विचारक विशवास और इमारते Subjective

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प्रश्न 1. 6 वीं सदी में धर्म सुधार आंदोलन के कारणों की विवेचना कीजिए ? 

उत्तर – 6 वीं सदी ई.पूर्व में धर्म सुधार आंदोलन का अभिप्राय है कि उतरवैदिक काल के अन्त में कई धार्मिक कर्मकांड पनपने लगे तथा कई कमजोरियां उजागर होने लगी | जिसका सुधार करने के उदेश्य से 6 वी सदी ई.पूर्व में क्रांतिकारी विचारशील लोगो द्वाराधार्मिक सुधार आंदोलन प्रारम्भ किया गया |

                           इस धर्म सुधार आंदोलन के कई महत्वपूर्ण कारण थे, जो इस प्रकार है -: 

  1. जटिल वर्ग व्यवस्था -:  6 वी सदी ई.पूर्व में देखा जाए तो वर्ण व्यवस्था एवं जाती व्यवस्था काफ़ी जटिल बन चूका था | क्योंकि समाज में कर्म के स्थान को जन्म ले लिया था | अर्थात कार्यो का निर्धारण उनके जन्म के आधार पर होने लगा | ब्राहमण, क्षत्रिय को विशेषाधिकार प्राप्त था एवं काफ़ी सुख-सुविधा मिलना शुरू जो गया तथा ठीक इसके विपरीत वैश्य एवं शुद्र व्यक्तियों का जीवन कई बुराईयों से जकड़ गया और यह इन लोगों में वर्ण व्यवस्था के प्रति असंतोष की भावना को जन्म देता है जो धर्म सुधार आंदोलन के उत्पती का करण बनता है |
  2. कर्मकांडीय स्वरूप -: 6 वी सदी ईशा पूर्व में ब्राहमणवाद द्वारा एक बुरे स्वरूप के धारण क्र लिया गया | वही ब्राहमणों के द्वारा कई प्रकार के धार्मिक कर्मकांड बनाए गए जिसमे पुरुषमेध यज्ञ को लाया गया | किन्तु इन यज्ञ में पशुबली सुरा की आहुती एवं मानवबली को आवश्यक बताया गया जो धार्मिक कर्मकांडो के स्वरूप का दिशा बदल देता है | इस तरह के कर्मकाण्डो का लोगो के द्वारा विरोध किया गया एवं इसे सुधारने का प्रयास किया गया |
  3. धार्मिक जीवन के प्रति असंतोष -: नए धर्मो के उदय, धार्मिक क्षेत्र में बढ़ रहे आडरम्बर एवं अन्धविश्वासो ने धार्मिक क्रियाकलापो को जटिल बना दिया तथा पुरोहितों के हाथों में पूरी तरह से धार्मिक विषयों का नियत्रण चला गया | जिससे ब्राहमणवाद का विकास हुआ, जिसने आंदोलन का जन्म दिया | 
  4. आर्थिक कारण -: धर्म सुधार आंदोलन का यह सबसे प्रमुख कारण माना जाता हैं | मगध धर्मसुधार आंदोलन का केंद्र था | जो आर्थिक रूप से 6 वी सदी ई.पु. में काफ़ी समृद्ध था अत: आर्थिक रुप से समृद्ध एक सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन था जो बोद्धिक विकास को जन्म दिया | फलस्वरूप कुरितियो को सुधारने का प्रयास किया गया | इस प्रकार इन उपर्युक्त कथनों के आधार पर हमें यह स्पष्ट रूप से पत्ता चलता है कि-धार्मिक सुधार आंदोलन का मुख्य कारण धार्मिक एवं सामाजिक कुरितियो थी |

प्रश्न 2. वर्द्धमान  का जिवन परिचय लिखते हुए उनके उपदेशो का वर्णन करे ? 

या 

महावीर स्वामी की जीवनी तथा जेन धर्मो धर्मो के उपदेशो का वर्णन करे ? 

