'रैदास के पद' भक्ति काल के महान संत कवि रैदास द्वारा रचित भक्ति काव्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यह अध्याय बिहार बोर्ड की कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक में शामिल है, जिसका उद्देश्य छात्रों को संत रैदास के विचारों, उनकी भक्ति भावना और काव्य-शैली से परिचित कराना है। इस पाठ में रैदास जी के दो पद संकलित हैं, जो ईश्वर के प्रति भक्त की गहरी आस्था, प्रेम और समर्पण को दर्शाते हैं। पहले पद में भक्त और भगवान के बीच के गहरे संबंध को सुंदर और प्रभावशाली उपमाओं के माध्यम से व्यक्त किया गया है, जैसे—जल में कमल, चंदन में पानी, शरीर में प्राण आदि। ये उपमाएं यह बताती हैं कि भगवान और भक्त का संबंध आत्मिक और अविच्छिन्न होता है। दूसरे पद में रैदास भगवान की महिमा, उनकी कृपा और करुणा का वर्णन करते हैं। वे बताते हैं कि ईश्वर जाति-पाँति का भेद नहीं करते, वे केवल सच्चे मन से की गई भक्ति को ही स्वीकार करते हैं। इन पदों के माध्यम से संत रैदास मानवता, समानता और सच्ची भक्ति का संदेश देते हैं। उनका काव्य आज भी पाठकों को ईश्वर भक्ति और सामाजिक समरसता की ओर प्रेरित करता है।
Bihar Board Class 9 Hindi Chapter 1 Solutions
Subject | Hindi |
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Class | 9th |
Chapter | 1. रैदास के पद |
Author | रैदास |
Board | Bihar Board |
प्रश्न 1: रैदास ईश्वर की कैसी भक्ति करते हैं?
उत्तर – संत रैदास जी निर्गुण भक्ति के समर्थक थे। वे ईश्वर की उपासना में बाहरी आडंबर, दिखावे और पाखंड को महत्व नहीं देते थे। उनके अनुसार, भगवान को प्रसन्न करने के लिए फूल, फल, जल या भोग चढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। वे मानते थे कि ईश्वर की सच्ची पूजा मन की निर्मलता, भक्ति और सादगी से होती है। रैदास जी के अनुसार, अगर मन पवित्र है और भाव सच्चे हैं, तो वही ईश्वर तक पहुँचने का सही मार्ग है।
प्रश्न 2: कवि ने ‘अब कैसे छूटै राम राम रट लागी’ क्यों कहा है?
उत्तर – रैदास जी कहते हैं कि राम नाम की रट अब उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गई है। उन्होंने राम की भक्ति को इतनी गहराई से अपने भीतर उतार लिया है कि अब उससे मुक्ति पाना संभव नहीं है। उनके अनुसार, उनका सारा जीवन राममय हो चुका है—उनकी सांसों, विचारों और कर्मों में केवल राम ही बसे हैं। यह भाव उनकी गहरी भक्ति और ईश्वर से एकाकार होने की स्थिति को दर्शाता है।
प्रश्न 3: कवि ने भगवान और भक्त की तुलना किन-किन चीजों से की?
उत्तर – रैदास जी अपने पद में भगवान और भक्त के बीच गहरे संबंध को सुंदर उपमाओं के माध्यम से व्यक्त करते हैं। वे भगवान को चंदन, बादल, दीपक, मोती और स्वामी के रूप में देखते हैं, जबकि भक्त को पानी, मोर, बाती, धागा और दास के रूप में दर्शाते हैं। इन उपमाओं के माध्यम से रैदास जी यह समझाते हैं कि भक्त और भगवान का संबंध आत्मिक, अभिन्न और पूरक होता है। इस प्रकार, उन्होंने भगवान और भक्त की महिमा का प्रभावशाली तुलनात्मक चित्रण किया है।
प्रश्न 4: कवि ने अपने ईश्वर को किन-किन नामों से पुकारा है?
