Bihar Board Class 9 Hindi Chapter 4 Solutions – लाल पान की बेगम

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‘लाल पान की बेगम’ बिहार बोर्ड कक्षा 9 की हिंदी पाठ्यपुस्तक में शामिल एक अत्यंत रोचक और संवेदनशील कहानी है, जिसे प्रसिद्ध लेखक फणीश्वरनाथ रेणु ने लिखा है। रेणु जी अपने लेखन में ग्रामीण जीवन की सच्चाइयों, भावनाओं और सामाजिक ताने-बाने को अत्यंत सजीवता और आत्मीयता के साथ प्रस्तुत करते हैं। इस कहानी की मुख्य पात्र बिरजू की माँ है। लेखक ने एक साधारण ग्रामीण महिला के एक दिन के जीवन की घटनाओं के माध्यम से उसके क्रोध, निराशा, पीड़ा और अंततः प्रसन्नता को बहुत ही सूक्ष्मता से उकेरा है। कहानी में दिखाया गया है कि किस तरह घरेलू जिम्मेदारियों और संघर्षों के बीच भी एक स्त्री अपने आत्मसम्मान और प्रेम की तलाश में जीती है। कहानी का शिल्प अत्यंत सहज और जीवंत है। इसमें गांव की भाषा, माहौल, और रिश्तों की जटिलताएं इस तरह उभरती हैं कि पाठक सीधे उस वातावरण का हिस्सा बन जाता है। अंत में जब बिरजू की माँ खुश होकर पान खाती है, तब लेखक ने उसे ‘लाल पान की बेगम’ की उपाधि देकर उसकी प्रसन्नता और स्त्रीत्व को खूबसूरत रूप में प्रस्तुत किया है। निष्कर्षतः, यह कहानी न केवल मनोरंजक है, बल्कि यह ग्रामीण महिलाओं के मनोविज्ञान, सामाजिक स्थितियों और पारिवारिक संबंधों की गहराइयों को समझने में भी सहायक है।

Bihar Board Class 9 Hindi Chapter 4 Solutions

Subject Hindi
Class 9th
Chapter 4. लाल पान की बेगम
Author फणीश्वरनाथ रेणु
Board Bihar Board

प्रश्न 1. बिरजू की माँ को लालपान की बेगम क्यों कहा गया है?

उत्तर – बिरजू की माँ को ‘लाल पान की बेगम’ इसलिए कहा गया है क्योंकि नाच की तैयारी के समय उसकी विशेष साड़ी से एक अलग ही, आकर्षक सुगंध फैल रही थी। यह सुगंध उसकी विशिष्टता, आत्मगौरव और खास पहचान को दर्शाती थी। यह केवल उसकी साड़ी की खुशबू नहीं थी, बल्कि उसमें छिपी उसकी भावनाओं, तैयारी और स्त्रीत्व की गरिमा की महक थी। इसलिए उसे प्रेमपूर्वक और सम्मान से ‘लाल पान की बेगम’ की उपाधि दी गई। यह नाम ग्रामीण समाज में उसकी खास भूमिका और अनोखी उपस्थिति का प्रतीक बन गया।

प्रश्न 2 “नवान्न के पहले ही नया धान जुठा दिया।” इस कथन से बिरजू की माँ का कौन-सा मनोभाव प्रकट हो रहा है?

उत्तर – जब बिरजू ने धान की एक बाली से एक दाना निकालकर खा लिया, तो उसकी माँ ने नाराज़ होकर उसे डाँटा और कहा कि नेम-धेम का ध्यान रखना चाहिए। उसने बिरजू के पिता से शिकायत की कि नवान्न (अर्थात् नए अन्न का पहला सेवन) से पहले ही अन्न को जूठा कर दिया गया। यह कथन बिरजू की माँ की धार्मिक आस्था और परंपराओं के प्रति सम्मान को दर्शाता है। वह एक ऐसी भारतीय नारी है जो रीति-रिवाजों और धार्मिक विधि-विधान का पालन अत्यंत आवश्यक मानती है। नवान्न जैसे शुभ अवसर पर शुद्धता और अनुशासन का पालन करना उसके लिए पवित्र कर्तव्य है। इसलिए जब बिरजू ने उस परंपरा का उल्लंघन किया, तो वह क्रोधित हो गई और उसे डाँट लगाई।

प्रश्न 3. बिरजू की माँ बैठी मन-ही-मन क्यों कुढ़ रही थी?

