रूप से घुमक्कड़ जातियों द्वारा किया जाता है, जबकि व्यापारिक पशुपालन एक व्यवसायिक क्रियाकलाप है।
व्यापारिक पशुपालन में बड़ी पूंजी और विकसित तकनीक का उपयोग होता है, जबकि चलवासी पशुचारण में प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता होती है।
निष्कर्ष:
चलवासी पशुचारण एक पारंपरिक जीवनशैली है, जो घुमक्कड़ जातियों द्वारा अपनाई जाती है, जबकि व्यापारिक पशुपालन एक आधुनिक और व्यवसायिक रूप है, जो विकसित देशों में अधिक प्रचलित है।
33. सामूहिक कृषि का वर्णन करें।
उत्तर – सामूहिक कृषि एक ऐसी कृषि पद्धति है, जिसमें उत्पादन के साधनों जैसे भूमि, पशुधन, और श्रम का स्वामित्व समग्र समाज का होता है। इसमें सभी किसान अपने संसाधनों को एक साथ मिलाकर खेती करते हैं और एक सामूहिक प्रयास के रूप में कृषि कार्य करते हैं।
सामूहिक कृषि की विशेषताएँ:
संयुक्त संसाधन: सभी कृषक अपनी भूमि, पशुधन, और श्रम को साझा करते हैं।
स्वामित्व: इन संसाधनों का स्वामित्व व्यक्तिगत रूप से नहीं, बल्कि समाज के पास होता है।
सामूहिक कार्य: सभी किसान मिलकर खेती करते हैं, और उत्पादन का लाभ सभी को बराबरी से मिलता है।
सरकार द्वारा नियंत्रण: सरकार उत्पादन का वार्षिक लक्ष्य तय करती है और उस उत्पादन को एक निर्धारित मूल्य पर खरीदती है।
दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति: प्रत्येक किसान अपने परिवार की ज़रूरतों के लिए भूमि का एक छोटा सा हिस्सा अपने नियंत्रण में रखता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
यह कृषि पद्धति पहले सोवियत संघ (पूर्व सोवियत संघ) में “कोलखोज़” के नाम से शुरू हुई थी। कोलखोज़ एक सामूहिक कृषि संगठन था, जहाँ किसान अपनी व्यक्तिगत भूमि के बजाय सामूहिक रूप से काम करते थे।
निष्कर्ष:
सामूहिक कृषि का उद्देश्य था समाज के सभी लोगों के बीच कृषि संसाधनों का समान वितरण और सामूहिक श्रम के माध्यम से उत्पादन बढ़ाना। यह पद्धति पूर्व सोवियत संघ में शुरू हुई और इसके बाद कुछ अन्य देशों में भी अपनाई गई।
34. बाजारी सब्जी कृषि नगरीय क्षेत्रों के समीप ही क्यों की जाती है ?
