Class 12th Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर ) ( 15 Marks ) PART- 3

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21. “परिवहन के सभी साधन एक-दूसरे के पूरक होते हैं।” विवेचना करें।

उत्तर – परिवहन: एक समन्वित तंत्र

परिवहन वह व्यवस्था है, जिसके माध्यम से व्यक्ति, वस्तुएँ और वस्तुओं का आदान-प्रदान एक स्थान से दूसरे स्थान तक होता है। यह किसी भी राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक प्रगति की रीढ़ है।

मुख्य परिवहन साधन

भारत में परिवहन के तीन प्रमुख साधन हैं:

  1. स्थल परिवहन – इसमें सड़क, रेलवे और पाइपलाइन शामिल हैं।

  2. जल परिवहन – अंतःस्थलीय जलमार्ग (नदी, नहर) और सागरीय एवं महासागरीय मार्ग।

  3. वायु परिवहन – घरेलू (राष्ट्रीय) और अंतरराष्ट्रीय वायु मार्ग।

प्राकृतिक सीमाएँ और उपयुक्तता:

  • जल परिवहन सीमित है क्योंकि यह केवल नदियों, नहरों, समुद्रों और महासागरों में ही संभव होता है।

  • रेल परिवहन मुख्यतः समतल और उपजाऊ भू-भाग में अधिक विकसित होता है। अधिक ऊँचाई वाले या पहाड़ी क्षेत्रों में इसका विकास कठिन और महँगा होता है।

  • वायु परिवहन तेज गति से लंबी दूरी तय करने के लिए उपयुक्त है, लेकिन इसकी लागत अधिक होती है।

  • सड़क परिवहन सबसे लचीला और बहुपयोगी है। इसका विकास मैदानी, पहाड़ी, बीहड़ तथा दूरस्थ क्षेत्रों में भी संभव है। यही कारण है कि सभी अन्य परिवहन साधनों (रेल, वायु, जल) से जुड़ने के लिए सड़क परिवहन की अनिवार्यता होती है।

परस्पर पूरकता और समन्वय:

कोई भी परिवहन साधन पूर्ण नहीं है। इनकी उपयोगिता एक-दूसरे पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए:

  • रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा या बंदरगाह तक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग आवश्यक होता है।

  • भारी और लंबी दूरी के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए समुद्री मार्ग सबसे उपयुक्त है, लेकिन बंदरगाह से माल अंदरूनी क्षेत्र तक पहुँचाने के लिए रेल या सड़क की आवश्यकता होती है।

इस तरह सभी साधन मिलकर एक समन्वित परिवहन प्रणाली (Integrated Transport System) बनाते हैं, जो राष्ट्र की सम्पूर्ण गतिशीलता को सुनिश्चित करता है।

निष्कर्ष:

परिवहन न केवल आवागमन का माध्यम है, बल्कि यह किसी भी राष्ट्र के आर्थिक, औद्योगिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास का आधार है। इसके विभिन्न साधनों के बीच तालमेल और संतुलन ही किसी देश को विकास की दिशा में आगे ले जाने वाली शक्ति बनाता है।

22. भारत के आर्थिक विकास में रेलवे की भूमिका की विवेचना कीजिए।

उत्तर – भारतीय रेल परिवहन: आर्थिक विकास में भूमिका

भारतीय रेलमार्ग न केवल एशिया में प्रथम स्थान पर है, बल्कि यह विश्व के सबसे बड़े रेल नेटवर्कों में से एक है। इसका भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। रेलवे ने कृषि, उद्योग, व्यापार और श्रम गतिशीलता को सशक्त बनाया है।

रेलमार्ग द्वारा प्रतिदिन लाखों यात्री दूर-दराज के क्षेत्रों में आवागमन करते हैं, और भारी मात्रा में माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाया जाता है। विशेष रूप से औद्योगिक और कृषि क्षेत्रों के विकास में रेलवे की भूमिका उल्लेखनीय है।

रेलवे का आर्थिक विकास में योगदान: प्रमुख बिंदु

(i) कोयला ढुलाई में प्रमुख योगदान:
रेलवे कोयले की सबसे अधिक ढुलाई करता है। 2001-2002 में लगभग 230 करोड़ टन कोयला रेलवे द्वारा ढोया गया, जो औद्योगिक ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक है।

