1. मानव भूगोल को परिभाषित करें और इसके अध्ययन-क्षेत्र (विषय क्षेत्र) का सविस्तार वर्णन करें।
उत्तर – मानव भूगोल का अर्थ एवं विषय-वस्तु
परिभाषा:
मानव भूगोल वह शाखा है जो प्राकृतिक (भौतिक) पर्यावरण और मानवीय गतिविधियों के बीच संबंध, मानवीय परिघटनाओं के स्थानिक वितरण, उनके कारण, तथा विश्व के विभिन्न भागों में सामाजिक एवं आर्थिक विभिन्नताओं का अध्ययन करती है।
यह मानव और प्रकृति के बीच होने वाली पारस्परिक क्रियाओं से उत्पन्न सांस्कृतिक लक्षणों की स्थिति एवं वितरण का विश्लेषण करता है।
📚 फिंच एवं ट्रिवार्था द्वारा मानव भूगोल का वर्गीकरण:
अमेरिकी भूगोलवेत्ताओं फिंच (Finch) एवं ट्रिवार्था (Trewartha) ने मानव भूगोल की विषय-वस्तु को दो मुख्य भागों में विभाजित किया:
1. भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण
इसमें वे सभी प्राकृतिक घटक आते हैं जो मानव जीवन को प्रभावित करते हैं, जैसे—
जलवायु (Climate)
धरातलीय उच्चावच (Relief features)
अपवाह तंत्र (Drainage system)
प्राकृतिक संसाधन: मृदा, खनिज, जल, वन आदि
2. सांस्कृतिक या मानव निर्मित पर्यावरण
इसमें मानव द्वारा सृजित व नियंत्रित तत्व आते हैं, जैसे—
जनसंख्या वितरण
मानव बस्तियाँ (Rural/Urban Settlements)
कृषि प्रणाली
उद्योग व विनिर्माण
परिवहन एवं संचार व्यवस्था
✅ निष्कर्ष:
मानव भूगोल, भौतिक और मानव निर्मित तत्वों के स्थानीय व क्षेत्रीय प्रभावों के अध्ययन से समाज और पर्यावरण के बीच बेहतर संतुलन की समझ प्रदान करता है।
2. जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर – 📌 कार्यशीलता के आधार पर जनसंख्या का वर्गीकरण
किसी भी देश की जनसंख्या को कार्यशील (Working) और गैर-कार्यशील (Non-working) दो भागों में बाँटा जाता है।
कार्यशील जनसंख्या वे लोग होते हैं जो किसी न किसी आर्थिक उपार्जन या व्यवसाय में लगे होते हैं।
इनका योगदान राष्ट्रीय आय, उत्पादन एवं विकास में महत्त्वपूर्ण होता है।
👷♂️ कार्यशील जनसंख्या के व्यवसायों के पाँच प्रमुख खंड
(i) प्राथमिक व्यवसाय (Primary Occupation):
इसमें वे कार्य आते हैं जो प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होते हैं।
जैसे: आखेट (शिकार), भोजन संग्रह, पशुपालन, मत्स्यन, वानिकी, कृषि, खनन आदि।
इसमें कार्य करने वाले लोग लाल कॉलर (Red Collar) श्रमिक कहे जाते हैं क्योंकि ये बाहर काम करते हैं।
(ii) द्वितीयक व्यवसाय (Secondary Occupation):
ये वे कार्य हैं जिनमें कच्चे माल को परिवर्तित कर उपयोगी वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
जैसे:
कपास से वस्त्र,
गन्ने से चीनी,
लौह अयस्क से इस्पात
यह क्षेत्र विनिर्माण, प्रसंस्करण और निर्माण से जुड़ा होता है।
(iii) तृतीयक व्यवसाय (Tertiary Occupation):
इसे सेवा क्षेत्र (Service Sector) भी कहते हैं।
यह प्रत्यक्ष उत्पादन से नहीं, बल्कि सेवाएँ प्रदान करने से संबंधित है।
