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डॉ० श्यामसुन्दर दास जीवन परिचय

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डॉ. श्यामसुन्दर दास – जीवन परिचय

(Dr. Shyamsundar Das Biography in Hindi)

1. प्रारंभिक जीवन

डॉ. श्यामसुन्दर दास का जन्म 4 मई 1875 को वाराणसी (काशी) में हुआ। उनके पिता पंडित सूर्य नारायण दास संस्कृत और हिंदी के विद्वान थे। संस्कारों और भाषा-परंपरा से भरपूर परिवार में जन्म लेने के कारण दास जी बचपन से ही विद्वता, अध्ययन और साहित्यिक संस्कारों की ओर आकर्षित थे।

2. शिक्षा

दास जी ने वाराणसी से ही अपनी प्रारंभिक और उच्च शिक्षा प्राप्त की। हिंदी, संस्कृत, उर्दू और अंग्रेज़ी पर उन्होंने मजबूत पकड़ बनाई। आगे चलकर वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में हिंदी के श्रेष्ठ आचार्य और विद्वान के रूप में विख्यात हुए।
उनकी शिक्षा का मूल आधार स्वाध्याय, भाषागत प्रयोग और साहित्यिक अनुशासन था।

3. करियर / प्रमुख योगदान

डॉ. श्यामसुन्दर दास नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी के संस्थापकों और प्रमुख कार्यकर्ताओं में से एक थे।
उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है—हिंदी का प्रथम वैज्ञानिक और विस्तृत ‘हिंदी शब्दसागर’ तैयार करना।
उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य को आधुनिक रूप देने, शोधकार्य को प्रोत्साहन देने और विश्वविद्यालयीय स्तर पर हिंदी अध्ययन को मजबूत करने में महान योगदान दिया।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वे हिंदी विभाग के संस्थापक अध्यक्ष रहे और शिक्षण व संपादन कार्य में नई परंपराओं की शुरुआत की।

4. उपलब्धियाँ

  • हिंदी शब्दसागर (8 खंडों का शब्दकोश) का निर्माण
  • BHU में प्रथम हिंदी विभागाध्यक्ष
  • हिंदी साहित्य में शोध और आलोचना की वैज्ञानिक परंपरा स्थापित
  • नागरी प्रचारिणी सभा के माध्यम से हिंदी के विकास हेतु अद्वितीय योगदान
  • आधुनिक हिंदी भाषा को मानक रूप देने में अग्रणी भूमिका

5. कार्य और रचनाएँ

डॉ. श्यामसुन्दर दास बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने व्याकरण, आलोचना, साहित्य इतिहास, शब्दकोश, अनुवाद, और शोध के क्षेत्र में अमूल्य कृतियाँ दीं।

मुख्य कृतियाँ –

  • हिंदी शब्दसागर (8 खंड)
  • साहित्य-चिंतन
  • नागरी प्रचारिणी सभा का इतिहास
  • हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहास
  • काव्य-निर्णय
  • संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त इतिहास (संपादन)

6. पुरस्कार / सम्मान

हालाँकि उस समय साहित्यिक पुरस्कारों की अधिक परंपरा नहीं थी, फिर भी दास जी को हिंदी जगत में अत्यंत सम्मान प्राप्त था।
उन्हें ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि मानद रूप से उनकी विद्वता और शब्दकोशकारी कार्य के लिए दी गई थी।
हिंदी के विकास में उनके योगदान के कारण उन्हें आधुनिक हिंदी का पंडित, शब्दकोश-निर्माता और श्रेष्ठ भाषाविद् माना जाता है।

7. मृत्यु / विरासत

डॉ. श्यामसुन्दर दास का निधन 16 फरवरी 1945 को हुआ।
उनकी विरासत हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर है—विशेषकर हिंदी शब्दसागर, जिसे आज भी हिंदी के सबसे प्रामाणिक शब्दकोशों में गिना जाता है।
हिंदी भाषा, शब्द-शास्त्र और साहित्यिक शोध के क्षेत्र में उनका योगदान सदैव याद किया जाएगा।

8. रोचक तथ्य

  • दास जी प्रतिदिन कई घंटे पठन-पाठन और शोध में लगाते थे।
  • उन्हें “चलता-फिरता हिंदी ज्ञानकोष” कहा जाता था।
  • उन्होंने हजारों शब्दों के अर्थ, स्रोत और उपयोग की खोज कर शब्दकोश में जोड़ा।
  • उनके निर्देशन में अनेक शोध-विद्यार्थी हिंदी साहित्य के बड़े विद्वान बने।
Author

SANTU KUMAR

I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.

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