(ii) खनिज संसाधनों की आपूर्ति:
लौह अयस्क, मैंगनीज, चूना पत्थर आदि जैसे भारी खनिजों को औद्योगिक इकाइयों तक पहुँचाने में रेलवे अहम भूमिका निभाता है।

(iii) कृषि आवश्यकताओं की पूर्ति:
उर्वरक, कृषि यंत्र और मशीनें रेलमार्गों के माध्यम से कृषि क्षेत्रों में पहुँचाई जाती हैं, जिससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि होती है।

(iv) तैयार माल का विपणन:
रेलवे तैयार माल को देश के विभिन्न बाजारों तक पहुँचाता है, जिससे उत्पादन और उपभोग के बीच संतुलन बनता है।

(v) आयातित वस्तुओं का वितरण:
विदेशों से आयातित वस्तुओं को बंदरगाहों से देश के आंतरिक भागों में पहुँचाने का कार्य रेलवे द्वारा किया जाता है।

(vi) श्रमिकों की आवाजाही:
रेलमार्गों से मजदूर और श्रमिक रोजगार के अवसरों की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से यात्रा करते हैं, जिससे श्रमशक्ति का उचित वितरण होता है।

निष्कर्ष:

रेल परिवहन भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरुदंड है। यह औद्योगीकरण, कृषि, व्यापार और मानव संसाधन की गतिशीलता को सशक्त बनाता है। देश के दूरदराज क्षेत्रों को जोड़कर यह एकता, आर्थिक समरसता और विकास की दिशा में प्रभावशाली भूमिका निभाता है।

23. पाइपलाइन परिवहन से लाभ एवं हानि की विवेचना करें।

उत्तर – पाइपलाइन परिवहन : एक आधुनिक और प्रभावी प्रणाली

पाइपलाइन परिवहन तरल पदार्थों (जैसे—जल, पेट्रोलियम, डीज़ल), गैसों और यहाँ तक कि ठोस पदार्थों (गारा या गाद के रूप में) के लंबी दूरी तक परिवहन के लिए एक सुविधाजनक, आधुनिक और पर्यावरण अनुकूल साधन है।

पहले पाइपलाइनों का उपयोग केवल नगरों में जल आपूर्ति तक सीमित था, लेकिन अब इसका उपयोग पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और अन्य द्रवों के बड़े पैमाने पर परिवहन के लिए भी किया जाने लगा है।

पाइपलाइन परिवहन के लाभ:

  1. भौगोलिक लचीलापन
    पाइपलाइन को उबड़-खाबड़ क्षेत्रों और जल-स्रोतों के नीचे भी बिछाया जा सकता है।

  2. कम लागत
    इसके संचालन और रख-रखाव की लागत अन्य परिवहन साधनों की तुलना में कम होती है।

  3. ऊर्जा की बचत
    केवल पंपिंग स्टेशनों पर थोड़ी ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिससे कुल ऊर्जा खपत बहुत कम होती है।

  4. समय की बचत
    पाइपलाइन से सीधे स्थानांतरण होता है, इसलिए माल लादने और उतारने का समय बचता है।

  5. निरंतर आपूर्ति
    पाइपलाइन से तेल या गैस का लगातार प्रवाह बना रहता है, जिससे देरी नहीं होती।

  6. पर्यावरण के लिए सुरक्षित
    यह प्रणाली प्रदूषण रहित और पर्यावरण हितैषी है।

पाइपलाइन परिवहन की सीमाएँ:

  1. लोच की कमी
    एक बार पाइपलाइन बिछ जाने के बाद इसकी क्षमता में वृद्धि करना मुश्किल होता है।

  2. सुरक्षा की कठिनाई
    चोरी, क्षति या आतंकवादी गतिविधियों से पाइपलाइन की सुरक्षा एक चुनौती होती है।

  3. मरम्मत में कठिनाई
    भूमिगत पाइपलाइन की मरम्मत करना कठिन और महँगा होता है।

  4. रिसाव का खतरा
    पाइपलाइन के फटने या टूटने पर तेल या गैस का रिसाव होता है, जिससे आग लगने या पर्यावरण प्रदूषण का खतरा होता है।

निष्कर्ष:

पाइपलाइन परिवहन आज के औद्योगिक और ऊर्जा-प्रधान युग में एक अत्यंत उपयोगी और पर्यावरण अनुकूल विकल्प है। यद्यपि इसकी कुछ सीमाएँ हैं, फिर भी इसके लाभ अधिक और संचालन सरल होने के कारण यह एक प्रभावी परिवहन प्रणाली बन चुकी है।

24. आंतरिक प्रवास से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर – आंतरिक प्रवास (Internal Migration)

आंतरिक प्रवास वह प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने देश के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थायी या अस्थायी रूप से निवास के उद्देश्य से जाता है।

भारत में, यह प्रवास गाँव से गाँव, गाँव से शहर, या एक शहर से दूसरे शहर की ओर होता है। इसका मुख्य उद्देश्य रोजगार, शिक्षा, सुविधाओं, या जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।

आंतरिक प्रवास के प्रमुख कारण:

  1. गाँवों में कृषि भूमि की कमी

  2. बेरोजगारी या अर्द्ध-बेरोजगारी

  3. शहरों में बेहतर रोजगार के अवसर

  4. शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सुविधाओं की उपलब्धता

  5. जीवन स्तर में सुधार की आकांक्षा

इसके अतिरिक्त, कुछ प्रवास ऋतुजन्य या मौसमी भी होते हैं, जैसे—
❄️ जाड़े में हिमालयी क्षेत्रों से लोग निचले मैदानों में चले जाते हैं और
☀️ गर्मी में पुनः अपने गाँव लौट आते हैं।

📌 प्रवास की चार प्रमुख धाराएँ:

  1. ग्रामीण से ग्रामीण (Rural to Rural)
    👉 अधिकतर महिलाएँ विवाह के कारण

  2. ग्रामीण से नगरीय (Rural to Urban)
    👉 रोजगार और बेहतर जीवन की तलाश में पुरुषों का प्रवास प्रमुख

  3. नगरीय से नगरीय (Urban to Urban)
    👉 नौकरी, पदोन्नति, शिक्षा आदि के कारण

  4. नगरीय से ग्रामीण (Urban to Rural)
    👉 नौकरी से अवकाश के बाद या खेती-बाड़ी के लिए

🔄 आंतरिक प्रवास के दो रूप:

  1. अन्तःराज्यीय प्रवास (Intra-state Migration):
    एक ही राज्य के भीतर स्थानांतरण, जैसे—बिहार के किसी गाँव से पटना जाना।

  2. अंतरराज्यीय प्रवास (Inter-state Migration):
    एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरण, जैसे—उत्तर प्रदेश से दिल्ली में नौकरी हेतु जाना।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  • महिलाओं का अधिकतर प्रवास विवाह के कारण होता है।

  • पुरुषों का प्रवास आमतौर पर रोजगार की वजह से होता है।

निष्कर्ष:

आंतरिक प्रवास भारत में एक सामाजिक-आर्थिक प्रक्रिया है, जो लोगों को बेहतर जीवन, रोजगार, और सुविधाओं की तलाश में प्रेरित करता है। यह प्रवास ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों के परस्पर संबंधों को भी मजबूत करता है।

25. ग्रामीण अधिवासों का वर्गीकरण प्रस्तुत करें।

उत्तर – ग्रामीण बस्तियाँ और उनके प्रकार

ग्रामीण बस्तियाँ ऐसी छोटी आबादी वाली बस्तियाँ होती हैं जो मुख्यतः कृषि या अन्य प्राथमिक क्रियाकलापों (जैसे- पशुपालन, वनों पर निर्भरता आदि) में संलग्न होती हैं। ये बस्तियाँ विरल रूप से स्थित होती हैं और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग रूपों में विकसित होती हैं।

निर्मित क्षेत्र, घरों की संख्या और उनके बीच की दूरी के आधार पर ग्रामीण बस्तियों को चार प्रमुख प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:

1. गुच्छित बस्तियाँ (Clustered Settlements)

  • इन्हें संकेंद्रित, पुंजित या संकुलित बस्तियाँ भी कहते हैं।

  • घर एक साथ सघन समूह में होते हैं और संकरी व टेढ़ी-मेढ़ी गलियों द्वारा अलग होते हैं।

  • ऐसी बस्तियाँ मैदानी क्षेत्रों, उपजाऊ भूमि और जल स्रोतों के निकट पाई जाती हैं।

2. अर्द्ध-गुच्छित बस्तियाँ (Semi-clustered Settlements)