प्रमुख विशेषताएँ:
गहन श्रम और पूँजी – बाजारी सब्जी कृषि में बहुत मेहनत और अधिक पूँजी लगती है, क्योंकि इसे नियमित देखभाल और निरंतर प्रयासों की आवश्यकता होती है।
जल्दी बेचना – इन सब्जियों और फलों को जल्दी बाजार तक पहुँचाना जरूरी होता है, ताकि वे खराब न हो जाएं।
नगरीय केन्द्रों में माँग – इनकी माँग मुख्यतः नगरों और शहरी क्षेत्रों में अधिक होती है, क्योंकि यहाँ के उपभोक्ताओं की आय अधिक होती है और वे ताजे फल, फूल और सब्जियाँ खरीदते हैं।
निकटता – शहरी क्षेत्रों में इन्हें जल्दी पहुँचाने के लिए इनकी खेती नगरीय क्षेत्रों के पास की जाती है, ताकि उत्पादन के बाद इनका ताजापन बनाए रखा जा सके और जल्द से जल्द बाज़ार में पहुँचाया जा सके।
उदाहरण:
ताजे फल, फूल, और सब्जियाँ जैसे टोमेटो, बैंगन, आलू, पालक, गुलाब आदि की खेती बाजारी सब्जी कृषि के अंतर्गत आती है।
निष्कर्ष:
बाजारी सब्जी कृषि व्यावसायिक कृषि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें ज्यादा पूँजी और मेहनत की आवश्यकता होती है, और इसका उद्देश्य नगरीय उपभोक्ताओं तक ताजे उत्पादों को शीघ्र पहुँचाना है।
35. बारानी या वर्षा आधारित कृषि से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – बारानी कृषि वह कृषि पद्धति है, जिसमें सिंचाई का सहारा नहीं लिया जाता और केवल वर्षा के पानी पर निर्भर रहकर खेती की जाती है। इसे वर्षा आधारित कृषि भी कहा जाता है, क्योंकि इस कृषि पद्धति में वर्षा ही मुख्य जल स्रोत होती है।
बारानी कृषि के प्रकार:
शुष्क भूमि कृषि (Dry Land Farming):
यह 75 सेमी से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में होती है, जैसे शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र।
यहाँ रागी, बाजरा, मूंग, चना, ज्वार जैसी फसलें उगाई जाती हैं, जो शुष्कता को सहन कर सकती हैं।
इन क्षेत्रों में आर्द्रता संरक्षण और वर्षा जल का उपयोग करने के लिए कई विधियाँ अपनाई जाती हैं, जैसे वर्षा जल संचयन, जल संरक्षण तकनीकें आदि।
आर्द्र भूमि कृषि (Moist Land Farming):
यह कृषि आर्द्र (अधिक वर्षा वाले) क्षेत्रों में की जाती है।
इसमें मुख्य रूप से चावल, जूट, गन्ना जैसी फसलें उगाई जाती हैं, जो वर्षा पर पूरी तरह निर्भर होती हैं।
प्रमुख विशेषताएँ:
वर्षा पर निर्भरता – बारानी कृषि में खेती के लिए सिंचाई का कोई साधन नहीं होता, सिर्फ वर्षा ही जल स्रोत है।
वर्षा जल का उपयोग – इस प्रकार की कृषि में वर्षा जल का संग्रह और संचयन महत्वपूर्ण होता है।
फसलें – शुष्क क्षेत्रों में सूखा सहन करने वाली फसलें और आर्द्र क्षेत्रों में वर्षा प्रेमी फसलें उगाई जाती हैं।
निष्कर्ष:
बारानी कृषि मुख्य रूप से वर्षा पर आधारित होती है, और इसमें सिंचाई का कोई उपाय नहीं होता। यह दो प्रकार की होती है – शुष्क भूमि कृषि और आर्द्र भूमि कृषि, जो वर्षा के आधार पर अलग-अलग फसलें उगाने की पद्धति है।
36. कोको के बारे में आप क्या जानते हैं?
