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अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जीवन परिचय

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1. प्रारंभिक जीवन

अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ हिंदी साहित्य के महान कवि, निबंधकार, भाषाशास्त्री और शिक्षाविद थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1865 को अज़मगढ़ (उत्तर प्रदेश) के निजामाबाद कस्बे में हुआ था।
उनके पिता का नाम श्री रामसिंह उपाध्याय था। वे एक विद्वान ब्राह्मण परिवार से थे, जहाँ बचपन से ही साहित्य और संस्कृति का वातावरण मिला।
बचपन से ही हरिऔध जी में काव्य रचना की गहरी रुचि थी और वे संस्कृत, हिंदी और उर्दू के ज्ञाता बन गए।


2. शिक्षा

हरिऔध जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गाँव में हुई। बाद में उन्होंने संस्कृत, हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी की शिक्षा प्राप्त की।
उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री ली और आगे चलकर अध्यापन कार्य से जुड़े।
उनका भाषाई ज्ञान अत्यंत गहरा था, जिसके कारण वे आधुनिक हिंदी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सके।


3. करियर / प्रमुख योगदान

अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ ने साहित्य, शिक्षा और भाषा सुधार तीनों क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किए।
वे हिंदी के द्विवेदी युग के प्रमुख कवि थे, जिन्होंने साहित्य को नैतिकता, देशभक्ति और समाज सुधार से जोड़ा।
उनकी कविताओं में राष्ट्रप्रेम, समाज सुधार, संस्कृति और मानवता की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।
उन्होंने लंबे समय तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में हिंदी विभाग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


4. प्रमुख रचनाएँ

अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की रचनाएँ भाव, भाषा और विचारों की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध हैं। उनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं –

  • प्रिय प्रवास – यह उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है, जिसके लिए उन्हें अमर प्रसिद्धि मिली।
  • वैदिक जीवन
  • पारिजात
  • कवि सम्मेलन
  • कविता कौमुदी
  • चंद हसीन दिन
  • अशोक संकल्प
  • रस कलश

‘प्रिय प्रवास’ महाकाव्य के लिए उन्हें हिंदी साहित्य में अमर कवि के रूप में जाना जाता है। इस रचना में भगवान श्रीकृष्ण के द्वारका प्रवास के प्रसंग को अत्यंत भावपूर्ण ढंग से चित्रित किया गया है।


5. उपलब्धियाँ / साहित्यिक महत्व

  • हरिऔध जी को हिंदी साहित्य में द्विवेदी युग के प्रमुख कवि के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • उन्होंने संस्कृतनिष्ठ हिंदी को सरल और साहित्यिक रूप दिया।
  • उनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीयता, करुणा और मानवता की गहरी झलक मिलती है।
  • उन्होंने हिंदी कविता को एक नई दिशा दी — नैतिकता और जीवन मूल्यों की दिशा।
  • वे आधुनिक हिंदी कविता के प्रारंभिक निर्माताओं में से एक थे।

6. पुरस्कार / सम्मान

अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ को उनके साहित्यिक योगदान के लिए व्यापक सम्मान मिला।

  • उन्हें “कविराज” और “राष्ट्रकवि” की उपाधियों से सम्मानित किया गया।
  • काशी हिंदू विश्वविद्यालय में उन्होंने हिंदी को शैक्षणिक मान्यता दिलाई।
  • साहित्य प्रेमियों द्वारा उन्हें “हिंदी काव्य के पथप्रदर्शक” के रूप में सम्मानित किया गया।

7. मृत्यु / विरासत

हरिऔध जी का निधन 16 मार्च 1947 को हुआ।
उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।
उन्होंने हिंदी भाषा को साहित्यिक गरिमा प्रदान की और आने वाली पीढ़ियों को साहित्य, संस्कृति और राष्ट्रीयता का मार्ग दिखाया।
उनका नाम हिंदी कविता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।


8. रोचक तथ्य

  • अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ को हिंदी का “प्रथम आधुनिक कवि” भी कहा जाता है।
  • वे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के समकालीन थे और दोनों ने मिलकर हिंदी को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
  • उनका महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ हिंदी का पहला सफल खंडकाव्य माना जाता है।
  • वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के पहले प्राध्यापक थे।
  • उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ होते हुए भी सहज और भावनात्मक थी।

संक्षेप में

अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ हिंदी साहित्य के वह महान कवि थे जिन्होंने आधुनिक हिंदी कविता को स्वर और संरचना दी।
उनकी लेखनी में राष्ट्रप्रेम, संस्कृति और संवेदना का समावेश था।
उन्होंने हिंदी भाषा को न केवल साहित्यिक गरिमा दी बल्कि उसे जनमानस की भाषा बनाया।
हरिऔध जी का जीवन और साहित्य आज भी पाठकों को प्रेरणा, संस्कार और आत्मबल प्रदान करता है।

Author

SANTU KUMAR

I am a passionate Teacher of Class 8th to 12th and cover all the Subjects of JAC and Bihar Board. I love creating content that helps all the Students. Follow me for more insights and knowledge.

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