  • इन्हें विखंडित बस्तियाँ भी कहा जाता है।

  • घर एक ही गाँव के अलग-अलग खंडों में स्थित होते हैं, लेकिन गाँव का नाम एक ही रहता है।

  • यह व्यवस्था जातीय या सामाजिक समूहों के आधार पर भी हो सकती है।

3. पल्ली बस्तियाँ (Hamleted Settlements)

  • यह एक मध्यम आकार की बस्ती होती है, जिसके निकट छोटी-छोटी उप-बस्तियाँ होती हैं।

  • ये उप-बस्तियाँ स्थानीय नामों से जानी जाती हैं, जैसे: पुरवा, पाड़ा, नगला, पनना आदि।

  • मुख्य गाँव और उप-बस्तियों के बीच थोड़ी दूरी होती है, लेकिन सामाजिक और आर्थिक संबंध प्रबल होते हैं।

4. परिक्षिप्त बस्तियाँ (Dispersed Settlements)

  • इन्हें बिखरी हुई या एकाकी बस्तियाँ भी कहा जाता है।

  • घर एक-दूसरे से बहुत दूर होते हैं, अक्सर अकेली झोपड़ियों या खेतों के पास स्थित होते हैं।

  • यह बस्तियाँ प्रायः जंगलों, पहाड़ी ढालों, चारागाहों या दुर्गम क्षेत्रों में मिलती हैं।

🔍 निष्कर्ष:

ग्रामीण बस्तियों का प्रकार स्थानीय भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इनका अध्ययन न केवल मानव-भूगोल के लिए महत्त्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें ग्रामीण जीवन और बसावट के स्वरूप को समझने में भी मदद करता है।

26. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार क्या है? इससे देश कैसे लाभ प्राप्त करते हैं ?

उत्तर – 🌐 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार : अर्थ, आधार एवं लाभ

अर्थ:
जब दो या दो से अधिक देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी तथा तकनीकी ज्ञान का आदान-प्रदान होता है, तो उसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (International Trade) कहते हैं। यह व्यापार आयात (Import) और निर्यात (Export) के माध्यम से संपन्न होता है।

📌 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की आवश्यकता क्यों होती है?

  • जब कोई देश कुछ वस्तुओं का उत्पादन स्वयं नहीं कर सकता या

  • जब वही वस्तु दूसरे देश से सस्ते मूल्य पर उपलब्ध हो,
    तो वह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करता है।

⚙️ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के आधार

  1. प्राकृतिक संसाधनों की असमानता – हर देश के पास एक समान संसाधन नहीं होते।

  2. अधिक उत्पादन – आवश्यकता से अधिक उत्पादन का निर्यात लाभदायक होता है।

  3. वस्तुओं की कमी – कुछ देशों में कुछ वस्तुओं की कमी होती है।

  4. परिवहन और संचार का विकास – विश्व को जोड़ने में सहायक।

  5. प्रौद्योगिकी में अंतर – विकसित देशों की तकनीक का आदान-प्रदान।

  6. सांस्कृतिक विशेषताएँ – कुछ वस्तुएँ किसी विशेष देश की पहचान होती हैं।

  7. व्यापारिक नीतियाँ – सरकार की नीतियाँ व्यापार को बढ़ावा देती हैं।

  8. शांति और राजनीतिक स्थिरता – स्थिर देश अधिक व्यापारिक भागीदार बनते हैं।

  9. राजनीतिक संबंध – मित्र देशों के बीच व्यापार प्रबल होता है।

  10. आर्थिक माँग – उपभोक्ताओं की बदलती माँग से व्यापार दिशा बदलता है।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभ

  1. वांछित वस्तुओं की प्राप्ति
    → देश वे वस्तुएँ आयात कर सकते हैं जो उनके यहाँ उपलब्ध नहीं हैं।

  2. अतिरिक्त उत्पादन का निर्यात
    → देश अपने अधिक उत्पादन को बेचकर राष्ट्रीय आय बढ़ा सकते हैं।

  3. विशिष्ट उत्पादों का वैश्विक व्यापार
    → विशिष्टीकरण से देश विश्व अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं।