उत्तर – जेन-धर्म के 24 वे तीर्थकर महावीर स्वामी का वास्तविक नाम वर्द्धमान था | इनका जन्म 540 ई. पु. में वैशाली के निकट कुंडग्राम में हुआ था |इनके पिता का नाम सिद्धार्थ माता त्रिशिला था | महावीर स्वामी का बालकल्यान राजघराने में व्यतीत हुआ |

                                 युवाअवस्था में वर्द्धमान का विवाह सुंदर कन्या यशोदा से हुआ | जिससे इन्हें एक पुत्री की प्राप्ति हुई | जिनका नाम प्रियदर्शन रखा गया | वर्द्धमान  बचपन से ही कुशाग्र एवं चिंतनशील स्वाभाव के थे | ये हमेशा सांस्कृतिक बंधनों से मुक्ति पाना चाहते थे | यही कारण है कि पिता के मरणोपरांत 30 वर्ष की आयु में अपे भाई नन्दिवर्धन से अनुमति लेकर ग्रहस्थ जीवन को त्यागकर ज्ञान की ख़ोज में निकल पड़ते हैं | 12 वर्षो की कठिन तपस्या के उपरांत त्रुजुपलिका नदी के तट पर साल वृक्ष के निचे उन्हें सर्वोच ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिसके कारण इनका केवलिन या केवली नाम पड़ा इन्होंने ज्ञान की प्राप्ती के दोरान अपने सभी इन्द्रयों पर विजय प्राप्त कर लिया | जिसके कारण ये जिन कहलाए | इसके अलावे इन्हें निग्रन्थ कहा जाता है | 

                महावीर स्वामी ज्ञान प्राप्त करने के उपरांत पहला उपदेश राजग्रह में विपुलांचल पहाड़ी पर बिम्बिसार, आजादशत्रु और अभय को दिए | किन्तु इसके पहले शिष्य के रूप में इनके दामाद जमाली जाने जाते हैं | इन्होंने जेन-धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए जेन संघ की स्थापना कि एवं क्षेत्र भ्रमण कर उपदेश के माध्यम से इस धर्म का प्रचार-प्रसार किया | इस प्रकार इन्होंने क्षेत्र भ्रमण के दोरान अधिक समय राजग्रह एवं वैशाली में व्यतीत किये | किन्तु इनका अंतिम वर्षावास पावापुरी था | जंहा इन्हें 468 ई. पु. में निर्वाण की प्राप्ती हुई | 

पश्न 3. जेन धर्म के प्रमुख सिधांतो का वर्णन करे ? 

उत्तर – जेन-धर्म के 24 वै तीर्थकर महावीर स्वामी थे | जिन्होंने सत्य, अहिंसा, असत्य, अपरिग्रह एवं ब्रहम्चार्य का शिक्षा दिया | जिसका तात्पर्य है कि मुक्ति पाने के लिए हमें सांसारिक बंधनों से मुक्त रहना होगा | इस तरह से ज्ञान प्राप्ती के बाद महावीर स्वामी ने जो सिधांत दिया | वही जेन सिधांत कहलाया | जो निम्न्लिखित है -: 

  1. त्रिरत्न 
  2. मोक्ष या निर्माण 
  3. अहिंसा
  4. ईश्वर संबंधी विचार 
  5. पंचमहाव्रत 

1. त्रिरत्न -: महावीर स्वामी ने पूर्वजन्म के कर्मफल से मुक्ति पाने के लिए त्रिरत्न का पालन करना आवश्यक बतलाया हैं  |

a)  सम्यक ज्ञान – सच्चा एवं सम्पूर्ण ज्ञान होना |

b) सम्यक दर्शन – सत्य में विश्वास 

c) सम्यक आचरण – सदा चरण 

2. मोक्ष या निर्माण -: संसारिक बंधंनो से मुक्ति पाना ही मोक्ष कहलाता है | मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ती के लिए सही कर्म करना चाहिए तथा मोह-माया से छुटकारा का व्रत पर जोर देना चाहिए |

3. अहिंसा -: जेन-धर्म में अहिंसा को पंच-महाव्रत में शामिल किया गया है | अहिंसा का तात्पर्य केवल मारना हि नही होता बल्कि किसी के दिल को ठेस भी नही पहुँचाना चाहिए | 