उदाहरण:
दुकानदार, चालक, अध्यापक, डॉक्टर, वकील, बैंक कर्मचारी, धोबी, तकनीशियन आदि।
(iv) चतुर्थ व्यवसाय (Quarternary Occupation):
यह सेवा क्षेत्र का ज्ञान-आधारित भाग है।
इसमें शामिल हैं:
शिक्षक, अकाउंटेंट, शोधकर्ता, सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ, कार्यालय कर्मचारी आदि।ये लोग अधिकतर बौद्धिक सेवाएँ प्रदान करते हैं।
(v) पंचम व्यवसाय (Quintinary Occupation):
इसमें वे कार्य आते हैं जिनसे उच्चस्तरीय निर्णय, नीति निर्माण, और प्रशासनिक दिशा-निर्देश तय होते हैं।
उदाहरण:
सरकार के मंत्री, नीति निर्माता, शीर्ष अधिकारी, उद्योगपतियों के निर्णयकर्ता आदि।इन्हें स्वर्ण कॉलर (Gold Collar) पेशेवर कहा जाता है।
✅ निष्कर्ष:
कार्यशील जनसंख्या के व्यवसायों का यह वर्गीकरण यह समझने में मदद करता है कि आर्थिक संरचना कैसे बदल रही है और समाज प्राथमिक से पंचम व्यवसायों की ओर कैसे अग्रसर हो रहा है।
3. भारत में जनसंख्या के असमान वितरण के लिए उत्तरदायी कारकों की विवेचना – कीजिए।
उत्तर – 📌 भारत में जनसंख्या वितरण की असमानता
परिभाषा:
भारत में जनसंख्या का वितरण अत्यंत असमान है। कहीं अत्यधिक सघन आबादी है तो कहीं बहुत विरल। इसका मुख्य कारण है – प्राकृतिक एवं मानव निर्मित परिस्थितियों में विविधता।
🌍 जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक:
स्थलरूप (Relief):
समतल भूमि वाले क्षेत्रों में आबादी अधिक (जैसे गंगा का मैदान)।
पहाड़ी, पठारी और रेगिस्तानी क्षेत्रों में आबादी विरल (जैसे अरुणाचल प्रदेश, राजस्थान)।
मिट्टी की उर्वरता:
उपजाऊ मिट्टी वाले क्षेत्र (जैसे गंगा-यमुना दोआब) में कृषि संभव होने के कारण जनसंख्या घनी होती है।
जलवायु एवं वर्षा:
अनुकूल जलवायु और पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्र (जैसे पश्चिम बंगाल, केरल) अधिक जनसंख्या को आकर्षित करते हैं।
सिंचाई और जल संसाधन:
जल की उपलब्धता से कृषि और जीवन दोनों संभव होते हैं, जैसे पंजाब और हरियाणा में।
यातायात एवं नगरीकरण:
जिन क्षेत्रों में परिवहन और शहरी विकास बेहतर है (जैसे दिल्ली, मुंबई), वहाँ जनसंख्या घनत्व अधिक है।
🗺️ क्षेत्रीय विविधताएँ:
सघन आबादी वाले राज्य:
पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडुविरल आबादी वाले क्षेत्र:
अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड, लद्दाख, थार मरुस्थल, कच्छ का रण
📊 2011 की जनगणना के अनुसार तथ्य:
भारत की कुल जनसंख्या: 121 करोड़
जनसंख्या घनत्व (Density): 382 व्यक्ति/वर्ग किमी
🔝 सर्वाधिक घनत्व वाले राज्य:
राज्य | घनत्व (व्यक्ति/किमी²) |
---|---|
बिहार | 1102 |
पश्चिम बंगाल | 1029 |
केरल | 859 |
उत्तर प्रदेश | 828 |
🔽 सबसे कम घनत्व:
अरुणाचल प्रदेश – 17 व्यक्ति/किमी²
✅ निष्कर्ष:
भारत में जनसंख्या का वितरण भौगोलिक, पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक कारकों से प्रभावित होता है। समतल और उपजाऊ मैदानी भाग सघन आबादी वाले हैं, जबकि पर्वतीय, पठारी और शुष्क क्षेत्र आमतौर पर विरल आबादी वाले होते हैं।
4. विश्व में जनसंख्या के वितरण और घनत्व को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर – 🌍 विश्व की जनसंख्या: वितरण और घनत्व में असमानता
🔸 जनसंख्या वितरण:
वर्ष 2007 में विश्व की अनुमानित जनसंख्या 6.7 अरब थी।
इसमें से 90% जनसंख्या केवल 10% स्थल भाग पर निवास करती है।
विश्व की लगभग 60% जनसंख्या केवल 10 देशों में रहती है, जिनमें से 6 देश एशिया में हैं।
🔹 जनसंख्या केंद्र:
चीन: 132.18 करोड़ (विश्व में सर्वाधिक)
भारत: 121 करोड़
➡️ दोनों देश मिलकर विश्व की लगभग 38% जनसंख्या का घर हैं।एशिया:
विश्व की 60% जनसंख्या यहाँ निवास करती है।
इनमें भी लगभग 2/3 जनसंख्या चीन और भारत में रहती है।
🗺️ घनत्व के अनुसार क्षेत्रीय विभाजन:
✅ सघन आबादी वाले क्षेत्र (200+ व्यक्ति/किमी²):
उत्तर-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका
पश्चिमी व उत्तरी यूरोप
दक्षिणी, दक्षिण-पूर्वी और पूर्वी एशिया (जैसे चीन, जापान, भारत, बांग्लादेश)
❌ विरल आबादी वाले क्षेत्र (1 व्यक्ति/किमी² से कम):
ध्रुवीय क्षेत्र (अंटार्कटिका, आर्कटिक)
रेगिस्तानी क्षेत्र (सहारा, गोबी, अटाकामा)
विषुवतीय वर्षा वन (अमेज़न, कांगो बेसिन)
ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र (हिमालय, एंडीज़, रॉकी)
📌 जनसंख्या वितरण एवं घनत्व को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक:
1. भौतिक कारक:
जल की उपलब्धता (नदियाँ, झीलें)
भूमि की आकृति (समतल बनाम पर्वतीय)
जलवायु (अनुकूल तापमान और वर्षा)
मिट्टी की उर्वरता
वन एवं प्राकृतिक संसाधन
2. आर्थिक कारक:
खनिज संसाधनों की उपलब्धता
औद्योगीकरण का स्तर
नगरीकरण एवं रोजगार के अवसर
3. सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक:
धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थल (जैसे वाराणसी, मक्का)
राजनीतिक स्थिरता
सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द
✅ निष्कर्ष:
विश्व में जनसंख्या का वितरण अत्यंत असमान है। लोग वहीँ रहना पसंद करते हैं जहाँ जीवन जीने के लिए प्राकृतिक और आर्थिक संसाधन उपलब्ध हों। अतः सघन और विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में अंतर के पीछे भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
5. विश्व में जनसंख्या की वृद्धि की प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
उत्तर – 🌍 जनसंख्या वृद्धि (Population Growth)
📌 परिभाषा:
किसी निर्धारित समयावधि में किसी विशेष क्षेत्र की जनसंख्या में होने वाले परिवर्तन को जनसंख्या वृद्धि कहा जाता है।
📈 विश्व की जनसंख्या वृद्धि का इतिहास:
1650 ई. में विश्व की जनसंख्या 50 करोड़ थी।
2010 ई. में यह बढ़कर 684 करोड़ हो गई।
