आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी – जीवन परिचय
(Acharya Mahavir Prasad Dwivedi Biography in Hindi)
1. प्रारंभिक जीवन
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म 15 मई 1864 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के द्विवेदीपुर गाँव में हुआ। उनके पिता पं. रामसहारख द्विवेदी रेलवे विभाग में कार्यरत थे। द्विवेदी जी बचपन से ही अध्ययनशील, जिज्ञासु और गंभीर स्वभाव के थे। हिंदी, संस्कृत और मराठी भाषाओं के प्रति उनकी रूचि प्रारंभ से ही स्पष्ट दिखाई देती थी।
2. शिक्षा
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव में हुई। बाद में उन्होंने स्वयं अध्ययन कर संस्कृत, हिंदी, मराठी और अंग्रेज़ी पर उत्कृष्ट पकड़ बनाई। उन्होंने औपचारिक शिक्षा के बजाय स्वाध्याय से ही गहन विद्वता अर्जित की, जो आगे चलकर उनके साहित्यिक व्यक्तित्व की आधारशिला बनी।
3. करियर / प्रमुख योगदान
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत भारतीय रेलवे में की, लेकिन उनका असली योगदान साहित्य में दिखाई देता है।
महावीर प्रसाद द्विवेदी ‘सरस्वती’ पत्रिका (1903–1920) के संपादक बने, जहाँ से उन्होंने हिंदी साहित्य के विकास में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। उनके संपादन काल को ही हिंदी साहित्य में “द्विवेदी युग” कहा जाता है।
उनकी भाषा-सुधार, विचार-सुधार और समाजवादी दृष्टिकोण ने हिंदी गद्य को नई दिशा दी।
4. उपलब्धियाँ
- हिंदी साहित्य में द्विवेदी युग की स्थापना
- आधुनिक हिंदी गद्य और आलोचना की मजबूत नींव रखी
- अनेक बड़े लेखकों (जैसे मैथिलीशरण गुप्त, प्रसाद आदि) को मंच प्रदान किया
- भाषा को सरल, शुद्ध और व्याकरणिक शुद्धता के साथ प्रस्तुत किया
- समाज-चेतना और राष्ट्रीय जागरण को साहित्य से जोड़ा
5. कार्य और रचनाएँ
उनकी रचनाएँ विविध विषयों पर आधारित हैं—समाज, इतिहास, भाषा, साहित्य और राष्ट्रवाद।
मुख्य कृतियाँ:
- संन्यास और कर्मयोग
- कविकर्म
- साहित्य संबोधिनी
- नवरीतिका
- विचार-विलास
- कवि वचन सुवाच
- हिंदी भाषा का उद्भव और विकास
साथ ही अनेक अनुवाद, आलोचनाएँ, निबंध और संपादकीय लेख उनके साहित्यिक योगदान को समृद्ध बनाते हैं।
6. पुरस्कार / सम्मान
उनके समय में औपचारिक साहित्यिक पुरस्कारों की परंपरा नहीं थी, लेकिन उन्हें समाज और साहित्य में अत्यंत सम्मान मिला।
उन्हें “आचार्य” की उपाधि साहित्यिक जगत ने उनकी विद्वता, भाषा-सुधार और राष्ट्रीय योगदान के सम्मान में दी।
7. मृत्यु / विरासत
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का निधन 30 दिसंबर 1938 को हुआ।
उनकी विरासत हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। हिंदी भाषा को वैज्ञानिक, तर्कपूर्ण और आधुनिक रूप देने में उनका योगदान अतुलनीय है। आज भी उन्हें आधुनिक हिंदी गद्य का मार्गदर्शक, भाषा-सुधारक और श्रेष्ठ आलोचक माना जाता है।
8. रोचक तथ्य
- वे 10–12 पुस्तकें हमेशा साथ रखते थे—अध्ययन उनका नियमित नियम था।
- वे कठोर अनुशासनप्रिय संपादक थे, इसलिए ‘सरस्वती’ पत्रिका अत्यंत लोकप्रिय हुई।
- उन्होंने लगभग 100 से अधिक पुस्तकों का लेखन/संपादन किया।
- आधुनिक हिंदी साहित्य की कई महान विभूतियाँ उनके मार्गदर्शन में विकसित हुईं।