4. ईश्वर संबंधी विचार -: जेन-धर्म का यह एक प्रमुख सिधांत है कि इसकी प्रकति नास्तिकवादी होते है, जो ईश्वर को नही मानते |

5. पंचमहाव्रत -: जेन-धर्म के अंतिम तीर्थकर महावीर स्वामी ने जेन भीक्षु एवं भीक्षुनियो के लिए 5 व्रत की व्याख्या किए जो इस प्रकार हैं -: 

a) सत्य, b) अहिंसा, c) असत्य, d) अपरीग्रह, e) ब्रह्मचर्य इस प्रकार हमें यह ज्ञात होता है कि मनुष्य जेन-धर्म के सिधांतो का पालन कर एक अच्छा आचरण वाला इन्सान बन सकते है | तथा मोक्ष की प्राप्ती कर सकता है |

प्रश्न 4. जेन धर्म के उत्थान की व्याख्या करे ? 

उत्तर – ऋग्वेद के अनुसार जेन धर्म की स्थापना दो ऋषिमुनि ऋषभदेव एवं अरिष्टनेमि द्वारा किया गया है | किन्तु जेन धर्म के वास्तविक संस्थापक एवं विकसित करने का श्रेय महावीर स्वामी को जाता हैं | महावीर स्वामी ने इस धर्म का प्रचार प्रसार भारत के अलावे अंतरास्ट्रीय स्तर पर किया | इन्होंने इस धर्म का प्रचार-प्रसार हेतु जेन संघ की स्थापना की और जेन धर्म के अनुयायियों को विभिन्न गणों में विभक्त किया | इस प्रकार इन्होंने जेन धर्म के उत्यान में काफ़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाया | जेन धर्म के विकास अथवा उत्यान के पिछे निम्न उतरदायी कारण थे -: 

1. राजकीय संरक्ष्ण -: हर्यक वंश के संस्थापक बिम्बिसार, अजादशत्रु, उदइन, मोर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मोर्य, बिन्दुसार आदि शासको के द्वारा जेन-धर्म को राजकीय संरक्ष्ण प्रदान हुआ | जो इसके उत्थान का कारण बना | 

2. सामान्य भाषा का प्रयोग -: इस धर्म के सिधांत ए२को लोगो को साधारण आम जन भाषा प्राकृत में बताया गया जिससे लोग इस धर्म की और तीव्रता से आकर्षित हुए | 

3. सामाजिक समानता -: जेन-धर्म ने ब्राह्मणवाद एवं जात-पात की भेदभाव पर कठोर प्रहार किया और जेन धर्म को सभी वर्गो के लोगो को अपनाने की अनुमति थी, जिससे लोग इस धर्म किम और आकर्षित हुए | 

                   इस प्रकार इन उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि जेन-धर्म अपनी निष्टताओ के कारण काफ़ी कम समय में अधिक उत्थान कर लिया | 

प्रश्न 5. महात्मा बुद्ध का जीवनी परिचय लिखे ?

उत्तर – महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ई. पू. कपिलवस्तु के निकट नेपाल की तराई में लुम्बनी नामक ग्राम में हुआ था | इनके बचपन का नाम ‘सिद्धार्थ’ था | इनके पिता का नाम शुद्धोधन तथा माता का नाम महामाया था | गोतम बुद्ध के जन्म के सातवे दिन ही इनकी माता महामाया की मृत्यु हो जाती है | जिसके बाद इनका पालन-पोषण शाक्य नरेश की दूसरी पत्नी और गोतम बुद्ध की मोसी महाप्रजपति गोतमी करती हैं |

                     गोतम बुद्ध बचपन से ही घिंतनशील स्वाभाव के थे | इनके गतिविधियों को देखते हुए 16 वर्ष की आयु में कोलियगण की सुंदर कन्या यशोधर से इनका विवाह कर दिया जाता है | जिससे इन्हें एक पुत्र ‘राहुल’ की प्राप्ति होती है, जो 12 वर्ष के बाद होता है |