➡️ इससे स्पष्ट होता है कि जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है।
📊 दुगुनी होने की अवधि (Doubling Time):
वर्ष | जनसंख्या (करोड़ में) | दुगुनी होने की अवधि |
---|---|---|
1650 | 50 | – |
1850 | 100 | 200 वर्ष |
1930 | 200 | 80 वर्ष |
1975 | 400 | 45 वर्ष |
➡️ जैसे-जैसे समय बीतता गया, दुगुनी होने की अवधि घटती गई, जिससे तेज जनसंख्या वृद्धि का संकेत मिलता है।
🌐 विकसित बनाम विकासशील देश:
विकसित देश:
जनसंख्या वृद्धि दर बहुत कम या ऋणात्मक।
जैसे: रूस, जर्मनी, इटली, स्पेन आदि में जनसंख्या घट रही है।
विकासशील देश:
जनसंख्या वृद्धि दर उच्च।
विशेष रूप से अफ्रीकी देशों में सबसे तेज़ वृद्धि हो रही है।
📌 निष्कर्ष:
विश्व जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है, विशेष रूप से विकासशील देशों में।
यदि यही प्रवृत्ति बनी रही, तो यह संसाधनों पर दबाव, पर्यावरणीय संकट और आर्थिक असंतुलन जैसे गंभीर परिणाम उत्पन्न कर सकती है।
6. जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
उत्तर – 📘 जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत (Demographic Transition Theory)
🔹 परिचय:
इस सिद्धांत का प्रतिपादन जनांकिकी विशेषज्ञ F. W. Notestein ने किया था।
यह सिद्धांत बताता है कि देश की आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति के साथ जन्म दर और मृत्यु दर में कैसे परिवर्तन होता है।
📊 मुख्य अवधारणा:
प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि = जन्म दर – मृत्यु दर
📌 जनांकिकीय संक्रमण की तीन अवस्थाएँ:
① प्रथम अवस्था: परंपरागत समाज (High Stationary Stage)
🔹 जन्म दर: अत्यधिक
🔹 मृत्यु दर: अत्यधिक
🔹 कारण: अज्ञानता, अशिक्षा, पारंपरिक मान्यताएँ, महामारियाँ
🔹 जनसंख्या वृद्धि: नगण्य या बहुत धीमी
✅ उदाहरण: 200 वर्ष पूर्व के सभी देश, वर्तमान में वर्षा वनों के आदिवासी
② द्वितीय अवस्था: संक्रमण काल (Early Expanding Stage)
🔹 जन्म दर: ऊँची बनी रहती है
🔹 मृत्यु दर: तीव्र गति से घटती है
🔹 कारण: चिकित्सा, स्वच्छता, पोषण में सुधार
🔹 जनसंख्या वृद्धि: तीव्र
✅ उदाहरण: भारत, चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान
③ तृतीय अवस्था: आधुनिक समाज (Low Stationary Stage)
🔹 जन्म दर: कम
🔹 मृत्यु दर: कम
🔹 कारण: शिक्षा, नगरीकरण, परिवार नियोजन, महिला सशक्तिकरण
🔹 जनसंख्या वृद्धि: स्थिर या बहुत धीमी
✅ उदाहरण: जापान, अमेरिका, कनाडा, यूरोप के विकसित देश
📌 निष्कर्ष:
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत यह स्पष्ट करता है कि जैसे-जैसे कोई देश आर्थिक और सामाजिक विकास करता है, वैसे-वैसे उसकी जनसंख्या वृद्धि की गति भी कम होती जाती है और अंततः स्थिरता की ओर बढ़ती है।
7. भारत में सूती वस्त्र उद्योग के वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर – 🧵 भारत में सूती वस्त्र उद्योग का वितरण और निर्यात