कोको की खेती के प्रमुख स्थान:
पश्चिमी अफ्रीका में कोको का प्रमुख उत्पादन होता है, विशेषकर घाना में।
कोको के पौधे को फ्रांसवासियों ने यहाँ पहले लगाया था, और अब यह क्षेत्र इसका प्रमुख उत्पादक बन गया है।
कोको की खेती की विशेषताएँ:
उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में कोको की खेती होती है, जहाँ तापमान और आर्द्रता दोनों अधिक होते हैं।
इसे रोपण कृषि के अंतर्गत उगाया जाता है, यानी यह एक वाणिज्यिक रूप से उगाई जाने वाली फसल है, जो बाजार की मांग को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर उगाई जाती है।
निष्कर्ष:
कोको एक प्रमुख कृषि उत्पाद है, जिसका उपयोग चॉकलेट और अन्य खाद्य पदार्थों में किया जाता है। इसकी खेती मुख्य रूप से पश्चिमी अफ्रीका, खासकर घाना में होती है, और यह उष्णकटिबंधीय क्षेत्र की फसल है।
37. कृषि ऋण प्रदान करने वाले चार संस्थाओं के नाम लिखिए।
कृषि ऋण किसानों को अपनी कृषि गतिविधियों को बढ़ाने और सुधारने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु विभिन्न संस्थाएँ काम करती हैं। ये संस्थाएँ किसानों को ऋण प्रदान करती हैं ताकि वे अपनी खेती के लिए आवश्यक संसाधन जैसे बीज, उर्वरक, उपकरण आदि खरीद सकें। भारत में कृषि ऋण प्रदान करने वाली मुख्य संस्थाएँ निम्नलिखित हैं:
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (Regional Rural Banks – RRBs):
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को छोटे और मध्यम ऋण प्रदान करते हैं।
इन बैंकों का उद्देश्य ग्रामीण विकास और किसानों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करना है।
सहकारी समितियाँ (Cooperative Societies):
सहकारी समितियाँ किसानों को आसान शर्तों पर ऋण प्रदान करती हैं।
ये समितियाँ किसानों की एकजुटता से काम करती हैं और कृषि से संबंधित विभिन्न सेवाएँ प्रदान करती हैं।
सहकारी भूमि विकास बैंक (Cooperative Land Development Banks):
ये बैंक विशेष रूप से भूमि विकास और दीर्घकालिक कृषि परियोजनाओं के लिए ऋण प्रदान करते हैं।
इनका उद्देश्य किसानों को खेती के लिए आवश्यक पूंजी और संसाधन मुहैया कराना है।
राष्ट्रीय बैंक (National Banks):
भारतीय राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) जैसे राष्ट्रीय बैंक किसानों को बड़े पैमाने पर ऋण प्रदान करते हैं।
ये बैंक किसानों को सस्ती दरों पर ऋण और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराते हैं।
अन्य वित्तीय सहायता कार्यक्रम:
स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups – SHGs):
स्वयं सहायता समूह ग्रामीण महिलाओं और किसानों को ऋण प्रदान करने के लिए काम करते हैं, जिससे वे छोटे व्यवसाय या कृषि कार्यों को शुरू कर सकें।
पैक्स (Primary Agricultural Credit Societies – PACS):
ये स्थानीय स्तर पर संचालित सहकारी समितियाँ होती हैं जो किसानों को कृषि ऋण प्रदान करती हैं।
किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card – KCC):
यह एक विशेष कार्ड होता है, जो किसानों को कृषि ऋण के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करता है, ताकि वे अपनी खेती की जरूरतों को पूरा कर सकें।
निष्कर्ष:
कृषि ऋण प्रदान करने वाली संस्थाएँ किसानों को उनके कृषि कार्यों के लिए आवश्यक पूंजी उपलब्ध कराती हैं। इनमें क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, सहकारी समितियाँ, सहकारी भूमि विकास बैंक, और राष्ट्रीय बैंक शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, स्वयं सहायता समूह, पैक्स, और किसान क्रेडिट कार्ड जैसी सुविधाएँ भी किसानों को वित्तीय मदद उपलब्ध कराती हैं।
38. झूम, मिल्पा और लदांग क्या है ?