उत्तर – रैदास जी अपने ईश्वर को चंदन, बादल, दीपक, मोती और स्वामी जैसे नामों से पुकारते हैं। इन उपमाओं के माध्यम से वे ईश्वर की पवित्रता, शीतलता, प्रकाश, मूल्य और सर्वोच्चता को दर्शाते हैं। यह उनके गहरे भक्ति भाव और पूर्ण समर्पण को व्यक्त करता है। रैदास जी की भक्ति निर्मल, निश्छल और निस्वार्थ है, जो उनके पदों में स्पष्ट रूप से झलकती है।
प्रश्न 5: कविता का केन्द्रीय भाव क्या है?
उत्तर – महाकवि रैदास जी की कविताओं में निर्गुण भक्ति की स्पष्ट और सुंदर झलक मिलती है। वे आडंबरहीन, सरल और निर्मल भक्ति में विश्वास रखते हैं, जो किसी बाहरी दिखावे पर नहीं, बल्कि अंतर्मन की पवित्रता पर आधारित होती है। उनके अनुसार, सच्ची भक्ति फल-फूल, जल या किसी भौतिक वस्तु से नहीं, बल्कि निष्कलंक हृदय से की जाती है। रैदास जी ने अपनी कविताओं में प्रतीकों और उपमाओं के माध्यम से ईश्वर और भक्त के बीच के अटूट संबंध को अत्यंत भावपूर्ण ढंग से व्यक्त किया है। उनके लिए ईश्वर मंदिर या मस्जिद तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे मानते हैं कि ईश्वर हर स्थान और हर अवस्था में, विशेष रूप से मन के भीतर निवास करते हैं।
प्रश्न 6: “मलयागिरि बेधियो भुअंगा। विष अमृत दोऊ एकै संगा।” इस पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
प्रश्न 7: रैदास अपने स्वामी राम की पूजा में कैसी असमर्थता जाहिर करते हैं?
प्रश्न 8: कवि अपने मन को चकोर के मन की भाँति क्यों कहते हैं?
उत्तर – रैदास जी अपने मन की भक्ति भावना की तुलना चकोर पक्षी से करते हैं। जैसे चकोर चंद्रमा को एकटक निहारता है और उसी में लीन रहता है, वैसे ही रैदास जी का मन भी भगवान राम की भक्ति में पूरी तरह तल्लीन है। चकोर के लिए चंद्रमा प्रेम और आकर्षण का प्रतीक होता है, उसी प्रकार रैदास जी के लिए राम ही परम प्रिय हैं। इस सुंदर उपमा के माध्यम से रैदास जी ने अपनी एकनिष्ठ भक्ति, भावनात्मक लगाव और भक्ति की गहराई को अभिव्यक्त किया है। यह तुलना उनकी निर्मल और समर्पित भक्ति को दर्शाती है, जिसमें उनका मन ईश्वर के प्रेम में पूर्णतः रमा हुआ है।
प्रश्न 9: रैदास के राम का परिचय दीजिए।
प्रश्न 10: “मन ही पूजा मन ही धूप। मन ही सेऊँ सहज सरूप।” का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर – महाकवि रैदास ने इन पंक्तियों में ईश्वर भक्ति की महिमा को बड़ी सुंदरता से व्यक्त किया है। उनके अनुसार, सच्ची भक्ति बाहरी आडंबरों या दिखावे से नहीं होती, बल्कि वह अंतर्मन की शुद्धता और सच्चाई से उत्पन्न होती है। रैदास जी कहते हैं कि पूजा-धूप या अन्य धार्मिक कर्म मन से किए जाने चाहिए, तभी ईश्वर का सहज और शुद्ध स्वरूप प्रकट होता है। वे मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा और बाहरी अनुष्ठानों को भक्ति का असली स्वरूप नहीं मानते। उनके लिए सच्ची भक्ति का मूल मन की पवित्रता, निष्ठा और भावनाओं की शुद्धता है। इस प्रकार, रैदास जी आंतरिक भावनाओं और निष्कलंक मन से की गई भक्ति को ही सच्ची पूजा और ईश्वर को प्रिय मानते हैं।

SANTU KUMAR
I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.
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