उत्तर – गाँव के लोग नाच देखने जा रहे थे, और बिरजू की माँ भी बैलगाड़ी से बलरामपुर नाच देखने जाने वाली थी। लेकिन उसके पति बैलगाड़ी लाने में देर कर रहे थे, जिससे वह अत्यंत चिंतित, अधीर और खिन्न हो उठी थी। इंतज़ार करते-करते उसकी झुंझलाहट बढ़ती गई। अपनी नाराज़गी और निराशा प्रकट करते हुए उसने घर की बत्ती बुझा दी और बच्चों को ज़बरदस्ती सुला दिया। यह व्यवहार उसकी भीतरू कुढ़न, अधीरता और टूटती उम्मीदों को दर्शाता है।

प्रश्न 4. ‘लालपान की बेगम’ शीर्षक कहानी की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखित ‘लाल पान की बेगम’ एक आंचलिक और मनोवैज्ञानिक कहानी है, जिसमें भारतीय ग्रामीण जीवन की सजीव झलक मिलती है। यह कहानी केवल एक साधारण नाच-गान देखने की घटना भर नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से लेखक ने गाँव के सामाजिक ताने-बाने, भावनात्मक जटिलताओं और लोक संस्कृति को अत्यंत गहराई से प्रस्तुत किया है। कहानी में रेणु ने यह दिखाया है कि गाँव के लोग कैसे ईर्ष्या, द्वेष, प्रेम, घृणा, आशा, निराशा, हर्ष और विषाद जैसे भावों में जकड़े रहते हैं। नाच देखने की तैयारी के बहाने लेखक ने ग्रामीण जनजीवन की छोटी-छोटी बातों, रिश्तों की पेचीदगियों और स्त्रियों की भावनात्मक दुनिया को मार्मिक ढंग से उकेरा है। रेणु की भाषा में आंचलिकता का सौंदर्य है — कथा में प्रयुक्त स्थानीय शब्दावली, मुहावरे, रीति-रिवाज और बोलचाल कहानी को और अधिक जीवन्त बना देते हैं। यही कारण है कि इस कहानी का शीर्षक ‘लाल पान की बेगम’ न केवल प्रतीकात्मक है, बल्कि पूरी कहानी की आत्मा को दर्शाता है।

निष्कर्षतः, यह कहानी न केवल मनोरंजक है, बल्कि इसमें ग्रामीण संस्कृति, परंपराएं और मानवीय संवेदनाएं बहुत ही सजीवता और गहराई से व्यक्त हुई हैं, जो इसे एक श्रेष्ठ आंचलिक रचना बनाती हैं।

प्रश्न 5. (क) “चार मन पाट (जूट) का पैसा क्या हुआ है, धरती पर पाँव ही नहीं पड़ते।”

उत्तर – उद्धृत पंक्तियाँ फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखित कहानी ‘लाल पान की बेगम’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने गरीब ग्रामीणों की दैनिक समस्याओं, उनकी सोच और जीवन में आई छोटी-छोटी खुशियों को बड़ी आत्मीयता से चित्रित किया है। यह प्रसंग भखनी फुआ द्वारा कहा गया है, जब वह पानी भरकर लौटते समय अन्य पनभरनियों से बातचीत कर रही होती हैं। वे बताती हैं कि कल तक बिरजू की माँ बहुत परेशान थी, लेकिन अब वह गर्व और खुशी से कह रही है कि उसके पति उसे बैलगाड़ी में बिठाकर बलरामपुर का नाच दिखाने ले जाने वाले हैं। यह बदलाव अच्छी फसल और थोड़ी-सी कमाई के कारण संभव हुआ है। इन पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि आर्थिक स्थिति में थोड़ा-सा सुधार भी ग्रामीण लोगों के जीवन में कितना बड़ा बदलाव ला सकता है। फणीश्वरनाथ रेणु ने इस कहानी में यह दिखाया है कि कैसे गरीबी में जी रहे लोग छोटी-छोटी बातों में भी आशा, खुशी और सम्मान ढूँढ लेते हैं। यह अंश ग्रामीण जीवन की सजीव झलक प्रस्तुत करता है, जिसमें संघर्ष के साथ-साथ उम्मीद की एक नई किरण भी दिखाई देती है।

प्रश्न 6. “दस साल की चंपिया जानती है कि शकरकंद छीलते समय कम-से-कम बार-बार माँ उसे बाल पकड़कर झकझोरेगी, छोटी-छोटी खोट निकालकर गालियां देगी।” इस कथन से चंपिया के प्रति माँ की किस मनोभावना की अभिव्यक्ति होती है?