🟦 विकेंद्रीकरण का स्वरूप:
सूती वस्त्र उद्योग भारत का सबसे अधिक विकेंद्रीकृत उद्योग है।
प्रमुख क्षेत्र: गंगा का मैदान एवं प्रायद्वीपीय भारत का शुष्क पश्चिमी भाग।
📍 मुख्य उत्पादन राज्य एवं केंद्र:
① महाराष्ट्र
उत्पादन में प्रथम स्थान।
कुल मिलें: 157, अकेले मुंबई में 62 मिलें।
मुंबई: “सूती वस्त्रों की राजधानी”
अन्य केंद्र: शोलापुर, नागपुर, अकोला, वर्धा आदि।
② गुजरात
द्वितीय स्थान, कुल मिलें: 110
अहमदाबाद: “पूर्व का मैनचेस्टर” (72 मिलें)
अन्य केंद्र: सूरत, राजकोट, बड़ौदा।
③ मध्य प्रदेश
मिलें: 24, प्रमुख केंद्र: इंदौर, उज्जैन, भोपाल
कपास, कोयला, सस्ते श्रमिक उपलब्ध।
④ उत्तर प्रदेश
मिलें: 36, कानपुर: “उत्तर भारत का मैनचेस्टर”
अन्य केंद्र: मुरादाबाद, वाराणसी, लखनऊ।
⑤ पश्चिम बंगाल
मिलें: 45, बाजार स्थापना उद्योग
केंद्र: हुगली, हावड़ा, चौबीस परगना (कोलकाता के आसपास)
⑥ तमिलनाडु
मिलों की संख्या सर्वाधिक: 208
उत्पादन में छठा स्थान
कोयम्बटूर: “तमिलनाडु की वस्त्र राजधानी”
अन्य केंद्र: मदुरई, चेन्नई, सलेम।
⑦ कर्नाटक
मिलें: 30, प्रमुख केंद्र: बंगलौर, मैसूर, हुबली।
➕ अन्य राज्य:
आंध्र प्रदेश: 31 मिलें
केरल: 26 मिलें
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार में भी कारखाने
🌐 निर्यात व्यापार:
भारत से निर्यात:
दक्षिण-पूर्वी एशिया, पूर्वी अफ्रीका, अमेरिका
सिलेसिलाए वस्त्र प्रमुख
प्रतिस्पर्धी देश: चीन, जापान
निर्यात संवर्धन:
Cotton Textile Export Promotion Council (CTEPC)
1998-99 में निर्यात मूल्य: ₹52,720.78 करोड़
कुल निर्यात में हिस्सेदारी: 33%
✅ निष्कर्ष:
भारत का सूती वस्त्र उद्योग न केवल रोजगार देने में अग्रणी है, बल्कि यह विदेशी मुद्रा अर्जन का भी प्रमुख स्रोत है।
8. भारत में लौह अयस्क के वितरण का विवरण दीजिए।
उत्तर – 🔩 भारत में लौह-इस्पात उद्योग
(Class 12th – भूगोल)
🏭 परिचय:
लौह-इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है, क्योंकि यह कृषि, परिवहन, रक्षा, अवसंरचना आदि सभी क्षेत्रों के लिए मशीन, उपकरण और निर्माण सामग्री प्रदान करता है। यह आधुनिक सभ्यता की रीढ़ की हड्डी कहलाता है।
📈 विकास और प्रबंधन:
स्वतंत्रता के बाद इस उद्योग का तीव्र विकास हुआ।
सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित इस्पात संयंत्रों का नियंत्रण SAIL (Steel Authority of India Ltd., 1974) के पास है।
📍 प्रमुख लौह-इस्पात संयंत्र एवं उनका वितरण:
① TISCO (टिस्को), जमशेदपुर – झारखंड
निजी क्षेत्र का सबसे पुराना संयंत्र (1907)
कच्चा माल:
लोहा – नोआमुंडी
कोयला – झरिया, रानीगंज
जल – स्वर्णरेखा, खरकई नदियाँ
बंदरगाह – कोलकाता (240 किमी)
② IISCO, बर्नपुर (प. बंगाल)
इकाइयाँ: कुल्टी, हीरापुर, बर्नपुर
कच्चा माल:
लौह अयस्क – सिंहभूम
जल – बराकर नदी
चूना – पलामू
मैंगनीज – म. प्र.
