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जनसंख्या: वितरण घनत्व एवं वृद्धि और संघटन Subjective

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प्रश्न 1.  भारत के अत्यंत उष्ण एवं शुष्क तथा अत्यंत शीत व आर्दै प्रदेशों में जनसंख्या का घनत्व निम्न है। इस कथन के दृष्टिकोण से जनसंख्या के वितरण में जलवायु की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – भारत में जनसंख्या का वितरण जलवायु पर बहुत हद तक निर्भर करता है। जहाँ जलवायु अनुकूल होती है, वहाँ लोग अधिक संख्या में रहते हैं, और जहाँ जलवायु बहुत कठिन होती है, वहाँ लोग कम बसते हैं। यह बात नीचे दिए गए उदाहरणों से स्पष्ट होती है:

1. अत्यंत गर्म और सूखे क्षेत्र (उष्ण व शुष्क)

जैसे — राजस्थान का थार मरुस्थल

  • यहाँ बहुत ज्यादा गर्मी पड़ती है (गर्मियों में 45°C से ऊपर)।

  • बारिश बहुत कम होती है।

  • पानी की भारी कमी होती है।

  • खेती करना और रहना मुश्किल होता है।

👉 इसलिए यहाँ जनसंख्या घनत्व बहुत कम है। (जैसे जैसलमेर, बाड़मेर आदि जिलों में)

2. अत्यंत ठंडे और बर्फीले क्षेत्र (शीत व आर्द्र)

जैसे — लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश के ऊँचे इलाके

  • यहाँ सर्दियों में बहुत अधिक ठंड होती है (तापमान -20°C तक गिर सकता है)।

  • बर्फबारी के कारण आवागमन और जीवन कठिन होता है।

  • खेती की सुविधा कम होती है।

👉 इसलिए इन क्षेत्रों में भी जनसंख्या घनत्व बहुत कम है।

🔸 निष्कर्ष:

जहाँ जलवायु बहुत गर्म, सूखी या बहुत ठंडी होती है, वहाँ रहना मुश्किल होता है। इस कारण वहाँ लोग कम बसते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि जलवायु जनसंख्या के वितरण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है

प्रश्न  2. भारत के किन राज्यों में विशाल ग्रामीण जनसंख्या है? इतनी विशाल ग्रामीण जनसंख्या के लिए उत्तरदायी एक कारण को लिखिए।

उत्तर – 🔹 भारत के जिन राज्यों में विशाल ग्रामीण जनसंख्या है, वे हैं:

  • उत्तर प्रदेश

  • बिहार

  • मध्य प्रदेश

  • पश्चिम बंगाल

  • राजस्थान

  • महाराष्ट्र

  • ओडिशा

  • झारखंड

  • छत्तीसगढ़

इन राज्यों में करोड़ों लोग गाँवों में निवास करते हैं।

🔸 इतनी विशाल ग्रामीण जनसंख्या का एक प्रमुख कारण:

कृषि पर निर्भरता
इन राज्यों में आज भी अधिकतर लोग खेती-बाड़ी और पशुपालन जैसे कार्यों पर निर्भर हैं। गाँवों में जमीन उपलब्ध होती है और कृषि प्रमुख आजीविका का साधन है।

👉 इसीलिए इन क्षेत्रों में गाँवों में रहने वाले लोगों की संख्या अधिक है

प्रश्न 3. भारत के कुछ राज्यों में अन्य राज्यों की अपेक्षा श्रम सहभागिता ऊँची क्यों है?

उत्तर – भारत एक विविधतापूर्ण देश है, जहाँ विभिन्न राज्यों में श्रम सहभागिता दर (Labour Force Participation Rate – LFPR) में महत्वपूर्ण भिन्नताएँ पाई जाती हैं। कुछ राज्य, जैसे हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, और तमिलनाडु, में श्रम सहभागिता दर अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है। यह भिन्नता सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक कारणों के संयोजन का परिणाम है। इस विस्तृत लेख में, हम इन भिन्नताओं के कारणों का विश्लेषण करेंगे और समझेंगे कि क्यों कुछ राज्यों में श्रम सहभागिता दर अधिक है।

1. आर्थिक संरचना और रोजगार के अवसर:

भारत के विभिन्न राज्यों की आर्थिक संरचना में भिन्नताएँ हैं, जो श्रम सहभागिता दर को प्रभावित करती हैं।