  4. तकनीकी एवं बौद्धिक सेवाओं का आदान-प्रदान
    → आधुनिक युग में यह व्यापार ज्ञान आधारित भी हो गया है।

  5. आपसी सहयोग और भाईचारे में वृद्धि
    → व्यापार देशों के बीच राजनीतिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत बनाता है।

📌 निष्कर्ष:

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केवल आर्थिक लाभ का माध्यम नहीं है, यह देशों के बीच सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक संबंधों को भी प्रगाढ़ करता है। यह वैश्विक समृद्धि और स्थिरता का आधार है।

27. भारत में अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास के कारणों की विवेचना कीजिए।

उत्तर – 🌍 भारत में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास

भारत में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास दो प्रकार का होता है:

  1. उत्प्रवास (Emigration) – जब भारत के लोग दूसरे देशों में जाकर बस जाते हैं।

  2. आप्रवास (Immigration) – जब विदेशी नागरिक भारत में आकर बस जाते हैं।

📊 प्रमुख आँकड़े (2001 की जनगणना के अनुसार):

  • भारत में विदेशों से आए आप्रवासी – 50 लाख

    • बांग्लादेश – 59.8%

    • पाकिस्तान – 19.3%

    • नेपाल – 11.6%

  • भारत से विदेशों में बसे भारतीय (Indian Diaspora) – लगभग 2 करोड़ लोग,
    जो 110 देशों में फैले हुए हैं।

🔍 भारत में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास के प्रमुख कारण

1. 🏦 आर्थिक कारण (Economic Factors)

  • भारत से बाहर:

    • श्रमिक और शिल्पी: थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया आदि।

    • कुशल श्रमिक: खाड़ी देशों (पश्चिम एशिया) में पेट्रोलियम क्षेत्र में कार्यरत।

    • विशेषज्ञ पेशेवर: डॉक्टर, इंजीनियर, आईटी प्रोफेशनल्स – अमेरिका, कनाडा, यूके आदि।

  • भारत में आने वाले:

    • नेपाल, तिब्बत, बांग्लादेश से बड़ी संख्या में श्रमिक और व्यापारी भारत में आते हैं।

2. 🏛️ सामाजिक-राजनैतिक कारण (Socio-political Factors)

  • औपनिवेशिक युग में:

    • ब्रिटिश, फ्रांसीसी, डच, जर्मन आदि शक्तियों ने
      उत्तर प्रदेश और बिहार से लाखों श्रमिकों को
      अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों में
      रोपण कृषि (Plantation Agriculture) के लिए भेजा।

  • शैक्षिक कारण:

    • प्राचीन काल में नालंदा, विक्रमशिला जैसे संस्थानों में
      दक्षिण-पूर्व एशिया से विद्यार्थी भारत पढ़ने आते थे।

  • राजनैतिक संकट:

    • भारत-पाक विभाजन (1947)

    • बांग्लादेश का मुक्ति संग्राम (1971)

    • तिब्बत संकट (1959)
      इन घटनाओं से लाखों शरणार्थी भारत में आकर बस गए।

  • नई पीढ़ी का वैश्विक प्रसार:

    • 1990 के बाद उदारीकरण के चलते
      उच्च शिक्षा और तकनीकी योग्यता वाले भारतीय
      बड़ी संख्या में विदेशों में जाकर बसे और
      भारतीय प्रवासी समुदाय (Indian Diaspora) को
      एक सशक्त वैश्विक समुदाय बना दिया।

निष्कर्ष:

भारत में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास एक प्राकृतिक, आर्थिक और ऐतिहासिक प्रक्रिया रही है।
यह न केवल भारत के आर्थिक विकास, बल्कि वैश्विक संबंधों को भी प्रभावित करता है।
भारतीय प्रवासी (Indian Diaspora) आज पूरी दुनिया में भारत की संस्कृति, क्षमता और योगदान के प्रतिनिधि हैं।

28. कार्यों के आधार पर शहरों का वर्गीकरण करें।

उत्तर – 🌆 नगरों के प्रकार उनके प्रमुख कार्यों के आधार पर

नगरों का विकास विभिन्न प्रकार की क्रियाओं और सेवाओं के आधार पर होता है। हर नगर का कोई न कोई प्रमुख कार्य (Specialized Function) होता है, जिसके कारण वह प्रसिद्ध होता है। कार्यों की प्रधानता के आधार पर नगरों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है:

1. 🏛️ प्रशासनिक नगर

वे नगर जो किसी देश, राज्य या क्षेत्रीय प्रशासन के मुख्यालय होते हैं।
उदाहरण: नई दिल्ली, चंडीगढ़, गांधीनगर, गुवाहाटी

2. 🏭 औद्योगिक नगर

जहाँ उद्योग-धंधों की प्रधानता होती है और बड़ी संख्या में उत्पादन इकाइयाँ होती हैं।
उदाहरण: जमशेदपुर (इस्पात), मुंबई (विविध उद्योग), कोयंबटूर (कपड़ा)

3. 🚉 परिवहन नगर

जो परिवहन के प्रमुख जंक्शन या पत्तन के रूप में कार्य करते हैं।
उदाहरण: मुगलसराय (रेलवे), कांडला (पत्तन)

4. 💼 व्यापारिक नगर

जहाँ व्यापार और वाणिज्य की गतिविधियाँ प्रमुख होती हैं।
उदाहरण: कोलकाता, सहारनपुर, सतना

5. ⛏️ खनन नगर

जो खनिज संसाधनों के दोहन के कारण विकसित हुए हैं।
उदाहरण: रानीगंज, झरिया (कोयला), डिगबोई (तेल)

6. 🪖 गैरिसन नगर (छावनी नगर)

जो सैन्य उद्देश्यों के लिए स्थापित किए गए हैं।
उदाहरण: अंबाला, दानापुर, उधमपुर

7. 🛕 धार्मिक और सांस्कृतिक नगर

जो धार्मिक आस्था, तीर्थ या सांस्कृतिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध हैं।
उदाहरण: वाराणसी, मथुरा, हरिद्वार

8. 🎓 शैक्षणिक नगर

जहाँ प्रमुख शैक्षणिक संस्थान स्थित हैं और जो शिक्षा के केंद्र के रूप में प्रसिद्ध हैं।
उदाहरण: अलीगढ़ (AMU), वाराणसी (BHU), ऑक्सफोर्ड (UK)

9. 🌄 पर्यटन नगर

जहाँ प्राकृतिक सौंदर्य, जलवायु या ऐतिहासिक स्थल होने के कारण पर्यटन की दृष्टि से महत्त्व है।
उदाहरण: नैनीताल, मसूरी, शिमला, ऊटी

निष्कर्ष

प्रत्येक नगर अपनी विशेष गतिविधियों के कारण महत्त्वपूर्ण होता है। कुछ नगरों में एक से अधिक कार्य भी प्रमुख हो सकते हैं, जिन्हें बहुक्रियात्मक नगर (Multifunctional cities) कहा जाता है।

29. ग्रामीण अधिवास के प्रतिरूप का वर्णन करें। 

उत्तर – 🏘️ बस्तियों के प्रारूप (Patterns of Settlement)

बस्तियों के प्रारूप से तात्पर्य है – बस्तियों की बनावट, आकृति या आकार, जो विशेष भौगोलिक, सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों के कारण विकसित होता है।

बस्तियों का प्रारूप विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है, जैसे:

  • भौतिक कारक – स्थलाकृति, जल स्रोत, जलवायु

  • सांस्कृतिक कारक – परंपराएँ, जातीयता

  • सुरक्षा और प्रौद्योगिकी – निर्माण तकनीक, सैन्य आवश्यकता


🧭 मुख्य बस्ती प्रारूप और उनके लक्षण:

प्रारूपविशेषताएँउदाहरण
1. रैखिक (Linear)सड़क, नदी या घाटी के किनारे घर एक सीध में बने होते हैं।नदी किनारे गाँव
2. वृत्ताकार (Circular)जल स्रोत (जैसे तालाब) के चारों ओर बस्तीतालाब के चारों ओर गाँव
3. आयताकार (Rectangular)समतल मैदान में, सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं।उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र
4. तारक (Starlike)कई सड़कों के मिलन बिंदु पर बसी बस्तीप्रायद्वीपीय छोर पर
5. पंखाकार (Fanlike)ढलान पर फैलती हुई बस्तीपहाड़ी क्षेत्रों के तलहटी में
6. सीढ़ीनुमा (Terraced)पहाड़ी ढालों पर सीढ़ीनुमा खेतों के साथ घरपर्वतीय क्षेत्र जैसे उत्तराखंड
7. त्रिभुजाकार (Triangular)दो नदियों के संगम पर बसी बस्तीप्रयागराज
8. चौकोर / बंद बस्ती (Enclosed/Square)मरुस्थलीय क्षेत्रों में, आँधी से बचने के लिएराजस्थान