स्थानांतरणशील कृषि एक आदिवासी और पारंपरिक कृषि पद्धति है, जिसमें किसान खेती करने के लिए एक क्षेत्र को चुनते हैं, उसमें फसलें उगाते हैं, और फिर जब भूमि की उर्वरता घटने लगती है, तो वे उस भूमि को छोड़कर किसी अन्य स्थान पर खेती करने जाते हैं। इस प्रक्रिया को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण कहते हैं, और यह विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय और वर्षा वाले क्षेत्रों में होती है।
भारत में स्थानांतरणशील कृषि:
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में इस प्रकार की कृषि को झूम कृषि (Jhum Agriculture) कहा जाता है। इसमें किसानों द्वारा जंगलों को काटकर या जलाकर खेती की जाती है। जब भूमि की उर्वरता समाप्त हो जाती है, तो किसान नए क्षेत्र में स्थानांतरित होते हैं और यही प्रक्रिया पुनः शुरू करते हैं।
अन्य देशों में स्थानांतरणशील कृषि के नाम:
मध्य अमेरिका और मेक्सिको में इसे मिल्पा (Milpa) कहा जाता है।
यहाँ पर किसान कुछ वर्षों तक एक ही जगह पर खेती करते हैं और फिर भूमि को छोड़कर नई जगह पर चले जाते हैं।
मलेशिया और इंडोनेशिया में इसे लदांग (Ladang) कहा जाता है।
इस क्षेत्र में भी यही प्रक्रिया अपनाई जाती है, जहां किसानों द्वारा जंगल को साफ करके खेती की जाती है और फिर अगले वर्षों में भूमि को छोड़ दिया जाता है।
निष्कर्ष:
स्थानांतरणशील कृषि एक पारंपरिक कृषि पद्धति है, जो विभिन्न देशों में अलग-अलग नामों से जानी जाती है:
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में इसे झूम कहा जाता है।
मध्य अमेरिका और मेक्सिको में इसे मिल्पा कहा जाता है।
मलेशिया और इंडोनेशिया में इसे लदांग कहा जाता है।
यह कृषि प्रणाली विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती है और प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित करने के लिए किसानों द्वारा अपनाई जाती है।
39. मुक्त व्यापार क्या है?
मुक्त व्यापार (Free Trade) का विचार सबसे पहले एडम स्मिथ द्वारा 1776 में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द वेल्थ ऑफ नेशन्स’ (The Wealth of Nations) में प्रस्तुत किया गया था। एडम स्मिथ को आधुनिक अर्थशास्त्र का जनक माना जाता है और उनकी यह पुस्तक अर्थशास्त्र के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हुई।
एडम स्मिथ का तर्क:
एडम स्मिथ ने यह तर्क दिया कि श्रम का विभाजन (Division of Labour) करने से उत्पादन प्रक्रिया में दक्षता बढ़ती है। जब व्यक्ति एक ही कार्य में माहिर हो जाता है, तो उसकी विशेषज्ञता (Specialization) से उत्पादन की गति बढ़ती है और लागत में कमी आती है। इसके परिणामस्वरूप सभी व्यक्तियों को अधिक लाभ प्राप्त होता है। उनका मानना था कि इस प्रकार के विभाजन से हर व्यक्ति अपने विशेष कार्य में दक्षता प्राप्त कर सकता है, जो अन्यथा संभव नहीं होता।
मुक्त व्यापार का सिद्धांत:
एडम स्मिथ के मुक्त व्यापार सिद्धांत में यह विचार प्रस्तुत किया गया कि मुक्त व्यापार के माध्यम से देश एक-दूसरे से बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के व्यापार करें। उन्होंने यह भी कहा कि यदि देशों को अपनी विशेषताओं के अनुसार व्यापार करने की स्वतंत्रता दी जाए, तो वे अधिक उत्पादक हो सकते हैं और समग्र रूप से अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।
निष्कर्ष:
एडम स्मिथ ने ‘द वेल्थ ऑफ नेशन्स’ में मुक्त व्यापार और श्रम के विभाजन के सिद्धांत को प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, श्रम का विभाजन और मुक्त व्यापार से विशेषज्ञता और उत्पादन क्षमता बढ़ती है, जिससे सभी को अधिक लाभ मिलता है। यह दृष्टिकोण आज भी वैश्विक व्यापार नीतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