  • औद्योगिकीकरण और सेवा क्षेत्र का विकास: राज्य जैसे तमिलनाडु और तेलंगाना में औद्योगिकीकरण और सेवा क्षेत्र का विकास हुआ है, जिससे रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हुए हैं। इसके परिणामस्वरूप, इन राज्यों में श्रम सहभागिता दर अधिक है।

  • कृषि पर निर्भरता: बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कृषि पर अत्यधिक निर्भरता है, जहाँ रोजगार के सीमित अवसर हैं। इसके कारण, इन राज्यों में श्रम सहभागिता दर अपेक्षाकृत कम है।

2. शिक्षा और कौशल विकास:

शिक्षा और कौशल विकास भी श्रम सहभागिता दर को प्रभावित करते हैं।

  • शिक्षा का स्तर: राज्य जैसे हिमाचल प्रदेश और सिक्किम में शिक्षा का स्तर उच्च है, जिससे युवाओं में रोजगार के प्रति जागरूकता और भागीदारी बढ़ी है।

  • कौशल प्रशिक्षण: छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं को रोजगार योग्य बनाया गया है, जिससे श्रम सहभागिता दर में वृद्धि हुई है।

3. सामाजिक और सांस्कृतिक कारक:

सामाजिक और सांस्कृतिक कारक भी श्रम सहभागिता दर को प्रभावित करते हैं।

  • लिंग आधारित भेदभाव: कुछ राज्यों में महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी कम है, जो सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का परिणाम है।

  • जातिगत संरचनाएँ: जातिगत संरचनाएँ भी रोजगार के अवसरों को प्रभावित करती हैं, जिससे कुछ समुदायों की श्रम बल में भागीदारी सीमित होती है।

4. सरकारी नीतियाँ और योजनाएँ:

सरकारी नीतियाँ और योजनाएँ भी श्रम सहभागिता दर को प्रभावित करती हैं।

  • मनरेगा जैसी योजनाएँ: छत्तीसगढ़ और तेलंगाना जैसे राज्यों में मनरेगा जैसी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़े हैं, जिससे श्रम सहभागिता दर में वृद्धि हुई है।

  • महिला सशक्तिकरण योजनाएँ: तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों में महिला सशक्तिकरण के लिए विशेष योजनाएँ लागू की गई हैं, जिससे महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी बढ़ी है।

5. भौगोलिक और पर्यावरणीय कारक:

भौगोलिक और पर्यावरणीय कारक भी श्रम सहभागिता दर को प्रभावित करते हैं।

  • प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता: छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में खनिज संसाधनों की प्रचुरता है, जिससे औद्योगिक विकास हुआ है और रोजगार के अवसर बढ़े हैं।

  • जलवायु और कृषि: कुछ राज्यों में जलवायु और कृषि की स्थिति रोजगार के अवसरों को प्रभावित करती है, जिससे श्रम सहभागिता दर में भिन्नताएँ आती हैं।

निष्कर्ष:

भारत के विभिन्न राज्यों में श्रम सहभागिता दर में भिन्नताएँ सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक कारणों का परिणाम हैं। इन भिन्नताओं को समझना और संबद्ध कारणों का विश्लेषण करना नीति निर्माण में सहायक हो सकता है, जिससे समग्र विकास और समान अवसर सुनिश्चित किए जा सकते हैं।

प्रश्न 4. कृषि सेक्टर में भारतीय श्रमिकों का सर्वाधिक अंश संलग्न है।” स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की बड़ी आबादी अभी भी अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर है। इसलिए यह कथन कि “कृषि सेक्टर में भारतीय श्रमिकों का सर्वाधिक अंश संलग्न है”, बिल्कुल सही है।

🔹 इस कथन की स्पष्टता निम्न बिंदुओं से होती है:

  1. रोज़गार का प्रमुख स्रोत:

    • भारत में कुल श्रमिकों में से लगभग 40% से अधिक लोग कृषि क्षेत्र में काम करते हैं।

    • ये श्रमिक खेतों में काम करने वाले किसान, बटाईदार, खेतिहर मज़दूर या पशुपालन और मत्स्य पालन से जुड़े लोग हो सकते हैं।

  2. ग्रामीण जनसंख्या की निर्भरता:

    • भारत की लगभग 65-70% जनसंख्या गाँवों में रहती है, और इन ग्रामीण लोगों की मुख्य आजीविका खेती और उससे जुड़ी गतिविधियाँ हैं।

  3. कम औद्योगिकीकरण और शहरीकरण:

    • देश के कई हिस्सों में अभी भी उद्योग और सेवा क्षेत्र पर्याप्त विकसित नहीं हुए हैं, इसलिए लोगों को खेती ही मुख्य विकल्प के रूप में अपनाना पड़ता है।

  4. श्रमिकों की पारंपरिक भूमिका:

    • भारत में खेती को पीढ़ी दर पीढ़ी का कार्य माना जाता रहा है, और अधिकांश परिवार खेती को ही अपनी परंपरागत आजीविका मानते हैं।

  5. अर्धरोज़गारी की स्थिति:

    • कृषि में संलग्न कई लोग पूरे समय काम में लगे नहीं होते, लेकिन फिर भी वे कृषि क्षेत्र में गिने जाते हैं।

    • इससे कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की संख्या अधिक दिखती है, भले ही उनकी उत्पादकता कम हो।

🔸 निष्कर्ष:

भारत में कृषि न केवल भोजन और कच्चा माल प्रदान करती है, बल्कि यह करोड़ों लोगों को रोज़गार भी देती है। यही कारण है कि आज भी भारतीय श्रमिकों का सबसे बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र में संलग्न है।

प्रश्न 5. भारत में जनसंख्या के घनत्व के स्थानिक वितरण की विवेचना कीजिए।

उत्तर – भारत में जनसंख्या के घनत्व के स्थानिक वितरण की विवेचना करना एक महत्वपूर्ण भौगोलिक अध्ययन है, क्योंकि यह देश के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय विकास को गहराई से प्रभावित करता है। जनसंख्या घनत्व का अर्थ है प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों की संख्या। भारत में यह वितरण समान नहीं है और विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न कारणों से अलग-अलग घनत्व देखने को मिलता है।

भारत में जनसंख्या घनत्व का वितरण (2021 अनुमानित अनुसार):

क्षेत्रजनसंख्या घनत्व (प्रति वर्ग किमी)विशेषताएँ
बिहार~1,300सबसे अधिक घनत्व, कृषि उपजाऊ भूमि, गंगा नदी के मैदान
पश्चिम बंगाल~1,100घना शहरीकरण, जल संसाधनों की उपलब्धता
केरल~900उच्च साक्षरता, स्वास्थ्य सेवाएँ, प्रवास का प्रभाव
उत्तर प्रदेश~850विशाल जनसंख्या, गंगा का मैदान, कृषि पर निर्भरता
अरुणाचल प्रदेश~17बेहद कम घनत्व, दुर्गम भौगोलिक स्थिति, सीमित संसाधन

1. भौगोलिक विशेषताएँ:

  • मैदानी क्षेत्र (जैसे गंगा के मैदान): उपजाऊ भूमि और जल उपलब्धता के कारण अधिक जनसंख्या घनत्व।

  • पर्वतीय और मरुस्थलीय क्षेत्र (जैसे हिमालय, थार): कठिन जीवन शैली, संसाधनों की कमी और कठिन भू-आकृति के कारण कम घनत्व।

2. जलवायु:

  • अनुकूल जलवायु (जैसे उत्तर भारत के मैदानी इलाके) अधिक जनसंख्या को आकर्षित करते हैं।

  • अत्यधिक ठंडी या गर्म जलवायु (लद्दाख, राजस्थान) घनत्व को सीमित करती है।

3. आर्थिक गतिविधियाँ:

  • औद्योगिक व शहरी क्षेत्र (जैसे मुंबई, दिल्ली): रोजगार की उपलब्धता और बेहतर जीवनशैली के कारण अधिक जनसंख्या घनत्व।

  • ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों में रोजगार के अवसर सीमित होने के कारण कम घनत्व।

4. सामाजिक और ऐतिहासिक कारण:

  • प्राचीन सभ्यताओं के क्षेत्र (जैसे वाराणसी, पटना) में ऐतिहासिक रूप से अधिक जनसंख्या केंद्रित है।

  • प्रवास का प्रभाव (केरल, पंजाब) भी जनसंख्या घनत्व को प्रभावित करता है।

🔍 स्थानिक वितरण के प्रमुख पैटर्न:

  1. पूर्वी भारत – उच्च जनसंख्या घनत्व (बिहार, बंगाल, असम)

  2. दक्षिणी भारत – मध्यम घनत्व (केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश)

  3. उत्तर भारत – उच्च से बहुत उच्च घनत्व (उत्तर प्रदेश, हरियाणा)

