‘रेल यात्रा’ बिहार बोर्ड कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक का एक मनोरंजक और व्यंग्यात्मक अध्याय है। इसे प्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी ने लिखा है। इस रचना में लेखक ने भारतीय रेल व्यवस्था की कमियों, यात्रियों की परेशानियों और असुविधाओं को हास्य और व्यंग्य के साथ प्रस्तुत किया है। भीड़, देरी, अनियमितता जैसी समस्याओं को इस तरह चित्रित किया गया है कि पाठक हँसी-हँसी में समाज की इन वास्तविकताओं पर सोचने को मजबूर हो जाता है। यह अध्याय छात्रों को न केवल व्यंग्य लेखन की कला से परिचित कराता है, बल्कि उन्हें भारतीय रेल सेवा की जमीनी हकीकतों से भी अवगत कराता है।
Bihar Board Class 9 Hindi Chapter 9 Solutions
Subject | Hindi |
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Class | 9th |
Chapter | 9. रेल-यात्रा |
Author | शरद जोशी |
Board | Bihar Board |
प्रश्न 1. मनुष्य की प्रगति और भारतीय रेल की प्रगति में लेखक क्या देखता है?
उत्तर – लेखक मनुष्य और भारतीय रेल की प्रगति में एक समानता देखता है। दोनों जीवन में अनेक बाधाओं के बावजूद निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं। भारतीय रेल की वास्तविक प्रगति को समझने के लिए लेखक का मानना है कि इसे केवल पढ़ने या सुनने से नहीं, बल्कि यात्री बनकर स्वयं अनुभव करना आवश्यक है।
प्रश्न 2. “आप रेल की प्रगति देखना चाहते हैं तो किसी डिब्बे में घुस जाइए”-लेखक यह कहकर क्या दिखाना चाहता है?
उत्तर – लेखक यह बताना चाहता है कि भारतीय रेल की वास्तविक प्रगति को समझने के लिए यात्रियों का अनुभव सबसे महत्वपूर्ण होता है। डिब्बे में बैठकर ही रेल की सुविधाओं, चुनौतियों और उसके विकास को प्रत्यक्ष रूप से जाना और महसूस किया जा सकता है।
प्रश्न 3. भारतीय रेलें हमें किस तरह का जीवन जीना सिखाती हैं?
उत्तर – भारतीय रेलें केवल एक यातायात का साधन नहीं हैं, बल्कि वे हमारे जीवन की एक जीवंत पाठशाला हैं। रेल यात्रा के दौरान विभिन्न परिस्थितियों — भीड़-भाड़, देर-सबेर, सीमित संसाधनों और अजनबियों के साथ तालमेल — से हमें संघर्ष करना और धैर्य रखना सीखने को मिलता है। साथ ही, हमें अनुकूलन की अद्भुत क्षमता का अभ्यास भी करना पड़ता है। यह अनुभव हमें सिखाता है कि जीवन में सफलता केवल प्रतिभा से नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प, साहस, और कभी-कभी थोड़ी सी चतुराई से प्राप्त होती है। इस प्रकार, भारतीय रेलें हमें जीवन की वास्तविकता से रूबरू कराते हुए आत्मनिर्भर और सहिष्णु बनना सिखाती हैं।
प्रश्न 4. ‘ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें।’ इस कथन से लेखक पाठकों को भारतीय रेल की किस अव्यवस्था से परिचित कराना चाहता है?