निष्कर्ष:

बस्ती का प्रारूप प्राकृतिक वातावरण, जलस्रोत, स्थलाकृति एवं सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार भिन्न-भिन्न होता है। यह मनुष्य-पर्यावरण के पारस्परिक संबंध को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

30. विकासशील देशों में नगरीय बस्तियों की समस्याओं की विवेचना कीजिए।

उत्तर – 🌆 नगरीकरण की समस्याएँ (Problems of Urbanization)

नगरीकरण किसी देश के सामाजिक व आर्थिक विकास का संकेतक है। इसे आधुनिकता और औद्योगिक प्रगति का प्रतीक माना जाता है। तथापि, यदि नगरीकरण अनियोजित हो, तो यह विकास के साथ-साथ अनेक गंभीर समस्याओं को जन्म देता है, विशेष रूप से विकासशील देशों में।

🔴 मुख्य नगरीकरण संबंधी समस्याएँ:

  1. ग्रामीण-नगरीय प्रवास एवं बेरोजगारी:

    • गाँवों से शहरों की ओर लोगों का तेजी से पलायन रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं की चाह में होता है, परंतु अवसरों की सीमितता के कारण शहरी बेरोजगारी बढ़ती है।

  2. अधिक जनसंख्या घनत्त्व:

    • सीमित क्षेत्र में अत्यधिक जनसंख्या दबाव से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। आधारभूत संरचना पर भारी बोझ पड़ता है।

  3. झुग्गी-झोपड़ियाँ व गंदी बस्तियाँ (Slums):

    • मकानों की कमी और गरीबी के कारण अस्वास्थ्यकर, असुरक्षित और भीड़भाड़ वाली बस्तियाँ बढ़ती हैं, जो रोगों का घर बनती हैं।

  4. नागरिक सुविधाओं की कमी:

    • पेयजल, बिजली, सीवर, स्वास्थ्य, शिक्षा, पार्क जैसी मूलभूत सुविधाएँ अपर्याप्त हो जाती हैं।

  5. आवास की समस्या:

    • तेजी से बढ़ती जनसंख्या के अनुरूप मकान निर्माण नहीं हो पाता, जिससे किराया महँगा और घर असुलभ हो जाते हैं।

  6. यातायात जाम एवं भीड़भाड़:

    • वाहनों की संख्या में वृद्धि व सड़कों की अपर्याप्तता से ट्रैफिक जाम आम समस्या बन गया है।

  7. सामाजिक तनाव और अपराध:

    • गरीबी, बेरोजगारी और असमानता के कारण सामाजिक असंतोष और अपराध दर में वृद्धि होती है।

  8. असंतुलित लिंग अनुपात:

    • पुरुष प्रधान प्रवासन के कारण शहरी क्षेत्रों में लिंग अनुपात असंतुलित हो जाता है।

  9. भूमि की ऊँची कीमतें:

    • भूमि की माँग अधिक होने से उसकी कीमतें आसमान छूने लगती हैं, जिससे गरीबों का शहर में रहना कठिन हो जाता है।

  10. कृषि भूमि का अतिक्रमण:

  • शहरी विस्तार के कारण उपजाऊ कृषि भूमि आवासीय और व्यावसायिक उपयोग में ली जा रही है।

  1. नगरीय गरीबी:

  • सुविधाओं के अभाव और जीवन यापन की बढ़ती लागत के कारण गरीब वर्ग जीवन स्तर में सुधार नहीं कर पाता।

निष्कर्ष (Conclusion):

नगरीकरण यदि संतुलित एवं नियोजित न हो तो यह जनसंख्या, पर्यावरण और संसाधनों पर गंभीर दबाव डालता है। अतः नगरीकरण की समस्याओं का समाधान सुनियोजित नगरीय नियोजन, समान क्षेत्रीय विकास, और आधारभूत संरचना के सुदृढ़ीकरण के माध्यम से किया जाना चाहिए।

Author

SANTU KUMAR

I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.

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