  4. उत्तर-पूर्व भारत और हिमालयी क्षेत्र – न्यूनतम घनत्व (अरुणाचल, सिक्किम, लद्दाख)

  5. पश्चिमी भारत – मिश्रित (राजस्थान – कम; गुजरात – मध्यम)

🔚 निष्कर्ष:

भारत में जनसंख्या घनत्व का स्थानिक वितरण असमान है और यह प्राकृतिक, सामाजिक, आर्थिक व ऐतिहासिक कारकों से प्रभावित होता है। देश के विकास की योजनाओं में इस स्थानिक असमानता को ध्यान में रखना आवश्यक है ताकि संसाधनों का समुचित वितरण और संतुलित क्षेत्रीय विकास सुनिश्चित किया जा सके।

प्रश्न 6.  भारत की जनसंख्या के व्यावसायिक संघटन का विवरण दीजिए ।

उत्तर – भारत की जनसंख्या का व्यावसायिक संघटन (Occupational Structure) यह दर्शाता है कि देश की जनसंख्या किन-किन कार्यों या व्यवसायों में संलग्न है। इससे यह समझने में सहायता मिलती है कि देश की अर्थव्यवस्था किस हद तक कृषि-आधारित है, उद्योगों में कितने लोग कार्यरत हैं और सेवा क्षेत्र में भागीदारी कितनी है।

व्यावसायिक संघटन के तीन मुख्य क्षेत्र:

भारत में जनसंख्या को आमतौर पर तीन प्रमुख व्यवसायिक क्षेत्रों में बाँटा जाता है:

क्षेत्रवर्णनउदाहरण
1. प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector)यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित है।कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, वानिकी, खनन
2. द्वितीयक क्षेत्र (Secondary Sector)इसमें कच्चे माल का प्रसंस्करण और उत्पादन शामिल होता है।विनिर्माण, निर्माण कार्य, कुटीर उद्योग
3. तृतीयक क्षेत्र (Tertiary Sector)यह सेवाओं से जुड़ा क्षेत्र है।परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, व्यापार

📊 भारत में व्यावसायिक संघटन (2021 अनुमानित आँकड़े के अनुसार):

क्षेत्रजनसंख्या की भागीदारी (%)
प्राथमिक क्षेत्रलगभग 42%
द्वितीयक क्षेत्रलगभग 25%
तृतीयक क्षेत्रलगभग 33%

🔹 नोट: स्वतंत्रता के समय (1951 में) भारत की लगभग 70% जनसंख्या प्राथमिक क्षेत्र (खासतौर पर कृषि) पर निर्भर थी। लेकिन समय के साथ यह अनुपात घटा है, और सेवा क्षेत्र में वृद्धि हुई है।

📌 विश्लेषण:

1. प्राथमिक क्षेत्र का प्रभुत्व:

  • ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश लोग आज भी कृषि पर निर्भर हैं।

  • कृषि में काम करने वालों की संख्या अधिक है लेकिन उत्पादन और आय में अपेक्षाकृत कम योगदान है।

2. द्वितीयक क्षेत्र का विकास:

  • औद्योगीकरण और शहरीकरण के चलते इस क्षेत्र में रोज़गार के अवसर बढ़े हैं।

  • विशेषकर कपड़ा, स्टील, सीमेंट और कुटीर उद्योगों में।

3. सेवा क्षेत्र का तेज़ी से विस्तार:

  • सूचना प्रौद्योगिकी, बैंकिंग, पर्यटन, और स्वास्थ्य सेवाओं के कारण यह क्षेत्र सबसे तेज़ी से बढ़ रहा है।

  • उच्च शिक्षित जनसंख्या का झुकाव सेवा क्षेत्र की ओर बढ़ रहा है।

🧭 भौगोलिक अंतर:

  • ग्रामीण क्षेत्र: मुख्यतः प्राथमिक क्षेत्र पर निर्भर।

  • शहरी क्षेत्र: द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में अधिक भागीदारी।

🔚 निष्कर्ष:

भारत का व्यावसायिक संघटन अब संक्रमण की अवस्था में है। यद्यपि आज भी बड़ी संख्या में लोग कृषि पर निर्भर हैं, लेकिन सेवा और औद्योगिक क्षेत्रों में लगातार वृद्धि हो रही है। यह परिवर्तन देश की आर्थिक संरचना को विविधता देने और विकास को संतुलित करने की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है।

Author

SANTU KUMAR

I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.

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