प्रश्न 5. “जिसमें मनोबल है, आत्मबल, शारीरिक बल और दूसरे किस्म के बल हैं उसे यात्रा करने से कोई नहीं रोक सकता। वे जो शराफत और अनिर्णय के मारे होते हैं वे क्यू में खड़े रहते हैं, वेटिंग लिस्ट में पड़े रहते हैं। यहाँ पर लेखक ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था के एक बहुत बड़े सत्य को उद्घाटित किया हैं “जिसकी लाठी उसकी भैंस’। इस पर अपने विचार संक्षेप में व्यक्त कीजिए।
प्रश्न 6. निम्नलिखित पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें-
(क) “दुर्दशा तब भी थी, दुर्दशा आज भी है…”
लेखक इस कथन के माध्यम से भारतीय समाज की स्थायी समस्याओं पर व्यंग्य करते हैं। वे कहते हैं कि रेलें, हवाई जहाज़ और अन्य आधुनिक साधनों की प्रगति के बावजूद आम जनजीवन की स्थिति में कोई मौलिक परिवर्तन नहीं आया है। हमारे देश में मूलभूत समस्याएँ — जैसे भ्रष्टाचार, सामाजिक असमानता, और मानसिक संकीर्णता — अब भी वैसी की वैसी हैं। लेखक यह स्पष्ट करते हैं कि यदि मानसिकता और व्यवहार में बदलाव नहीं हुआ, तो तकनीकी विकास भी हमारे भाग्य या चरित्र को नहीं सुधार सकता।
(ख) “भारतीय रेलें हमें सहिष्णु बनाती हैं…”
यह कथन रेल यात्रा के माध्यम से मानव जीवन के गुणों की ओर इशारा करता है। लेखक मानते हैं कि भारतीय रेलें हमें धैर्य, सहनशीलता और सह-अस्तित्व की शिक्षा देती हैं। भीड़, देरी और असुविधा जैसे अनुभव हमें मानसिक रूप से सशक्त बनाते हैं। लेखक इस बात को व्यंग्यात्मक ढंग से कहते हैं कि जिस प्रकार हम रेल की अव्यवस्थाओं को सहते हैं, उसी प्रकार यदि समाज में भी हम सहिष्णुता और संयम अपनाएं, तो यही सच्ची प्रगति होगी। यह व्यंग्य आज के समाज में बढ़ती अधीरता और असहिष्णुता की ओर संकेत करता है।
(ग) “भारतीय रेलें हमें मृत्यु का दर्शन समझाती हैं…”
लेखक इस कथन के माध्यम से भारतीय रेलों की असुरक्षा और अव्यवस्था पर करारा व्यंग्य करते हैं। वे कहते हैं कि रेल यात्रा कभी-कभी इतनी जोखिमपूर्ण हो जाती है कि वह हमें जीवन की क्षणभंगुरता और मृत्यु की संभावना का वास्तविक अहसास करा देती है। यह कथन केवल रेल दुर्घटनाओं की ओर संकेत नहीं करता, बल्कि इस बात को भी उजागर करता है कि किस प्रकार आम यात्री अपने जीवन को हर यात्रा में जोखिम में डालता है। यह व्यंग्य रेल प्रशासन की लापरवाही और व्यवस्था की विफलता पर तीखा प्रहार है।
(घ) “कई बार मुझे लगता है भारतीय मनुष्य भारतीय रेलों से भी आगे है…”
यह कथन भारतीय जनता की अनोखी अनुकूलनशीलता और रेल व्यवस्था की सुस्त प्रगति पर व्यंग्य करता है। लेखक यह बताना चाहते हैं कि आम भारतीय नागरिक अपनी जुगाड़, धैर्य और लचीलापन के बल पर हर चुनौती का सामना कर लेता है, चाहे वह रेल की देरी हो या भीड़-भाड़। जबकि रेल व्यवस्था अब भी अतीत की गति से चल रही है। यह कथन जनता की जिजीविषा और व्यवस्था की जड़ता के बीच का विरोधाभास दर्शाता है। लेखक यहाँ यह भी इंगित करते हैं कि जहाँ सरकारें और व्यवस्थाएँ पिछड़ रही हैं, वहीं आम जन अपनी जीवटता से आगे बढ़ रहा है।
प्रश्न 7. रेल-यात्रा के दौरान किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है? पठित पाठ के आधार पर बताइए।
प्रश्न 8. लेखक अपने व्यंग्य में भारतीय रेल की अव्यवस्था का एक पूरा चित्र हमारे सामने प्रस्तुत करता है। पठित पाठ के आधार पर भारतीय रेल की कुछ अवस्थाओं का जिक्र करें।
प्रश्न 9. “रेल विभाग के मंत्री कहते हैं कि भारतीय रेलें तेजी से प्रगति कर रही हैं। ठीक कहते हैं। रेलें हमेशा प्रगति करती हैं।’ इस व्यंग्य के माध्यम से लेखक भारतीय राजनीति व राजनेताओं का कौन-सा पक्ष दिखाना चाहता है। अपने शब्दों में बताइए।
प्रश्न 10. इस पाठ में व्यंग्य की दोहरी धार है-एक विभिन्न वस्तुओं और विषयों की ओर तो दूसरी अपनी अर्थात् भारतीय जनता की ओर। पाठ से उदाहरण देते हुए प्रमाणित कीजिए।

SANTU KUMAR
I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.
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