1. प्रारंभिक जीवन
बिहारीलाल हिंदी साहित्य के रीतिकाल के प्रमुख कवि थे। उनका जन्म सन् 1595 ई. के आसपास ग्वालियर के बसोवा (या गोविंदपुर) नामक स्थान पर हुआ माना जाता है। उनके पिता का नाम केशव राय और माता का नाम जग्गा देवी था। बिहारी का बचपन ब्रजभूमि (मथुरा) में बीता, जहाँ उन्होंने ब्रज भाषा और कृष्ण भक्ति की मधुर परंपरा को आत्मसात किया। बचपन से ही उनमें कविता और भाव–अभिव्यक्ति की अद्भुत प्रतिभा दिखाई देने लगी थी।
2. शिक्षा
बिहारीलाल ने संस्कृत, हिंदी, नीति, अलंकार और काव्यशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की। वे अत्यंत विद्वान, संवेदनशील और प्रतिभाशाली कवि थे। ब्रज भाषा पर उनका विशेष अधिकार था, जो उनकी काव्य रचनाओं में स्पष्ट झलकता है।
3. करियर / प्रमुख योगदान
बिहारीलाल जयपुर नरेश जयसिंह प्रथम के दरबार में कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। वहाँ उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कृति ‘बिहारी सतसई’ की रचना की, जो नीति, प्रेम, भक्ति और समाज जीवन का अत्यंत सुंदर चित्रण प्रस्तुत करती है।
बिहारी अपने संक्षिप्त, सारगर्भित और गूढ़ दोहों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके दोहों में जीवन–दर्शन, नीति, श्रृंगार और भक्ति का अद्भुत समन्वय है।
उनकी शैली में संक्षिप्तता, गूढ़ता, शब्द–चातुर्य और रस–माधुर्य का सुंदर मेल मिलता है।
4. प्रमुख रचनाएँ
- बिहारी सतसई – उनकी सर्वश्रेष्ठ और प्रसिद्ध रचना।
- दोहा संग्रह – उनके नैतिक और प्रेम–प्रधान दोहों का संकलन।
‘बिहारी सतसई’ में लगभग 700 दोहे (सप्तशती) हैं, जिनमें जीवन, प्रेम, समाज, भक्ति और राजनीति तक के गहरे अर्थ निहित हैं।
5. उपलब्धियाँ / साहित्यिक महत्व
- बिहारी ने अल्प शब्दों में गूढ़ भाव व्यक्त करने की अद्भुत कला प्रस्तुत की।
- उनकी रचनाएँ रीतिकाल की नीति और श्रृंगार शाखा का सर्वोत्तम उदाहरण हैं।
- उन्हें “नीति कवि” और “संक्षिप्तता के सम्राट” कहा जाता है।
- उनके दोहे आज भी हिंदी साहित्य में आदर्श उदाहरण के रूप में पढ़ाए जाते हैं।
- बिहारी ने कविता को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन के आदर्श और नीति का माध्यम बनाया।
6. पुरस्कार / सम्मान
हालाँकि उस समय आधुनिक पुरस्कार प्रचलित नहीं थे, फिर भी बिहारीलाल को जयपुर दरबार में अत्यंत सम्मान प्राप्त था। नरेश जयसिंह प्रथम उनके काव्य से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने उन्हें विशेष मान–सम्मान और यश प्रदान किया।
7. मृत्यु / विरासत
बिहारीलाल का निधन लगभग 1663 ई. में हुआ माना जाता है। उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।
उनकी “बिहारी सतसई” सदियों से पाठ्यक्रमों में सम्मिलित है और नीति, प्रेम तथा जीवन के हर पहलू को सरल शब्दों में व्यक्त करती है।
उनकी काव्य शैली और भावाभिव्यक्ति ने हिंदी साहित्य में अमर स्थान प्राप्त किया।
8. रोचक तथ्य
- बिहारीलाल के दोहे इतने प्रसिद्ध हैं कि उन्हें “दोहे का सम्राट” कहा जाता है।
- उनकी “सतसई” में हर दोहा एक अनमोल रत्न के समान है।
- वे कभी–कभी अपने दोहों के माध्यम से राजा जयसिंह को भी नीति–संदेश देते थे।
- उनके दोहों का अनुवाद कई भाषाओं में किया गया है।
- बिहारी ने श्रृंगार और नीति दोनों रसों को समान रूप से साधा।
📚 संक्षेप में
बिहारीलाल ने अपने सूक्ष्म, सारगर्भित और गहन दोहों से हिंदी साहित्य को नयी ऊँचाई दी।
उनकी रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों को जीवन के हर क्षेत्र में नीति, भक्ति और सौंदर्य का मार्ग दिखाती हैं।
