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⭐ सूरदास – जीवन परिचय

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1. प्रारंभिक जीवन

सूरदास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के प्रमुख कवि थे। उनके जन्म के विषय में निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है, परंतु माना जाता है कि उनका जन्म 1478 ई. में दिल्ली–आगरा क्षेत्र के पास रुनकटा गाँव में हुआ था। कुछ विद्वान उनका जन्म स्थान सीही (हरियाणा) भी बताते हैं। सूरदास जन्म से नेत्रहीन थे, परंतु उनकी आत्मा और मन में अद्भुत संवेदना और भक्तिभाव भरा हुआ था। बचपन से ही वे भगवान कृष्ण की लीलाओं के प्रति आकर्षित थे।


2. शिक्षा

सूरदास ने औपचारिक शिक्षा अधिक प्राप्त नहीं की, क्योंकि वे दृष्टिहीन थे। फिर भी उन्होंने संगीत, भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा प्राप्त की। उनकी शिक्षा का सबसे बड़ा माध्यम स्वानुभूति, गुरु सेवा और सत्संग था। बाद में वे महान आचार्य और संत वल्लभाचार्य की शरण में गए, जहाँ उन्होंने पुष्टिमार्ग की दीक्षा ली। यही उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ बना।


3. करियर / प्रमुख योगदान

सूरदास कृष्णभक्ति शाखा के सर्वश्रेष्ठ कवियों में सम्मिलित हैं। उनकी काव्य–रचनाओं में बाल–कृष्ण की लीलाओं, वात्सल्य, प्रेम, भक्ति और मानवता का अद्भुत समन्वय मिलता है।
सूरदास की काव्य प्रतिभा इतनी विशाल थी कि उन्हें अष्टछाप के श्रेष्ठतम कवियों में शामिल किया गया।
उनके पद और काव्य आज भी मंदिरों में गाए जाते हैं। उन्होंने भक्ति–काल में कृष्ण भक्ति को जन–जन तक पहुँचाया और रस, भाव तथा लोक भाषा को उच्च स्तर पर स्थापित किया।


4. प्रमुख रचनाएँ

सूरदास की प्रमुख रचनाएँ निम्न हैं—

  1. सूरसागर
  2. सूरसारावली
  3. साहित्य लहरी
  4. नालंदा ग्रंथ (माना जाता है)
  5. विभिन्न पद–संग्रह

इनमें से सूरसागर उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति है, जिसमें कृष्ण के बाल–लीला, गोप–गोपियों के भाव, और वात्सल्य रस का अप्रतिम चित्रण मिलता है।


5. उपलब्धियाँ / साहित्यिक महत्व

  • सूरदास “वात्सल्य रस” के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं।
  • उन्होंने कृष्ण लीला, मुरली–माधुर्य, और बाल–सुलभ चंचलता को इतने सुंदर ढंग से लिखा कि पाठक भाव–विभोर हो जाता है।
  • ब्रज भाषा को साहित्यिक ऊँचाई देने का श्रेय सूरदास को जाता है।
  • पदों के माध्यम से भक्ति को सरल और लोक–प्रिय बनाया।
  • उनकी काव्य शैली में माधुर्य भाव, सरलता, सहजता और गहन अध्यात्म का सुंदर मेल मिलता है।

6. पुरस्कार / सम्मान

उस समय आधुनिक पुरस्कार प्रचलित नहीं थे, परंतु सूरदास को जन–मानस, संत परंपरा और भक्ति–आंदोलन में अत्यंत उच्च सम्मान प्राप्त था। आचार्य वल्लभाचार्य उन्हें अपना प्रिय शिष्य मानते थे।


7. मृत्यु / विरासत

सूरदास का निधन 1583 ई. के लगभग मथुरा के पास हुआ माना जाता है। उनकी विरासत आज भी उतनी ही जीवंत है जितनी 500 वर्ष पहले थी।
उनकी रचनाएँ, विशेषकर “सूरसागर”, भारतीय भक्ति साहित्य का आधारस्तंभ हैं।
भक्ति, प्रेम, वात्सल्य और कृष्ण लीला की जो छवि सूरदास ने रची, वह आज भी अमर है और सदियों तक प्रेमियों व भक्तों को प्रेरित करती रहेगी।


8. रोचक तथ्य

  • सूरदास जन्म से नेत्रहीन थे, लेकिन उनकी काव्य दृष्टि बेहद गहरी थी।
  • कहा जाता है कि कृष्ण ने स्वयं उनकी काव्य–शक्ति को जागृत किया।
  • उनके लिखे लगभग 1 लाख पदों में से आज करीब 7,000 ही उपलब्ध हैं।
  • सूरदास अष्टछाप के प्रमुख गायन–कवियों में से एक थे।
  • मंदिरों में गाए जाने वाले कई प्रसिद्ध भजन सूरदास की ही रचनाएँ हैं।
Author

SANTU KUMAR

I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.

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