40. भारत में विभिन्न प्रकार के ग्रामीण अधिवासों के लिए उत्तरदायी किन्हीं दो प्राकृतिक कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – ग्रामीण बस्तियों के प्रारूप पर प्रभाव डालने वाले कारक
ग्रामीण बस्तियों का प्रारूप (layout) या नक्शा भौतिक और सांस्कृतिक कारकों द्वारा प्रभावित होता है। ये कारक यह निर्धारित करते हैं कि बस्तियाँ किस प्रकार से स्थापित होंगी, उनका आकार क्या होगा और उनकी संरचना कैसी होगी। इन दोनों प्रकार के कारकों का बस्तियों पर गहरा प्रभाव होता है।
(i) भौतिक कारक:
भौतिक कारक बस्तियों के आकार और उनके स्थान का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुछ प्रमुख भौतिक कारक निम्नलिखित हैं:
उच्चावच (Altitude): ऊँचाई पर स्थित बस्तियों में ठंडी जलवायु होती है, जबकि निचले और समतल क्षेत्रों में गर्मी अधिक रहती है। इससे बस्तियों की संरचना में अंतर आता है।
ऊँचाई (Elevation): पहाड़ी क्षेत्रों में बस्तियाँ अक्सर ढलानों पर बनती हैं, जबकि मैदानी क्षेत्रों में सघन बस्तियाँ पाई जाती हैं।
अपवाह तंत्र (Drainage System): जलनिकासी (drainage) के प्रभाव से नदी के किनारे या अन्य जल स्रोतों के पास बस्तियाँ अधिक होती हैं, क्योंकि इन स्थानों पर पानी की उपलब्धता और जलवायु अनुकूल होती है।
भौम जल (Groundwater): भूजल की उपलब्धता भी बस्तियों के स्थान का निर्धारण करती है। जहाँ जलस्त्रोत हैं, वहाँ बस्तियाँ बसने की संभावना अधिक होती है।
जलवायु (Climate): जलवायु भी बस्तियों की संरचना को प्रभावित करती है। ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में अलग तरह के मकान और परंपराएँ विकसित होती हैं, जबकि गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में उनकी संरचना अलग होती है।
उदाहरण: मैदानी क्षेत्रों में समतल भूमि होने के कारण बस्तियाँ सघन (dense) होती हैं, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में सघनता कम होती है क्योंकि यहाँ उच्चावच और चढ़ाई होती है।
(ii) सांस्कृतिक कारक:
सांस्कृतिक कारक, जैसे जातीयता, सामाजिक संरचना और परंपराएँ, बस्तियों के प्रारूप को प्रभावित करते हैं। इन कारकों के आधार पर बस्तियों की संरचना और परिवारों के आवास व्यवस्था में अंतर हो सकता है। कुछ प्रमुख सांस्कृतिक कारक हैं:
जनजातियता और नृजातीयता (Ethnicity and Tribes): कुछ विशेष जातियाँ या जनजातियाँ विशेष प्रकार की बस्तियाँ बनाती हैं। उनका आवास निर्माण की पारंपरिक शैली अलग हो सकती है।
भू-स्वामित्व और जातिवाद: भारत में, उदाहरण स्वरूप, भू-स्वामित्व वाली जातियाँ आमतौर पर मुख्य बस्ती के पास रहती हैं, जबकि हरिजनों के मकान अक्सर गाँव की सीमा पर या मुख्य बस्ती से दूर स्थित होते हैं।
समाजिक परंपराएँ और रीति-रिवाज: एक बस्ती के भीतर विभिन्न जातियों और समुदायों के निवास स्थानों का स्थान निश्चित करने में सांस्कृतिक भेदभाव और परंपराओं का प्रभाव होता है।
उदाहरण: भारत में, जहाँ विभिन्न जातियाँ और समुदाय रहते हैं, वहाँ बस्तियों के प्रारूप में यह देखा जाता है कि हरिजन समुदाय के घर मुख्य बस्ती से दूर रहते हैं, जो एक सांस्कृतिक और सामाजिक ढांचे को दर्शाता है।
निष्कर्ष:
ग्रामीण बस्तियों के प्रारूप को निर्धारित करने में भौतिक (जैसे ऊँचाई, जलवायु, जलस्रोत) और सांस्कृतिक (जैसे जातिवाद, जनजातियता) कारकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। ये दोनों कारक मिलकर यह तय करते हैं कि बस्तियाँ किस प्रकार बनेंगी और उनमें लोगों का आवास किस प्रकार होगा।

SANTU KUMAR
I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.
Contact me On WhatsApp