अब यह SAIL के अंतर्गत है।
③ VISL, भद्रावती – कर्नाटक
पूर्व नाम: मैसूर आयरन एंड स्टील कंपनी (MISCO)
कच्चा माल:
लोहा – बाबाबुदन पहाड़ियाँ
जलविद्युत – जोग व शिवसमुद्रम प्रपात
यहाँ स्टेनलेस स्टील का उत्पादन होता है।
④ राउरकेला इस्पात संयंत्र – उड़ीसा
स्थापना: 1954 (जर्मनी की सहायता से)
जल – कोइल व शंख नदियाँ
विद्युत – हीराकुंड परियोजना
⑤ भिलाई इस्पात संयंत्र – छत्तीसगढ़
स्थापना: 1955 (रूस की सहायता से)
सार्वजनिक क्षेत्र का बड़ा संयंत्र
⑥ दुर्गापुर इस्पात संयंत्र – प. बंगाल
स्थापना: 1956 (ब्रिटेन की सहायता से)
कोलकाता के समीप स्थित
⑦ बोकारो इस्पात संयंत्र – झारखंड
स्थापना: 1964 (रूस की सहायता से)
भारत का सबसे बड़ा संयंत्र
दामोदर नदी के किनारे स्थित
⑧ सलेम स्टील संयंत्र – तमिलनाडु
पूर्णतः 1982 में तैयार
स्टेनलेस स्टील निर्माण
⑨ विशाखापट्टनम स्टील संयंत्र – आंध्र प्रदेश
स्थापना: 1989
भारत का पहला बंदरगाह आधारित संयंत्र
निर्यात सुविधा उपलब्ध
⑩ विजयनगर स्टील संयंत्र – कर्नाटक
स्थान: हॉस्पेट
निजी क्षेत्र का संयंत्र
🔁 अन्य जानकारी:
भारत में 200+ लघु इस्पात संयंत्र हैं।
ये संयंत्र स्क्रैप लोहा और स्पंज आयरन पर आधारित हैं।
भारत विश्व का सबसे बड़ा स्पंज आयरन उत्पादक है।
✅ निष्कर्ष:
लौह-इस्पात उद्योग भारत की औद्योगिक प्रगति की रीढ़ है और यह राष्ट्र के आर्थिक विकास, नौकरी सृजन, तथा बुनियादी ढांचे में अहम भूमिका निभाता है।
9. भारत में कोयला के भंडार, उत्पादन का उल्लेख करें।
उत्तर – 🏞️ कोयला भंडार
भारत में कोयला भंडार का अनुमान 1 अप्रैल 2023 तक 378.21 अरब टन है, जिसमें से लगभग 98% गौण्डवाना युग का और शेष 2% टर्शियरी युग का है। गौण्डवाना कोयला मुख्यतः झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में पाया जाता है, जबकि टर्शियरी कोयला असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर में स्थित है ।
📈 उत्पादन और आपूर्ति
भारत में व्यावसायिक स्तर पर कोयला उत्पादन 1839 से शुरू हुआ। 1998-99 में कुल 292.27 मिलियन टन कोयला उत्पादन हुआ था, जिसमें से 2.3 मिलियन टन लिग्नाइट कोयला था । हालांकि, वर्तमान में कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) देश का प्रमुख कोयला उत्पादक है, लेकिन बढ़ती ऊर्जा मांग और उत्पादन की सीमाओं के कारण भारत को कोयला आयात भी करना पड़ता है ।
🗺️ प्रमुख कोयला उत्पादक राज्य
भारत में प्रमुख कोयला उत्पादक राज्य निम्नलिखित हैं:
झारखंड: देश का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक राज्य है, जहाँ लगभग 30% कोयला उत्पादन होता है।
पश्चिम बंगाल: दामोदर घाटी क्षेत्र में स्थित है, जो प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र है।