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखित कहानी ‘लाल पान की बेगम’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने ग्रामीण समाज की कठिनाइयों, पारिवारिक संबंधों और माता के अनुशासनात्मक स्वभाव का यथार्थ चित्रण किया है। इस अंश में माँ की कठोरता और अनुशासनप्रियता विशेष रूप से उभरकर सामने आती है। जब चंपिया शकरकंद छीलती है, तो माँ को आशंका होती है कि वह छीलते-छीलते उन्हें खाने लगेगी या काम में लापरवाही करेगी। इसीलिए माँ उसे बार-बार डाँटती है और कभी-कभी गालियाँ भी देती है। इस व्यवहार से स्पष्ट होता है कि माँ चंपिया पर पूरी तरह विश्वास नहीं करती, बल्कि उसे कठोर अनुशासन में रखकर कार्य करवाना चाहती है। यह माँ के स्वभाव की एक सामान्य ग्रामीण छवि को दर्शाता है, जहाँ घर की स्त्रियाँ कठोर अनुशासन और व्यवहार से ही घर चलाने की आदत रखती हैं। यह अंश न केवल माँ-बेटी के संबंधों को दर्शाता है, बल्कि ग्रामीण जीवन में स्त्रियों की भूमिका, संघर्ष और सोच को भी उजागर करता है।

प्रश्न 7. “बिरजू की माँ का भाग ही खराब है, जो ऐसा गोबर गणेश घरवाला उसे मिला। कौन-सा सौरव-मौज दिया है उसके मर्द ने। कोल्हू के बैल की तरह खरा सारी उम्र काट दी इसके यहाँ।” प्रस्तुत कथन से बिरजू की माँ और के संबंधों में कड़वाहट दिखाई पड़ती है। कड़वाहट स्थायी है या अस्थाई? इसके कारणों पर विचार कीजिए।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखित कहानी ‘लाल पान की बेगम’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने ग्रामीण स्त्री की निरक्षरता, भावुकता और मनोवैज्ञानिक स्थिति का अत्यंत सजीव और यथार्थ चित्रण किया है। इस अंश से स्पष्ट होता है कि बिरजू की माँ और उसके पति के बीच जो कड़वाहट दिखाई देती है, वह स्थायी नहीं है, बल्कि एक क्षणिक भावावेश है। जब बैलगाड़ी समय पर नहीं आती और नाच देखने जाने की योजना बिगड़ती है, तो माँ को निराशा और क्रोध होता है, जिसे वह अपने पति पर उलाहनों और झुंझलाहट के रूप में व्यक्त करती है। लेकिन यह नाराज़गी भावनात्मक क्षणिक प्रतिक्रिया है, न कि उनके रिश्ते की असली स्थिति।यह व्यवहार भारतीय नारी की सहजता, सहनशीलता और पति के प्रति स्नेहभरे उलाहनों को दर्शाता है। ग्रामीण परिवेश में ऐसा सामान्य दांपत्य व्यवहार है, जहाँ तकरार के बावजूद आपसी प्रेम बना रहता है। इस प्रकार, यह पंक्ति पति-पत्नी के रिश्तों में भावनात्मक उतार-चढ़ाव, स्त्री की सहृदयता और मानसिक द्वंद्व को दर्शाती है, जो कहानी को गहराई और यथार्थ प्रदान करती है।