                              एक दिन गोतम बुद्ध अपने सारथी चन्ना के साथ नगर भ्रमण पर निकलते है | इस कर्म में चार दृश्य देखते है -: 

a) वृद्ध व्यक्ति, b) रोगी/बिमार व्यक्ति, c)मृत व्यक्ति, d)सन्यासी व्यक्ति 

इन  उपर्युक्त दृश्यों को महात्मा बुद्ध को दुःख के प्रति घोर घृणा हुई और सन्यासी जिवन व्यतीत करने का मन बना लिया | एक रात अपनी पत्नी-पुत्र, माता-पिता, सब को राजमहल में सोते हुए छोड़कर 29 वर्ष की उम्र में ग्र्हत्यागी बन गए | इस घटना को बोद्ध साहित्य में ‘महाभिनिषकमण’ के नाम से जाना था | ग्रहत्याग करने के बाद गोतम बुद्ध ने आचार्य आलार कलाम एवं रुदकरामपुत्र से ज्ञान प्राप्ति करने का शुरू किया किन्तु उन्हें संतुष्टि नही हुआ | इसके बाद गोतम बुद्ध अपने पांच ब्राहमण साथियों के साथ गया के निकट अरुवेला जंगल में फल्गु | निरंजना नदी के तट पर पीपल वृक्ष के निचे तपस्या करने लगे | एक सुजाता नामक कन्या के हाथों गोतम बुद्ध प्रसाद ग्रहण कर  लेते है | इस घटना को उनके साथी देख लेते हैं और उन्हें पाखंडी समझकर उनका साथ छोड़कर वंहा से चल जाते हैं | इस घटना के  बाद महात्मा बुद्ध ने मध्यम मार्ग को अपनाया और 8वे ही दिन उन्हें गया को बोद्ध गया और पीपल वृक्ष को बोद्धवृक्ष कहा जाता है |

                  ज्ञान प्राप्त करने के बाद बुद्ध अपने दो बंजारे तपस्यु और मालिक के साथ सारनाथ आते है और सारनाथ में अपना प्रथम उदेश उन पांच ब्राह्मण साथियों को देते है, जिसे बोद्ध धर्म में ‘धर्मचक्रप्रवण’कहा जाता है | इसके बाद महात्मा बुद्ध रत्नागिरी, कर्नाटक, कपिलवस्तु, राजग्रह आदि स्थानों पर उपदेश देते हैं |

                     इस क्रम में गोतम बुद्ध पावापुरी भी बोद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए जाते है | जंहा चुंद सुनार के घर भोजन करते है और यही से इनके पेट् में दर्द उत्पन होता है | फलस्वरूप ये कुशीनगर की और प्रस्थान करते है | जंहा 483 ई. पू. इनकी मृत्यु हो जाती है | बोद्ध धर्म के इस घटना को ‘महापरिनिर्वान’ के नाम से जाना जाता है | 

प्रश्न 6. बोद्ध धर्म के पतन के कारणों पर प्रकाश डाले ?

उत्तर –  बोद्ध धर्म भारत में ही नही बल्की विश्व के विभिन्न देशो में प्रसिद्ध हुआ किन्तु यह धर्म जिस तरह से कम समय में अधिक लोकप्रिय हुआ ठिक उसी तरह से सीघ्र हि इसका पतन भी शुरू हो गया | बोद्ध धर्म के पतन के कई महत्वपूर्ण कारण है | 

a) भ्रष्ट गतिविधियों का शामिल होना – महात्मा बुद्ध संघ के कठोर नियम बनाये थे | जिसके कारण संघ के सदस्यों को अनुशासनपूर्ण जिवन व्यतीत करना पड़ता था | किन्तु बुद्ध के महापरिनिर्वान के बाद संघ के सदस्य धीरे-धीरे विलासपूर्ण जिवन व्यतीत करने लगे जो इस धर्म के पतन का कारण था | 

b) हिन्दू धर्म का समावेश – बोद्ध धर्म में हिन्दू धर्म की कई संस्कृतियाँ का शामिल होना इसके पतन का करण बना | क्योंकि हिन्दू धर्म की संस्कृति काफ़ी जटिल होते हैं |

c) विदेशी आक्रमण – 

         COMMING SOON 

 

Author

SANTU KUMAR

I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.

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