छत्तीसगढ़: महनदी घाटी में स्थित प्रमुख कोयला उत्पादक राज्य है।
मध्य प्रदेश: सोन घाटी में स्थित है, जो महत्वपूर्ण कोयला उत्पादक क्षेत्र है।
आंध्र प्रदेश: गोदावरी घाटी में स्थित है, जो प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र है।
⚙️ कोयला उद्योग का महत्व
कोयला उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है:
ऊर्जा उत्पादन: कोयला थर्मल पावर प्लांट्स में विद्युत उत्पादन के लिए मुख्य ईंधन है।
लौह-इस्पात उद्योग: लौह अयस्क से इस्पात उत्पादन में कोयला आवश्यक है।
रासायनिक उद्योग: कोयला से गैस, अमोनिया, अलकतरा, रंग, नायलॉन आदि रासायनिक उत्पाद बनाए जाते हैं।
रोजगार सृजन: कोयला खनन और संबंधित उद्योगों में लाखों लोगों को रोजगार मिलता है।
🔄 चुनौतियाँ और सुधार
आयात पर निर्भरता: भारत को कोयला आयात करना पड़ता है, विशेषकर उच्च गुणवत्ता वाले कोकिंग कोयले के लिए।
पर्यावरणीय प्रभाव: कोयला खनन और उपयोग से पर्यावरणीय प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है।
निजी क्षेत्र की भागीदारी: 2018 में सरकार ने निजी कंपनियों को कोयला खनन की अनुमति दी, जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ी है ।
10. भारत में कोयला के वितरण का उल्लेख करें।
उत्तर – 🔥 भारत में कोयला वितरण
1. मुख्यतः दो क्षेत्र:
गौण्डवाना कोयला क्षेत्र (98%)
टर्शियरी कोयला क्षेत्र (2%)
2. गौण्डवाना कोयला क्षेत्र
➡ दक्षिणी पठार के पूर्वी भाग में स्थित
➡ उत्तम कोटि का बिटुमिनस और कोकिंग कोयला
(i) दामोदर घाटी क्षेत्र (झारखंड, पश्चिम बंगाल)
भारत का प्रमुख कोयला क्षेत्र (60% भंडार)
मुख्य खानें:
झारखंड: झरिया, गिरिडीह, बोकारो, कर्णपुरा, पलामू
पश्चिम बंगाल: रानीगंज
(ii) सोन-महानदी घाटी क्षेत्र (छत्तीसगढ़, ओडिशा)
छत्तीसगढ़: सिंगरौली, उमरिया, कोरबा, सुहागपुर
ओडिशा: तलचर क्षेत्र
(iii) सतपुरा क्षेत्र (मध्य प्रदेश)
मुख्य खानें: मोहपानी, पेंचघाटी
(iv) गोदावरी-वर्धा क्षेत्र (महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश)
महाराष्ट्र: चन्दा
आंध्र प्रदेश: सिंगरेनी
3. टर्शियरी कोयला क्षेत्र
➡ कम मात्रा में, निम्नकोटि का लिग्नाइट कोयला
➡ बिटुमिनस कोयले के विकल्प के रूप में उपयोगी
असम, मेघालय, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश
तमिलनाडु:
निवेली – यहाँ लिग्नाइट कॉरपोरेशन स्थित है।
📌 निष्कर्ष
भारत में कोयला उत्पादन का केंद्र गौण्डवाना क्षेत्र है, विशेषकर दामोदर घाटी, जो देश की ऊर्जा जरूरतों और उद्योगों को मजबूत आधार देती है। जबकि टर्शियरी क्षेत्र, विशेषकर दक्षिण भारत में कोयले की कमी को संतुलित करता है।

SANTU KUMAR
I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.
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