प्रश्न 8. गाँव की गरीबी तथा आपसी क्रोध और ईर्ष्या के बीच भी वहाँ एक प्राकृतिक प्रसन्नता निवास करती है। इस पाठ के आधार पर बताएं।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखित कहानी ‘लाल पान की बेगम’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने गाँव के जीवन, वहाँ की गरीबी, आपसी संबंधों, भावनाओं और मानवीय मूल्यों का अत्यंत सजीव चित्रण किया है। गाँव में भले ही गरीबी, आपसी ईर्ष्या, द्वेष और मनमुटाव जैसी स्थितियाँ मौजूद हों, फिर भी वहाँ एक प्रकार की प्राकृतिक सरलता और सामूहिकता की भावना बनी रहती है। लोग छोटी-छोटी बातों पर लड़ते हैं, तकरार करते हैं, लेकिन जब किसी की मदद या साथ देने की बात आती है तो सब एकजुट हो जाते हैं। उदाहरणस्वरूप, जब बिरजू की माँ बैलगाड़ी से नाच देखने जाती है, तो वह केवल अकेले नहीं जाती, बल्कि पास-पड़ोस की स्त्रियों को भी अपने साथ चलने के लिए बुलाती है। यह दृश्य ग्रामीण समाज की सहयोग, अपनापन और सामूहिक आनंद की भावना को दर्शाता है। इस प्रकार, इन पंक्तियों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि गाँव के लोग भले ही अभावों में जीते हों, लेकिन उनके भीतर मानवीय संवेदनाएँ, सामाजिकता और आपसी सहयोग का भाव गहराई से रचा-बसा होता है।

प्रश्न 9. कहानी में बिरजू और चंपिया की चंचलता और बालमन के कुछ उदाहरण प्रस्तुत करें।

उत्तर – प्रस्तुत कहानी ‘लाल पान की बेगम’ में फणीश्वरनाथ रेणु ने ग्रामीण परिवेश में बच्चों की चंचलता, उत्सुकता और बाल-मन के स्वाभाविक व्यवहार का अत्यंत सजीव चित्रण किया है। कहानी में बिरजू और चंपिया की चंचलता कई प्रसंगों में उभरकर सामने आती है। जब बिरजू बांगड़ को मारता है, तो उसकी माँ नाराज़ हो जाती है—यह प्रसंग बच्चों की नटखट प्रवृत्ति और माँ की झुंझलाहट को दर्शाता है। इसी प्रकार, जब चंपिया हलवाई की दुकान से सामान लाने में देर करती है, तो माँ की प्रतिक्रिया से उसकी चिंता और बच्चों पर नियंत्रण रखने की कोशिश झलकती है। इसके अलावा, शकरकंद खाने की लालसा और माँ की डाँट-मार के बावजूद बच्चों का उसी पर अड़े रहना उनके बालसुलभ स्वभाव और जिज्ञासा को प्रकट करता है। ये सभी प्रसंग बच्चों के मनोविज्ञान और उनकी स्वाभाविक ऊर्जा को दर्शाते हैं। फणीश्वरनाथ रेणु ने अत्यंत सहज, आत्मीय और संवेदनशील ढंग से बाल-मन की परतों को उकेरा है, जिससे कहानी और अधिक प्राकृतिक, रोचक और जीवन्त बन जाती है।

प्रश्न 10. ‘लाल पान की बेगम’ कहानी का सारांश लिखें।

उत्तर – ‘लाल पान की बेगम’ फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखित एक आंचलिक और मनोवैज्ञानिक कहानी है, जिसमें ग्रामीण जीवन की सादगी, कठिनाइयाँ, संवेदनाएँ और रिश्तों की जटिलता का अत्यंत सजीव चित्रण किया गया है। इस कहानी की मुख्य पात्र बिरजू की माँ है, जिसके माध्यम से लेखक ने ग्रामीण स्त्री के संघर्ष, भावनात्मक द्वंद्व और छोटी-छोटी खुशियों को बेहद संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत किया है। नाच देखने की तैयारी के बहाने लेखक ने गाँव के लोगों के आपसी संबंधों, ईर्ष्या-द्वेष, आशा-निराशा और सामूहिकता की भावना को उकेरा है। कहानी में बिरजू और चंपिया की बालसुलभ चंचलता, तथा माँ की अनुशासनप्रियता और कठोरता, ग्रामीण परिवारों की स्वाभाविक जीवनशैली को उजागर करती है। साथ ही, रेणु जी ने स्थानीय भाषा, मुहावरे, संस्कृति और रीति-रिवाजों के माध्यम से कहानी को वास्तविकता के अत्यंत करीब ला दिया है। इस प्रकार, ‘लाल पान की बेगम’ न केवल एक मनोरंजक कथा है, बल्कि यह भारतीय ग्रामीण जीवन का प्रामाणिक दस्तावेज भी है।

Author

SANTU KUMAR

I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.

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